‘शब्द की सत्ता ही निरंकुश सत्ताओं को मानवीयता के मार्ग पर ला सकती हैं’–माधव कौशिक

‘शब्द की सत्ता ही निरंकुश सत्ताओं को मानवीयता के मार्ग पर ला सकती हैं’–माधव कौशिक

‘नई धारा’ द्वारा उदयोत्सव एवं साहित्यकार सम्मान समारोह संपन्न

ज हम इतिहास के सर्वाधिक संकटपूर्ण कालखंड से गुजर रहे हैं। इस हिंसक कालखंड का प्रतिकार केवल शब्द ही कर सकता है। शब्द की सत्ता ही निरंकुश सत्ताओं को दृष्टिसंपन्न कर उन्हें मानवता के सही मार्ग पर ला सकती है।

ये कहना है प्रसिद्ध लेखक एवं साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक का। वे बीते 5 नवंबर को दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम सभागार में आयोजित उदयोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। वे उदयोत्सव के प्रथम सत्र में उन्नीसवाँ उदय राज सिंह स्मारक व्याख्यान कर रहे थे, जिसका विषय था ‘साहित्य का उद्देश्य एवं साहित्यकारों के उत्तरदायित्व।’ इस सत्र की अध्यक्षता भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनन्द ने की, जबकि संचालन ‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने किया।

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने अपने व्याख्यान में कहा कि साहित्यकार आम जन का प्रवक्ता होता है। वही आम आदमी के सुख-दुःख, आशा-निराशा, उसके स्वप्न तथा उनकी आकांक्षाओं का राजदूत समझा जाता है। वही है जो वर्तमान युग के छल-छद्म को निरावृत कर सच्चाई को सामने ला सकता है। इसलिए सभी रचनाकारों-साहित्यकारों की भूमिका पहले से अधिक जोखिम भरी होने के बावजूद ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि साहित्य के समक्ष चुनौतियाँ हमेशा से रही हैं। साहित्याकारों के लिए सुविधाजनक स्थिति कभी नहीं रही, किंतु अग्निपथ पर चलने वाले शब्द-साधकों का जन्म ही झंझावातों को झेलने के लिए हुआ।

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की ओर से माधव कौशिक को ‘उदय राज सिंह स्मृति सम्मान’ से विभूषित करते हुए उन्हें समारोह के अध्यक्ष मधुसूदन आनन्द ने एक लाख रुपये सहित सम्मान-पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने चर्चित लेखिका अंजु रंजन (दिल्ली), चर्चित कथाकार दीर्घ नारायण (लखनऊ), चर्चित समालोचक राकेश शर्मा (इन्दौर) तथा युवा कवि पंकज चौधरी (दिल्ली) को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हज़ार रुपये सहित सम्मान-पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। 

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ हमारे लिए केवल पत्रिका भर नहीं है, बल्कि देश-समाज को बदलने का एक रचनात्मक अभियान भी है; जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है। उदयोत्सव के द्वारा हम एक नए सांस्कृतिक परिवेश के निर्माण के लिए कृतसंकल्पित हैं। समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध लेखक एवं भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनन्द ने कहा कि विगत 74 वर्षों से ‘नई धारा’ का सतत् प्रकाशन हिंदी में साहित्यिक पत्रकारिता की स्वर्णिम विरासत है, जिस पर तमाम हिंदी भाषियों द्वारा गर्व किया जाना चाहिए। अपने समय के अच्छे साहित्य और साहित्यकारों का सम्मान किया जाना भी श्रेष्ठ संस्कृतिकर्म है, जिससे सभ्यता समृद्ध होती है।

सम्मानित लेखकों में कथाकार दीर्घ नारायण ने कहा कि साहित्य का सफर सच्चाई के साथ आगे बढ़ता है, इसलिए सत्ता-साधन मिट जाएँगे पर साहित्य और समाज नहीं। मुझे लगता है कि यथार्थ कहने का एक ढंग हो सकता है, साहित्य का उद्देश्य नहीं। रचना का एक साध्य है जीवन का रंग। ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि मेरे लिए सर्जना-कर्म एक उत्सव है, जिसमें अहं से वयं की यात्रा पूरी होती है। हमारे समकाल में अनेक विसंगतियाँ हैं, जो लिखने की प्रेरणा देती हैं। युवा कवि पंकज चौधरी ने कहा कि मेरा परिचय मेरी कविताएँ ही देती हैं। भारत को सुंदर और बेहतर बनाने के लिए पहले जाति समस्या का समाधान करना होगा। 

दूसरा सत्र ‘नई आवाज़ें’ की थी, जिसमें देशभर से चुनिंदा आठ युवा कवियों का पाठ था। ‘नई धारा’ द्वारा युवा कविता प्रतियोगिता में देश भर से एक हज़ार से अधिक कवियों ने भागीदारी की, जिनसे आठ कवियों का चयन किया गया। काव्यपाठ करने वाले इन कवियों में थे–गौरव सिंह, किंसुक गुप्ता, कुशाग्र अद्वैत, मानवी वहाणे, मयंक जसवाल ‘हिमांक’, निधि शर्मा तथा शारिक़ क़मर थे। सभी युवा कवियों को सम्मानित किया गया। युवा कवियों के चयन के लिए बनाई गई समिति में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. अनामिका, व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय एवं कथाकार-पत्रकार प्रियदर्शन थे। युवा कवियों को श्रोताओं ने मुग्धमन सुना एवं सराहा।

तीसरा सत्र संवाद का था, जिसमें मंजरी जारुहार की अँग्रेजी से हिंदी में अनूदित आत्मकथात्मक पुस्तक ‘मैडम सर’ का लोकार्पण एवं विमर्श हुआ। इस संवाद में लेखिका मंजरी जरुहार से प्रसिद्ध कवयित्री अनामिका द्वारा विमर्श किया गया। विमर्श में पुस्तक की अनुवादक डॉ. रंजना श्रीवास्तव ने भी भागीदारी की।

अंतिम सत्र शास्त्रीय संगीत का था, जिसमें दि अनिरुद्ध कलेक्टिव के कलाकारों ने अद्भुत समाँ बाँधी।


 

समाचार डेस्क द्वारा भी

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की संचालिका शीला सिन्हा द्वारा कवि केदारनाथ सिंह को नौंवें उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र प्रदान किए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने उपन्यासकार पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान, व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय तथा कथाकार शंभु पी. सिंह को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ केवल साहित्यिक पत्रिका भर नहीं, बल्कि हमारे लिए एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है।