शेक्स्पीयर के गाँव में

शेक्स्पीयर के गाँव में

[विश्व-विश्रुत प्रथम पंक्ति के साहित्यकार शेक्स्पीयर की 400 वीं शती-समारोह सारा विश्व मना रहा है। इस अवसर पर आज से तेरह वर्ष पूर्व लिखित श्री बेनीपुरी जी की डायरी से शेक्स्पीयर संबंधी यह अंश उद्धृत कर हम अपनी और पाठकों की ओर से उस महान् साहित्यकार को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। –संपादक]

स्ट्रैटफोर्ड औन ए वन
16 मई, 51

हाँ, आज स्थान का नाम ऊपर ही रहना चाहिए। जो अकस्मात् लिख गया, वही सत्य है। यह स्थान ऊपर है और काल इसके नीचे। मई की ऐसी सोलहवीं तारीख हजारों बार आएगी और जाएगी, यह स्थान इसी प्रकार अजर-अमर रहेगा।

प्रणाम करो इस स्थान को ओ संसार के मानवो! इसी स्थान पर शेक्स्पीयर जन्मा था, जिसने मानवता को गौरव दिया। शेक्स्पीयर या कालिदास किसी खास देश के नहीं होते। वे सारी मानवता के हैं–सारी मानवता के आभूषण हैं। सारे मानव उनके निकट सर झुकाएँ–सादर, सविनय!

लगभग 6 बजे संध्या को यहाँ आया और 9 बजे यह डायरी लिखने बैठा हूँ। रोम-रोम आनंद से उच्छ्वसित हो रहे हैं।

मैं भी एक छोटा-सा नाटककार हूँ। इस तरह शेक्स्पीयर मेरे गोत्र के थे–यह भावना और भी भाव-विभोर बना रही है।

ज्यों ही इस होटल में पहुँचा, सभी साथी अपने-अपने सामान गिनने और सँजोने में लग गए। किंतु मेरी आत्मा तो जैसे छटपट कर रही थी। झट बाहर निकला। सोचा रात होने के पहले जितना भी देखा जा सके, देख लिया जाए।

सबसे पहले, पूछते-पाछते, उस स्थान पर गया जहाँ शेक्स्पीयर का जन्म हुआ था! 6 बजे तक ही वह खुला रहता है, हमारे जाते-जाते 7 बजने को थे। अत: घर बंद पाया। हाँ, उसके आगे लिखा था कि यहीं शेक्स्पीयर का जन्म हुआ था। हमने उस घर को किस तृषित दृष्टि से देखा!

दुमंजिला खपरैल मकान। गुण-पूजक अँग्रेज-जाति इसे उसी रूप में जुगा कर रख रही है, जिस रूप में यह शेक्स्पीयर के समय में थी। किंतु उसकी मरम्मत पर इतना ध्यान है कि कहीं जरा भी टूट-फूट या जीर्णता नहीं दिखाई पड़ती। घर मुख्य सड़क पर ही है। तो भी दीवाल से सटे कुछ फूल लगा दिए गए हैं, जो अपनी रंग-बिरंगी चमक से हमारी आँखों को तृप्त कर रहे थे!

भीतर जाकर तो कल देखूँगा, अभी चला उस स्थान को जहाँ शेक्स्पीयर की स्मृति में रंगमंच बनाया गया है। जब शहर में घुस रहा था, देखा था, वहाँ मोटरों की भीड़ लगी थी। पूछते-पाछते वहाँ पहुँच ही गया।

अपने कलाकारों की पूजा करना कोई इन लोगों से सीखे। ग्लासगो में जो सबसे बड़ा पार्क है, उसमें सबसे ऊँचे स्तंभ पर स्काट की मूर्ति है और अगल-बगल राजनीतिज्ञों या सेनापतियों की। यहाँ अँग्रेजों ने शेक्स्पीयर के लिए क्या किया है, वह यहाँ आने पर ही मालूम किया जा सकता है।

