नयी कविता और बिहार

नयी कविता और बिहार

नयी कविता से समसामयिक कविता का बोध नहीं होता है। यह समसामयिक हिंदी कविता की एक विशिष्ट धारा है। यह एक साहित्यिक प्रवृत्ति है और इसमें आज का भाव-बोध अधिक व्यंजना के साथ अभिव्यक्ति पाता है। इसकी मूल प्रवृत्ति विद्रोहात्मक रही है। यही कारण है कि यह आज तक उचित मात्रा में सहानुभूति प्राप्त नहीं कर सकी है।

स्वर्गीय सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और श्री सुमित्रानंदन पंत के बाद हिंदी कविता की आधुनिक प्रवृत्ति अभिव्यक्ति की प्रतीक्षा करती रही। काव्य की नई आवश्यकता का अनुभव द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व ही होने लगा था। सौभाग्य की बात है कि हिंदी कविता में प्रयोगवाद का आरंभ स्वर्गीय नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं से ही हुआ। यह घटना सन् 1936-38 ईस्वी की है। श्री ‘अज्ञेय’ तथा उनके सहयोगी कवियों का यह फतवा–“प्रयोगवाद–एक विशेष साहित्यिक प्रवृत्ति है जिसका जन्म हिंदी काव्य-क्षेत्र में तार-सप्तक (1943) के प्रकाशन के साथ माना जाता है”–एकदम आधारहीन है। जिस समय ‘नकेन’ के कवियों ने लिखना शुरू किया था–बिहार से बाहर मात्र एक ही कवि इस प्रवृत्ति की ओर उन्मुख था और वह कवि है–श्री शमशेर बहादुर सिंह। इस काल में श्री ‘अज्ञेय’ तथा उनके तथाकथित सहयोगी कवि छायावाद से प्रभावित कविताएँ लिखा करते थे। यह दूसरी बात है कि ‘नकेन’ तथा श्री शमशेर बहादुर सिंह की कविता-पुस्तकों का प्रकाशन विलंब से हुआ। श्री ‘अज्ञेय’ अपने उद्योग के माध्यम से शीघ्र प्रकाश में आ गए। स्पष्ट है, स्वर्गीय नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं के साथ ही हिंदी काव्य-जगत में अत्याधुनिक प्रवृत्तियों का एक नया अध्याय शुरू हुआ।

नयी कविता, श्री लक्ष्मीकांत वर्मा के शब्दों में, आज की स्थिति-विशिष्टता से उद्भूत उस मानव के परिवेश की अभिव्यक्ति है जो आज की समस्त तिक्तता और विषमता को तो भोग ही रहा है; पर साथ ही उन समस्त तिक्तताओं के बीच एक नए मूल्य का भावन कर अपने व्यक्तित्व को भी सुरक्षित रखना चाहता है। वह विशाल मानव प्रवाह में बहने के साथ-साथ अस्तित्व के यथार्थ को भी स्थापित करना चाहता है, उसके दायित्व का निर्वाह भी करना चाहता है।

काव्य के इस नए आंदोलन की प्रगतिशीलता भाषा और शिल्प के प्रयोगों तक ही सीमित नहीं है। नैतिक जिज्ञासा के नये मूल्यों और प्रतिमानों की खोज तथा उन स्रोतों एवं आधारों का अन्वेषण जहाँ से मूल्य उत्पन्न होते हैं, इसकी मूल प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति को उभार कर हिंदी कविता को एक नया मोड़ देने का सारा श्रेय ‘नकेन’ के प्रपद्य को ही है। ‘कविता’, ‘विविधा’, ‘आधुनिक कविताएँ’, ‘आयाम’, ‘काव्य-संकलन’, ‘अपरंपरा’ आदि के प्रकाशन से इस प्रवृत्ति को बल मिला।

काव्य का स्वरूप युग-जीवन से गति-प्रेरणा लेकर ही गठित होता है। आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ मानवता के भावना-क्षेत्र को आक्रांत कर रहा है; पर मनुष्य का चिर संवेदनशील हृदय प्रज्ञा द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि आज की कविता में विज्ञानजनित तर्क और मर्म के अनिवार्य स्पंदन का अद्भुत सम्मिश्रण है।

आज बिहार नई कविता का गढ़ है। स्वर्गीय नलिन विलोचन शर्मा, श्री केसरी कुमार, श्री नरेश, श्री शिवचंद्र शर्मा, श्री श्यामनंदन सहाय ‘सेवक’, श्री मदन वात्स्यायन, श्री राजेंद्र किशोर, श्री रणधीर सिन्हा, श्री रामनरेश पाठक, श्री राजेंद्र प्रसाद सिंह, श्री सिद्धनाथ कुमार, श्री सकलदीप सिंह, श्री श्यामसुंदर घोष, श्री जवाहर सिंह, श्रीमती उमा जयघोष, श्रीमती विमला राजेंद्र, सुश्री कुमारी राधा, श्री प्रभाकर मिश्र, श्री राजकमल चौधरी, श्री जय घोष, श्री कृष्णनंदन ‘पीयूष’, श्री सत्यदेव शांतिप्रिय, श्री रामनिरंजन परिमलेंदु, श्री उमाकांत वर्मा आदि अनगिनत नाम हैं जिनसे हिंदी कविता के भावी उत्कर्ष की आशा बँधती है। कुछ पिछलगुए कवि भी हैं और इनकी संख्या नगण्य है और इनकी चर्चा भी व्यर्थ है।

कुछ दूसरी धाराओं के कवि भी नए आंदोलन से प्रभावित हुए हैं। ऐसे कवियों में सर्वश्री केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’, श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’, श्री नागार्जुन, श्री हरेंद्रदेव नारायण, श्री रामप्रिय मिश्र ‘लालधुआँ’, श्री कन्हैया आदि के नाम प्रमुख हैं।

कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सारे नाम बिहार से ही आते हैं। साहित्य का इतिहास इन नामों को छोड़कर आगे बढ़ ही नहीं सकता है। इन कवियों में मूल्यों के प्रति एक नयी और गंभीरतर आस्था है। इसके साथ ही उन मूल्यों तथा प्रतिमानों की सात्विकता और वास्तविकता का बोध इन्हें है। भविष्य इनके प्रति आशान्वित है।


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