क्रूगर नेशनल पार्क की यात्रा

क्रूगर नेशनल पार्क की यात्रा

वैसे तो यात्राएँ की ही इसलिए जाती हैं कि न सिर्फ व्यक्ति उसके बाद तरोताजा हो जाए और यात्रा में देखे गए स्थलों को किसी भी हाल में भूल नहीं पाए, बल्कि उनकी स्मृतियों को अपने मन के किसी कोने में सहेज कर रख दे। इस लिहाज से हर यात्रा अविस्मरणीय ही होनी चाहिए लेकिन कुछ यात्राएँ सचमुच ऐसी होती हैं जो भुलाये नहीं भूलतीं। ऐसी ही एक यात्रा हमलोग ने जनवरी 2017 में, जब हमलोग जोहानसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में थे, तब की थी जो आज भी मानस पटल पर छपी हुई है। दक्षिण अफ्रीका के लगभग साढ़े तीन साल के प्रवास में हमलोग ने उस देश की खूबसूरती को खूब देखा और जहाँ भी गए, वह जगह हमें दुबारा बुलाती रही। इसी का नतीजा था कि एक ही जगह को हमलोग ने कई कई बार देखा। मसलन जोहानसबर्ग से सबसे नजदीक और दर्शनीय शहर डरबन था सबसे खूबसूरत शहर केपटाउन, तो जिसे हमने कई बार देखे।

लेकिन अगर आपको वन्य प्राणियों में दिलचस्पी हो तो आप वहाँ स्थित क्रूगर नेशनल पार्क कभी भी मिस नहीं कर सकते। (वैसे भी अफ्रीका अपने बिग 5 जानवरों के लिए जाना जाता है, भैंसा, हाथी, शेर, चीता और गैंडा)। एक तो यह पार्क लगभग 19000 वर्ग किमी में स्थित है जिसे पूरी तरह से देखने में आपको कई हफ्ते भी लग सकते हैं। इसी वजह से इसमें प्रवेश और निकास के लिए लगभग 10 गेट बने हुए हैं जिनमें आपस में सैकड़ों किमी का फासला है। अमूमन आप किसी एक गेट से प्रवेश करते हैं और अगर आपको अंदर नहीं रुकना है तो शाम को 6 बजे के पहले आपको किसी अन्य गेट से बाहर निकलना पड़ता है। पार्क के अंदर गति सीमा भी निर्धारित है जो अधिकतर जगह 40 किमी प्रति घंटा है और आपको पूरा दिन लगातार चलना पड़ता है तब जाकर आप किसी दूसरे गेट से बाहर निकल सकते हैं।