तो हमारे सामने यह पार्क है, यह एवन नदी है, यह स्मारक-थियेटर है! पार्क में घुसिए और देखिए यह शेक्स्पीयर की मूर्ति। एक ऊँचे चबूतरे पर कैसी भव्य-दिव्य दिव्य दिखाई पड़ती है यह। इसे लार्ड रोनाल्ड गावर ने 1888 ई. में तैयार किया था और उसी साल 10 अक्टूबर को इस मूर्ति को प्रतिष्ठापित किया गया।

इस मूर्ति में शेक्स्पीयर ध्यानमग्न बैठे-से दीखते हैं, मानो किसी नाटक की तैयारी के बारे में कुछ सोच रहे हों। उसके आसन के नीचे जो चबूतरा है, उसके चारो ओर शेक्स्पीयर के ही कुछ पद्य उद्धृत किए गए हैं। पीछे की ओर यह पद्य उद्धृत है :–

Life’s a walking shadow
A poor player
That streets and frets
His houp upon the stage
And then there is no more.

इस मुख्य मूर्ति से कुछ हटकर चारो कोने पर चार मूर्तियाँ हैं, जो शेक्स्पीयर के नाटकों के चार मुख्य पात्रों का सही चित्रण-सी लगती हैं। उनकी मूर्ति के आगे दाहिनी तरफ फ़ालस्टाफ़ है–कैसा हँस रहा है वह, मानो सारे संसार पर, उसकी क्षणभंगुरता पर या उसकी बेवकूफियों पर। प्रिंस हाल–मुँछ उठान जवानी का प्रतीक, बेफिक्र, बेलौस। अपना मुकुट उतार कर सौंप रहा है। किंतु बताइए, पीछे की दो मूर्तियाँ किनकी होंगी! शेक्स्पीयर को जिसने पढ़ा है, वह तुरंत कह देगा, उनमें एक तो हैमलेट की जरूर होगी! हाँ, ठीक, हैमलेट ही तो। हाथ में एक मानव खोपड़ी लिए वह कैसा घूर रहा है उसे! और दूसरी मूर्ति–लेडी मैकबेथ! अपने हाथ को किस तरह भय-ग्रस्त दृष्टि से देख रही है। अरे, इससे कहीं खून तो नहीं टपक रहा है!

पार्क में चारो ओर सब्जी और फूल ही फूल। सब्जी को इस तरह रखा गया है कि चलिए तो मालूम हो, मखमल पर चल रहे हैं। फूलों की सजावट का क्या कहना!

बड़े और छोटे फूलों को एक ही क्यारी में किस प्रकार रंगों के मेल पर ध्यान देते हुए रोपा गया है। नीचे डेज़ी खिलखिला रही है, तो ऊपर टुलिप मुस्कुरा रहा है। यों ही फूलों और रंगों की अजीब रंगामेज़ी।

और यह तालाब है! इसका पानी? शेक्स्पीयर के पार्क के तालाब में एवन नदी के पानी के अतिरिक्त दूसरा कौन पानी रखा जा सकता है। बगल के एवन से ही यंत्र द्वारा पानी लेकर इसे भरा गया है। और, इस भरे हुए तालाब में वे उजले राजहंस तैर रहे हैं। उजले-उजले, बड़े-बड़े! उनकी लंबी गरदन, उनकी चौड़ी चोंच! जब उजले परों को फ़टफ़टाने लगते हैं, तो मालूम होता है, शेक्स्पीयर की कविता अब सपक्ष होकर उड़ने जा रही है!

किंतु दर्शकों और पर्यटकों का झुंड उन्हें इतना प्यार दे रहा है कि वे उड़ेंगे क्यों? देखिए, कुछ लोग उनके लिए दाने पेंक रहे हैं, कुछ उनके चित्र उतार रहे हैं!

