‘भारतीय सभ्यता वाचिक परंपरा में विकसित होती रही’ –प्रो. चंद्रशेखर कंबार

‘भारतीय सभ्यता वाचिक परंपरा में विकसित होती रही’ –प्रो. चंद्रशेखर कंबार

‘नई धारा’ द्वारा उदय राज सिंह जन्मशती महोत्सव

प्राचीन भारतीय साहित्य का अधिकांश भाग बोलचाल के शब्दों का व्यक्त रूप है, जो संरक्षण की दृष्टि से वाचिक परंपरा की संपत्ति है। भारतीय इतिहास में लेखन का परिचय विदेशियों के प्रभाव से बाद में हुआ। पाश्चात्य सभ्यता पुस्तक केंद्रित है, जबकि भारतीय सभ्यता वाचिक परंपरा में विकसित होती रही।

ये कहना है प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक एवं साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष प्रो. चंद्रशेखर कंबार का। वे बीते 5 नवंबर को दिल्ली के लोदी रोड स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में आयोजित प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘नई धारा’ के अपने संस्थापक संपादक उदय राज सिंह के जन्मशती महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। वे महोत्सव के प्रथम चरण में ‘सोलहवाँ उदय राज सिंह स्मारक व्याख्यान’ कर रहे थे, जिसका विषय था ‘भारतीय साहित्य एवं वाचिक परंपरा।’ इस सत्र की अध्यक्षता एवं संचालन ‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने किया।

प्रो. कंबार ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय संस्कृति की विशिष्टता उस जीवंत व्यक्ति की तरह है जो संस्कृति के आदर्शों को व्यवस्थित ही नहीं करता, अपितु परामर्श का कार्यान्वयन भी करता है। उस आदर्श का कोई अर्थ नहीं होता, जब तक भाषा एवं कृति में उसे रूपांतरित नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में लेखन और वाचिक दोनों परंपराएँ थीं। पता नहीं, वाचिक परंपरा की हालत आधुनिक समय के नगरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण क्या होगी? अच्छा यह होगा कि पूर्ण रूप से अदृश्य होने के पहले इसके कौशल का हम संरक्षण करें।

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की ओर से प्रो. चंद्रशेखर कंबार को ‘उदय राज सिंह स्मृति सम्मान’ से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र आदि अर्पित किया गया। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने प्रसिद्ध लेखक सूर्यकांत नागर (इन्दौर), प्रसिद्ध विद्वान डॉ. टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी (बंगलोर) तथा चर्चित गजलकार डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति (राउरकेला) को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र आदि अर्पित किए।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ हमारे लिए केवल एक साहित्यिक पत्रिका भर नहीं है, बल्कि एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है, जिसका विस्तार करने का संकल्प हम आज उदय राज जन्मशती महोत्सव के अवसर पर करते हैं।

सम्मानित लेखकों में इंदौर से आए सूर्यकांत नागर ने कहा कि सृजनात्मक लेखन से जुड़े रचनाकार आज अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। लेखन आज के दौर में सबसे अधिक जोखिम उठाने का काम है। चैन तभी मिलता है, जब मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। बंगलोर से आए प्रसिद्ध लेखक डॉ. टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी ने कहा कि ‘नई धारा’ हिंदी के महान लेखकों द्वारा स्थापित पत्रिका है, जिसके द्वारा हिंदीतर भाषियों का सम्मान भारत में भाषायी सौहार्द बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है और इसका प्रमुख संदेश है कि बहुभाषाओं में व्यक्त भारतीय साहित्य एक है, जो राष्ट्रीय संस्कृति को समृद्ध करती है। राउरकेला से आए चर्चित गजलकार डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति ने कहा कि मेरा सम्मान वास्तव में हिंदी गजल का सम्मान है। उन्होंने एक शेर सुनाते हुए कहा–‘जमाने से हमने भी पाया बहुत है/किया खर्च कम औ कमाया बहुत है।’

‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने इस अवसर पर कहा कि बीते 72 सालों से निरंतर प्रकाशित हो रही ‘नई धारा’ बिहार के सूर्यपुरा राजपरिवार की पाँच पीढ़ियों की हिंदी सेवा का व्रत है, जिसे हिंदी के महान कथाकार राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे हिंदी के तपोनिष्ठ लेखकों ने पल्लवित-पुष्पित किया। यह मेरा सौभाग्य है कि बीते 30 सालों से मैं इस ऐतिहासिक साहित्य-पत्रिका के संपादन से जुड़ा हूँ।

दूसरे चरण में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक डॉ. देवेंद्रराज अंकुर के निर्देशन में उदय राज सिंह की चुनिंदा रचनाओं का नाट्य रूपांतरण प्रदर्शित किया गया, जिसे करतल ध्वनियों से काफी सराहा गया। अंतिम चरण में प्रसिद्ध ठुमरी गायिका डॉ. कुमुद झा दीवान का चित्ताकर्षक गायन हुआ। उनकी गायकी से पूरा सभागार झूम उठा और ‘वाह वाह’ से गूँजता रहा।

पूरे आयोजन की सूत्रधार रहीं आरती जैन, जबकि जन्मशती महोत्सव के आरंभ में गिटार वादन के साथ सरस्वती वंदना की कुँवर वीरेंद्र ने। धन्यवाद ज्ञापन किया जे.एन.यू. के विद्वान प्रोफेसर डॉ. देवशंकर नवीन ने। दिल्ली एनसीआर सहित देश के अनेक भागों से आए रचनाकारों ने इस समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज की।


Image: Krishna and gopis under trees listening to vina players
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain

समाचार डेस्क द्वारा भी

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की संचालिका शीला सिन्हा द्वारा कवि केदारनाथ सिंह को नौंवें उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र प्रदान किए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने उपन्यासकार पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान, व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय तथा कथाकार शंभु पी. सिंह को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ केवल साहित्यिक पत्रिका भर नहीं, बल्कि हमारे लिए एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है।