हमने जब दुबारा जनवरी 2017 में क्रूगर नेशनल पार्क जाने का निश्चय किया तो सबसे पहले प्रवेश द्वार के बारे में सोचा गया। इसके पहले जब हम गए थे तब हमलोग ने फलाबोरवा गेट से प्रवेश किया था, इसलिए इस बार किसी अन्य गेट से प्रवेश करने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के पीछे एक कारण और भी था और वह पिछली बार शेर को नहीं देख पाने का था। इसलिए किसी अन्य गेट से अंदर जाकर घूमने में हमें उम्मीद थी कि वनराज इस बार अवश्य देखने को मिल जाएँगे। इस बार हमलोग ने पुंडा मारिया गेट से क्रूगर में प्रवेश करने का निर्णय लिया और उसी आधार पर मैंने उसके आस-पास के एक होटल को ऑनलाइन बुक भी कर लिया। चूँकि पिछली बार वाला होटल बहुत अच्छा था जिसे हमने ऑनलाइन ही बुक किया था इसलिए इस बार भी उसी उम्मीद में हमने बुक कर लिया। होटल से कमरा बुक होने का संदेश भी फोन पर आ गया और हमलोग वहाँ जाने की तैयारी में लग गए। चूँकि जोहानसबर्ग से पुंडा मारिया गेट की दूरी लगभग 8 घंटे की थी इसलिए सुबह जल्दी निकलकर वहाँ पहुँचने की योजना बनी। रास्ते को खँगालते समय पता चला कि उस गेट के पास ही, जो लिंपोपो प्रांत में था, दक्षिण अफ्रीका के सबसे पुराने पेड़ों में से एक पेड़ ‘सागोले बाओबाब’ है जिसके बारे में धारणा थी कि वह हजारों साल पुराना है और बेहद विशालकाय है। अब हमारे पास थोड़ा समय भी था क्योंकि होटल में तो रात में आराम ही करना था जिससे सुबह तड़के ही क्रूगर में प्रवेश किया जा सके (सुबह 6 बजे से ही लोगों के लिए गेट खुल जाता है और शाम को 6 बजे बंद होता है)। इसलिए हमने पहले जी पी एस की मदद लेते हुए उस बिग ट्री के पास जाने का फैसला किया और सुबह 6 बजे ही जोहानसबर्ग से अपनी कार द्वारा निकल पड़े। हर यात्रा में हमलोग कुछ खाने-पीने का सामान भी लेकर ही चलते थे जिससे न सिर्फ समय की बचत होती थी बल्कि जेब पर भी वजन कम पड़ता था। सड़क के किनारे रास्ते भर आपको जगहें मिलेंगी जहाँ आप अपनी गाड़ी खड़ा कीजिए और मजे में भोजन कीजिए। हमलोग लगभग 2 बजे दोपहर में उस विशालकाय पेड़ ‘सागोले बाओबाब’ के पास पहुँच गए। वास्तव में पेड़ तो बेहद विशाल था, उसकी उम्र भी लगभग 1700 साल थी और उसके चारों तरफ उसकी डालें जमीन पर कुछ इस तरह से पड़ी हुई थीं, गोया वे उसे तीनों तरफ से सहारा दे रही हों। पेड़ के तने के बीच में काफी जगह थी और उसके अंदर एक बार भी बना हुआ था जिसमें 6-7 लोग आराम से खड़े होकर खा पी सकते हैं। बहरहाल इतने विशालकाय पेड़ को देखकर रोमांच हो आया और उसके इर्द-गिर्द खूब फोटोग्राफी की गई। एक अश्वेत महिला वहाँ देखभाल और टिकट देने के लिए थीं और उन्होंने हमारा स्वागत किया। वहाँ पर अमूमन अश्वेत महिलाओं को लोग ‘ममा’ पुकारते हैं जो उनके लिए आदरसूचक शब्द है और हम भी उनको इसी संबोधन से पुकारते रहे। उस विशालकाय पेड़ के आस-पास तमाम आम के पेड़ भी थे जिन पर लाल-लाल आम लगे हुए थे। उनको देखकर हमलोग के मन में उन्हें खरीदकर खाने की इच्छा हुई और हमने ममा से कहा कि हमें आम खाने हैं। ममा ने आम के मालिक को फोन करने की कई बार कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। दरअसल शनिवार का दिन था और वह वहाँ पर वीकेंड होता है जिसमें अमूमन कोई न तो कार्य करता है और न ही किसी के फोन का जवाब देता है। बहरहाल हमलोग मन मसोस कर वहाँ से उन आमों को खाने की हसरत मन में ही रखे आगे बढ़ गए।

वहाँ से हमारे होटल की दूरी लगभग 2 घंटे की थी लेकिन हम रास्ता भटक गए और इसी बहाने लिंपोपो के ग्रामीण क्षेत्रों को देखते हुए अपने होटल पर पहुँचे। होटल के पहुँचने के रास्ते से ही मुझे अंदाजा हो गया कि इस बार होटल के चुनाव में गड़बड़ी हो गई है। दरअसल होटल जिस क्षेत्र मं था वहाँ सिर्फ अश्वेतों की ही आबादी नजर आ रही थी और वह हमारे लिए थोड़ा असुरक्षित महसूस हो रहा था। इसके बावजूद हमलोग होटल पहुँचकर वहाँ के स्वागत कक्ष पहुँचे और सोचा कि रात ही तो बितानी है, रुक लिया जाएगा। लेकिन स्वागत कक्ष में बैठी महिला से जब हमने अपने कमरे के बारे में पूछा तो उसने किसी भी बुकिंग से इनकार कर दिया। मेरे पास बुकिंग डॉट काम से आया संदेश था लेकिन जब मैंने उसे दिखाया तो वह अपना सर इनकार में हिलाने लगी। इसी बीच मेरे जोर देने पर उसने किसी को फोन किया और मेरी बात कराई, उस व्यक्ति ने थोड़ा समय माँगा और बोला कि मैं देखता हूँ कि आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। अब मेरे पास थोड़ा समय था तो मैंने सोचा कि पुंडा मारिया गेट के बारे में पूछ लिया जाए कि वहाँ तक जाने में कितना समय लगेगा। मुझे उम्मीद थी कि अधिक से अधिक आधे घंटे में हम गेट पर पहुँच जाएँगे लेकिन उस महिला ने बताया कि यहाँ से गेट लगभग दो घंटे की दूरी पर स्थित है। अब मुझे समझ में आ गया कि मैंने इस बुकिंग में गलती कर दी है और फिर हमें उस होटल को छोड़ना ही बेहतर लगा। वैसे भी न तो वहाँ बुकिंग कंफर्म हुई थी और वहाँ से सुबह 6 बजे गेट पहुँचने के लिए हमें चार बजे ही निकलना पड़ता जो उचित नहीं था। इसलिए हमने अपना बैग उठाया और उस महिला को नमस्ते करके हमलोग वहाँ से गेट की तरफ रवाना हो गए।

