प्रतिरोध के विश्वकवि लैंगस्टन ह्यूज

प्रतिरोध के विश्वकवि लैंगस्टन ह्यूज

साहित्य का स्वभाव है करुणा, न्याय और प्रतिरोध। प्रतिरोध की धार से साहित्य की दिशा या कहें कि पक्षधरता निर्धारित होती है। साहित्य किसके पक्ष में खड़ा है, यह जानना जरूरी है। मूल्यांकन का मूलाधार ही वही है। कला, संस्कृति और साहित्य की दुनिया में प्रतिरोध का स्वर ही तय करता है कि समाज और राजनीति में विश्व चेतना क्या, कहाँ और किसकी जरूरतों के पक्ष में कार्यरत है। समय की गति-प्रक्रिया में मनुष्य की वृत्तियों पर नित नूतन रंग चढ़ते रहते हैं, लेकिन विश्व के संघर्ष साहित्य को देखें तो धर्म, जाति, नस्लीय भेदों का रंग अधिक गाढ़ा, चटख और चटकोला हुआ है। अफ्रीकी देशों में नेल्सन मंडेला, लियो-पोल्ड सेदोर-सेंगोर, अगोस्तिनों नेतो, चिनुवा ऐचेबे, गैब्रिग्प्रस ओकारा, साइप्रस एक्वेंसी, लैटिन अमेरिकी उपन्यासकार मार्खेज और अश्वेत अमेरिकी कवि लैंगस्टन ह्यूज जैसे साहित्यकार वास्तव में तीसरी दुनिया के ऐसे सांस्कृतिक स्वर हैं, जिनमें उपनिवेशवाद और नव साम्राज्यवाद विरोधी तीखा स्वर भी है और नूतन निर्माण की सक्रिय संकल्पना भी। स्नेगली लेखक सेंबेन ओसमान, केन्याई लेखक न्युगी-वा-थ्योंगो, अश्वेत अमेरिकी लेखक लैंगस्टन ह्यूज और लैटिन अमेरिकी लेखक मार्खेज विश्व साहित्य के सधे हुए प्रतिरोधी स्वर हैं। इन साहित्यकारों में जहाँ एक ओर पूँजीवादी, उपनिवेशवादी और साम्राज्यवादी शक्तियों की सक्रियताएँ हैं, वहीं राष्ट्रीय मुक्तिकामी और समाजवादी ताकतों की प्रतिरोधी क्षमताएँ एवं एक बेहतर दुनिया के निर्माण की स्वप्न दृष्टियाँ भी हैं। जो लेखक इतिहास को अपनी रचना का विषय बनाते हैं, वे देश-समाज की जड़ता के खिलाफ गतिशीलता, रूढ़ि के विरुद्ध परिवर्तनशीलता का पक्षग्रहण करते हैं। प्रतिकूल शक्तियों की संघर्ष-सक्रियताओं और परस्पर विरोधी उद्देश्यों की पहचान करने वाला साहित्यकार ही वास्तव में चेतनासंपन्न साहित्यकार होता है और ऐसे लेखक की रचनाएँ ही दस्तावेजी महत्त्व की होती हैं। अपने समय और उसके चैतन्य को स्वर देकर ही साहित्य कालातीत बनता है। लैंगस्टन ह्यूज ऐसे ही कृतकार्य कृतिकार हैं।

प्रसिद्ध कवि, कथाकार और नाटककार लैंगस्टन ह्यूज अश्वेत अमेरिकी जनता और उनके जीवन-संघर्ष के प्रतिरोधी स्वर-संवाहक रहे। ध्यान रहे कि ह्यूज जनआकांक्षाओं-अभिलाषाओं को संकल्प और धार देनेवाले रचनात्मक ऐश्वर्य के रचनाकार हैं, तो नोम चॉम्स्की वैचारिक वैभव के विख्यात वाग्मी लेखक। वास्तव में ह्यूज की कविता संपूर्ण अमेरिकी जन-जीवन की चित्र-वीथिका है, जिसमें वर्चस्व दी श्वेत अमेरिका है तो दमित, किंतु, उदित हो रहा अश्वेत अमेरिका भी है। देखा जाय तो एक देश में दो देश! ह्यूज की यही द्वंद्वात्मक दृष्टि उन्हें विशिष्ट कवि के रूप में उपस्थापित करती है। ह्यूज की कविता में अश्वेत अमेरिकी जनजीवन की कचोटभरी स्मृतियाँ भी हैं और संश्लिष्ट संस्तुतियाँ भी। संहार और संहति के युग्म तटों को छूती ह्यूज की कविता एक अविरल जल-प्रवाह है। यदि उसमें दुःख की खाई है, तो उससे पार पाने की सक्रियता भी। वास्तव में सत्ता और वर्चस्ववाद के विरुद्ध सधा हुआ संघनित स्वर कहीं देखना हो तो ह्यूज से अच्छी और धारदार कविता मुश्किल से मिलेगी। इस दृष्टि से देखें तो ह्यूज अमेरिकी अश्वेत जनता की सांस्कृतिक चेतना के संवाहक, उनकी प्रतिरोधी संकल्पना और सक्रियता के मूर्त विग्रह हैं।

