‘कथालोचना के विकास में विजयमोहन सिंह का महत्तर योगदान रहा’–केदारनाथ सिंह
- 1 December, 2015
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‘कथालोचना के विकास में विजयमोहन सिंह का महत्तर योगदान रहा’–केदारनाथ सिंह
अपने दौर में कहानी के सबसे बड़े आलोचक थे विजयमोहन सिंह। वे एकांत भाव के चुप्पा साधक थे। वे उन विरले आलोचकों में थे जो आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना से टकराते थे। उनका पूरा काम लगभग अलक्षित रह गया।
ये कहना है हिंदी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह का। वे बीते 7 दिसंबर 2015 को पटना में चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘नई धारा’ द्वारा आयोजित बारहवाँ उदय राज सिंह स्मृति व्याख्यान एवं साहित्यकार सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय था ‘विजयमोहन सिंह : जीवन और साहित्य’। समारोह की अध्यक्षता प्रसिद्ध कवि गोवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ ने की, जबकि संचालन ‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने किया।
स्मारक व्याख्यान करते हुए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कवि केदारनाथ सिंह ने कथालोचक विजयमोहन सिंह के जीवन और साहित्य को विस्तार से मूल्यांकित करते हुए कहा कि विश्व कथा साहित्य की प्रगतिशील चेतना की रोशनी में हिंदी की कथालोचना को प्रतिष्ठित करने में कथाकार-आलोचक विजयमोहन सिंह का महत्तर योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि ‘नई धारा’ की साहित्यिक पत्रकारिता ने हिंदी में रचनात्मक एवं प्रगतिशिल भूमिका का निर्वाह किया जो आज भी जारी है।
इस अवसर पर ‘नई धारा’ की संचालिका शीला सिन्हा द्वारा कवि केदारनाथ सिंह को नौंवें उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र प्रदान किए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने उपन्यासकार पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान, व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय तथा कथाकार शंभु पी. सिंह को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र आदि अर्पित किए।
आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ केवल साहित्यिक पत्रिका भर नहीं, बल्कि हमारे लिए एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में वयोवृद्ध कवि गोवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ ने कहा कि ‘नई धारा’ बीते 66 वर्षों से निरंतर छप रही है और मेरा सौभाग्य है कि मैं इसके प्रवेशांक से लेकर आज तक इस पत्रिका में छपता रहा हूँ। इस पत्रिका के सम्मानित संपादकों में रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, कमलेश्वर, विजयमोहन सिंह से लेकर शिवनारायण तक ने साहित्यिक पत्रकारिता के विकास में अप्रतिम योगदान दिया। सम्मानित लेखकों में उपन्यास लेखिका डॉ. उषाकिरण खान ने कहा कि मुझे सम्मानित कर ‘नई धारा’ ने स्त्री की शक्ति और उसकी गरिमा को प्रतिष्ठा दी है। उन्होंने कहा कि ‘नई धारा’ ने हमेशा स्त्री विमर्श की रचनात्मक धारा के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय ने कहा कि मेरे सम्मान से व्यंग्य विधा का सम्मान हुआ है, जिसके लिए सभी व्यंग्यकारों की तरफ से पत्रिका का धन्यवाद करता हूँ। उन्होंने कहा कि व्यंग्य एक हथियार है जिसका सावधानी से प्रयोग किया जाना चाहिए। व्यंग्य हमारे समय की आवश्यकता है कभी हरिशंकर परसाई ने चिंता व्यक्त की थी कि व्यंग्य को शूद्र का दर्जा दिया जाता है। खुशी है कि आज व्यंग्य कविता, कहानी, उपन्यास आदि मुख्य विधा के साथ सम्मानित हो रहा है। समाज में व्यंग्य की स्वीकार्यता बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि व्यंग्य की प्रतिष्ठा में ‘नई धारा’ का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अक्सर बुजुर्ग होती पीढ़ी को अपनी नई पीढ़ी से शिकायत रहती है कि आधुनिकता के मोहांध में वह नैतिक मूल्यों एवं अच्छी परंपराओं को दर किनार करती है। यहाँ यह देखकर अच्छा लग रहा है कि अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद प्रमथ राज सिंह ने संपादक शिवनारायण के साथ मिलकर न केवल अपने पिता की धरोहर को सँभालकर रखा है अपितु उसे निरंतर आगे भी बढ़ा रहें हैं। ‘नई धारा’ आज देश की शीर्ष पत्रिका है। कथाकार शंभु पी. सिंह ने कहा कि आज देश में अनगिन पत्रिकाएँ निकल रही हैं, लेकिन ‘नई धारा’ उनमें बिल्कुल विशिष्ट है, जो लेखकों की रचनाशीलता का सम्मान करती है।
‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने कहा कि बीते 66 वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रही ‘नई धारा’ सूर्यपुरा राजपरिवार की पाँच पीढ़ियों की हिंदी सेवा का व्रत है, जिसे राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, उदय राज सिंह आदि ने पल्लवित पुष्पित किया। समारोह में देशभर से आए सैकड़ों लेखक-पत्रकार उपस्थित थे जिनमें दिल्ली से अजित राय, ‘पाखी’ के संपादक प्रेम भारद्वाज, बिहार के पूर्व गृह सचिव जियालाल आर्य, पूर्व कुलपति आई.सी. कुमार, वरिष्ठ आई.ए.एस.सी. अशोकवर्धन, चर्चित कवि अरुण कमल, शहंशाह आलम, हृषीकेश पाठक, नीलम पांडेय, आरती सिंह आदि मुख्य थे। इस सारस्वत समारोह का समापन कथाकार कलानाथ मिश्र के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
Image :Reading Lady in Renaissance Dress
Image Source : WikiArt
Artist :Harriet Backer
Image in Public Domain