इन सब में शाम हो गई थी और मुझे उम्मीद थी कि जैसे पिछली बार फलबोरवा गेट के एकदम पास एक होटल मिल गया था, वैसे ही इस गेट के पास भी कोई न कोई होटल मिल ही जाएगा। मन में यह भी था कि रात ही तो बितानी है, कैसा भी होटल चलेगा और हमलोग पुंडा मारिया गेट के पास लगभग 7 बजे पहुँचे। अब अँधेरा हो चला था और गेट एकदम सुनसान था, आसपास कोई भी रहने का ठिकाना नहीं था। गेट तक पहुँचने का रास्ता भी एकदम सुनसान था और सड़क के आस-पास बेहद गरीब अश्वेत लोग कच्चे घरों में रह रहे थे। हमलोग ने गेट पर जाकर पूछा कि आस-पास कोई रहने की जगह है तो उसने बताया कि सबसे नजदीक और सबसे बढ़िया जगह कोपाकोपा रिसोर्ट है जिसका बोर्ड हमें रास्ते में आते समय भी दिखा था। अब हमारे पास वहाँ जाने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था, बस चिंता इतनी ही थी कि कहीं वहाँ कोई कमरा नहीं मिला तो फिर कहाँ जाएँगे क्योंकि रात हो गई थी। वापस कोपाकोपा रिसोर्ट जाते समय सड़क के दोनों तरफ धुप्प अँधेरा था, कहीं कोई बिजली बत्ती का नामोनिशान नहीं था। बस हमें कार के हेड लाइट से सड़क दिखाई दे रही थी और हमलोग तेज गति से वापस जा रहे थे। अचानक सामने सड़क पर एक गधा खड़ा मिला जो कि आते समय नहीं मिला था, वैसे भी दक्षिण अफ्रीका में सड़क पर जानवर शायद ही कभी मिलते थे तो आदत भी छूट गई थी (अपने देश में तो यह आम दृश्य है)। अब कार की गति तो काफी तेज थी लेकिन उस समय दिमाग ने काम करना बंद नहीं किया था इसलिए ब्रेक लगाकर कार को जैसे ही बगल की तरफ मोड़ा और आगे निकले तभी सामने एक गाय भी खड़ी मिल गई। अब उस समय कैसे मैंने उस गाय को बचाते हुए सड़क पार किया, मुझे भी याद नहीं, बस हमलोग बिना दुर्घटना के किसी तरह निकल गए। दिल की धड़कनें काफी बढ़ गई थीं और जल्दी-जल्दी गेस्ट हाउस पहुँचने का ख्याल ही दिमाग में आ रहा था। दरअसल उस समय कई चीजें एक साथ गलत हो रही थीं इसलिए घबराना स्वाभाविक ही था और ऐसी अवस्था में दिमाग सही काम करे, यह थोड़ा अस्वाभाविक था। थोड़ी देर में वह चौराहा आ गया जहाँ से हमें दाहिने मुड़कर रिसोर्ट पहुँचना था। आगे रास्ता भी थोड़ा खराब था और उस समय दुर्भाग्य से उस इलाके में बिजली भी गायब थी इसलिए घटाटोप अँधेरा छाया हुआ था (दक्षिण अफ्रीका में अमूमन बिजली रहती ही है, शायद ही कभी इस तरह का अनुभव हुआ हो)। किसी तरह हमलोग रिसोर्ट पहुँचे और वहाँ के स्वागत कक्ष में प्रवेश किया। रात के लगभग 9 बज रहे थे और हमलोग पिछले तीन घंटे के खराब अनुभवों से सहमे हुए थे। बहरहाल वहाँ एक प्रौढ़ पुरुष मिले जो अँधेरे में लालटेन जलाकर बैठे हुए थे, जैसे हमने उनका अभिवादन किया उसी समय हमें समझ में आ गया कि वह सज्जन नशे में धुत्त थे लेकिन जब हमने कमरे के बारे में पूछा तो उन्होंने हाँ में सर हिलाया। उस एक हाँ ने हमें तमाम तनावों से मुक्त कर दिया जो हमारे दिमाग में लगातार चल रहा था कि यदि यहाँ पर रहने की जगह नहीं मिली तो इस अँधेरी रात में और इस बियाबान में हमलोग कहाँ जाएँगे।

