क्रूज से आइलैंड ऑफ फीमेल को
- 1 February, 2015
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- 1 February, 2015
क्रूज से आइलैंड ऑफ फीमेल को
आमतौर हम जब कभी क्रूज (पानी के जहाज) से यात्रा की बात करते हैं तो, वास्कोडिगामा तथा कोलम्बस वाले कष्टों से भरे सफर का चित्र हमारी आँखों के सामने आ जाता है, लगता है चारों तरफ पानी ही पानी और बीच में अंजानों का साथ कैसा लगता होगा वहाँ? लक्षद्वीप जाने के क्रम में मुझे तो ऐसा लग रहा था, जैसे मैं बचपन में पढ़ी कहानियों वाले एक बियावान द्वीप में जा रही हूँ। चार दिन और तीन रातों वाले हमारे इस सफर में मेरे लिए एक नहीं दो-दो आकर्षण थे, पहला प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे अरब सागर के पश्चिम की ओर स्थित लक्षद्वीप जाना और दूसरा आकर्षण था सिंगापुरी क्रूज का अनुभव प्राप्त करना, फिर यह पैकेज पंचसितारा होटलों की तुलना में इतना महँगा भी तो नहीं था जबकि सुविधायें, मनोरंजन तथा मस्ती वहाँ की तुलना में किसी भी कीमत में उससे कम न थी। हम दो लोगों के लिए इकोनोमिक क्लास आठवीं मंजिल पर स्थित केबिन का किराया चार दिन और तीन रातों का कुल 51 हजार रुपये था। वैसे पहली, दूसरी या तीसरी डेक पर स्थित कमरों का किराया हमारे किराये से काफी कम था फर्क सिर्फ इतना था कि ऊपर के केबिन में जहाज का पानी में चलना न के बराबर मालूम पड़ रहा था जबकि नीचे के केबिन में क्रूज के चलने का अहसास होता था। बजट कम होने की स्थिति में आप अपने लिए नीचे के केबिनों को भी बुक करवा सकते हैं। इसके अलावा आप ‘ऑफ सीजन डिस्काउंट’ तथा ‘कपल डिस्काउंट’ का भी फायदा उठा सकते हैं। कुछ समय पहले (लगभग एक महीने पहले) क्रूज बुक करवाने पर क्रूज कंपनी आपको क्रूज के किराये में काफी रियायत दे सकती है। कोई भी टिकट की बुकिंग डायरेक्ट नहीं होती है। इसके लिए हमें ‘टूर टैवल एजेंट’ के माध्यम से बुकिंग करवानी होगी। हमारे क्रूज में कुल कमरों की संख्या 740 थी तथा पैसेंजर्स केपेसिटी 1500 थी। इसके अलावा एग्जीक्यूटिव क्लास के लिए भी कुछ सुइट्स वहाँ पर हैं।
यह क्रूज प्रत्येक रविवार की शाम मुंबई में स्थित इंटरनेशनल क्रूज टर्मिनल ‘इंदिरा डॉक’ से शाम आठ बजे लक्षद्वीप के लिए रवाना होता है। हमारा क्रूज के द्वारा मुंबई से लक्षद्वीप जाने का सफर 36 घंटे का था। वैसे दो साल पहले दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान भी हम कोच्चि से प्लेन अथवा क्रूज से लक्षद्वीप जाना चाहते थे। यह यात्रा पानी के रास्ते बीस घंटे में पूरी होती थी। यह प्लेन आपको वहाँ की राजधानी कावारत्ती ले जाता है जहाँ पर ठहरने के लिए कई अच्छे होटल तथा रिसॉर्ट हैं। राजधानी होने के कारण निःसंदेह यह द्वीप कदमत द्वीप से अधिक बड़ा और डेवलप होगा परंतु प्राकृतिक सौंदर्य के स्तर पर कौन-सा द्वीप अधिक सुंदर है, यह तो वहाँ जाने पर पता चलेगा। हम बीस दिनों की यात्रा के दौरान इतना थक गये थे कि उस समय आगे जाने का मन ही न हुआ।
