डायरी के तीन पन्ने

डायरी के तीन पन्ने

पटना; 15 अक्टूबर, 2013

आज बकरीद है। अवकाश का दिन। लेकिन इस अवकाश का होना, न होना सब बराबर है, क्योंकि बीते तीन दिनों से मैं अपने घर में कैद हूँ। मैं ही क्यों, शहर में सभी अपने-अपने घरों में कैद हैं। शहर का जीवन ठहर-सा गया है। पिछले तीन दिनों से तेज हवा के साथ भारी बारिश हो रही है। पूरा शहर पानी-पानी हो गया है। बीते 11 अक्तूबर को ही मौसम विभाग ने चेतावनी दी थी कि पूर्व मध्य बंगाल की खाड़ी से चक्रवाती तूफान ‘फेलिन’ भारत के दक्षिण-पूर्वी तटों की ओर बढ़ रहा है, जिसका प्रभाव बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, बिहार आदि राज्यों पर पड़ेगा। 220 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले इस समुद्री चक्रवात का भीषण दुष्प्रभाव पड़ेगा, ऐसा मौसम विभाग ने पूर्वानुमान जता दिया था।

12 अक्तूबर की शाम, मैं बेटी-पत्नी के साथ एक महँगे रेस्टोरेंट में बिताकर देर रात घर लौटा। अगले दिन शहर घूमने का कार्यक्रम था दुर्गापूजा देखने के लिए। प्रायः हर वर्ष हम नवमी की रात ही पूजा देखने के लिए निकलते रहे हैं। ड्राइवर को अष्टमी के दिन अवकाश दे नवमी के दिन बुला रखा था। इस वर्ष पटना में बारिश की वजह से ‘रावण वध’ का कार्यक्रम दशमी के दिन की बजाय नवमी को ही रखा गया था। टी.वी. से पता चला कि ‘फेलिन’ के कारण पूरे देश में नवमी को ही दशहरे के रावण का पुतला जलेगा। लेकिन हाय, नवमी को सुबह से ही तेज हवा के साथ-बारिश होने लगी! अष्टमी को भी दिनभर हल्की बारिश होती रही थी। नवमी के दिन ड्राइवर आकर लौट गया, तेज बारिश के चलते घर से कोई पूजा घूमने नहीं निकल पाया। ‘फेलिन’ ने बिहार समेत अनेक राज्यों को अपने प्रभाव में ले रखा था। दुर्गापूजा की नवमी, दशमी सब उसी में निकल गया। शहर में कोई घर से बाहर नहीं निकल पाया। सुपर साइक्लोन ‘फेलिन’ ने भारी सरदी की कँपकँपी पैदा कर दी थी। अक्तूबर में ही अंतिम दिसंबर की सरदी का अहसास हो रहा था। लोग घरों में दुबके गर्म कपड़ों में लिपटे पड़े थे। पूरी पूजा ‘फेलिन’ की भेंट चढ़ गई।

बीते वर्षों में ऐसा चक्रवाती तूफान, जहाँ तक मुझे याद आता है, 1999 में आया था। तब मैं अपने परिजनों के संग कटिहार में था। मेरे दोनों बच्चे काफी छोटे थे। वह भी अक्तूबर का ही महीना था। उस वर्ष भी भारी वर्षा हुई थी। मेरे घर में पानी घुस गया था। दो दिन तीन रातें हमनें पलंग पर बैठे-बैठे गुजार दिए थे। उस वर्ष भी दुर्गापूजा का सप्तमी से दशमी तक का समय उसी भीषण चक्रवाती वर्षा-तूफानों के बीच व्यतीत हुआ था। चौदह वर्षों बाद फिर इस वर्ष समुद्री चक्रवाती तूफान-बारिश से उत्पन्न संकट में व्यतीत हो गया, अष्टमी से दशमी तक का समय। कल दशमी बीत गया। आज बकरीद है। आसमान मेघाच्छादित है। हवा ठहरी हुई है। दिन नम है। धूप नहीं निकली। पूरा शहर पानी से लबालब। बिहार की राजधानी पटना का ये हाल है! अन्य शहरों का क्या हाल होगा, कौन जाने! इस साल तो ‘फेलिन’ ने पटना को पानी पानी किया, लेकिन वैसे भी हर साल बारिश के मौसम में पटना पानी से लबालब ही रहता है। पटना नगर निगम के अधिकारी सालों भर सोये रहते हैं और जब बारिश का मौसम आता है, तब उसकी नींद टूटती है और शहर के नालों की उड़ाही-खुदाई शुरू होती है। यहाँ के लोग इन्हीं कारणों से पटना नगर निगम को ‘पटना नरक निगम’ कहने लगे हैं।

