मेरी पेरू यात्रा

मेरी पेरू यात्रा

संयुक्त राष्ट्र संघ ने बीते 1 से 12 सितंबर, 2014 तक दक्षिण अमेरिका महादेश के पेरू देश की राजधानी लीमा में मौसम परिवर्तन के नाम से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्ममेलन में अखिल भारतीय महिला परिषद, नई दिल्ली ने मुझे भी प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया। इसी बहाने मुझे पेरू की राजधानी लीमा, ऐतिहासक नगर कॉस्को और प्राचीन सभ्यता स्थल माचो पीचो का दर्शन करने का अवसर मिला, वरना नई दिल्ली से संसार की ठीक आधी दूरी पर विपरीत दिशा में जाने की कोई संभावना नहीं थी। नई दिल्ली से अमेस्र्टरडम होते हुए लीमा की हवाई यात्रा सिर्फ 22 घंटों की थी।

मेरे साथ मेरी दोस्त गीता सिन्हा थी। दिल्ली से अमेस्र्टरडम की यात्रा 8 घंटे की थी। अमेस्र्टरडम पहुँचने में करीब आधे घंटे का विलंब था। अमेस्र्टरडम से लीमा की उड़ान केवल 10 मिनट के अंदर थी। हम दो-तीन लोगों को प्लेन में से पहले उतारकर दूसरे टर्मिनल पर भेजने की व्यवस्था की गई। दौड़ते-दौड़ते हम लोगों ने दूसरे प्लेन में अपना स्थान ग्रहण किया। अब पूरे रास्ते मुझे चिंता थी कि इतनी जल्दी हमारा सामान दूसरे प्लेन से हमारे साथ आया होगा या नहीं, यदि नहीं तो कब सामान लीमा पहुंचेगा और हम तब तक कैसे काम चलाएंगे। खैर, अमेस्र्टरडम से लीमा शहर की यात्रा १३ घंटों की बिना रूके थी। यात्रा के दौरान खाना-पीना तो ठीक ही था, किंतु एक सीट पर लगातार बैठना कष्टदायक था। 8 घंटों के बाद लगा कि व्यायाम या जिमनास्टिक करूँ। किसी तरह कुछ चहलकदमी कर के समय बिताया और शरीर को भी राहत हुई। अंत में 13 घंटों की यात्रा के बाद रात्रि 9 बजे लीमा एयरपोर्ट पर पहुंचे। लीमा का एयरपोर्ट छोटा है। उतरते चिंता थी समान की, तब देखा कि हमसे पहले कन्वेयर बेल्ट पर हमारा सामान पहुंचा हुआ है। हम लोगों ने बहुत राहत की सांस ली कि एक बड़ी समस्या से जान बची। हमें यह मानना पड़ेगा कि अभी की तकनीकी बहुत विकसित हो गई है, जिसके कारण मनुष्य की जीवन शैली आसान हो गई है। हवाई अड्डे से निकलते ही एक टैक्सी आकर हमारे सामने खड़ी हो गई। शायद टैक्सी वाले ने हमारे पोषाक से समझ लिया कि हम भारतीयों को ही उसे लेने के लिए होटल वालों ने भेजा है। टैक्सी से कृष्णवर्ण भीमकाय ड्राइवर उतरा। उसने हमारे पास आकर हाथ बढ़ाया और मेरा हाथ पकड़ने की चेष्टा की। पेरू जाने के पहले लोगों ने कहा था कि पेरू थोड़ा अल्पविकसित देश है, अतः सावधान रहना। मेरे मन में वही डर था कि कहीं ये अल्पविकसित ड्राइवर कुछ हरकत न कर बैठे। मैं डर कर पीछे हट गई। उस ड्राइवर ने दोबारा वही करकत की। मैंने डरते-डरते अपनी उंगली उसको स्पर्श करने के लिए बढ़ाई। उसने बड़े अदब से मेरी उंगली पकड़ कर स्वागत किया और अपना परिचय दिया। वही करकत उसने गीता के साथ भी की। गीता की भी वही प्रतिक्रिया थी जो मेरी थी। वह भी उतनी ही डरी हुई थी। फिर मैंने गीता से कहा कि यह हमारा स्वागत कर रहा है। भारत में महिलाएँ सोच भी नहीं सकती कि कोई टैक्सी ड्राइवर उनसे हाथ मिलाने की हिम्मत कर सकता है। खैर, उसने हम लोगों को होटल पहुँचाया। फिर एक दो बार टैक्सी में घूमने के बाद हमलोग भी उनके स्वागत के तरीके से परिचित हो गए।