हमने अपनी बुकिंग पहले से ही करवा रखी थी। रविवार की शाम आठ बजे हमारे क्रूज को छूटना था, हम ठीक 5:30 बजे बॉम्बे स्थित ‘इंटरनेशनल क्रूज टर्मिनल’ पहुँचे। बोडिंग के तुरंत बाद एक आदमकद ‘डोनाल्ड डक’ ने हमारा स्वागत किया। कुछ आगे बढ़ने पर अचानक हमें रास्ता दिखना बंद-सा हो गया। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती मेरे पति ने कहा, ‘यह देखो अपना क्रूज।’ मैंने सर उठाकर देखा हमारे सामने खड़ा था एक दैत्याकार दस मंजिला जहाज जिसकी लंबाई 713 फीट तथा चौड़ाई 93 फीट थी। यह क्रूज वाकई मेरी कल्पना से कई गुना बड़ा था।
क्रूज की चौथी मंजिल (डेक) स्थित रिसेप्शन में प्रवेश करते ही ‘ब्राजीलियन डांसर्स’ ने हमसे हाथ मिलाकर हमारा स्वागत किया तथा हमारे साथ फोटो खिंचाई। लाल, नीले चमकते उन परिधानों में मुझे वे जलपरी सी लग रहीं थीं। चलने से पहले हम सोच रहे थे कि केबिन कहीं छोटा तथा घुटा-घुटा न हो परंतु वहाँ ऐसा कुछ भी न था। ऐसेस् कार्ड की मदद से हमने जैसे ही केबिन खोला तो मेरे सामने था सभी आधुनिक सुविधाओं से सज्जित लगभग 8 बाई 13 फीट का शानदार केबिन।
सबसे पहले हमें सुरक्षा नियमों की जानकारी दी गई और वहाँ के स्टॉफ हेड से मिलवाया गया, हम सभी यात्री इंस्ट्रक्टर के द्वारा दिये गये सुरक्षा निर्देशों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। उन्होंने बताया कि किस प्रकार खतरे की स्थिति में हम लाइफ जैकेट पहनकर सकुशल अपने को बचा सकते हैं। साथ ही उन्होंने डेक चार में स्थिर जाकिंग ट्रॅक के ऊपर हैंग पंद्रह मोटर बोटर हमें दिखाई, जिसमें प्रत्येक की क्षमता 150 यात्रियों के करीब थी। जहाज डूबने की स्थिति में सभी यात्रियों व स्टॉफ की जीवनरक्षा इन मोटर वोटों की सहायता से की जा सकती है। मैंने देखा कि इतना सब बताने के बाद जिन यात्रियों के मन में जरा भी भय था वह समाप्त हो गया था। इसके बाद हम सभी को क्रूज की नवीं मंजिल पर स्थित स्वीमिंग पूल (ब्लू लगून) पर आमंत्रित किया गया जहाँ हमलोगों के लिए खुले आकाश के नीचे डांस पार्टी का आयोजन किया गया था, उस समय मुझे दोस्तों की कमी महसूस हो रही थी। इसी बीच हमारा जहाज चल पड़ा। हमारे लिए यह एक अनोखा अनुभव था कि कैसे इतना बड़ा जहाज बिना हिचकोले खाये, अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था। मैं सोच रही थी, जब यह जहाज इतना बड़ा है तो, टाइटेनिक कितना बड़ा और भव्य हुआ होगा? वाकई, इसका अंदाजा लगाना मेरे लिए मुश्किल था। इसके बाद क्रूज की पाँचवी मंजिल पर स्थित ‘गैलेक्सी ऑफ स्टार्स’ नामक ऑडीटोरियम में हमने मैजिक शो का आनंद उठाया। शो का स्तर सामान्य था लेकिन उसका प्रस्तुतिकरण का स्तर ऊँचा था। मुंबई तक लगातार की गई यात्रा से हम थके हुए थे। अतः हम रात का खाना खाकर अपने केबिन में चले गये जबकि हमारे सहयात्री रातभर क्रूज की विभिन्न गतिविधियों का लुत्फ उठाते रहे। कुछ लोग कैसीनो तो कुछ बूमर्स डिस्को में चले गये, बच्चे कंप्यूटर गेम खेलने तथा इंटरनेट पर सर्फिंग करने में व्यस्त थे तथा नन्हे-नन्हे बच्चे क्रूज में स्थित पोर्टोल में खेलने में व्यस्त थे।
