जीवन-सौंदर्य की गजलें

जीवन-सौंदर्य की गजलें

गजल अब बोलना सीख गई है। बोलना मनुष्य-जीवन की उन जटिल प्रक्रियाओं में से एक है, जिसे कोई खो दे, तो जीवन का अर्थ कैसा-न-कैसा होकर रह जाएगा, यह बखूबी समझा जा सकता है। मेरा आशय यहाँ यह नहीं है कि गजल पहले गूँगी थी, अब अचानक से बोलने लगी है। गजल पहले भी बोलती थी और अब भी बोलती है। लेकिन पहले और अब के कहने में जो फर्क आया है, वह यह कि हिंदी की गजल पहले लुक-छिपकर किसी के खिलाफ कुछ बोलती थी, अब मुखर होकर कहती है। इसके लिए आभार दुष्यंत कुमार का किया जाना चाहिए। किसी के विरुद्ध बोलने की यह परंपरा दुष्यंत कुमार से चलकर हिंदी के बाकी गजलकारों तक पहुँची है।

एक सच यह भी है, किसी के विरुद्ध बोलना अकेले के बस का कभी नहीं रहा, क्योंकि झूठ जब हजार मुँह से कहा जाता रहा हो, तो सच को भी सौ मुँह से कहा जाना जरूरी होता है। उसी सच बोलने वाले मुँह में से एक मुँह अनिरुद्ध सिन्हा का समकालीन हिंदी गजल में रहा है। इस शायर के बारे में यह कहा जाना एकदम सही है कि अनिरुद्ध सिन्हा हिंदी गजल के ऐसे सुप्रतिष्ठ गजलकार हैं, जो गजल को एक गंभीर सृजनात्मक वर्ग से युक्त एक समग्र उत्सर्गता चाहते हैं। अनिरुद्ध सिन्हा के अभी तक आठ गजल-संग्रह छपे हैं। ‘तुम भी नहीं’ इनका आठवाँ गजल-संग्रह है। इस संग्रह की गजलें जो भी कहती हैं, साफ-साफ कहती हैं, ‘यूँ तो मुश्किल है बहुत इसको मिटाना साहब/दुश्मनी प्यार की तलवार से कट जाती है।’ गजल को इस तरह से बरतने का अंदाज अनिरुद्ध सिन्हा का अपना है। इस शायर के बोलने-बतियाने का यही अंदाज इसको हिंदी का बड़ा शायर बनाता है। अनिरुद्ध सिन्हा की गजलों को आप पढ़ रहे हों या फिर सुन रहे हों, दोनों ही वक्त आपके भीतर और बाहर एक नई तरह का समाँ बँधता है, ‘खुशरंग फिजा होगी ये सोच के घर जाना/हँसते हुए बच्चों की आँखों में उतर जाना।’

अनिरुद्ध सिन्हा सीधे-सीधे प्रतिरोध के शायर नहीं हैं, लेकिन इनके आसपास अगर गलत कुछ घट रहा होता है, तो ये चुप भी नहीं रहते। इसकी वजह साफ है, कहीं पर कुछ गलत हो रहे को देखकर भी चुप रह जाने का मतलब यह निकलता है कि उस शायर के अंदर पीड़ा नहीं होती। चुप रह जाने वाला शायर इंसानियत के दुश्मन का दोस्त होता है और अनिरुद्ध सिन्हा को इंसानियत के खिलाफ की जाने वाली कोई भी कार्रवाई कतई मंजूर नहीं है, तभी कहते हैं, ‘गरीबी वक्त के भूगोल के नक्शे पर चलती है/अमीरी तो महज जज्बात के पर्दे बदलती है।’ इस तरह से अनिरुद्ध सिन्हा की शायरी को हम देखें, तो इनकी शायरी जहाँ विरोध की शायरी है, वहीं जीवन के सौंदर्य की रक्षा भी करती हुई दिखाई देती है, ‘खुशबू हो तो तुम साथ हवा के आ जाते/मेरे घर-आँगन को भी महका जाते।’ एक अच्छे और सच्चे शायर की पहचान यही तो है कि आप जिंदगी के जितने रंगों को सामने ला सकते हैं, लाते रहें। जिंदगी के रंग मटमैले हैं, तो इंद्रधनुष के जैसे भी हैं, ‘जो देखना हो तो देखो बरसते पानी में/तभी सड़क की हकीकत समझ में आती है।’

अनिरुद्ध सिन्हा की खासियत यह भी है कि वो सिर्फ दिखावे की शायरी नहीं करते। हमेशा एक सच्चे शायर की जिंदगी को जीते हुए शायरी करते हैं। और एक सच्चे शायर की जिंदगी हमेशा ऊबड़-खाबड़ रास्तों की मानिंद होती है। और ऐसी जिंदगी के बारे में शायरी करना कभी आसान नहीं होती, तभी अनिरुद्ध सिन्हा शिद्दत से कहते हैं, ‘उदास-उदास सफर था उदास रस्ता भी/उदास लगता था मुझको खुद अपना साया भी (पृष्ठ-22)।’ यह सच ही तो है कि आदमी के जीवन से उजाले हथिया लिए जा रहे हैं। यह अँधेरा ऐसा है, जो आपको बस डराकर छोड़ नहीं देता बल्कि आपको डरा-डराकर मार भी डालता हाई। ऐसे घुप्प अँधेरे से सामना एक सच्चा शायर कर भी सकता है और इस घुप्प अँधेरे को अपनी कलम की मशाल से रौशनी भी सौंप सकता है, ‘सोचना ये है कि आखिर वक्त की चाहत है क्या/तुम समझते ही नहीं हालात की नीयत है क्या (पृष्ठ-47)।’ अनिरुद्ध सिन्हा की गजलें आदमी की दयनीयता को जिस तरह प्रकट करती हैं, इससे किसी भी सरकार के मनभावन वादों की पोल खुलती हुई दिखाई देती है, ‘सच हाई कितना झूठ कितना रहबरों को है पता हो भले अंजान मुंसिफ कातिलों को है पता (पृष्ठ-51)।’

अनिरुद्ध सिन्हा का यह नवीनतम गजल-संग्रह ‘तुम भी नहीं’ इस अर्थ में नायाब है कि इस किताब की गजलें हमें हारने नहीं देतीं बल्कि हारे हुओं को हौसला देती हैं। इसी कारण हम अनिरुद्ध सिन्हा को गजल की आबरू कहते हैं, तो गजल के पूरे समय की आबरू कहते हैं। यह इसलिए कि अनिरुद्ध सिन्हा गजल जैसी विधा को जिस मुहब्बत से बरतते चले आ रहे हैं, इससे गजल का समय हमेशा ताजगी लिए हुए दिखाई देता है। इस संग्रह में इनकी नब्बे से अधिक गजलें शामिल की गई हैं और सभी गजलें एक से बढ़कर एक हैं। उम्मीद है, इस संग्रह के छपकर आने से आलोचकों का हिंदी गजल को देखने, परखने और समझने का नजरिया भी बदलेगा, ‘तेरे खयाल का जादू है रात-दिन मुझ पर बचूँ मैं जितना ही उतना ही बेकरार करे। (पृष्ठ- 84)।’


Image: Maharaj Fateh Singh enthroned on a terrace with courtiers, musicians, dogs and b
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