लीमा दक्षिणी अमेरिका महादेश के पश्चिमी तट पर प्रशांत महासागर के किनारे 12.02 S और 77.02 W पर स्थित है। यह एंडीज पर्वत की पश्चिम ढाल पर प्रशांत महासागर तट पर ठीक दीवाल के समान खड़ी 1000 फीट की ऊंचाई पर बसा है। सामुद्रिक किनारे नहीं के बराबर है और कहीं-कहीं है भी तो 10 से 20 फीट से अधिक नहीं। उष्ण कटिबंध (Torrid zone) में होने के बावजूद यहाँ का मौसम सालों भर सुहावना 18 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। आकाश सालों भर बादलों से आच्छादित रहता है फिर भी कभी बारिश नहीं होती, अतः सड़कों के किनारे नालियां नहीं हैं।

हम लोग लीमा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित COP-20 (क्लाइमेट चेंज,) अर्थात मौसम से संबंधित सम्मेलन में भाग लेने गए थे। अगले दिन सबेरे ही हम दोनों COP-20 सम्मेलन के लिए निकल पड़े। हमने सम्मेलन में अंतिम पांच दिन भागीदारी निभाई। COP-20 का स्थल शहर से दस किलोमीटर दूर बनाया गया था। पूरा कार्यस्थल 20 एकड़ में बहुत खूबसूरत सुसज्जित था। यह स्थान वास्तव में पेरू का पुराना मिलिट्री बेस था। उसी में उन्होंने पार्टीशन लगा कर हॉल और ऑडिटोरियम बनाए थे। इस पूरे काम को केवल एक महीने की मेहनत से तैयार किया गया। पूरे लीमा शहर के मुख्य बिंदुओं से हरेक 15 मिनट पर मुफ्त बस सेवा उपलब्ध थी जो सवेरे 7 बजे से रात्रि 11 बजे तक चलती रहती थी। सम्मेलन स्थल में चारों तरफ नोटिस बोर्ड पर विभिन्न सत्रों की जानकारी दी रहती थी, अतः जिसे जहाँ मन हो किसी भी सत्र में प्रवेश कर सकता था। मैंने भी अनेक सत्रों में आसन ग्रहण किया और मैं उनसे बहुत लाभान्वित हुई। मौसम परिवर्तन या प्रकृति के मिजाज को रोका नहीं जा सकता। एक कहावत है if you go against nature, nature goes against you यह कहावत बिलकुल सत्य है। प्रकृति इस पृथ्वी की सबसे बड़ी देन एवं ताकत है। अतः इस ताकत को अपने वश में करना मनुष्य के लिए असंभव है। परंतु मनुष्य प्राकृतिक प्रकोप से बचने के प्रयत्न तो अवश्य कर सकता है। इस सम्मेलन का उद्देश्य था कि प्राकृतिक परिवर्तन को समझने और उसके निदान के लिए विभिन्न देश क्या-क्या उपाय कर सकते हैं। बहुत सारे तरीके तो विभिन्न तकनीकी द्वारा अपनाए जा रहे हैं, किंतु बहुत सारे परिवर्तन ऐसे हैं जो वर्तमान तकनीकी से परे हैं। यूनाइटेड नेशंस की विभिन्न देशों से यही अपील थी कि वे मिलकर प्राकृतिक प्रकोप को कम से कम करने में सहयोग प्रदान करें। यदि किसी देश के पास पहले से ही कोई परंपरागत तकनीकी या जानकारी है तो अन्य देशों को इस विधि से अवगत कराएं। प्राकृतिक प्रकोप प्राथमिक से लेकर उद्योग और सेवा सबको प्रभावित करते हैं और प्राकृतिक विडंबना हर क्षेत्र में अपना रौद्र रूप दिखा सकती है। इसलिए कोई भी व्यक्ति किसी क्षेत्र में कार्यरत हो, प्राकृतिक प्रकोप से नहीं बच सकता। उस व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि अपने क्षेत्र की सीमाओं को समझे और उसके निदान के लिए तैयार रहे। प्राकृतिक परिवर्तन को समझने में और उसके निदान में युवा पीढ़़ी या नौजवानों की अहम् भूमिका है। किसी भी आपदा में नौजवान ही सबसे अधिक हितकारी साबित होते हैं। नौजवानों में शक्ति और निर्भयता का भंडार रहता है। वे ही बच्चों एवं वृद्धों की नैया पार लगाते हैं। निष्कर्ष था कि बच्चों को प्रारंभिक स्तर से ही मौसम से सम्बंधित परिवर्तनों की जानकारी दी जानी चाहिए जिससे वास्तविकता आने पर वे अचंभित नहीं होवें और आपदा से निपटने के लिए तैयार रहें। प्रत्येक देश की सरकार भी आपदा प्रबंधन के लिए मुस्तैद रहे। इस सम्मेलन का नाम CAP 20 इसलिए रखा गया कि 2020 ई. तक प्रत्येक देश आपदा प्रबंधन के लिए तैयार रहे। इसके लिए उन देशों को राष्ट्रसंघ पूरी सहायता देने के लिए कर्तव्यनिष्ठ है। पांच दिन के सम्मेलन के उपरांत हम लोगों ने लीमा दर्शन किया।