सुबह आँख खुलते ही मैंने पर्दा हटाकर अपने केबिन की विंडो से बाहर झाँका। समुद्र में उगते हुए सूरज को देखना मेरे लिए एक आत्मिक अनुभूति थी। पर मैं तो किसी और ही चीज की फिराक में थी, इसके लिए मैं भागकर लोवर डेक पर गई, पर वहाँ भी मुझे न कोई शार्क और न ही डाल्फिन दिखाई पड़ी। मुझे अपनी जानकारी पर आश्चर्य हो रहा था। पहले दिन क्रूज चलने के एक घंटे बाद तक हमारे मोबाइल पर सिग्नल आना बंद हो गया। अब हम केवल इंटरनेट के माध्यम से ही घर पर कॉन्टेक्ट कर सकते थे। पूरा जहाज मुझे एक सजी-धजी भूल-भुलय्या के जैसा लग रहा था। शुरू में तो समझ में ही नहीं आता था कि हमें दायें जाना है या बायें? हमारा क्रूज सेंट्रली एयरकंडीशंड था इस कारण हमें समुद्र में जरा भी उमस महसूस नहीं हो रही थी बल्कि सच तो यह था कि कभी-कभी हम ठंड से ठिठुरने लगते थे।
हमारे नाश्ते, खाने की तथा मनोरंजन की सभी व्यवस्था क्रूज के किराये के साथ ही जुड़ी थी। हमारे जहाज में मेहमानों की मेहमानवाजी के लिए कुल छह उच्चस्तरीय रेस्तराँ का इंतजाम था जहाँ यात्रियों के लिए अलग से वेज, नानवेज कॉफी हाउस तथा ओपेन बार था। शाकाहारी होने के कारण मैंने अपने लिए एक वेजीटेरियन रेस्तराँ में जाने का निश्चय किया। दोपहर को हमने जाकूजी का आनंद उठाया, फिर मैं वहीं पड़ी एक खाली इजीचेयर पर जो लेटी तो ठंडी हवा के झोंके से मेरी आँख लग गई। थोड़ी ही देर में मुझे अपने पैरों में गरमाहट लगी, आँख खोल कर देखा तो एक तरफ समुद्री ठंडी हवायें और दूसरी ओर तपता सूरज, ऐसा अनोखा अनुभव केवल क्रूज में ही मिल सकता है।
मैंने सुना था कि जहाज में लोगों को ‘सीसिकनेस’ हो जाती है परंतु मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। शायद ऐसा ऊपर की मंजिल में ठहरने के कारण हुआ हो। परंतु हमारे सहयात्रियों में भी किसी ने इस प्रकार की कोई शिकायत नहीं की। क्रूज में 6 महीने के बच्चे से लेकर 85 साल के बूढ़े तक थे। प्रत्येक की उम्र तथा मिजाज को ध्यान में रखते हुए मस्ती तथा मनोरंजन से भरपूर साधन वहाँ उपलब्ध थे। यही नहीं उनके लिए उच्चस्तरीय मेडिकल सुविधायें भी वहाँ थीं। ये सभी लोग भारत के विभिन्न प्रांतों से आये थे। क्रूज स्टॉफ के द्वारा आयोजित प्रोग्रामों के कारण हम सभी एक साथ नाचते-गाते, खाते-पीते, कब आपस में घुल-मिल गये हमें पता ही न चला, लगता ही नहीं था कि 48 घंटों पहले हम एक-दूसरे को जानते भी न थे और अब; सभी कितने अपने से लग रहे थे। सभी यात्री पूरी तरह से खुश तथा संतुष्ट दिखाई दे रहे थे। उस छोटी-मोटी दुनिया को देखकर लगता ही नहीं था कि हम सभी उसी दुनिया के बाशिंदे हैं जो हर तरफ ईर्ष्या, द्वेष तथा परेशानियों से भरी है।
शाम के समय पूल लॉन में हमारे लिये एक कॉर्निवाल का आयोजन किया गया, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी रुचियों के अनुसार इंज्वाय कर रहा था। कॉर्निवाल में मैंने नैपकिन फोल्ड करना तथा टेबल डेकोरेशन सीखा।
