शेक्सपियर के गाँव में

शेक्सपियर के गाँव में

दादा जी हमारे थे पूरे अँग्रेज। छोटी थी, शाम होते ही उनको घेर कर बैठ जाती। वे भी बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठते, मुश्किल यों हो जाती क्योंकि वे थे अत्यधिक मोटे, गोरे, चौड़ा चेहरा किसी अँग्रेज से कम न लगते थे। जब वह सफेद पैंट और हाफ शर्ट पहनते तो लगता कोई अँग्रेज खड़ा हो। रेलवे में काम करते थे। अँग्रेजों के बीच रहने के कारण उसका प्रभाव यह पड़ा कि उनकी हर बात में विलायत का जिक्र आ जाता ‘हमारे साहब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े थे। इंग्लिश के कई उपन्यास पढ़ा करते थे, शेक्सपियर के नाटक तो उन्हें जबानी याद थे।’

उस समय छोटी थी। समझती नहीं थी, आखिर शेक्सपियर हीरो है या रंगकर्मी। लेकिन हाँ, कानों में उनका नाम बचपन से पड़ गया था। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, लेखक शेक्सपियर। ये नाम हृदय की तलहटी में कहीं जाकर छुप गए, धुँधले हो गए थे। जब हमारी बिटिया उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लंदन गई तो उसकी पढ़ाई के दौरान मुझे भी लंदन जाना पड़ा। विलायत पहुँच कर दादा जी की आवाज कानों में एकांत के क्षण में गूँजने लगती–शेक्सपियर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी।

एक साहित्यसेवी होने के कारण हृदय की तलहटी में जो नाम दब गया था, वह अब किनारे पर आकर तैरने लगा था और हिलोरे मारने लगा था। मैं हमेशा अपनी पुत्री से कहती मेरी अभिलाशा है कि मैं शेक्सपियर की जन्मभूमि, कर्मभूमि देखूँ। मेरे दामाद हमेशा सुनते थे। इस बार की मेरी लंदन-यात्रा में उन्होंने कहा ‘चलिए इस बार मैं आपको आपके शेक्सपियर से मिलवा लाता हूँ।’

शनिवार के दिन सात बजे सुबह चलने का समय निर्धारित हुआ। मारे उत्सुक्ता के सारी रात मुझे ठीक से नींद नहीं आई, मैं सुबह पाँच बजने के पूर्व ही तैयार हो गई, बिटिया ने साथ में अपने हाथों से बनाकर पूरियाँ, आलू की सब्जी, अचार, फल, पानी की बोतलें सब पैक करके रख दिया। जैसे हम अपने भारत में ही कहीं घूमने जा रहे हैं।

छह बजे हमलोग का कारवाँ शेक्सपियर के गाँव स्ट्रैटफोर्ड ऑन एवन शेक्सपियर के गाँव की ओर निकल पड़ा। रीडिंग से स्ट्रेटफोर्ड की दूरी करीब 90 माईल थी। रास्ते की आलौकिक सुंदरता का वर्णन करना मुश्किल है, दूर तलक हरे हरे खेत, छोटी-छोटी हरी-हरी घासों से आच्छादित पहाड़ियाँ, बीच में चौड़ी सी काली सड़क। सड़क के दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे पंक्तिबद्ध पेड़ जिनके पत्तों का रंग, कहीं नारंगी, कहीं पीले, कहीं लाल, तो कहीं गाढ़े हरे, कहीं हलके हरे। एक ही पेड़ में इतने रंगों का समावेश अतुलनीय था। ये एक ऐसा मौसम होता है जहाँ एक ही पेड़ के पत्ते कई रंगों के हो जाते हैं। अद्भुत नजारा होता है–करीब तीन घंटे की यात्रा के बाद हम ‘स्ट्रेटफोर्ड ऑन एवन’ पहुँचे।

कार को पार्किंग में लगाकर जैसे ही कार के बाहर कदम रखा ठंडी हवा के झोके ने हमारा स्वागत किया। उस हवा के झोके में एक नशा सा था, जिसने मुझे सम्मोहित कर लिया, जगह-जगह पर रास्ते का दिशा-निर्देश दिया गया था। स्ट्रेटफोर्ड का अर्थ एक नदी की धारा, को दर्शाता है। इसका अर्थ होता है–नदी, परंतु इसके प्रसिद्ध होने का कारण विलियम शेक्सपियर का हेनले स्ट्रीट में जन्म होना था।