लैंगस्टन ह्यूज के रचनाकर्म पर विमर्श के पूर्व यहाँ थोड़ा उनके जीवन को भी देख-समझ लेना अपेक्षित होगा। ह्यूज का जन्म मियूरी के जोपलिन में 1 फरवरी सन् 1902 में हुआ था। उसकी माँ स्कूल में शिक्षिका थी, जबकि पिता दुकानदार थे। उस परिवेश में ह्यूज की जितनी अच्छी परवरिश हो सकती है, हो रही थी। कालांतर में उसकी माँ को अपनी आजीविका के लिए नगर-नगर भटकना पड़ा! इस क्रम में उसे मैक्सिको, तोपेका, कनसास, कोलोराडो, इंडियाना और वेफेलो नगरों में रहना पड़ा। ह्यूज की माँ ने अंततः एकाकी जीवन के संत्रास और आजीविका की खोज से परेशान हो दूसरी शादी कर ली और अपने नए पति के साथ आहियो के क्वींसलैंड में बस गई। ह्यूज के नए पिता इस्पात के एक कारखाना में काम करते थे। तब ह्यूज की उम्र लगभग तेरह वर्ष की रही होगी। इन संघर्षों के बीच भी ह्यूज की पढ़ाई माँ की वजह से कभी बाधित नहीं हुई। नए परिवार में भी वे सुख-चैन से रह रहे थे। उसकी आरंभिक शिक्षा क्वींसलैंड के स्कूलों में हुई, जबकि उच्च शिक्षा कोलंबिया और पेंसिलवानिया विश्वविद्यालयों में पूरी हुई। अपने छात्र जीवन से ही ह्यूज कविता के प्रति प्रवृत्त हो गए थे, जबकि विश्वविद्यालयाधीन शिक्षा के दौरान उसकी कविता ‘दि नीग्रो स्पीक्स ऑफ रीवर’ में प्रकाशित हुई थी। तब वे 19 वर्ष के थे। उसी समय से एक कवि के रूप में उसकी पहचान बनने लगी थी। अमेरिकी साहित्य जगत में यद्यपि उन्हें कथाकार-नाटककार के रूप में लोग जानने लगे थे, तथापि वे कविता-लेखन में खुद को अधिक सहजतापूर्वक व्यक्त कर पाते थे। यह उनका निर्माण काल था। जिस सामाजिक परिवेश और संघर्ष से वे आगे बढ़ते रहे थे, स्वाभाविक रूप से उनकी रचनाओं में कमजोर और संघर्षशील जनता के प्रति हमदर्दी उभरने लगी थी। एक प्रतिरोधी कवि के रूप में उनकी पहचान मुकम्मल होती जा रही थी।

