हमें यह कहना है!
- 1 August, 1950
शेयर करे close
शेयर करे close
शेयर करे close
- 1 August, 1950
हमें यह कहना है!
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का विशेष अधिवेशन पटना में सानंद समाप्त हुआ। जहाँ तक अतिथियों के आगमन और स्वागत-सत्कार की बात रही, कोई त्रुटि नहीं होने पाई। और, यह सही है कि जिस उद्देश्य से सम्मेलन बुलाया गया था, वह सिद्ध नहीं हुआ, किंतु, एकाध बार की जोर-आजमाई के बाद दोनों दलों में जिस सद्भाव का उदय हुआ और जिस तरह एकमत से नियमावली को निश्चित रूप देने के लिए ग्यारह व्यक्तियों की एक समिति बनाई गई, उससे ऐसा लगता है कि पटना में सम्मेलन का एक नया अध्याय शुरू हो गया है। यों तो यह लोकतंत्र का युग है और हमें निर्णय के लिए बहुमत की शरण लेनी पड़ेगी, किंतु सम्मेलन जैसे साहित्यिक संस्थाओं में जहाँ तक एकमत होकर काम लिया जा सके, उतना ही उत्तम है। ग्यारह व्यक्तियों की इस नियमावली समिति ने भी जिस प्रकार की सद्भावना से काम प्रारंभ किया है और कई बातों में जिस प्रकार एकमत से निर्णय किया है वह भी सम्मेलन के उज्ज्वल भविष्य की सूचना देता है।
XX XX XX
पटना-सम्मेलन के सबसे बड़ी सफलता यह रही कि बिहार के मंत्रिमंडल ने इस अधिवेशन को विशेष महत्त्व दिया और मंत्रिमंडल अधिकांश सदस्यों ने सम्मेलन में सम्मिलित होने की कृपा की तथा मुख्यमंत्री डॉ. श्री कृष्णसिंह ने राज्य की ओर से प्रतिनिधियों का स्वागत किया। बिहार में राजनीति की धारा को साहित्य के इतने निकट से बहते देखकर बाहर के प्रतिनिधियों को आश्चर्यजनक आनंद हुआ। स्वागत भाषण में कई आवश्यक विषय की ओर बिहार-केसरी ने हिंदी संसार का ध्यान आकृष्ट किया। राजनीति, शासन-संचालन, न्याय-व्यवस्था आदि के संबंध में उपयुक्त शब्दावली का निर्णय करना और इस संबंध के साहित्य को विपुल परिमाण में प्रस्तुत करना–हमारे नए जनतंत्र की सबसे बड़ी माँग है। मुख्यमंत्री के इस विचार से कौन व्यक्ति सहमत नहीं होगा। लेकिन सवाल तो यह है कि काम कहाँ से और किस तरह प्रारंभ किया जाए।
XX XX XX
यहाँ क्या मुख्यमंत्री की सेवा में हम अपना एक सुझाव रख सकते हैं। क्यों न हमारे मुख्यमंत्री हिंदी के कुछ अधिकारी विद्वानों को तीन-चार दिनों के लिए कहीं एकत्र करें और उनसे मिलकर एक योजना तैयार करावें, जिसके अनुसार इस संबंध के सृजन और प्रकाशन की व्यवस्था की जा सके? दिक्कत यह रही है कि हर बात के लिए तो छोटी-बड़ी योजना बनाई भी गई, किंतु हमारी जनतंत्री सरकार ने अब तक कोई साहित्यिक योजना तैयार नहीं की। यदि बिहार की सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाया, तो हिंदी के इतिहास में उनका स्थान अमर हो जाएगा।
XX XX XX
यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि राष्ट्रभाषा-परिषद (बिहार) के मंत्रिपद पर हिंदी के सर्वमान्य विद्वान आचार्य शिवपूजन सहाय की नियुक्ति हो गई और उसके कार्य का भी श्रीगणेश हो गया है। राष्ट्रभाषा-परिषद की स्थापना जिन उद्देश्यों से की गई है, शिवपूजनजी की नियुक्ति के कारण, उनके सफल होने की पूरी आशा हो गई है। आशा है, सरकार शीघ्र ही परिषद के सदस्य आदि को मनोनीत कर उसके कार्यों में प्रगति लाने में तत्पर होगी। एक दूसरे आनंद की बात यह हुई है कि कविवर दिनकर जी सरकार के प्रचार-विभाग से हटकर शिक्षा-विभाग में जा रहे हैं और उन्हें मुजफ्फरपुर कॉलेज के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया है। ये दो नियुक्तियाँ बिहार सरकार के गौरव को बहुत ही ऊँचा करने वाली हुई हैं। हिंदी-सेवकों के प्रति सरकार के इस रुख से लोगों को संतोष हुआ है।
XX XX XX
इधर कुछ मृत्युएँ बड़ी ही दुखद हुई हैं। महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध साहित्यिक और जनसेवी श्री साने गुरुजी ने आत्महत्या कर ली; स्वामी सहजानंद सरस्वती जी का अचानक निधन हुआ और श्री मेहरअली की असामयिक मृत्यु ने तो देश के दिल को हिला दिया। ये तीनों ही देश के अमूल्य रत्न थे; इनके अभाव की पूर्ति भी क्या संभव है? साने गुरुजी की सहृदयता, स्वामीजी की कर्मठता और मेहरअली की बलिदान भावना बेजोड़ थी। साने गुरुजी तो साहित्यमूर्ति थे ही; मराठी साहित्य उनकी देनों से जगमग है। स्वामीजी के लिए भी साहित्य-सृजन एक व्यसन था। आपने कई बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे हैं, जो अपने क्षेत्र में अनूठा स्थान रखते हैं। मेहरअली की लेखनी तो मोती पिरोती थी। व्यक्तियों के शब्द चित्र देने में वह देश में सानी नहीं रखते थे। इस क्षेत्र में, जैसे, वह पथ प्रदर्शक थे। लिखने के साथ ही पढ़ने और पुस्तक-संग्रह करने की भी आप में अजीब धुन थी और मित्रों को पुस्तकें भेंट करने में भी वह शायद ही जोड़ रखें। इन तीनों के उठ जाने से देश-भारती को भी कम हानि नहीं हुई है। इधर तुरंत खबर मिली है, हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि बच्चन जी के भाई का देहांत हो गया! वियोगीजी, प्रभातजी और अब बच्चनजी! काल ने हमारे कवियों को जैसे अपनी क्रूरताओं का निशाना बना लिया है! उफ़!
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: Ustad Mansur
Image in Public Domain