लीमा शहर आधुनिक शहरों की तरह बहुत खूबसूरत, साफ-सुथरा और अनुशासित है। पेरू पिछली तीन शताब्दियों से स्पेन की कॉलोनी रहा है। इसे 28 जुलाई 1821 को स्वतंत्रता मिली, तबसे यहाँ प्रजातांत्रिक शासन है, किंतु स्पेनिश संस्कृति पूरी तरह छाई हुई है। यहाँ की प्रशासनिक भाषा स्पेनिश और इंग्लिश है। अन्य भाषाएँ भी प्रचलित हैं। यहाँ की 80 प्रतिशत आबादी क्रिस्चियन और 20 प्रतिशत अन्य जातियों और धर्म के लोग हैं। देखने से केवल यह अंतर लगता है कि कुछ लोग यूरोपियन और कुछ स्थानीय हैं जो उत्तर भारतियों से मिलते जुलते हैं।

लीमा शहर में स्पेनिश सरकार द्वारा बनाए गए राजभवन, पार्लियामेंट हाउस, सेक्रेटेरिएट, चर्च, म्यूजियम इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं जो सुंदर स्पेनिश वास्तु कला से परिपूर्ण हैं। लीमा में वाइसराय के दो महल हैं। दोनों महल बहुत खूबसूरत हैं, एक महल की छत पर शतरंज की मोहरों के आकार के खंभे बने हैं जो दर्शनीय है। मैंने इस तरह की कारीगरी और कहीं नहीं देखी। लीमा के म्यूजियम में इन्का (Inca) सभ्यता के गहने, बर्तन, शस्त्र इत्यादि सुसज्जित हैं जो इन्का सभ्यता की विकसित संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं। यहाँ का संत फ्रांसिस गिरजाघर ऊपर के अन्य गिरजाघरों की तरह लगता है किंतु तहखाने में 25000 शवों की अस्थियाँ कुओं में सुरक्षित हैं। पहले लोग चर्च में ही शव दफनाने का काम करते थे किंतु अब ये प्रथा बंद है। लीमा एक दर्शनीय शहर है क्योंकि सड़कों पर खूब सुंदर क्यारियां और पार्क बने हैं। पेरू देश कम विकसित देशों में गिना जाता है किंतु लीमा शहर किसी भी आधुनिक विकसित शहर से कम नहीं है।