लैंगस्टन ह्यूज की रचनाशीलता जिस किसी विधा में संप्रेषित हो रही हो, उनमें उनका समय, परिवेश और संघर्षशील जनता के दुःख-दर्द का स्वाभाविक चित्रण हो रहा था। उनकी कविता में अपनी मिट्टी की महिमा थी, तो प्रकृति के मानवीकरण का चित्ताकर्षक चित्रण; जो सहज ही पाठकों को सम्मोहित कर लेता। उनकी कविता संवेदनात्मक विश्व में सृजनात्मक पहल भी करती है और कवि की स्वप्न-दृष्टि भी उद्घाटित करती है। उसकी एक कविता की इन पंक्तियों को देखें–‘पहले मन में एक सपना होता है/फिर दिमाग एक रास्ता तलाशता है/तब उसकी आँखें दुनिया की तरफ देखती है/वृक्षों से भी इस महान दुनिया की तरफ/उसकी उर्वर मिट्टी की तरफ/इसकी नदियों की तरफ!’ दुनिया को देखने की यही यथार्थ दृष्टि ह्यूज को एक नई और अनोखी दुनिया का कवि बनाती है; जिस दुनिया में हरियाली हो, उर्वर मिट्टी की महिमा हो और मनुष्य की गरिमा हो/जैसे-जैसे ह्यूज का काव्यात्मक/विकास होता गया, उसकी काव्य-दृष्टि भी उदात्त और जनपक्षधर होती चली गई। उनके संपूर्ण कविताकर्म को देखें तो विषमता, वैमनस्य, वैर और नफरत जैसे अमानवीय मूल्यों के बीच समता, प्रेम, औदार्य और स्वतंत्रता की चाह संग मधुमय विश्व की संकल्पना ही उन्हें विश्वकवि बनाती है। देखा जाए तो ह्यूज एक अनोखा और बेहतर विश्व के स्वप्नद्रष्टा कवि हैं–‘मैं एक ऐसी धरती का सपना देखता हूँ/जहाँ आदमी आदमी से घृणा नहीं करे,/जहाँ धरती प्रेम के आशीष में पली हो/और रास्ते शांति की अल्पना से सुसज्जित,/मैं एक ऐसी धरती का सपना देखता हूँ/जहाँ सभी को आजादी का माधुर्य और मिठास मिले/धरती की संपदा का तुम्हारा हिस्सा तुम्हें मिले।’ अपने इस वैश्विक मानवीय स्वरूप में ह्यूज विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर तथा समता-स्वतंत्रता के अमर गायक मायकोवस्की के बेहद करीब खड़े मिलते हैं। वास्तव में ह्यूज में स्थानीयता की जितनी ही गर्बीली चेतना है, उतनी ही अंतरराष्ट्रीयता की विराट भाव-भावना भी ह्यूज स्थानीय होकर ही वैश्विक चेतना के दृष्टिसंपन्न कवि हैं। राष्ट्रीयता से अंतरराष्ट्रीयता की वैचारिक यात्रा में कवि जहाँ एक ओर नीग्रोजन के स्वर में नदी का गीत गाते हैं, वहाँ विश्व वटवृक्ष को भी स्तब्ध करते हैं–‘आज इन नदियों की ही तरह गहरा है/नीग्रो होने का हमारा अभियान’ और ‘वह पेड़ सबके लिए है/सारे अमेरिका के लिए/सारी दुनिया के लिए।’