एवन नदी के किनारे बसा यह शहर, शांत और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर! सड़क, ऊपर आकाश बिलकुल नीला, जिस पर कहीं कहीं रुई के फाहे से खेलते बादल आह! हृदय आनंदित हो उठा। मैं शेक्सपियर के जन्म स्थल की ओर बढ़ी। मैने देखा कि सड़क के दोनों किनारे पर छोटे-छोटे लकड़ियों के बने घर, होटल, दुकानें ऐसा आभास दिला रही थी कि जैसे हम आज के युग में नहीं बल्कि शेक्सपियर के जमानें 1564 में पहुँच गए हैं। उस सड़क पर गाड़ियों का चलना वर्जित था। सड़क के किनारे एक नवयुवक अपने मधुर स्वर से कोई इंग्लिश गाना गा रहा था, थोड़ी दूर पर कुछ लोग शेक्सपियर के नाटक के पात्र बनकर खड़े थे। बीच चौराहे पर एक सुंदर फव्वारा जिसके बीच में विलियम शेक्सपियर की बड़ी सी मूर्ति शहर की शोभा बढ़ा रही थी। परंतु मुझे तो बस शेक्सपियर के जन्म स्थल पर शीघ्र, अति शीघ्र पहुँचने की जल्दी थी। हम आगे बढ़े तभी एक लकड़ी के मकान के बाहर बने छोटे से दरवाजे के ऊपर देखा, तख्ती पर लिखा था–शेक्सपियर का जन्म स्थान।

हेनली स्ट्रीट सबसे पुरानी सड़कों में से एक सड़क है, जिसमें 1564 में जॉन शेक्सपियर के घर विलियम शेक्सपियर ने जन्म लिया। हम दरवाजे के अंदर आए। जैसे ही हम दरवाजें के अंदर घुसे, रिसेप्शन बना हुआ हुआ था, जहाँ से हमने टिकट लिया और अंदर दाखिल हुए। दीवार की एक तरफ शेक्सपियर का एक बड़ा सा तैल चित्र लगा था। नीचे उनकी कृतियों का उल्लेख था। वहीं दूसरी ओर से रास्ता अंदर को गया। जब हम भीतरी कक्ष में पहुँचे तो देखा वहाँ एक तरफ बड़ा सा पत्थर रखा था। दूसरी दीवार में एक टँगी तख्ती को पढ़ने से पता चला कि उसी पत्थर पर विलियम शेक्सपियर बड़ी देर तक बैठे रहते थे।

संपत्ति 1670 तक शेक्सपियर के प्रत्यक्ष वंशजों के स्वामित्व में रही, जब उनकी पोती एलिजावेथ बर्नार्ड की मृत्यु हो गई। चूँकि उनकी कोई संतान नहीं थी, एलिजाबेथ ने शेक्सपियर के परपोते अपने रिश्तेदार थॉमस हार्ट को संपत्ति छोड़ दी। 1601 में जॉन शेक्सपियर की मृत्यु के बाद मुख्य घर मेडेनहेड (बाद में स्वान और मेडेनहेड) एक किरायेदार सराय बन गया। हार्ट परिवार के सदस्य पूरी सदी में छोटे से सटे झोपड़ी में रहते रहे। जब और भीतर गए तो वहाँ कुछ लेखकों की शेक्सपियर के लिए लिखी गई पांडुलिपियाँ थीं, एक दीवार पर उस समय पहने जाने वाले कुछ वस्त्र टँगे थे। हॉल के एक तरफ टेबुल लगी थी, जिसमें सब एक साथ खाना खाते थे। एक अलमारी में उस समय प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तन रखे थे, मुख्य द्वार से घूमते हुए जब हम अंत द्वार पर पहुँचे तो वहाँ एक बहुत सुंदर सुसज्जित वर्गाकार बगीचा था। बगीचे के बीच में लोहे की बेंच लगी थी। जन्म स्थान घूमने के पश्चात हम उनके नए आवास स्थान जहाँ उन्होंने अपनी पत्नी ऐनी हेथवे के साथ अपना जीवन व्यतित किया था, उस जगह पहुँचे।