उफ़, भावना-विभोर होकर मखमली फर्श को अपने जूतों से मत बरबाद कीजिए, पगडंडी पकड़ कर आगे बढ़िए। यह सामने स्मारक-थियेटर है! इसकी स्थापना आदि के बारे में ज्यादा खोज-ढूँढ़ करने की आज फुर्सत कहाँ है? हम सीधे भवन के बरामदे में पहुँचे, जहाँ दर्शकों की भीड़ लगी थी। सवा सात बज रहे थे, सूचना-पट में देखा, 7 बजे से खेल शुरू होगा–आज हेनरी फ़ोर्थ दिखलाया जा रहा है। कहा गया था कि होटल में खाना साढ़े आठ तक ही मिलेगा। किंतु सोचा, जहन्नुम में जाए खाना–खाना तो रोज़ खाते ही हैं, आज यह अवसर क्यों चूकें? किंतु दरयाफ्त करने पर पता चला, बैठने वाली एक भी सीट खाली नहीं। हाँ, खड़े-खड़े देख सकते हैं। साढ़े दस बजे तक खड़ा रहने की हिम्मत तो थी नहीं। हाँ, चलते समय साढ़े तीन शिलिंग में 1950 की स्मृति-पुस्तिका खरीद कर संतोष किया।

फिर एवन के किनारे टहलने लगा! तरह-तरह की भावनायएँ उठ रही थीं। यह नदी हमारी लखनदेई से बड़ी नहीं है। किंतु धन्य इसका भाग्य! एक सपूत इसके किनारे पैदा हुआ और यह जगत प्रसिद्ध बन गई।

छोटी-छोटी मोटर-बोटें थीं, इतनी उमंग मन में थी कि सोचा, इनमें से एक पर चढ़ जाऊँ और जो पैसे माँगे, देकर इसकी लहरियों का मजा लूँ। किंतु उसी समय एक साथी मिल गए और उन्होंने कहा, शेक्स्पीयर की वाटिका आप लोगों ने देखी है या नहीं?

उनकी बात पूरी भी नहीं होने पाई और मैं उस ओर दौड़ पड़ा। वह हँसने लगे–आप तो इस समय शेक्स्पीयर-मैड हो रहे हैं! हाँ, जरूर मुझ पर इस समय शेक्स्पीयर का पागलपन सवार था! काश, ज़िंदगी भर ऐसा ही पागलपन सवार रह पाता!

पूछते-पाछते उस बगीचे में गए, जिस बगीचे में शेक्स्पीयर के हाथ का लगाया मलबेरी का एक पेड़ आज भी जीवित है। इस पेड़ को जीवित रखने के लिए क्या-क्या न प्रबंध किए जाते हैं। पुरानी डालों में लोहे के भरसाहे लगाए गए हैं। चारो ओर का चबूतरा फूलों से भरा हुआ! मलबेरी में अभी-अभी पत्ते निकल रहे थे!

झट उसकी डाल को पकड़ कर चूम लेने से अपने को रोक नहीं सका। शायद कभी शेक्स्पीयर ने भी उसमें कोंपलें निकलते हुए देखकर इसी तरह चूमा हो।

मलबेरी के पेड़ के सामने शेक्स्पीयर की एक मूर्ति है, जो पहले लंदन में थी, अब यहाँ लाई गई है। इसमें शेक्स्पीयर बिल्कुल जवान लगते हैं–अभी-अभी मसें भींग रही हैं–एकहरा, छरहरा बदन। काफ़ी खूबसूरत। दोनों ओर दो देवियाँ खड़ी हैं–एक है नाटक देवी, दूसरी संगीत की देवी! एक के चेहरे पर सकुचाहट, उसकी निगाहें नीची; दूसरी शेक्स्पीयर के मुँह की ओर देख रही!

बगीचे को किस तरह सजा कर रखा गया है–गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी! इस बगीचे से सटे नैश का वह भवन है, जिसमें शेक्स्पीयर अंतिम दिनों में रहते थे!

हमने आश्चर्य से पाया, हम अपने होटल के बिल्कुल निकट पहुँच गए हैं। यह होटल शेक्स्पीयर होटल कहलाता है और इसका संचालन शेक्स्पीयर की स्मारक-समिति की ही ओर से होता है। यह होटल हमेशा भरा रहता है। बाहर देश-विदेश से जो लोग आते हैं, वे इसी होटल में ठहरना पसंद करते हैं।
होटल की व्यवस्था में भी शेक्स्पीयर की छाप है। इसके हर कमरे का नाम शेक्स्पीयर की पुस्तकों के नाम पर रखा गया है। जहाँ हम भोजन करते हैं, उसका नाम है, As you like it. जहाँ पीने का दौर चलता है, उसके दरवाजे पर लिखा है–Measure for Measure. पीकर जहाँ गपशप होती है, ठहाके लगाए जाते हैं, उसका नाम है Tempest. और जहाँ अकेले-दुकेले बैठकर चिंतन किया जाता है उसका नाम Mid-summer night dream.