सुबह बाजार को निकला। सड़कों पर चहल-पहल दिखी। शायद बकरीद के कारण ही चहल-पहल ज्यादा थी। किसी तरह दूध, फल, सब्जी आदि लेकर मैं घर लौट आया। दशहरा हो या बकरीद, पर्व पर प्रकृति के प्रकोप ने उसके उल्लास पर पानी फेर दिया। घर-परिवार में बच्चों के उत्साह पर भी पानी फिर गया। कितने ही मित्रों के फोन आते रहे। सब दुःखी, उदास! तीन दिनों से अखबार तक नहीं आए। घर में कैद टी.वी. के चैनलों पर ‘फेलिन’ के विस्तार और टूटने की कथा के बीच विभिन्न राज्यों में उससे होने वाले नुकसानों की खबर देखता-सुनता रहा। मन विषण्ण होता रहा। शायद कल-परसों से सामान्य जीवन बहाल हो। इस बार तो पूजावकाश ‘फेलिन’ के दुष्प्रभावों के बीच ही व्यतीत हो गया।

पटना; 27 नवंबर, 2013

रात्रि के 11 बज रहे! पप्पू यति की गाड़ी से मैं घर लौट रहा हूँ। मन तनाव से भरा है।

आज शाम 5 बजे बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन हॉल में ‘नई धारा’ का साहित्यकार सम्मान समारोह था। त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल एवं हिंदी सेवी डॉ. सिद्धेश्वर प्रसाद की अध्यक्षता में वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को ‘उदय राज सिंह स्मृति सम्मान’ तथा कथाकार केशव (शिमला), लेखिका मृदुला बिहारी (जयपुर) एवं लघुकथाकार रामयतन यादव (फतुहा) को, ‘नई धारा रचना सम्मान’ से सम्मानित किया जाना था। सभी मंच पर विराजमान थे। संचालन मैं कर रहा था! अभी मैंने स्वागत भाषण के लिए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह को आमंत्रित ही किया था कि राजेश शुक्ल ने मुझे उद्घोषणा के लिए एक पर्ची थमायी, जिस पर लिखा था–‘ALTO-LXI BR 01BG–6660 नंबर की गाड़ी से दुर्घटना हुई है। कोतवाली थाना की पुलिस नीचे खड़ी है। गाड़ी मालिक पुलिस से बात कर लें, अन्यथा गाड़ी थाना चली जाएगी और मामले पर एफ.आई.आर. दर्ज होगा।’ पर्ची पढ़कर मैं चौंक उठा, क्योंकि वह मेरी ही गाड़ी का नंबर था। मैंने राजेश जी से कहा कि–‘गाड़ी मेरी ही है। आप पुलिस को समझाएँ, मैं थोड़ी देर में नीचे आता हूँ।’ वे मुझसे कहते हुए चले गए कि ‘सर जल्दी आइये, अन्यथा मामला बिगड़ जाएगा। पुलिस से यहीं सलट लिया जाए तो ठीक रहेगा।’

मेरा मन समारोह से उचट गया था। मैं तनाव में घिर गया। समारोह में मन रम नहीं रहा था। किसी तरह पुरस्कार वितरण जल्दी-जल्दी में संपन्न करवाकर शिमला से आए कथाकार केशव जी को उद्बोधन के लिए माइक पर बुलाया और मैं मंच से नीचे उतर गया। शहर के लेखक-पत्रकार एवं कुशल संचालक डॉ. ध्रुव कुमार श्रोताओं में बैठे थे। उन्हें संचालन के लिए मंच पर भेज मैं हॉल से बाहर निकल गया। जाते-जाते हॉल में बैठे वरिष्ठ लेखक एवं बिहार के पूर्व गृह सचिव जियालाल आर्य जी को मामले की संक्षिप्त सूचना देता गया। वे भी अपनी जगह से उठ बाहर चलने लगे। सभागार खचाखच भरा था। मैंने यथासंभव कोशिश की कि मेरी मुसीबत की भनक किसी और को न लगे।

