मेरे प्रथम साहित्य-गुरु

लक्ष्मी पुत्रों की चार पीढ़ियाँ माँ सरस्वती के मंदिर में मात्र दीप प्रज्वलित ही न करे–गह्वर को लीप-पोत कर आलीशान प्रसाद बना दे जिसके कँगूरे की चमक स्वतः देदीप्यमान हो उठे–यह एक ऐतिहासिक गाथा है जिसे सार्थक किया है कलम के धनी शैली सम्राट स्व. राजा साहब ने और दिलोदिमाग के धनी प्रसिद्ध कथाकार स्व. उदय राज सिंह ने।