आज मौसम भी बड़ा अच्छा रहा। ग्लासगो से जब हम चले, आसमान साफ था। ज्यों-ज्यों ट्रेन आगे बढ़ती गई, धूप खिलने लगी। मैं प्राय: किनारे पर बैठता हूँ, जिससे बाहर का दृश्य देखता चलूँ। खिड़कियाँ शीशे की होती हैं। जब धूप शरीर से स्पर्श करने लगी, बड़ा आनंद आया!

हम एडिनबरा गए थे, इंगलैंड के पूर्वी किनारे से होकर और लौटे हैं पश्चिमी किनारे से। थोड़ी दूर तक तो दृश्य अच्छा नहीं रहा। किंतु जब हम मध्य इंगलैंड में पहुँचे तो प्राकृतिक दृश्य बड़े लुभावने दिखे!
रास्ते में एक जगह है–Gretna Green. यह जगह इंगलैंड में बड़ी रोमांटिक रही है। जब प्रेमी-प्रेमिका यह देखते थे कि उनके माँ-बाप उनके विवाह में बाधक हो रहे हैं, तो वे भाग कर यहीं आ जाते थे। यहाँ घोड़े के पैर में नाल ठोंकने वाले को भी शादी कराने का हक था। अत: चर्च की झंझटों में नहीं पड़कर इन लुहारों से ही वे अपने विवाह की बाजाप्ता रस्म पूरी कर लेते थे।

रास्ते में लंकाशायर मिला। 1921 की स्मृतियाँ जागृत हुईं जब यहाँ के कपड़ों की होली हमने जलाई थी। समय कितना बदलता है? तीस साल के बाद उसी लंकाशायर से उसकी सरकार के मेहमान के रूप में गुजर रहे थे।

बरमिंघम में हमें गाड़ी छोड़ देनी पड़ी। वहाँ से हम मोटर से स्ट्रैटफोर्ड आए हैं।

बरमिंघम के बाद दृश्यावली इतनी सुंदर थी कि हम अनुभव करने लगे, सचमुच हम किसी कलाकार की जन्मभूमि में जा रहे हैं। चारो ओर हरी-भरी भूमि। जमीन पर फूलों की भरमार। लाल, पीले, नीले–ये फूल गुच्छे के गुच्छे उगते हैं। पेड़ भी अधिक और अनेक किस्म के। कोई अपनी मौलश्री की तरह का, कोई नींबू की तरह का, कोई पाकड़ की तरह का। बड़ या पीपल की तरह बड़े-बड़े पत्ते वाले पेड़ यहाँ भी नहीं दिखाई पड़े। देवदार की तरह लंबे, सजीले पेड़ जहाँ-तहाँ प्रहरी-से खड़े थे!

बरमिंघम से ही मुझे लग रहा था कि कहीं तीर्थ-स्थान में जा रहा हूँ। मन में वैसी ही पावन, पुनीत, पुलकमयी भावनाएँ! होटल में आकर यह राय भी दी गयी थी कि खाकर बाहर जाइए। मैंने सोचा–कहीं तीर्थ में दर्शन के पहले भोजन किया जाता है!

शेक्स्पीयर की इस जन्मभूमि की साज-सज्जा को देखकर बार-बार राजापुर और बिस्फ़ी की याद आ रही है। क्या हम राजापुर में तुलसीदास और बिस्फी में विद्यापति की स्मृति में कुछ ऐसा आयोजन नहीं कर सकते हैं?