बहरहाल हमें चंद मिनट लगे अपने आप को सामान्य करने में और यह महसूस करने में कि अब सब सही होगा। मैंने जाकर कार से अपना सामान निकाला और फिर हमलोग वापस उस स्वागत कक्ष में आ गए। बिजली अभी भी गायब थी और उस जगह के मैनेजर ने हमें बता दिया कि उस रिसोर्ट में एक कॉटेज हमें दे रहा है। वहाँ की औपचारिकता पूरा करके हमलोग उसी लालटेन की रौशनी में अपने फ्लैट की तरफ बढ़े जहाँ हमें रात बितानी थी। अंदर का पूरा इलाका जंगल का ही एक भाग जैसा लग रहा था और पगडंडी पर चलते समय लग रहा था कि न जाने किस तरफ से कोई जंगली जानवर आ जाएगा। लगभग आधा किमी चलने के बाद हमारा कॉटेज आ गया और वह सज्जन उसे खोल कर चले गए। फिलहाल तो हमलोग ने मोबाइल की रोशनी में अपना सामान अंदर किया लेकिन थोड़ी देर में ही समझ में आ गया कि बिना किसी लालटेन या लैंप के भोजन इत्यादि कैसे किया जाएगा। बहरहाल उस प्रौढ़ सज्जन को हमने इंटरकॉम पर फोन किया तो वह थोड़ी देर में ही हमारे लिए भी एक लालटेन लेकर आ गए। अब उसी लालटेन की रोशनी में हमलोग ने भोजन किया और सोने की तैयारी करने लगे। उस समय रात के लगभग 11 बज चुके थे और अगले दिन हमें सुबह 6 बजे पुंडा मारिया गेट भी पहुँचना था। लेकिन जैसे ही हमलोग लेटे, उसी समय बिजली आ गई और फिर हमलोग ने एक बार आस-पास का मुआयना करना शुरू कर दिया। कॉटेज के पीछे की तरफ एक बढ़िया सा स्विमिंग पूल था और ब्राई करने की जगह भी थी, कुल मिलाकर बेहद शानदार जगह थी। लेकिन सुबह के चलते हमें फटाफट सोना पड़ा और जल्दी ही नींद आ गई।