पेरू देश का दूसरा बड़ा शहर कॉस्को है। ये शहर भी अपनी ऐतिहासिक भूमिका के लिए प्रसिद्ध है। कॉस्को शहर एंडीज पर्वत के पूर्वी शिखर पर एक क्रेटर में 9400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लीमा में कॉस्को की सड़क से यात्रा बहुत सुंदर है पर हम लोग समय की कमी के कारण वायुयान से गए, जो डेढ़ घंटे की थी। कॉस्को शहर एक गड्ढे में बसा है। यहाँ केवल छोटे प्लेन ही लैंड कर सकते हैं। हवाई अड्डे पर उतर कर देखा कि वास्तव में हवाईअड्डा बहुत छोटा है और पायलट ने कितनी बारीकी से जरा सी जगह में प्लेन उतारा, वह काबीले तारीफ था। कॉस्को शहर में प्राचीन महल जनता दरबार और बाजार है। कॉस्को अभी की तुलना में कम विकसित शहर है और हस्तकला का केंद्र है। यहाँ पर अल्पाका ऊन से बनी हुई वस्तुएं मिलती हैं जो यहाँ की विशेषता हैं। ये शहर अभी भी अपने प्राचीनतम रूप में है। घर और सड़कें पत्थरों के बने हुए हैं। आधुनिक घर हैं ही नहीं, प्राचीनतम घरों में ही बिजली एवं आधुनिक उपकरण लगाकर आधुनिक सुविधाएं दी जाती हैं जो पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। हर जगह व्यवस्थित पर्यटन सुविधाएं जैसे टैक्सी, होटल और सुरक्षा उपलब्ध है। कॉस्को में ही बहुत सारे इन्का द्वारा बनाए गए खंडहर दर्शनीय हैं।

कॉस्को से माचो पीचो की यात्रा रेल से तीन घंटे की थी, यह पहाड़ी रेल यात्रा बहुत मजेदार थी। रेल एकहरी पटरी में थीं। रेल के डिब्बे छोटे-छोटे थे, डिब्बों में बड़ी-बड़ी शीशे की खिड़कियाँ और शीशे की छत थी जिससे चारों ओर का नजारा पूरा देख सकते थे। चारों ओर पहाड़ और बीच में क्सोस्को नदी बह रही थी जिसके किनारे पर हम चल रहे थे। क्सोस्को अमेजन नदी की सहायक नदी है। रेलवे लाइन बिलकुल क्सोस्को नदी के किनारे मुश्किल से 6 या 7 फीट की चैड़ाई पर बिछी थी। खिड़की से एक तरफ सीधे क्सोस्को नदी और दूसरी तरफ ऊंचे पर्वत थे। नदी की तरफ देख कर लगता था कि अब नदी में रेल गिरने वाली है। पहाड़ों की चोटी पर कहीं-कहीं बर्फ के ग्लेशियर दीखते थे। पहाड़ों की वनस्पति में भी बहुत विविधता देखने को मिली। शुरू में ऊंचाई पर Coniferous या शीत-कटिबंधीय वन मिले जिनकी पत्तियाँ नुकीली थी। कुछ आगे अर्थात् नीचे आने पर Temperate या समशीतोष्ण वन मिले जिनमें पतझड़ के वृक्ष और घास के मैदान थे जो कि समशीतोष्ण जंगल की विशेषता है। फिर और आगे जाने पर उष्ण कटिबंधीय सदाबहार जंगल मिले जहाँ जंगल और अधिक घने हैं। हर क्षेत्र की वनस्पति का रंग ऊंचाई के आधार पर बदला दिखता था।

तीन घंटे की रेल यात्रा का आनंद उठा कर हम माचो पीचो गाँव पहुँचे। ये गाँव 6000 फीट की ऊँचाई पर चारों तरफ पहाड़ों से घिरा नया बसा है। यहाँ भी सदाबहार जंगलों का ही दृश्य मिला। ऐतिहासिक माचो पीचो गाँव यहाँ से 23 किलोमीटर दूर 7300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ जाने के लिए स्थानीय बसों की व्यवस्था थी।

माचो पीचो के अवशेष संसार के सात आश्चर्यों में एक है। ये खंडहर इन्का सभ्यता का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सोलहवीं शताब्दी से 1000 वर्ष पूर्व एंडीज पर्वत में बस गए थे। ये प्राचीन सभ्यता स्पेनिशों के आने के बाद खत्म हो गई, कहीं-कहीं एंडीज के पहाड़ों पर अभी भी इन्का के वंशज पाए जाते हैं। इस सभ्यता की विशेषता थी कि ये अपने जमाने के बहुत बुद्धिमान और विकसित समुदाय के थे। इन्का सभ्यता का कोई लिखित ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है किंतु पीढ़ी दर पीढ़ी चर्चित कहानियों में इनके विकसित ज्ञान का उल्लेख मिलता है जो पूरी तरह वैज्ञानिक रूप से भी प्रमाणित हो चुका है। इनकी भाषा केचुआन थी जो अभी भी एंडीज पर्वत में प्रचलित है। इन्का कहाँ से आए इसका कोई पता नहीं है। एक और सिद्धांत है कि इन्का रेड इंडियंस थे और वेस्ट इंडिया से आए थे। खैर, जहाँ से भी आए इन्होंने एंडीज पर्वत की पूर्वी ढाल पर जंगलों को पार कर 7300 फीट की ऊंचाई पर अपनी पहली बस्ती माचो पीचो बसाई। यहाँ पर सालों भर हल्की बारिश होती है। बाद में ये एंडीज पर्वत पर फैलते गए और करीब-करीब दक्षिण अमेरिका के अंतिम छोर तक पहुँच गए।इन्का बहुत गुणी थे। ये स्थानीय पत्थरों से ही घर बनाते थे। ये मिट्टी के पकाए हुए ईटों का प्रयोग नहीं करते थे। ये पत्थरों को इस तरह विभिन्न आकार में काटते एवं तराशते थे कि एक दूसरे में पत्थर बिना किसी सीमेंट या चूने के लीगो की तरह बैठ जाते थे।

इन पत्थरों की दीवारें इतनी मजबूत हैं कि इतने भूकम्प और तूफान आने के बाद भी अभी तक यथावत हैं। ये पत्थरों को किस यंत्र या तकनीक से काटते थे, ये किसी को पता नहीं है। इन्का के घरों में दरवाजों में चैखट और कपाट नहीं होते थे और घर पूरी तरह खुले होते थे। दरवाजे नीचे कम चैड़े और ऊपर ज्यादा चैड़े होते थे। खिड़कियाँ नीचे अधिक और ऊपर कम चैड़ी होती थी। इस तरह यह रचना पत्थरों को इस तरह संतुलित करती थीं कि दीवारें किसी तरह का झटका बर्दाश्त कर सके। इसलिए ये अभी तक अपने मूल रूप में सुरक्षित हैं। एंडिज पर्वत पर पानी की कमी थी। इसलिए इन्का लोग ग्लेशियर और वर्षा का पानी व्यवहार में लाते थे। पत्थरों में नालियां खोद कर ये पत्थरों के हौदे में पानी जमा करते थे। अतः इनका जल प्रवाह का तरीका बहुत विकसित था। इनके घरों की छत शायद अभी की तरह पुआल और पत्तों के बने होते थे। ये पहाड़ों की ढाल पर सीढ़ीनुमा घर बनाते थे। सबसे ऊपर राजा या सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति या सरदार का घर होता था, उसके नीचे अन्य लोग ओहदे के अनुसार रहते थे। सबके घर एक दूसरे से सटे होते थे। इन्का लाग हमेशा समूह में ही रहते थे। इन्का पत्थरों को तराशने के अलावे खेती, बुनाई, कपड़े बनाना, धातु गलाना और जानवर पालना जानते थे। इन्का लोगों को धातुओं की बहुत पहचान थी। वे लोहा, तांबा, पीतल, चांदी और सोने का प्रयोग औजार, बर्तन और आभूषण बनाने के लिए करते थे। इनके पास भूगर्भ में सोने की खाने परीक्षण करने की कला थी, अतः वे सोने का प्रयोग बृहत् रूप से करते थे। ये पूरे शरीर के लिए सोने के बड़े बड़े आभूषण बनाते थे। कुछ आभूषण अभी भी लीमा और कॉस्को के म्यूजियम में प्रदर्शित हैं। कहा जाता है कि जब स्पेनिश पेरू आए तो इन्का से उन्होंने आलू और सोने का आदान प्रदान किया। इन्का भोजन के लिए आलू और स्पेनिश उतनी ही मात्रा में सोना पाकर खुश थे। धातु के अलावा इन्का एंडीज के स्थानीय बकरे अल्पाका के बाल और ऊन निकाल कर कपड़े बनाते थे। अल्पाका उनका भोजन भी था। एंडीज पर्वत की घास अल्पाका बकरे के संपूर्ण भोजन है। माचो पीचो में बसने के बाद इन्का एंडीज के ऊपरी भागों में बढ़ने लगे। इनका दूसरा बड़ा पड़ाव 9300 फीट की ऊंचाई पर कॉस्को हुआ। बीच में छोटी छोटी कई बस्तियां बसाई। कॉस्को शहर बहुत विकसित तकनीक से बनाया गया जो इन्का की राजधानी बना। बाद में कॉस्को शहर पूरे दक्षिण अमेरिका की भी राजधानी बना। कॉस्को वास्तव में क्रेटर की झील था।