नीचे दारोगा अशोक शर्मा सहित अनेक सिपाही खड़े थे। मेरे अनगिन हितैषी भी वहाँ जमा हो गए थे। आर्य साहब ने दुर्घटना की बाबत दारोगा से पूछताछ की, तो उसने बताया ‘गाड़ी ने फ्रेजर रोड में एक युवक को धक्का मारा है, जिससे उसके कमर और सिर में चोट लगी है।’ आर्य साहब ने उससे कहा–‘ठीक है, घायल की चिकित्सा करवा दी जाएगी। आप निश्चिंत होकर जाइये।’ कहकर वे ऊपर हॉल में चले गए। आर्य साहब के हस्तक्षेप से दारोगा नरम तो हुआ, लेकिन मुझे मेरी गाड़ी के पास ले गए उसकी पहचान कराने के लिए। फिर मुझे लिए घायल के पास गए, जो पुलिस जिप्सी में पीछे बैठा था। घायल एक युवक था। उसके सिर से रक्तप्रवाह चल रहा था। मैंने उससे बातचीत की। वह बेहद गुस्से में था और मेरे ड्राइवर की खोज कर रहा था। मेरा ड्राइवर हजारी मौके से नदारद था। वास्तव में मेरी गाड़ी समारोह के अध्यक्ष प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद को लेने बहादुरपुर स्थित एच.आई.जी. उनके निवास पर गई थी। उन्हें लेकर गाड़ी डाकबंगला चौराहा, फ्रेजर रोड होते छज्जूबाग की तरफ से समारोह स्थल की ओर जा रही थी। फ्रेजर रोड से गाड़ी गुजर रही थी कि एक युवक तेजी से सड़क पार करते हुए उसकी चपेट में आ गया। दुर्घटना के बाद मेरा ड्राइवर गाड़ी भगाता हुआ समारोह स्थल पहुँच गया। घायल युवक ने गाड़ी का नंबर पुलिस को दिया और थोड़ी देर में ही पुलिस युवक को जिप्सी में बैठाकर समारोह स्थल पर पहुँच गई।

मैंने दारोगा से कहा कि घायल का इलाज करवा दूँगा, लेकिन उसका कहना था कि पहले केस दर्ज होगा। फिर वह मुझसे 20 हजार रुपये की माँग करने लगा मामले को रफा-दफा करने के लिए। मैं युवक के पास गया। पहले तो उसने आक्रामक लहजे में बात की, फिर उसे लगा कि कहीं मैं पुलिस से ले-देकर मामले को रफा-दफा न करवा दूँ, वह नरम पड़ गया। वास्तव में वह खुद ड्राइवर था। उसका नाम था मिट्ठू। उसने बोरिंग रोड के डॉ. सी.एम. झा का नाम लेते हुए उन्हीं से इलाज करवाने की बात कही। मैंने उसकी बात मान ली और एक आदमी को उसके साथ लगा दिया। मामला सुलझता देख दारोगा ने अपने सिपाहियों के चाय-नास्ते के लिए कुछ रुपये माँगे। मैंने पाँच सौ का एक नोट उसे थमाया तो वह चिहुंक उठा। अंततः दो हजार रुपये लेकर वह रुखसत हुआ। अब मैंने अपनी गाड़ी की स्थिति देखी। उसका अगला शीशा चूर हो चुका था। मामले से निबट मैं समारोह के मंच पर चला गया। समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. तिवारी अपने भाषण के अंतिम चरण में बोल रहे थे। उनके भाषण का विषय था–‘साहित्य का स्व भाव।’ वास्तव में वह ‘उदय राज सिंह स्मारक व्याख्यान’ कर रहे थे। उनके व्याख्यान के बाद प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद का अध्यक्षीय भाषण हुआ और फिर उसके बाद धन्यवाद ज्ञापन की औपचारिकता। किसी तरह पूरे आयोजन को संपन्न कर एक-एक अतिथियों को विदा की। मुख्य अतिथि प्रो. तिवारी को विधान पार्षद प्रो. रामवचन राय की गाड़ी से सर्किट हाउस विदा कर मैं पप्पू यति के साथ घायल युवक मिट्ठू को देखने उसके आदमी संतोष तिवारी की गाड़ी से बोरिंग रोड की ओर चल पड़ा।