ह्यूज दबे, पिछड़े एवं वंचित जनसमुदाय के लिए वैश्विक चेतना के मुखर कवि हैं। उनकी कविता में नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने की ही प्रतिश्रुत सक्रियता नहीं है, बल्कि आर्थिक गैरबराबरी की चक्की में पीस रही मनुष्यता की मुक्ति चेतना भी है। वास्तव में गैरबराबरी के विरुद्ध संघर्ष, नस्लीय भेद के विरुद्ध संघर्ष और मानवीय दास्ता के विरुद्ध संघर्ष और प्रतिरोध का इतना बड़ा कवि किसी भी भाषा को सदियों बाद ही मिलता है। वे किसान, मजदूर तथा अभाव में जिंदगी जी रहे निम्नवर्गीय जनता के अपने कवि हैं। वे कहते हैं–‘मैं ही वह किसान हूँ जमीन का गुलाम/मैं ही वह मजदूर हूँ मशीनों के क्रीतहस्त/मैं ही वह नीग्रो हूँ आप सब का चाकर।’ इतने विविध रूपों में ह्यूज का अवतरण वस्तुतः उसकी उदात्त चेतना-फलक तथा विशाल चिंतन-धरातल का ही प्रभाग है। कवि भाग्य पर भरोसा नहीं करता, परलोक की चिंता नहीं करता, वह इसी धरती पर खड़े अपनी धरती को आजाद और आबाद देखना चाहता है। अपनी एक कविता में लिखते हैं–‘मैं थक गया हूँ/लोगों से सुनते-सुनते/कि समय पर हो जाएगा/कल का दिन एक और दिन हो जाएगा/मुझे मृत्यु के उपरांत नहीं चाहिए आजादी/कल के भरोसे मैं खड़ा नहीं रह सकता/कल की रोटी पर मैं नहीं जी सकता।’ लेकिन कवि भविष्य के प्रति आशावान बना रहता है, उस भविष्य के प्रति जो हर परिवर्तन का कारण और उपजीवन बनता है तथा थोथे आश्वासनों के प्रति अविश्वासी बना रहता है। तत्काल और भविष्य के प्रति द्वंद्वात्मक दृष्टि कवि को एक सजग और सचेत कवि बनाती है। इसलिए घोर हताशा-निराशा के बीच कवि उस स्वप्न-दृष्टि को अपनाता है, जिसे उसका आदर्श भी कहा जा सकता है और भविष्य के प्रति विश्वास भी। जहाँ कवि सदियों से जंजीरों में जकड़ी अश्वेत जनता की मुक्ति के लिए तत्काल की सक्रियता को महत्त्व देता है, वहीं भविष्य के आलोकमय संसार भी देखता है। कवि की यही इतिहास दृष्टि उसे वर्त्तमान का संघर्षशील और भविष्य का स्वप्नद्रष्टा कवि बनाती है। कवि का एकांत विश्वास है, कि–‘खुशनुमा बरसात में/यह धरती फिर से उर्वरा हो जाती है/हरी घास उगने लगती है/और सुमन साकार बने सिर उठाने लगते हैं/और चारों ओर जैसे किसी आश्चर्य लोक की/सृष्टि हो जाती है/जीवन के आश्चर्यलोक की।’

यह अजूबा लोक केवल कल्पना कलित लोक नहीं है, भविष्य का सुखमय और सुंदर लोक भी है। कलाकार सजीव यथार्थ में ही आदर्श लोक की कल्पना करता है और एक सजीव सुंदर स्वप्नलोक का सृजन करता है। कला यथार्थ के धरातल से ही उस स्वर्ग को रचती है और मनुष्य मात्र के लिए ही उस स्वप्नलोक को खोज पाती है। कलाकार का यह सृजित लोक ध्वनि-ध्वांत नहीं, रस, रंग-गंध स्नात होता है। यही कवि का कायिक लोक भी है और स्वप्न रचित भाविक लोक भी। कायिक और भाविक का यही संतुलन और समन्वय वह उन्नत लोक है, जो स्वप्नरचित होता हुआ भी यथार्थ लोक है और आदर्श लोक और अजूबा लोक भी। गतिशील यथार्थ परिवर्तनशील यथार्थ के आधार पर ही कवि उस आदर्श लोक की रचना करना चाहता है, जो मनुष्य के अनुकूल, उसकी उन्नति के लिए सुंदर और मंगलमय हो। शायद इसीलिए खापचेंको जैसे चिंतनद्रष्टा कहते हैं कि ‘यथार्थवाद अपने को यथार्थ के प्रतिबिंबन की पूर्व निर्मित युक्तियों तथा विधियों तक ही सीमित नहीं रखता; वह निरंतर उसके कलात्मक सामान्यीकरण की तलाश करता है, उसके नए और प्रभावी साधनों का अनुसंधान करता है। विश्व की गति तथा नवीनीकरण का चित्रण करते हुए स्वयं अपना नवीनीकरण करता है।’ ह्यूज इसी नवीनीकरण की प्रक्रिया को तलाशते हुए अपनाते हैं और इसी रूप में वे अपनी सार्थकता एवं प्रासंगिकता भी सिद्ध करते हैं।

