लेखकीय जिम्मेदारी बढ़ी

लेखकीय जिम्मेदारी बढ़ी

वक्तव्य

इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर सबसे पहले तो नई धारा के संस्थापक-संपादक उदय राज सिंह की पावन स्मृति को नमन करता हूँ। साथ ही ‘नई धारा’ पत्रिका के इस गौरवशाली 72 वर्षों के सफर को भी प्रणाम करता हूँ। सम्मानों का निर्णय करने के लिए बनाई गई विद्वान सदस्यों की समिति के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने मेरी ग़ज़लों को और मुझे इस योग्य समझा। साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सहभागिता निभाने वालों को विशिष्ट पहचान देकर और उन्हें सम्मानित कर ‘नई धारा’ पत्रिका जिम्मेदारी से परिपूर्ण अभिनंदनीय कार्य कर रही है, इसमें कोई दो राय नहीं। इस भूमिका के लिए ‘नई धारा’ की पहले भी प्रतिष्ठा प्रशंसा होती रही है और भविष्य में भी होती रहेगी ऐसा मेरा विश्वास है।

ग़ज़ल की सरसता, लोकप्रियता एवं कहन शैली से प्रभावित होकर ग़ज़ल लेखन की ओर यह कहते हुए आगे बढ़ा कि–‘क्या शायरी होती है मुझे कुछ नहीं मालूम/करता हूँ बयाँ अपने जज्बात ग़ज़ल में।’ और आज आप सभी सुधी जनों के बीच उपस्थित हूँ। मैं मानता हूँ समकालीन ग़ज़ल सभी को एकता के सूत्र में बाँधने वाले साहित्य की महत्त्वपूर्ण एवं लोकप्रिय विधा है। यह समाज में भाईचारे का निर्माण करने में पूरी तरह सक्षम है। जिस गंगा जमुनी तहज़ीब की बात हम करते हैं, हिंदी ग़ज़ल पूरी तरह से उस तहज़ीब का प्रतिनिधित्व करती है। ग़ज़ल के इसी स्वभाव से प्रभावित होकर मैंने लिखा–‘नफ़रत की कहानी, न अदावत का फ़साना/होती है मुहब्बत भरी बरसात ग़ज़ल में/काँटों की डगर फूल में तब्दील हुई है/ये चलने लगा कौन मेरे साथ ग़ज़ल में।’

यह सम्मान प्राप्त कर जहाँ मेरा हौसला बढ़ा है, वहीं इस बात का भी एहसास हो रहा है कि व्यक्ति, समाज और देश के प्रति सकारात्मक करते रहने की मेरी लेखकीय जिम्मेदारी और बढ़ गई है। आप सभी के प्यार और सम्मान से अभिभूत होकर अपना ही एक शेर कहना चाहता हूँ–

‘ज़माने से हमने भी पाया बहुत है
किया ख़र्च कम है कमाया बहुत है।


Image Source : Nayi Dhara Archives