डॉ. सी.एम. झा ने घायल के सिर का सी.टी. स्कैन, कमर का एक्स-रे सहित अन्य कई जाँच लिखा था, जिसे वहीं निकट के मौर्या क्लिनिक से करवा दिया गया। उन सभी जाँच में पाँच हजार लगे, जबकि डॉक्टर की फीस, दवा आदि में चार हजार रुपये। घायल युवक को चार हजार रुपये अलग से दिए। उन सबसे निबटकर ही रात 10 बजे अपने समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. तिवारी से मिलने सर्किट हाउस जा पाया। इस बीच उनका और प्रो. रामवचन राय के फोन लगातार आते रहे। उन्हें जब गाड़ी की दुर्घटना की पूरी जानकारी दी तो वे भौचक्क-से रह गए। प्रो. तिवारी ने कहा–‘अरे, आपके साथ इतना सब कुछ हो गया और समारोह में रहते हमें उसकी भनक तक नहीं लग सकी। वैसे आपका समारोह बहुत सफल रहा। काफी लोग आए थे।’ रात 11 बजे पप्पू यति की गाड़ी से अपने घर लौट पाया। इस पूरे मामले में उसने खासा मदद की। उसके सहयोग ने मुझे अभिभूत कर दिया।

पटना; 8 जून, 2016

अमेरिकी संसद में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छा गए। अमेरिकी संसद ने उन्हें हाथों हाथ लेते हुए अपार सम्मान दिया। अपनी वाशिंगटन यात्रा के अंतिम दिन नरेंद्र मोदी अमेरिकी संसद के संयुक्त सदन को संबाधित करने जैसे ही संसद भवन में पहुँचे, पूरी दुनिया ने देखा कि संसद ने उन्हें अपना सुपर सैल्यूट मारा। मेरे जैसे भारतीय यह भूल नहीं पाए हैं कि सन् 2005 में इसी अमेरिकी संसद ने संयुक्त रूप से प्रस्ताव पारित कर नरेंद्र मोदी के अमेरिका आने से सख्त पाबंदी लगा दी थी कि वे मुख्यतः सांप्रदायिक सोच के व्यक्ति हैं और उनके अमेरिका आने से इस देश को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। दस साल बीत गए और आज वही अमेरिकी संसद नरेंद्र मोदी को एक सुर से सिर माथे पर बिठा रही है। नरेंद्र मोदी अमेरिकी संसद में भाषण करने वाले भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री हैं। उनसे पहले 19 जुलाई, 2005 को मनमोहन सिंह, 14 सितंबर, 2000 को अटलबिहारी वाजपेयी, 18 मई, 1994 को पी.वी. नरसिम्हा राव और 13 जुलाई, 1985 को राजीव गाँधी अमेरिकी संसद को संबोधित कर चुके हैं।

अमेरिकी संसद में दिया गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा भाषण मैंने सुना। शानदार रहा उनका भाषण। लगभग एक घंटे के उनके भाषण में बार-बार तालियाँ बजती रहीं और कोई नौ बार सांसदों ने खड़े होकर उनका गर्मजोशी से खैरमखदम किया। नरेंद्र मोदी ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते को मिली मंजूरी को रिश्तों की नई बुनियाद करार देते हुए विश्व संस्कृति को प्रेरित करने की दिशा में दोनों देशों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण बताया। हमें याद रखना चाहिए कि असैन्य परमाणु समझौता दुनिया भर में हो, इसकी पहल 1974 में हुई थी। 1974 में ही भारत में प्रथम परमाणु परीक्षण के बाद विश्व स्तर पर ऊर्जा के लिए इस्तेमाल होने वाले परमाणु ईंधन की निर्बाध आपूर्ति के लिए परमाणु आपूर्ति समूह (एन.एस.जी.) का गठन हुआ था, जिसमें कतिपय कारणों से भारत को सदस्य नहीं बनाया गया। तब परमाणु अप्रसार संधि (एन.पी.टी.) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को ही इसमें शामिल किया गया था। भारत एन.पी.टी. दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहता था। उसका तर्क था कि फ्रांस को एन.पी.टी. पर हस्ताक्षर किए बिना ही जब एन.एस.जी. का सदस्य बनाया गया, तो फिर भारत को क्यों नहीं बनाया जा सकता है? देखा जाए तो भारत का यह रुख वास्तव में पड़ोसी देश पाकिस्तान के कारण रहा, जो विकास के कामों को छोड़ हथियार जमा करने की होड़ में शामिल हो गया था। पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण तक किए। शक्ति संतुलन के निमित्त भारत के लिए भी ऐसा करना जरूरी हो गया था। फिलहाल एन.एस.जी. में अमेरिका, फ्रांस, चीन, रूस, सहित 48 देश शामिल हैं। भारत भी इस समूह में शामिल होना चाहता है, क्योंकि उसका मानना है कि 40 प्रतिशत हिस्सा अक्षय या स्वच्छ ऊर्जा से प्राप्त हो। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए भी एन.एस.जी. की सदस्यता भारत के लिए जरूरी है। फिर परमाणु तकनीक मिलने से परमाणु ऊर्जा उपकरणों का व्यापार भी संभव हो पाएगा और परमाणु संयंत्रों के लिए यूरेनियम हासिल करने में भी आसानी होगी। इधर चीन अलग रणनीति पर काम कर रहा है। वह नहीं चाहता कि भारत को एन.एस.जी. में शामिल किया जाए। उसका कहना है कि यदि भारत को उसमें शामिल किया जाए तो फिर पाकिस्तान को भी एन.एस.जी. की सदस्यता दी जाए। वह यह भी चाहता है कि एन.एस.जी. में शामिल होने के पहले भारत एन.पी.टी. पर दस्तखत कर दे। जो हो, तमाम अवरोधों के बावजूद भारत को अंततः एन.एस.जी. में शामिल होने की अमेरिकी मदद से मंजूरी मिल ही गई और वह भी एन.पी.टी. पर दस्तखत किए वगैर। ये सब नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में संभव हो पाया, तो इसलिए वे अभी हीरो हैं।