सोचा है, कल संपूर्णानंद जी को लिखूँगा कि कम-से-कम राजापुर के लिए तो कोई प्रबंध करें ही। आज लंदन के हिंदी-केंद्र की शुभकामना संबंधी उनका पत्र भी आया है। कुमार गंगानंद सिंह को लिखूँगा, यदि बिस्फीमें वह विद्यापति का स्मारक बना सके, तो यह एक काम ही उन्हें इतिहास में अमर कर देगा।

शेक्स्पीयर की स्मृति में मस्तक झुकाकर, आज अपनी डायरी यहीं समाप्त करता हूँ। अभी बहुत देखना है, बहुत लिखना है!

स्ट्रैटफोर्ड और एवन 17 मई, 51

अभी-अभी जो नाटक देख कर आया हूँ; उसके बारे में क्या कहूँ। कह सकता हूँ; यदि उसे नहीं देख लेता, तो सारी यात्रा बेकार हो जाती!

किंग रिचार्ड द्वितीय खेला जा रहा था। ज्यों ही परदा हटा सबसे पहले तो रंगमंच देखकर ही दंग रह गया। सादी लकड़ी से बना दुमंजिला रंगमंच। ऊपर जाने के लिए दोनों तरफ से सीढ़ियाँ। मंच पर आने के लिए तीन रास्ते–दो बगल से, एक दुमंजिले के नीचे से। बगल से एक सीढ़ी दुमंजिले पर जाने के लिए!

इस सादे रंगमंच पर रोशनी के चमत्कार से ऐसे दृश्य उपस्थित किए जाते कि चकाचौंध में पड़ जाना होता। बस एक ही दृश्य में सारा खेल। यही मंच कभी राजभवन बन जाता, कभी युद्ध का मैदान। कभी बगीचा बन जाता, तो कभी कैदखाना। ज्यादातर काम प्रतीकात्मक होते।

नीचे एक कोने पर कुर्सियाँ रखीं। जरूरत पड़ने पर पात्र ही कुर्सी या दूसरे सामान उठाए हुए आते और चलते समय ले जाते। यह इस तरह होता कि नाटक का ही एक अंग मालूम होता, जरा भी अस्वाभाविकता नहीं मालूम पड़ती।

ऐतिहासिक खेल था, अत: पोशाक पुराने ढंग की ही बनवाई गई थी। किंतु उसमें कोई चाकचिक्य नहीं मालूम होता कि नित्य दिन पहनने वाली ही पोशाक है।

किंग रिचार्ड का पार्ट माइकेल रेडग्रेव ने किया था और उसके प्रतिद्वंद्वी हेनरी बोलिंगब्रूक का पार्ट हफ़ ग्रिफ़िथ ने। रिचार्ड की रानी का पार्ट हीदर स्टैनर्ड ने।

रिचार्ड के पार्ट का क्या कहना? सुख-दुख, हास्य-रुदन, उच्छ्वास-संताप सबका पार्ट इतना अच्छा कि नाट्य-कौशल पर जितनी भी तालियाँ पीटी जायँ, थोड़ी! समूचे खेल में कहीं भी जरा झोल नहीं! सब अपनी जगह पर ऐसा सटीक कि मालूम होता नाटक नहीं, सत्य घटना देख रहे हैं। मुख्य पात्रों की संख्या पैंतीस थी, छोटे-छोटे काम करने वाले अनेक। किसी के अभिनय में कहीं त्रुटि नहीं दिखाई पड़ती थी। पृष्ठभूमि का संगीत इतना आकर्षक था कि उसकी धुन ही सारा वातावरण तैयार कर देती थी। प्रारंभ में उधर नेपथ्य-संगीत शुरू हुआ, इधर रोशनी की रंगीनियाँ रंगमंच पर जादूगरी करने लगीं और फिर जादू के पुतले की ही तरह एक-एक पात्र भिन्न-भिन्न रास्तों से आ पहुँचे। कुछ दुमंजिले पर चढ़ गए, कुछ नीचे खड़े हुए। इस दृश्य ने ही भावविभोर बना दिया! फिर एक दृश्य के बाद दूसरा दृश्य इतनी तेजी से और इतने नाटकीय ढंग से बदलने लगा कि चकित-विस्मित हो जाना पड़ता था!
समाप्ति के समय तो पूछिए ही नहीं। तालियों की गड़गड़ाहट में, पाँच मुख्य पात्रों को छोड़कर, शेष पात्र आकर रंगमंच पर खड़े हुए। फिर माइकेल को बीच में करके पाँचों पात्र आए। अब तो तालियों की पूछिए नहीं। तीन बार सर झुकाकर उन्होंने दर्शकों को नमस्कार किया। तालियाँ पिटती रहीं–पाँचों मुख्य पात्रों ने आगे बढ़कर फिर तीन बार नमस्कार किया। तो भी तालियाँ पिटती रहीं। पात्र जाने लगे। चलते-चलाते रेडग्रेव और हैरी एंड्रूज मंच के दोनों छोर पर बढ़े, घूमकर एक दूसरे को देखा, फिर दर्शकों को नमस्कार कर चलते बने!