उस रात वहाँ के एक खास रेस्तराँ में हमारे स्वागत में क्रूज कैप्टन के साथ ‘गाला डिनर’ का आयोजन किया गया। डिनर शुरू होने में अभी एक घंटे का समय था, इस बीच इस यात्रा को और खूबसूरत बनाने तथा लक्षद्वीप के विषय में अधिक जानकारी इकट्ठी करने के लिये मैं वहाँ स्थित इंटरनेट पर सर्फिंग करने पहुँच गई, वहाँ मिली जानकारियों के अनुसार मुझे पता चला कि लक्षद्वीप दो अथवा तीन दर्जन द्वीपों का समूह है। जो देश आजाद होने के बाद 1956 से केंद्र द्वारा शासित है कदमत्, कावारत्ती, बंगाराम, मिनिकॉय तथा कालवेन ये पाँच विकसित द्वीप हैं यहाँ की राजधानी कावारत्ती है जिसका कुल एरिया .03 स्क्वायर किलोमीटर है तथा यहाँ की जनसंख्या 52 हजार के करीब है। यहाँ के अधिकांश नागरिक पढ़े-लिखे, शिष्ट तथा सामाजिक हैं। इन लोगों की स्थिति देखकर मैं सोच रही थी अधिक भौतिकवाद हमें कितना पशुवत बना देता है जबकि वही प्रकृति यहाँ के लोगों का किस प्रकार मानवीय गुणों से शृंगार कर जीवन को जीने लायक बना देती है।
यहाँ के निवासी मुख्यतः केरल से आये मछुआरे हैं। यहाँ की भाषा मलाय, हिंदी तथा इंग्लिश है। अधिकांश लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं। भारत से यहाँ जाने का समय नवंबर से मई तक है। इसके बाद समुद्र की विपरीत हवाओं के रुख के कारण ये क्रूज मई से अक्टूबर तक के लिए बंद हो जाते हैं। यहाँ का तापमान 23 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। वर्षा अक्टूबर से नवंबर के मध्य होती है। शिक्षित लोगों का प्रतिशत 79.23 प्रतिशत है। 93 प्रतिशत लोग सुन्नी मुसलमान हैं। सरकार द्वारा यहाँ फ्री शिक्षा का प्रबंध है। यहाँ के लोगों की जीविकोपार्जन का मुख्य साधन मछली पालन, टूरिज्म तथा नारियल की खेती है। मुख्य रूप से यहाँ अमरूद तथा केले के पेड़ पाये जाते हैं। यहाँ से मछलियाँ दूसरे देशों में निर्यात की जाती हैं। सामाजिक दृष्टि से यह एक उन्नत प्रदेश है, जहाँ औरत का दुबारा शादी करना कोई समस्या नहीं है। तलाक की स्थिति में उस तलाकशुदा स्त्री को सालाना पैसा उसके पति के द्वारा दिया जाता है। मिनिकॉय में तो औरत की जगह मर्दों का ही शादी के बाद सरनेम बदल दिया जाता है। स्त्रियों के लिए ऐसा मानवतावादी दृष्टिकोण भारत में भला कहाँ हो सकता है? मैं इंटरनेट पर मिली इन सब जाकानियों के बाद अविभूत हुई जा रही हूँ। मार्कोपोलो ने तो अपनी यात्रा के दौरान इन द्वीपों का नाम ‘आइलैंड ऑफ फीमेल’ दिया था।
मेरे पति राकेश ने आकर मुझे डिनर की याद दिलाई तो मैं झट से चलने को तैयार हो गई। आखिर कैप्टन के साथ खाना खाने तथा उनके साथ फोटो खिंचवाने का भी तो अपना एक आकर्षण था। डाइनिंग हॉल में खाने से अधिक मुझे जो बात रोमांचित कर रही थी वह थी सिंगापुरी गायकों के द्वारा एक हिंदी मूवी के गाने को विशेष अंदाज में गाना। वहाँ मैं महसूस कर रही थी सुरों की वाकई कोई सीमारेखा नहीं होती। वायलिन तथा गिटार लिए वे सिंगर गाने का अर्थ भी ठीक से नहीं जानते थे, पर किस तरह वे सुरों के सहारे शब्दों को साधे हुए थे। वहाँ से हम स्टार्स ऑफ द गैलेक्सी नामक ऑडीटोरियम में ब्राजीलियन डांस का लुत्फ उठाने गये। इस डांस प्रोग्राम का भी प्रवेश फ्री था। मैं सोच रही थी कि जब मुझे इन डांसर्स की एक-एक अदायें इतनी उत्तेजित कर रही हैं तब औरों का हाल क्या होगा? निःसंदेह नवविवाहितों के लिए ये क्षण उनके जीवन के कुछ खास क्षण में से एक थे पर अफसोस कि वहाँ फोटो लेना मना था।