इस पृष्ठभूमि में अमेरिकी संसद में दिया गया नरेंद्र मोदी का भाषण खास महत्त्व रखता है। मोदी ने एक हीरो की तरह अपना भाषण दिया, जिसे सुनकर लगा कि अब भारत अमेरिका का केवल साझेदार ही नहीं, सहयोगी और प्रतियोगी भी है। मोदी ने कटाक्ष करते हुए यहाँ तक कह दिया कि अमेरिका में कोई तीन करोड़ लोग योग करते हैं, फिर भी हमने कभी इंटलैक्चुवल प्रॉपर्टी राइट (आई.पी.आर.) का दावा नहीं किया। दरअसल अमेरिका आई.पी.आर. के जरिये भारतीय प्रतिभा को अपने देश में रोकना चाहता है। मोदी ने कहा, अमेरिका में 30 लाख भारतीय अमेरिकी हैं जो दोनों देशों के जुड़ाव का सूचक हैं। भारत के लोग अमेरिका के श्रेष्ठ सी.ई.ओ., शिक्षाविद्, अंतरिक्ष यात्री, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, डॉक्टर, इंजीनियर और यहाँ तक कि स्पेलिंग बी. चैंपियन भी हैं। उन्होंने कहा कि मजबूत और समृद्ध भारत अमेरिका के हित में ही होगा। हम किसी भी देश से ज्यादा अमेरिका से ही कारोबार करते हैं। मैं अमेरिका को भारत के आदर्श साझेदार के रूप में देखता हूँ। दोस्ती की दिशा में अवरोधों को हमने पुल बनाया। हमारी साझेदारी से एशिया से अफ्रीका तक स्थिरता और शांति आएगी। उन्होंने कहा कि आज अफगानिस्तान को आतंकमुक्त बनाने में अमेरिका लगा है, पर हमने भी वहाँ बाँध और संसद भवन बनाने के साथ-साथ कई अन्य विकास के काम भी किए। नेपाल में भूकंप और मालदीव में जल संकट होने पर हम मदद लेकर सबसे पहले वहाँ पहुँचे थे। यू.एन.ओ. में पीस कीपिंग फोर्स सबसे ज्यादा भारत के ही हैं। अपने भाषण से नरेंद्र मोदी अमेरिकी संसद पर छा गए।

भारत लगातार अमेरिका के करीब जा रहा है और राजनीतिक स्तर पर चीन को सशक्त जवाब दे रहा है, जो पाकिस्तान को शह देता है। जाने भारत-अमेरिका के निकटस्थ होते जाने का भविष्य क्या होगा! भारत में पूँजी का प्रभुत्व अपना साम्राज्य विस्तार करता जा रहा है, जिसके अभिशाप से करोड़ों भारतवासी विकास के छलावे में जीने को अभिशप्त हैं। जो हो, फिलवक्त अमेरिकी संसद में नरेंद्र मोदी के कारगर भाषण ने दूरस्थ देशों को अनेक संकेत दिए हैं, जिसका आने वाले दिनों में प्रभाव दिखना लाजिमी है। कभी अटलबिहारी वाजपेयी भी मानते थे कि अमेरिका भारत का स्वाभाविक मित्र है और आज मोदी ने वाजपेयी के विचार को ही आगे बढ़ाया है।


Image: Portrait of Mrs.Paul Richard
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Artist : John Singleton Copley
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शिवनारायण द्वारा भी