नवगीत की वस्तुवादी आलोचना

नवगीत की वस्तुवादी आलोचना

‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’ समीक्षक एवं नवगीतकार राधेश्याम बंधु की नवगीत की आलोचना की यह तीसरी पुस्तक है। इसके पहले भी उनकी नवगीत की आलोचना की दो पुस्तकें ‘नवगीत और उसका युगबोध’ और ‘नवगीत के नये प्रतिमान’ आ चुकी हैं और हिंदी कविता के विद्वानों और समीक्षकों में चर्चित भी हो चुकी हैं। इस पुस्तक में भी हिंदी गीतकाव्य को ‘नवगीत के नये प्रतिमान’ के आईने में देखने और परखने का प्रयास किया गया है और मानकों की सप्रमाण व्याख्या भी की गई है। पुस्तक को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है। इसका प्रथम खंड है ‘संपादकीय खंड’ जिसमें संपादक राधेश्याम बंधु ने नवगीत के बारह मानकों के परिप्रेक्ष्य में नवगीत की रचनाशीलता और उसके लोकधर्मी प्रासंगिक सौंदर्यबोध की शोधात्मक व्याख्या की है, साथ ही इसी पुस्तक से नवगीतों के साक्ष्य भी दिए हैं। नवगीत विमर्श के अंतर्गत नवगीत के स्वरूप को निर्धारित करने वाले लोकधर्मी सौंदर्यबोध और बारह प्रतिमानों को रेखांकित किया गया है और उसमें लोकचेतना तथा वर्गीय चेतना के मानवतावादी मूल्यों पर विशेष बल दिया गया है।

दूसरा खंड ‘परिचर्चा खंड’ है जिसमें ‘नवगीत वस्तुवादी आलोचना का पक्षधर है’ विषय के अंतर्गत कई महत्त्वपूर्ण विद्वानों के विचार दिए गए हैं, जैसे डॉ. नामवर सिंह, डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, डॉ. मैनेजर पांडेय, डॉ. शिवनारायण, डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय आदि। इसका तीसरा खंड है ‘साहित्यिक आलेख खंड’ जिसमें ‘नवगीत के नये प्रतिमान’ के मानकों की प्रासंगिकता पर आधारित कई विद्वानों और आलोचकों के आलेख दिए गए हैं जैसे डॉ. नंदकिशोर नंदन, डॉ. वशिष्ठ अनूप, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह, डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ, डॉ. सत्यभामा आदि। इन आलेखों में लगभग सभी विद्वानों ने नवगीत के प्रतिमानों का समर्थन किया है और गीतकारों को रचनाधर्मिता को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इन मानकों को अपनाए जाने के लिए जरूरी भी बताया है। चौथे खंड ‘नवगीत की विरासत खंड’ में कुछ चुने हुए वरिष्ठ गीतकारों के गीत दिए गए हैं जैसे सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, नागार्जुन, अज्ञेय, डॉ. शंभूनाथ सिंह, रमेश रंजक आदि। इसका पाँचवाँ खंड है ‘नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर खंड’। इस खंड में नवगीत की लोकधर्मी रचनाशीलता के जो साक्ष्य दिए गए हैं वे हमारे इस विश्वास को मजबूत बनाते हैं कि नवगीत आम आदमी के सुख-दुख का सच्चा हमसफर ही नहीं है बल्कि उसने मानव की बेहतरी की चिंता के साथ मानवतावादी अवधारणा को भी पुष्ट किया है। इस दृष्टि से कई नवगीतकार उल्लेखनीय हैं जैसे अनिरुद्ध नीरव, सत्यनारायण, शांति सुमन, दिनेश शुक्ल, डॉ. राधेश्याम शुक्ल आदि।

नवगीत के इतिहास पर यदि हम नजर डालें तो पायेंगे कि नवगीत के नामकरण के प्रसंग में भी काफी विरोधाभासी दावे हैं। राजेंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि उन्होंने सबसे पहले गीत को ‘नवगीत’ के नाम से एक विशेषांक ‘गीतांगिनी’ में प्रस्तुत किया था और उसकी परिभाषा भी दी थी कि नवगीत की रचना में विशेष रूप से नई भाषा, शिल्प और यथार्थवादी कथ्य पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। किंतु डॉ. शंभूनाथ सिंह की कहानी अलग है और उनका दावा है कि उन्होंने अपने एक गीत को ‘नवगीत’ के नाम से एक गोष्ठी में सबसे पहले प्रस्तुत किया था। साथ ही उनका यह भी कहना था कि गीत की अंतर्वस्तु में राजनीतिक वैचारिकता के प्रयोग से गीत की कोमल सौंदर्यवादी भावधारा की तन्मयता भंग होती है। इसलिए वे गीत-नवगीत में यथार्थवादी विचारधारा के प्रयोग से अंत तक असहमत रहे। किंतु वहीं ‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’ के संपादक राधेश्याम बंधु डॉ. शंभूनाथ सिंह की इस कला और रूपवादी अवधारणा से कभी सहमत नहीं हो पाए और उन्होंने प्रारंभ से ही नवगीत की अंतर्वस्तु में निराला के समष्टिवादी यथार्थवाद को प्रमुखता प्रदान की है। आज उनके इसी वैचारिक जागरूकता के कारण नवगीत को हिंदी कविता में केंद्रीय विधा का स्थान प्राप्त हो सका है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बदलते हुए समय के साथ नवगीत ने भी अपने कलेवर में समयानुकूल काफी बदलाव किए हैं और अपने को तमाम रूढ़ियों से मुक्त करके अमूर्त बिंबों के बजाय मूर्त बिंबों का प्रयोग प्रारंभ कर दिया है। इससे हिंदी कविता का आम पाठक जो गद्यकविता की दुरूहता और छंदहीनता के कारण कविता से दूर चला गया था वह नवगीत की जनसंवादधर्मिता और छंदबद्धता के कारण फिर वापस कविता की तरफ आने लगा है। बंधु जी के इन सामूहिक नवगीत संग्रहों और मूल्यवादी मानकों की जनपक्षधरता के प्रयास से केवल आम पाठकों का ध्यान ही आकृष्ट नहीं हुआ है बल्कि नवगीत के मानवतावादी और यथार्थवादी प्रतिमानों के कारण हिंदी कविता के समीक्षक तथा विद्वान भी प्रभावित हुए हैं और उनका सहयोग भी प्राप्त हो रहा है। मुझे भी ‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’ में गाँव की लोकचेतना और शहरों की झुग्गी-झोपड़ी की जनचेतना वाले कई अच्छे और प्रभावी नवगीत पढ़ने को मिले हैं।


Original Image: Portrait of Alexandre Benois
Image Source: WikiArt
Artist: Leon Bakst
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सुधेश द्वारा भी