झील सूखने पर ये जगह इन्का को बहुत पसंद आई और उन्होंने इसको बहुत शौक से सुंदर इमारतें बना कर बसाया। कॉस्को में सुंदर महल, जनता दरबार और अन्य प्रशासकीय इमारते हैं। कॉस्को की इमारतें और सड़कें उसी पत्थर की तकनीक से बने हैं। कॉस्को में जब स्पेनिश आए तब उन्होंने इन्का द्वारा निर्मित महलों को तोड़ कर अपना महल बनाने की चेष्टा की। वे इन दीवारों को नहीं तोड़ सके। तब उन्होंने इन पत्थरों के ऊपर छत ढाल कर अपने महलों का निर्माण किया। किंतु स्पेनिश के तकनीक में वो बारीकी और मजबूती नहीं थी जो इन्का की वास्तुकला में थी। स्पेनिश ने दरवाजों पर चैखट लगाने की चेष्टा की किंतु विफल रहे। पेरू सरकार ने भी इन भवनों और सड़कों को यथावत रहने दिया है, केवल सड़कों में यातायात संकेत बना दिए हैं। पेरू सरकार द्वारा इन इमारतों की सुरक्षा एवं देखरेख सराहनीय हैं।

इन्का लोग बहुत शांति प्रिय समुदाय थे। सूर्य को वो अपना भगवान मानते थे और पूर्व दिशा की ओर से अपना सब काम आरंभ करते थे। उनके घरों के खिड़की दरवाजे पूर्व दिशा में खुलते थे। वे खिड़कियों को इस तरह बनाते थे कि सूर्य की किरणें कमरे में आ सके। वे कमरों में खिड़की के सामने बर्तन में पानी रखते थे और उसमें सूर्य का बिंब देखते थे। सूर्य की किरणों के माध्यम से वे समय का अंदाज करते थे इसलिए उन्हें सौर कला का विस्तृत ज्ञान था। उनके लिए 21 जून सबसे महत्वपूर्ण दिन होता था, उस दिन से सूर्य दक्षिणायन होने लगता है और दिन की लंबाई बढ़ने लगती है। उनका विश्वास था कि सूर्य भगवान खुश हो गए हैं इसलिए दिन लंबे कर रहे हैं। वे जानवरों की बलि चढ़ाते थे। इन्का अपने स्वास्थ्य पर भी बहुत ध्यान देते थे। वे अच्छा भोजन करते और खुली हवा में रहना पसंद करते थे। उनका विश्वास था कि मजबूत होने के लिए उपयुक्त मात्रा में आराम की जरूरत है इसलिए वे पूरे 12 घंटे विश्राम करते थे। साथ ही ये अच्छे स्वास्थ्य के लिए यौन संबंध पर बहुत ध्यान देते थे। हमारे गाइड ने बताया कि इन्का के सरदार की 5000 से अधिक Concubines थीं। सरदार किस तरह अपना समय इनके बीच बांटते थे यह भी अपने में एक पहेली है। स्त्रियों का सरदार के लिए आत्मसमर्पण गौरव की बात थी।

