कसौटी

कसौटी

कई घरों का दरवाजा खटखटाने के पश्चात रामआसरे बाबू ने अपने पूर्व परिचित दीनानाथ जी के दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खुलने पर दीनानाथ जी ने सामाजिक औपचारिकताओं का निर्वाह किया।
रामआसरे बाबू भी औपचारिकताओं का निर्वाह करते हुए जल्दी ही मतलब की बात पर आ गए, ‘देखिए! मैं अपनी बेटी के लिए आपके बेटे का हाथ माँगने आया हूँ…निराश न कीजिएगा।’
‘निराश!…और मैं…नहीं…नहीं…हाँ!…डर है निराश कहीं आप ही न कर दें।’
‘देखिए! लेन-देन की चिंता न कीजिएगा…मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा…आपकी सेवा अवश्य करूँगा।’
‘नहीं…नहीं रामआसरे जी! आप गलत समझ रहे हैं! मैं भी बेटी वाला हूँ…लेन-देन की बात भला…मैं क्या करूँगा! बस्स, मैं तो चाहता हूँ कि मेरा बेटा आप ले लें और अपना बेटा मुझे दे दें।…और हाँ! न कुछ आप दें…और न लें!’
‘दीनानाथ जी! क्षमा करें!…कहाँ मेरा बेटा सरकारी इंजीनियर और कहाँ आपका बेटा कॉलेज का मात्र लेक्चरर!’
‘तो इसमें बुराई ही क्या है भई? दोनों का स्टेट्स तो लगभग बराबर ही हैं फिर लेक्चरर की सामाजिक प्रतिष्ठा कुछ अधिक ही होती है, रामआसरे जी!’
‘अजी भाड़ में गई प्रतिष्ठा!…वेतन के अतिरिक्त मेरा बेटा…लाख किस्मत फूट जाने पर भी आपके बेटे से दूना तो आसानी से कमा ही लेता है…हुँह…।’


Image : Le couple au village
Image Source : WikiArt
Artist :Gustave de Smet
Image in Public Domain