रिचार्ड जब अपनी पत्नी से बिदा हो रहा था और जब वह जेल में अपने जीवन पर चिंतन कर रहा था, तो प्राय: सबकी आँखें सजल हो गई थीं। रेडग्रेव बिदा के समय जब मंच पर आया था, तो उस समय भी उसके चेहरे पर अभिनय-जनित खिन्नता थी! शोकांत नाटक में ऐसा होता ही है–यदि अभिनेता अपने पार्ट में अपनी पूरी जान डाल सके!

आज भोर में डनलप का कारखाना देखने जाना था। इच्छा नहीं होती थी कि स्ट्रैटफोर्ड को छोड़कर बाहर जाएँ–किंतु, कार्यक्रम को टालना भी अच्छा नहीं होता। यह जाना अच्छा भी हुआ, हम अच्छी तरह उस भूभाग को देख सके, जो शेक्स्पीयर की क्रीड़ाभूमि रहा है! स्ट्रैटफोर्ड वारविक काउंटी में है। इस काउंटी को इंगलैंड की हृदयस्थली कहा जाता है। भौगोलिक दृष्टि से भी और ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक दृष्टि से भी–बड़ा ही भव्य भूभाग है। फलों, पेड़ों और पंछियों की भरमार। फिर बसंत की बहार। चेरी, प्लम और एपुल के पेड़ लाल, उजले और पीले फूलों से लदे आँखों को मुग्ध कर रहे थे। ज़मीन पर नीले, बैगनी और लाल-पीले फूलों की बहार का भी क्या कहना? क्यारियों में ही फूल नहीं, रास्तों में जहाँ भी घास-फूस उगे हैं, वहाँ फूल ही फूल है! सचमुच यह भूभाग इंगलैंड की हृदयस्थली है।

वारविक में वह किला देखा, जिसमें अपने नययुवक प्रेमी से मिलने एलिजाबेथ आया करती थी! सुना, किले को अब भी सजाकर रखा जाता है और उसमें कितने ही सुंदरतम चित्र हैं। फ़ाटक से ही हम उसका सौंदर्य देखकर मुग्ध हुए। किले के आसपास की जमीन भी बड़ी मनोहारिणी है। एक छोटी-सी नदी बहती है, जो उसके सौंदर्य को और भी बढ़ा देती है!

वारविक के रमणीय पार्क में बहुत से बच्चे खेल रहे थे। आज तक हमने इंगलैंड में कभी दुबला-पतला, पिल-पिला या फटाचिटा पहने बच्चे को नहीं देखा! एडिनबरा में हम रविवार को थे। स्कूल में छुट्टी थी और धूप भी उगी थी। झुँड के झुँड बच्चे पार्कों में दिखाई पड़े। उनके खेलने-कूदने के लिए पार्कों में झूले वगैरह का बड़ा सुंदर प्रबंध रहता है!

आज की सुनहली धूप, रंगीन धरती, बच्चों का कलरव, चिड़ियों की चहचह-आनंद का क्या कहना?
रास्ते में एक दूसरा किला पड़ा–उसका नाम है केलिनवर्थ। इस क़िले के नाम से एक उपन्यास लिखकर स्काट ने उसे अमर बना दिया है। क्रौमवेल के समय यह नवाबों का अखाड़ा था। उसने इस पर कब्जा कर इसे ध्वस्त-पस्त कर दिया। आज भी किले का भग्नावशेष मात्र है!