सुबह 6 बजे तक हमलोग उस रिसोर्ट से निकल गए और वापस उसी सड़क पर चल पड़े जो पिछली रात के भयानक अनुभव समेटे हुए थी। लेकिन सुबह बहुत खुशनुमा थी, ठंड लग रही थी और सड़क बिलकुल सुनसान। हमलोग ने थोड़ी देर में ही उस जगह को भी पार किया जहाँ पिछली रात हमें गधा और गाय मिली थी लेकिन सुबह उनमें से कोई भी मौजूद नहीं था। शायद रात को वे भी डर गए थे और फिर कभी सड़क पर खड़े नहीं होने की कसम खाकर चले गए थे। 7 बजते बजते हमने पुंडा मारिया गेट से क्रूगर नेशनल पार्क में प्रवेश किया और फिर धीरे-धीरे चारों तरफ देखते हुए आगे बढ़ने लगे। सबसे पहले हमें बिग फाइव में से जंगली भैंसे के दर्शन हुए जो मजे में जंगल की घास चर रहे थे। चूँकि उस जंगल में शेरों का एक निश्चित क्षेत्र था इसलिए ये भैंसें बिना किसी फिक्र के भोजन कर रहे थे। थोड़ा और आगे चलने पर सड़क के दोनों तरफ हिरन इत्यादि जानवर भी दिखाई पड़े। लगभग 30 किमी की यात्रा के बाद पहला जंगली हाथी का झुंड मिला जो सड़क पार कर रहा था। हमलोग उन्हें देखकर दूर ही खड़े हो गए और उनकी तस्वीरें लेने लगे तथा वीडियो बनाने लगे। उनके गुजरने के बाद हमलोग आगे बढ़े तो एक और हाथियों का झुंड मिला जो सड़क के किनारे खड़ा था। हमलोग दुबारा रुके और उनको देखने लगे। थोड़ी देर में ही जब वे सड़क पार करने लगे और हमें उनके छोटे-छोटे बच्चे भी सड़क पार करते दिखाई पड़े तो हम कौतूहलवश उनके नजदीक तक अपनी कार लेकर आ गए। वहीं हमसे गलती हो गई और एक मादा हाथी ने हमारी तरफ गुस्से में दौड़ना शुरू किया तो हमें अपनी गलती का एहसास हुआ। हमलोग वहाँ से सरपट भागे और एकाध किमी बाद जब पीछे देखा तो हाथी नहीं थे और हमारी जान में जान आई। एक तो वहाँ के हाथी हमारे देश में पाए जाने वाले हाथियों से डील डौल में काफी ज्यादा बड़े और ताकतवर थे और उनके सामने हमारी कार भी खिलौने जैसी ही दिखाई पड़ती थी। वास्तव में मादा हाथी अपने बच्चों को लेकर बहुत पजेसिव होती है और उसे अगर लगता है कि कोई उनको नुकसान पहुँचा सकता है तो वह तुरंत उस पर आक्रमण कर देती है। खैर हमलोग सकुशल आगे बढ़ गए और फिर भविष्य में कभी भी हाथी के बच्चों के आस-पास भी नहीं जाने का निश्चय कर लिया।
वहाँ से आगे बढ़ने पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर कभी हिरणों के झुंड तो कभी जिराफ तो कभी जेब्रा के झुंड मिलते रहे और हमलोग उनको निहारते, उनकी तस्वीरें खींचते आगे बढ़ते रहे। एकाध जगह जंगली सूअर भी दिखाई दिए और कहीं कहीं साँभर इत्यादि भी दिखे। एकाध घंटे बाद एक जगह हमारी नजर सड़क के किनारे मजे में घूमते छोटे से कछुए पर पड़ी जो स्टार कछुए जैसा था। वह देखने में इतना सुंदर लग रहा था कि हमारी गाड़ी अपने आप ही वहाँ रुक गई। हमलोग ने उसे प्यार से उठाया, कुछ मिनट तक हम सब उसे देखते रहे, फिर उसके फोटो कई ऐंगल से खींची गई और उसके बाद उसे वहीं छोड़कर हम सब आगे बढ़ गए। कुछ आगे जाने पर हमें एक जगह चीता के भी दर्शन हुए जो पेड़ पर मजे में आराम फरमा रहे थे। क्रूगर पार्क के अंदर हर 40 से 50 किमी पर कोई न कोई पेट्रोल पंप और पिकनिक का स्थान रहता है और आप बिना पेट्रोल के खत्म होने की चिंता किए आराम से घूम सकते हैं। हमलोग भी कुछ घंटे घूमने के बाद एक पिकनिक वाली जगह पर रुके, थोड़ा नाश्ता किया और पेट्रोल भरकर आगे बढ़ गए।

एकाध घंटे और घूमने के बाद हमलोग उस क्षेत्र में पहुँच गए थे जहाँ अमूमन शेर पाए जाते हैं। पिछली यात्रा में हम उन्हें नहीं देख पाए थे इसलिए इस बार मन ही मन ठान के आए थे कि हर हाल में उनको देखकर ही जाना है। अचानक दूर सामने ढेर सारी गाड़ियाँ खड़ी दिखाई पड़ी तो लगा जैसे हो न हो आज तो शेर के दर्शन हो ही गए। जब हम पास पहुँचे तो लोगों ने बता दिया कि सड़क के साथ-साथ बहती बरसाती नदी के तलछट में कई शेर आराम फरमा रहे हैं और यह भीड़ उनको ही देखने के लिए खड़ी है। सड़क के किनारे भी पेड़ थे और नीचे नदी के ढलान पर भी पेड़ थे तो दूर से वनराज के दर्शन संभव नहीं थे अब इंतजार करने के सिवाय और कोई रास्ता भी नहीं था कि लोग वहाँ से हटें तो हमलोग शेरों को नजदीक से देखें। आधे घंटे में सारी गाड़ियाँ वहाँ से चली गईं और सिर्फ हमलोग ही बचे तो हमने अपनी कार सड़क से नीचे उतार ली और शेरों को देखने लगे। लगभग 10 शेर रहे होंगे जो आराम से लेटे हुए थे और बिलकुल भी हिल डुल नहीं रहे थे। अब कोई और पास था नहीं तो हमारे मन में आया कि शेर तो आराम फरमा रहे हैं इसलिए हमलोग गाड़ी से उतर कर उनको पास से देखते हैं और कुछ फोटो भी खींच लेते हैं। हमें सपने में भी यह गुमान नहीं था कि हम अपनी जिंदगी की शायद सबसे बड़ी भूल करने जा रहे हैं और आगे आने वाले तमाम वर्षों में अपनी इस भूल को याद करके हमलोग सिहरते रहेंगे।