ये अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। इनके बच्चों के नाम और उनके वंशावली एक पारिवारिक वृक्ष बनाकर दर्शाया गया था। ये नया घर लकड़ी का बना बड़ा ही सुंदर मकान था, जिसके आँगन में एक कुआँ बना था जो उस घर के पानी की जरूरत को पूरा करता था। वहाँ से निकलने के बाद सड़क दाईं ओर मुड़ी और हम जा पहुँचे शहर के मुख्य भाग में–जहाँ सुंदर छोटी-छोटी दुकाने बनी थी और जहाँ बहुत सारे छोटे छोटे सामान बिक रहे थे। उसके बाद हम जा पहुँचे उनकी कब्रगाह पर, होली ट्रीनिटी चर्च। यहाँ विलियम शेक्सपियर को और उनके परिवार जन को दफनाया गया था। इस चर्च में चलते हुए जो एक पार्क के रूप में बना हुआ है, यहाँ बड़े बड़े वृक्षों के बीच में पैदल चलना बड़ा ही सुखद रहा। चर्च का भीतरी भाग भी अत्यंत ही सुंदर है।

मैं वहाँ के गार्डन ऑफ रिमेंबरेंस भी गई, जिसका सौंदर्य अद्भुत था। जब मैं वहाँ टहल रही थी तो ऐसा महसूस हुआ कि मैं अपने वर्तमान से चार कदम पीछे हो गई हूँ और विलियम शेक्सपियर की कब्र के पास बैठ कर एक विचित्र सी शांति का अनुभव हो रहा था। चर्च के बाहर किनारे-किनारे चलते हुए मैं एवन नदी के किनारे पहुँच गई, कल-कल करता नीला पानी बड़ी ही शांति से बह रहा था, मानो वह नहीं चाहता था कि उसकी आवाज से विलियम शेक्सपियर को, जो आराम से अपनी कब्र में लेटे हैं, उनको कोई खलल पहुँचे। हम एवन नदी के किनारे पहुँचे, नदी की दोनों ओर हरियाली थी। नर्म-नर्म घास पर खेलते बच्चे, बैठे वृद्ध, नवयुवक और नवयुवतियों के झुंड उस सुंदरता को और भी बढ़ा रहे थे। परंतु मेरा ध्यान तो बस लगा था कि इस शांति भरी जगह, जहाँ अपनी साँसों का उच्छावास भी सुनाई दे रहा था। वहाँ बैठ कर लिखा जाए तो क्या अद्भुत रचना तैयार हो। इच्छा हुई वहाँ बहुत देर तक बैठूँ और विलियम शेक्सपियर की कृतियाँ जो विश्व साहित्य का खजाना है उसे पढ़ूँ, आत्मसात करूँ, नदी के किनारे बैठ कर अनायास ही मेरे होठों से गीत के बोल गुनगुनाहट के निकलने लगे–‘ये किस कवि कि कल्पना है, वह कौन चित्रकार है यह कौन चित्रकार है।’ वहाँ बैठने के बाद हम वहाँ के संग्रहालय देखने गए, जहाँ विलियम शेक्सपियर की कृतियाँ एवं कई चित्र बड़े ही सहेज कर रखे गए थे, उन सबको देखा।

रात्रि ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी, सारा दिन न जाने कैसे बीत गया था, फिर भी वहाँ के थियेटर रॉयल शेक्सपियर रंगमंच बैनकाफट गाईन स्थित हैं को बाहर से देखा, जहाँ आज भी विलियम शेक्सपियर के नाटकों का मंचन होता है।

कार में बैठ कर इस विश्वास के साथ वापस आए कि एक बार पुनः इस साहित्य की पावन भूमि पर आऊँगी और सूक्ष्म रूप से इस जगह को देखूँगी, समझूँगी। दिल में एक ख्याल-सा आ रहा था जो बड़ा विचित्र था। उसे हास्य कहें या मेरे विचारों का पागलपन, लगता था, कहीं से विलियम शेक्सपियर की आत्मा आ जाए और अपने जीवन में घटित सारी घटनाओं को अपने मुख से सुना जाए, साथ ही अपना आशीर्वाद भी दे दें।


Image: William Shakespeare
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