डनलप का कारखाना देखा! 1915 में इस कारखाने की स्थापना हुई। दस हजार आदमी यहाँ काम करते हैं और 260 एकड़ में इसका कारखाना है। यों तो इस कारखाने की शाखाएँ संसार भर में हैं। एक कारखाना कलकत्ता में भी है। सिर्फ विलायत की भिन्न-भिन्न शाखाओं में 90 हजार आदमी काम करते हैं।

मजदूरों की सुख-सुविधा के लिए पूरा प्रबंध है। 30 वर्षों से यहाँ ज्वायंट वर्क्स कौंसिल काम करती है; जिसमें मजदूर और मालिक साथ बैठकर सभी समस्याओं पर विचार करते हैं। मजदूरों के लिए थियेटर, सिनेमाघर और तरह-तरह के खेलों के लिए 27 एकड़ जमीन के खेल के मैदान सुरक्षित हैं। पाँच हजार मजदूर यहाँ के भोजनागार में एक साथ भोजन करते हैं।

कच्चे रबर को लेकर किस तरह टायर और ट्यूब बनाए जाते हैं, हमें घूम-घूम कर बतलाया गया। हर दिन 45000 टायर इस कारखाने से निकलते हैं।

हमने वहीं भोजन किया। फिर कुछ लोग तो वहीं रह गए, मैं तीन अन्य साथियों के साथ स्ट्रैटफ़ोर्ड औन एवन लौट आया!

यहाँ आकर आज शेक्स्पीयर का जन्म-गृह देखा और फिर उस घर को देखा जहाँ शेक्स्पीयर की मृत्यु हुई। आह, इन घरों को किस तरह सुरक्षित रखा गया है।

शेक्स्पीयर के घर में ज्यों ही घुसिए, सबसे पहले आपको वह कमरा दिखाया जाएगा, जिसमें बैठकर शेक्स्पीयर काम किया करते थे। भीतर दीवालों की वे ही लकड़ियाँ हैं, जो चार सौ वर्ष पहले थीं। तरह-तहर के उपचार से उन्हें सड़ने और घुनने से बचाया जाता है। नीचे की फ़र्श टूटी-फूटी है, जिस तरह वह शेक्स्पीयर के समय में थी। उसमें एक तरफ़ एक कुर्सी रखी है, जिस पर बैठकर शेक्स्पीयर लिखा करते थे। एक लंबा संदूकचा ऐसा है, जो उनके टेबुल के काम में शायद आता होगा।

उससे सटा कमरा उनके बाप का है, जिसमें बूढ़े की दूकान थी। पहले इन दोनों कमरों के बीच में दीवाल थी, किंतु अब दीवाल हटा दी गई है, जिससे एक साथ ही दोनों कमरों को देख लिया जाए। इस कमरे में शेक्स्पीयर के संबंध के बहुत से कागज-पत्र शीशे में जड़कर टाँग दिये गये हैं।

शेक्स्पीयर के बैठने के कमरे से सटा हुआ दूसरी तरफ़ का कमरा रसोईघर है। उस समय के सारे बर्तन वहाँ सुरक्षित हैं–चुल्हा, कलछी, हाँड़ी, थाल आदि। लकड़ी के जिस बर्तन में मांस के छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते थे, उसे भी रखा गया है। इस घर में एक ऐसी चीज है जो इंगलैंड में भी एक ही चीज है। छत से जमीन तक एक पतली लकड़ी लगी है और जमीन से एक बालिश्त ऊँचे पर उसमें लोहे का एक फ्रेम लगा है जिसे बच्चे की कमर से लगा दिया जाए तो वह कोल्हू के बैल की तरह घूमता रहेगा। यदि मास्टर शेक्स्पीयर नटखट रहे होंगे, जैसा कि मालूम होता है, उन्हें इस फ्रेम से जकड़ कर बैल की तरह घूमना पड़ा होगा। इसे देखकर यशोदा द्वारा कृष्ण का ऊखल में बाँधना याद आ गया!

