सदाचार से ही सुख सुलभ होगा

Shivpujan Sahay

सदाचार से ही सुख सुलभ होगा

स्वर्गीय प्रेमचन्द जी ने अपनी ‘पंचपरमेश्वर’ कहानी में लिखा है–“अगर लोग ऐसे कपटी और धोखेबाज न होते, तो देश में आपत्तियों का क्यों प्रकोप होता? यह हैजा, प्लेग आदि व्याधियाँ दुष्कर्मों के दण्ड हैं।”

उसी कहानी में एक जगह फिर लिखा है–“सत्यवादियों के बल पर पृथ्वी ठहरी हुई है, नहीं तो कब की रसातल चली जाती।”

आज चारों ओर अकाल से हाहाकार है। असंख्य असाध्य रोगों का दौरदौरा है। भुखमरी है। महाभारी है। अकालमृत्यु है। अभाव है। ईर्ष्या-द्वेष का बोलबाला है। अनाचार का अबाध प्रसार है। चतुर्दिक अशान्ति है।

महात्मा गाँधी सबकी रामबाण दवा बतला गये हैं– राम-नाम, ईश्वर-प्रार्थना। पर ईश्वर-प्रार्थना अब किसी को नहीं सुहाती। सब लोग ‘राम-नाम में आलसी, भोजन में हुसियार’ हो गए हैं। सच्चरित्रता और ईमानदारी बहुत कम हो गई है। सुख मिले तो कैसे?

विजयादशमी 2007
संवत 2007


Image – Nayi Dhara Archives