तीसरे दिन हमारे जहाज को अपने गंतव्य लक्षद्वीप पहुँचना था। वहाँ जाने से पहले मैं सोचती थी कि स्कूबा डाइविंग तथा स्नोकलिंग के लिए तैरना आना जरूरी है। मुझे चूँकि तैरना नहीं आता था, अतः खतरनाक वॉटर स्पोर्ट करने का मैंने अपना विचार ही त्याग दिया था लेकिन क्रूज में मिली जानकारी के अनुसार डाइविंग के लिए तैरना आने की कोई जरूरत नहीं थीं। उन्होंने बताया कि डाइविंग तथा स्नोकर्लिक पूरी तरह से सुरक्षित स्पोर्ट है। अतः हमने वाटर स्पोर्ट का पूरा एक पैकेज ही अपने लिए बुक करवा लिया। इस पैकेज के लिए हमें अलग से पेमेंट करना पड़ता है। तीसरे दिन शाम को मैं रिलैक्स होने के लिए हेल्थ क्लब जाना चाहती थी, जिसमें प्रवेश फ्री था, लेकिन एक्सरसाइज के लिए टैकसूट तथा जूतों की व्यवस्था न होने से मुझे मन मसोस कर रह जाना पड़ा। मेरे ख्याल से ऐसी सभी जगहों पर स्वीमिंग कास्टूम टैकसूट तथा छतरी हमें अपने साथ ले जानी चाहिए।
विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस प्रकार के दृश्य हम कभी टेलीविजन तथा फिल्मों में देखते थे शायद उससे भी खूबसूरत नजारे हमारी आँखों के सामने होंगे। मैं उन सभी नजारों को टकटकी लगाये अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहती थी।
वॉटर बोट से हम जैसे ही कदमत् की ओर चले दूर तक फैला साफ नीला फिरोजी समुद्र उस पर छोटे टीले जैसी सफेद बालू और टापू पर स्थित नारियल तथा पॉम के पेड़ों से छनकर आती सूर्य की किरणें, एक दिव्य नजारा पेश कर रही थीं। ऐसा खूबसूरत नजारा जिसको देखकर भला कौन-सा प्रकृति प्रेमी पर्यटक उसकी आगोश में न सिमट जाना चाहेगा। क्रूज से कदमत् तक जाने के लिए वॉटर बोटर्स की व्यवस्था थी। द्वीप पर पहुँचते ही हमें चटख रंगों की धोती पहने नंगे बदन, पगड़ी लगाये, हाथों में ढाल तथा तलवार लिए गोला बनाकर नाचते-गाते आदिवासियों का समूह दिखाई दिया, उनकी ढाल की एक-एक टंकार पर जिस लय में उनके पैर चल रहे थे उसने मुझे कुछ क्षण रुकने पर विवश कर दिया।
सुबह सात बजे से ही आसमान में सूरज तप रहा था। हालाँकि हमने सनस्क्रीन लोशन लगा रखा था फिर भी त्वचा जल रही थी। पैरों के नीचे की सफेद बालू जिसमें नमक की अधिकता होने तथा स्पोर्टशूज न पहने होने के कारण पैरों में जलन हो रही थी पर थोड़ा ही आगे जाने पर हमारे स्वागत में पेश किये गये कच्चे नारियल पानी को पीकर हमने अपनी प्यास बुझाई। इसके बाद हम वॉटर स्पोर्ट का आनंद उठाने के लिए वांछित दिशा की ओर चल पड़े। स्वीमिंग कास्ट्यूम, च्यूंगम, इलायची तथा पीने का पानी हम अपने साथ लिए थे। हमारे पास कदमत् से क्रूज वापिस आने तक कुल चार घंटे थे। इन घंटों में हम अपनी तरह से भरपूर आनंद उठाना चाहते थे।
इस द्वीप पर स्कूबा डाइविंग, स्नॉर्कलिंग, बनानाबोट, ग्लासवोट, वाटरस्नीइंग, कयाकी वगैरह अनेक प्रकार के वाटर स्पोर्ट की व्यवस्था है। मेरे लिए स्कूबा डाइविंग सबसे बड़ा आकर्षण था। इस डाइविंग के दौरान मैंने इंस्ट्रक्टर की सहायता से अंडरवॉटर वर्ल्ड का आनंद उठाया जहाँ एक बहुत बड़ी कोरल रॉक की चारों तरफ तरह-तरह की मछलियाँ, हरे कछुए तथा केंकड़े तैर रहे थे। ऐसा लगा रहा था कि हम किसी बहुत बड़े एक्वेरियम में आ गये हैं। उस समय मैं भी अपने आपको उन्हीं जलजीवों का एक हिस्सा समझ रही थी। मैं उनको छूकर, उनको महसूस करना चाहती थी, लेकिन जैसे ही हाथ बढ़ाती; वे चंचल मछलियाँ, मेरी पहुँच से दूर चली जातीं। काश! मैं उन्हें छूकर महसूस कर पाती। इसी बीच मेरी साँस तेजी से फूलने लगी क्योंकि समुद्र का खारा पानी मुँह में जाने से मैं थोड़ी देर के लिए शिथिल हो गई थी और तब मैं इंस्ट्रक्टर की सहायता से समुद्र के किनारे पहुँच गई जबकि मेरे पति नार्मल थे। वहाँ जाकर मुझे लगा कि हमें एक साथ तीन स्पोर्ट का पैकेज न लेकर एक ही स्पोर्ट की बुकिंग करवानी चाहिए क्योंकि और बुकिंग मौके पर हो रही थी।
थोड़े विश्राम के बाद हम वहाँ से बस में बैठकर सुरम्य सौंदर्य की गोद में बसे आइलैंड के एक छोटे से गाँव में गये। वहाँ का माहौल भारत के दक्षिण प्रांत में स्थित गाँवों-सा था। वहाँ हमने कोकोनट फैक्टरी देखी तथा पी.सी.ओ. में जाकर घर में फोन कर बच्चों से बात की, क्योंकि उस समय भी हमारे जहाज पर मोबाइल के सिगनल नहीं आ रहे थे।
क्रूज पर वापस आने से पहले मैं वहाँ कुछ समय रुक कर पैरों में मसाज करवाना चाहती थी परंतु उस द्वीप में कहीं भी दूर-दूर तक मसाज की व्यवस्था दिखाई नहीं दे रही थी और वहाँ कुछ दिन रुकने के लिये कोई होटल या गेस्ट हाउस भी नहीं दिखाई दे रहा था। वहाँ जाने पर पता चला कि प्रकृति की संपूर्ण सुंदरता को अपने में समेटे वह आइलैंड अभी पूरी तरह से विकसित ही हो रही है। इतने सुंदर उस आइलैंड को मैं हर कोण से देखना चाहती थी, किंतु अफसोस कि मेरी यह तमन्ना वहाँ पूरी न हो सकी, क्योंकि वहाँ इस प्रकार की कोई व्यवस्था न थी।
दोपहर 1 बजे तक हम सभी यात्री क्रूज पर थे, वॉटर स्पोर्ट करने के कारण हम सभी इतना थक चुके थे कि लंच के बाद हम सीधे अपने केबिन में बंद हो गए। बिस्तर पर पड़े मैं सोच रही थी कि मनुष्य के समान ही यह समुद्र भी अपने अंदर क्या-क्या समाये हुए हैं? जो वक्त पाकर जीवन की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों के सामने ज्वार-भाटा बन कर फट उठता है। शाम का समय हमने वहाँ फोटो गैलरी देखते हुए बिताया। क्रूज की इतनी सारी ऐक्टीविटीज के कारण अब तक हेल्थ क्लब तथा योगा वगैरह के लिय जा नहीं पायी थी। अतः शाम को मैं हेल्थ क्लब गई जिसमें प्रवेश फ्री था लेकिन एक्सरसाइज के लिये टैकसूट तथा स्पोर्ट शूज का प्रबंध न होने के कारण मुझे वहाँ मन मसोस कर रह जाना पड़ा। स्नोकर्लिंग में हुई थकावट को मिटाने के लिए 150 रुपये देकर मैंने वहाँ सोना बाथ का आनंद उठाया। वहाँ से निकल कर अपने उलझे बालों को सेट करवाने ब्यूटी सैलून गई। रात को डिनर के बाद हम पुनः एक्टीविटीज सेंटर गये जहाँ पर हमलोग इंडोर गेम्स का आनंद उठा रहे थे, थोड़ी देर रुक कर हम इवनिंग वॉक करने के लिये चौथी मंजिल पर स्थित वॉकिंग ट्रैक पर आ गये। टैक की चारों तरफ ठंडी हवायें तथा दूर तक फैला अंतहीन समुद्र और उस पर मध्यम रफ्तार से चलता (18 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा) हमारा वह क्रूज और ऊपर चारों तरफ फैला आकाश और आकाश की चुनरी पर कढ़े खूबसूरत चाँद-सितारे! मैं वाकिंग भूलकर वहीं एक तरफ टेक लगाकर बचपन की जाने कौन-कौन सी स्मृतियों में खो गई।
Image: Ships of Columbus
Image Source: WikiArt
Artist: Ivan Aivazovsky
Image in Public Domain