हमारी कार सड़क के नीचे कच्ची जगह पर खड़ी थी और वहाँ से नदी का किनारा बिलकुल सटा हुआ था। मतलब कि हम तीन चार कदम चलकर नदी के कगार पर पहुँच सकते थे और शेरों को नीचे साफ साफ देख सकते थे। लेकिन जैसे ही हम दोनों कार से उतरकर बमुश्किल दो कदम आगे बढ़े होंगे, तभी हमें नदी के तलहटी में हलचल नजर आई। तीन चार शेर जो शायद मानव से बिलकुल भी नजदीकी पसंद नहीं करते थे, वे उठकर खड़े हुए और पलट कर भाग गए। तीन चार शेर हमारी तरफ मुँह करके खड़े हो गए और शायद अंदाज लगाने लगे कि अगर हमलोग उनके पास जाते हैं तो उनको क्या करना चाहिए। बचे हुए एक दो शेर भी वापसी के लिए तैयार हो गए थे। इन सब में शायद दस सेकेंड ही लगा होगा और हमें यह एहसास हो गया कि हमने एक बहुत बड़ी भूल कर दी है। वैसे तो ऐसे मौकों पर दिमाग काम करना बंद कर देता है लेकिन उस वक्त दिमाग ने काम किया और हम बिजली की फुर्ती से वापस अपने कार की तरफ मुड़े और फटाफट अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया। हमारे दिल बुरी तरह धड़क रहे थे और हम अगले दस मिनट तक यही सोचते रहे कि अगर शेरों ने हमारी तरफ छलाँग लगाई होती तो क्या होता। वो शेर बस इतनी दूरी पर थे कि वे दो तीन छलाँग में हमारे पास आ सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं सोचा और हम सही सलामत अपनी कार में बैठे थे। उसके बाद अगले कई घंटे, जब तक हम क्रूगर पार्क में विचरण कर रहे थे, हम अपने दिमाग से इस घटना को निकाल ही नहीं पाए। आगे हमें एक जगह अफ्रीकन गैंडा भी दिखाई दिया, फिर से जिराफ और अन्य जंगली जानवर भी दिखे लेकिन शायद वह आनंद नहीं आया जो ऐसे में आना चाहिए था। लेकिन एक बात जरूर हुई कि इस बार हमने अफ्रीका के बिग फाइव जानवरों के दर्शन कर लिए, जिनके लिए अफ्रीका जाना जाता है और जिनको देखे बिना आपकी जंगल यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है।

शाम छह बजे से पहले हमें फाबेनी गेट पहुँचना था जहाँ से हमें आगे ग्रासकोप जाना था और फिर आगे की यात्रा अगले दिन प्रारंभ होनी थी। हमलोग लगभग छह बजे फाबेनी गेट पहुँच गए और फिर वहाँ से डूबते सूरज को निहारते हुए ग्रासकोप के लिए निकल पड़े। जिंदगी में कुछ यात्राएँ ऐसे-ऐसे अनुभव दे कर जाती हैं जिन्हें अमूमन हम लेना नहीं चाहते। लेकिन दो दिन की यह यात्रा जिसमें बहुत रोमांचक और खतरनाक अनुभव हुए थे, वह आज भी दिमाग पर काबिज है और हम चाह कर भी उसे भूल नहीं सकते।


Image : Animal Destinies (The Trees show their Rings, the Animals their Veins)
Image Source : WikiArt
Artist : Franz Marc
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