लैंगस्टन ह्यूज के जीवन में दुःख-संघर्ष का लंबा वितान रहा, जिसके अनुभव से उसकी कविता में प्रतिरोधी स्वर का उभार हो या फिर प्रेम, प्रकृति और सौंदर्य की ध्वनि अथवा मानवता के प्रति अनुराग-सम्मान, ये सारे प्रसंग और संदर्भ एक संशिलष्ट कलात्मक एवं काव्यात्मक विन्यास में ही अभिव्यक्त होते हैं। वास्तव में उत्कृष्ट विषय-वस्तु की अभिव्यक्ति भी उत्कृष्ट कलात्मकता के साथ ही की जानी चाहिए, अन्यथा वह विषय-वस्तु न तो धारदार हो सकती है, न ही असरदार। यदि कविता और कला विषय-वस्तु के बावजूद अपने कलात्मक विन्यास में उत्तम और प्रभविष्णु होती है तो कला में निश्चय ही रूप की अनिवार्यता अपेक्षित हो जाती है। इस मानी में ह्यूज की कविता प्रभविष्णु भी है और कलात्मक भी। लेकिन यह कलात्मकता कहीं से भी कलावाद में परिणत नहीं होती। एक बड़े कवि की यही विशेषता होती है कि उसकी रचना में भाषा की सहजता समर्थ संप्रेषणीयता के कारण ही प्रांजल और प्रभावी बन पाती है। इस प्रकार ह्यूज का काव्य अपनी सहज संप्रेषणीयता में ही कलात्मकता का प्ररूप और प्रतिदर्श बन सका है। उसमें टी.एस. इलियट और मलामें की तरह काव्यात्मक जटिलता नहीं, बल्कि मायकोव्स्की और मार्खेज की तरह कलात्मक सहजता और प्रभविष्णुता है। एक प्रकार का जादुई सम्मोहन है जो पाठकों को चमत्कृत भी करता है और संवेद्य भी बनाता है। उसमें दिक्, काल और यथार्थ का संश्लेषण है।

लैंगस्टन ह्यूज प्रतिरोध और संघर्ष के विश्वकवि हैं। उनकी वैश्विक चेतना राजनीतिक दृष्टि संपन्नता से भी विकसित हुई। ह्यूज को पहले एक अलग अमेरिका के विकल्प के तौर पर साम्यवाद के लिए तैयार किया गया था। ह्यूज ने अनेक राजनीतिक लेखन भी किए, जो मिसौरी प्रेस विश्वविद्यालय द्वारा दो खंडों में प्रकाशित हैं। उन्हें देखने से उनके सम्यवादी रूझान को समझा जा सकता है। 1932 में वे अश्वेत लोगों के संघर्ष का हिस्सा बन गए, जो संयुक्त राज्य में अफ्रीकी अमेरिकियों की दुर्दशा का चित्रित करने वाली एक फिल्म बनाने के उद्देश्य से सोवियत रूस गए हुए थे। फिल्म तो नहीं बन पाई, लेकिन धीरे-धीरे वे साम्यवादी विचारधारा के प्रति बढ़ते चले गए, जिससे उनकी काव्यदृष्टि जनपक्षधर होती चली गई। उनकी कविताएँ हमेशा आम जनता के दुःख-संघर्ष के साथ खड़ी रहीं। जब वे प्रेम, प्रकृति और करुणा के चित्र उकेर रहे होते हैं तो उनके सामने विश्वभर की दलित-पीड़ित जनता होती है, चाहे वे किसी भी प्रकार के शोषण के शिकार हो रहे हों। देखा जाए तो वर्तमान के आधार और यथार्थ को समझे बिना भविष्य के निर्माण की अमूर्त अपीलें भी निरर्थक और हानिकारक होती हैं। कवि काल्पनिक लोक की सृष्टि नहीं करता और न ही धुँधली अन्योक्तियों के प्रति संख्या रचता है, वरन संघर्षरत शक्तियाँ और परिवर्तनशील सामाजिक-ऐतिहासिक शक्तियों पर भरोसा करते हुए ही एक ऐसे सौंदर्यलोक और आदर्शलोक की रचना करता है, जो स्वप्न में यथार्थ और यथार्थ में स्वप्न-सरीखा होता है। वास्तव में, कवि की अनुभूति और संसार में सहसंतुलन ही उस स्वप्नलोक की रचना है, जो यथार्थ लोक का उद्भास लिए रहती है। ह्यूज तत्काल के सवालों से टकराते हुए ही संभवनीयता का सुंदर लोक रचते हैं। ममता, समता, प्रेम, सम्मान, सद्भाव और शांति के अभिनव लोक की संकल्पना ही ह्यूज को विश्वकवि बनाती है। इसी माने में भी प्रतिरोध के विश्वकवि ठहरते हैं!


Image: LangstonHughes (Photographed)
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: Carl Van Vechten, 1936. (through Library of Congress Prints_Photographs Online Collection)
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शिवनारायण द्वारा भी