दुमंजिले पर वह घर है जिसमें शेक्स्पीयर का जन्म हुआ था। उसमें एक बिछावन भी है, किंतु उसी पर शेक्स्पीयर सोते होंगे, यह नहीं कहा जा सकता। हाँ, यह भी सोलहवी शताब्दी का ही है। पहिया लगी हुई एक बक्स गाड़ी है जिसमें शिशु शेक्स्पीयर को लिटा कर उनकी माँ सड़कों पर घुमाती होगी ऐसी कल्पना तो की ही जा सकती है। इस घर की दीवालों पर भी शेक्स्पीयर संबंधी कागजात शीशे में फ्रेम करके टाँगे गए हैं। शेक्स्पीयर का हस्ताक्षर है और उनके जीवित रहते समय ही प्रकाशित उनकी कुछ पुस्तकें भी हैं।

घर के पीछे एक बगीचा है। निस्संदेह इस बगीचे में बचपन में शेक्स्पीयर टहलते रहे होंगे। अब इस बगीचे में ऐसे सभी पेड़, फूल और घास लगा दिया गए हैं जिनका उल्लेख शेक्स्पीयर ने अपनी पुस्तकों में जगह-जगह पर किया है! हर फूल के पेड़ से एक-एक पुर्जा बँधा है जिस पर उस फूल के संबंध में शेक्स्पीयर की पंक्तियाँ उद्धृत हैं।

इस घर की बगल में एक दूसरा घर है, जहाँ शेक्स्पीयर संबंधी साहित्य और चित्र बिका करते हैं। चित्रों के अतिरिक्त मैंने शेक्स्पीयर की एक मूर्ति और ऑक्सफोर्ड द्वारा प्रकाशित उनकी ग्रंथावली खरीदी!

फिर मैं उस घर में गया, जो न्यू हाउस के नाम से मशहूर है और जिसमें लगी वाटिका की चर्चा मैंने कल की डायरी में की है। शेक्स्पीयर जब लंदन से यश और धन अर्जित करके लौटे, तो अपने लिए यह नया मकान खरीदा था। जिस घर में वह रहते थे, वह घर अब नहीं है, हाँ, उसकी नींव अवश्य है। उसके बीच के कमरे में बैठकर शेक्स्पीयर ने ‘टेम्पेस्ट’ लिखा था। घर की नींव के आगे एक पुराना ईनार है! अवश्य ही इसी कुएँ का पानी शेक्स्पीयर पीते रहे होंगे। निकट जाकर उसे झाँक कर देखा, उसमें अब भी पानी भरा है। यह न्यू हाउस शेक्स्पीयर के मरने के बाद उनकी लड़की के कब्जे में आया और फिर उस लड़की की लड़की के कब्जे में जिसका नाम नैश था। नैश का तैल चित्र वहाँ टँगा है। उस घर में एक मेज रखी हुई है, जो शेक्स्पीयर की लगाई मलबेरी की लकड़ी से बनाई गई थी। उसमें 52 लकड़ियाँ लगी हुई हैं; शेक्स्पीयर 52 वर्ष जीवित रहे।

इस घर को सुप्रसिद्ध अभिनेता गैरीक ने खरीदा और उसे शेक्स्पीयर की स्मृति में उत्सर्ग किया! इस घर में शेक्स्पीयर की स्मृतियों के अतिरिक्त गैरीक-संबंधी भी बहुत-सी चीजें सुरक्षित हैं! शेक्स्पीयर ने जिन फूलों की चर्चा अपनी पुस्तकों में की है, उन सभी फूलों के चित्र बनाकर सुरक्षित रखे गए हैं। शेक्स्पीयर ने पीने के जिन पात्रों का उल्लेख किया है, उनके नमूने भी रख दिए गये हैं। जो सिक्के उनके समय में इंगलैंड में प्रचलित थे और जिन देशी-विदेशी सिक्कों का उल्लेख उन्होंने किया, वे सभी सिक्के भी रखे गए हैं।

भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न चित्रकारों द्वारा बनाए गए शेक्स्पीयर के चित्र और मूर्तियाँ भी इन दोनों घरों में देखने ही योग्य हैं!

मैं इन्हें देख रहा था और मुग्ध हो रहा था!


Image: Chandos Portrait
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: John Taylor
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