अपने गुणों एवं बल के कारण इन्का करीब-करीब पूरे दक्षिण अमेरिका में फैल गए थे। एक समय ऐसा था कि पूरे दक्षिण अमेरिका की राजधानी कॉस्को नगर थी। सत्रहवीं शताब्दी में स्पेनिश लोगों के आने पर इन्का लोग विलुप्त होने लगे। स्पेनिश से इनका कभी कोई युद्ध नहीं हुआ किंतु स्पेनिश धीरे-धीरे इनको मारते गए और अपना आधिपत्य जमाने लगे। स्पेनिश ने इन्हें बहुत सताया। इस तरह इन्का सभ्यता का अंत हो गया, फिर भी इनकी संस्कृति और अवशेष पूरे प्रमाण के साथ अभी भी जीवित हैं।

मैं अपने गाइड से भी बहुत प्रभावित थी। उसे इन्का का विस्तृत ज्ञान तो था, यह नई बात नहीं है। पूरा माचो पीचो का भ्रमण करने के बाद मैंने गाइड से कहा कि मैं भारत से आई हूँ और हमारी ऐतिहासिक धरोहर माचो पीचो से कहीं अधिक प्राचीन और विकसित है, उदाहरण के लिए मोहनजोदड़ो, विक्रमशिला, नालंदा, राजगीर वगैरह। इनकी वास्तु कला इन्का की वास्तु कला से बहुत ऊँची और विकसित थी। हमारे पास कितने पहले से भट्टी के ईंटें और महल बनाने की कला थी जबकि इन्का केवल पत्थर काटने में माहिर थे। हमारे गाइड ने भी मुझसे सहमति प्रकट की और कहा कि उसने भारतीय धरोहर का बहुत अध्ययन किया है और वह अब भारत दर्शन के सी.डी. इकट्ठा कर ज्ञानवर्द्धन कर रहा है। मैंने सोचा इसे तो इतना Exposure है जबकि हमारे भारतीय गाइड इतने गरीब होते हैं कि उनके पास सिवाय जीविकोपार्जन के कोई विकल्प नहीं रहता। मुझे लगा कि यदि भारत में पर्यटन विकसित करना है तो गाइड्स के लिए उच्च कोटि की शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।

भ्रमण के अलावा मुझे पेरू का भोजन भी अच्छा लगा। चूँकि पेरू अभी मध्य विकसित देशों में है, अतः यहाँ विकास के दुष्परिणाम अभी तक पेरू को दूषित नहीं कर पाए हैं। जैसे यहाँ स्वाभाविक सब्जियाँ और फल मिलते हैं, हाइब्रिड वैरायटी से पेरू अभी अछूता है। यहाँ शिक्षा, विकास के साथ सरलता देखने को मिली इसलिए बहुत सारे ऐसे पर्यटक मिले जो विकास से दुखी होकर शांति की तलाश में पेरू के निर्जन स्थानों में बस गए हैं। पेरू की मेरी यात्रा इतनी आनंददायी और ज्ञानवर्द्धक रही कि भारत लौट आने के बाद भी कितने ही दिनों तक मेरे मानस तरंग में पेरू छाया रहा।


Original Image: Flight of an Aeroplane
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Artist: Olga Rozanova
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