उपहार
- 1 October, 2020
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- 1 October, 2020
उपहार
‘रंजना तुम! क्या बात है?’
‘सर! आपका आशीर्वाद लेने आई हूँ। मैं फर्स्ट डिवीजन से पास हो गई हूँ।’ मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए वह बोली।
‘खुश रहो। मेहनत से पढ़नेवालों का परिणाम सुखद होता है।…वो तुम्हारे साथ कौन हैं?’
‘सर, मेरी माँ हैं।’
‘उन्हें भी यहीं बुला लो।’
‘माँ! यहीं आ जाओ।’
जब तक रंजना की माँ वहाँ आईं, निर्मल बाबू ने अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘अरे भई। जरा सुनिएगा।’
‘हाँ कहिए!’
‘यह रंजना और यह इसकी माँ हैं।’
‘जी नमस्ते!’
‘देखो, आलमारी के लॉकर में एक गुलाबी रंग का लिफाफा रखा है, उसे लेते आओ।’ पत्नी अंदर चली गई।
‘रंजना, मैं बहुत खुश हूँ। आगे भी पढ़ाई जारी रखना। तुम मेधावी एवं मेहनती छात्रा हो, पढ़-लिख जाओगी तो जीवन बन जाएगा।’
‘सर, चाहती तो मैं भी हूँ…पर, आप तो जानते हैं, पिता जी के देहांत के बाद हमारी स्थिति ऐसी नहीं कि, आगे…मैं बस किसी तरह आपको ट्यूशन फीस ही दे पाई थी।’
‘यह, लीजिए!’ निर्मल बाबू की पत्नी ने गुलाबी लिफाफा बढ़ाते हुए कहा।
‘यह लो, इसे खोलकर देखो रंजना।’
‘ये सर? ये दो हजार रुपये किसलिए?’
‘मैंने तुम्हें दस महीने पढ़ाया, दो सौ रुपये की दर से दो हजार हुए। जो रुपये तुमने मुझे दिए, वही नोट, ज्यों-के-त्यों हैं। मैं टीचर होने से पूर्व एक आदमी हूँ, पारिवारिक आदमी। मैंने गरीबी झेली है। मैं ऐसे बच्चों का दुःख-दर्द समझता हूँ। हाँ, इन पैसों से तुम आगे भी पढ़ाई जारी रख सकती हो।’
‘मगर सर!’ रंजना की माँ ने कुछ कहना चाहा।
‘यह शिक्षक-विद्यार्थी का मामला है, आप परेशान न हों। पास होने पर रंजना को मैं उपहार-स्वरूप दे रहा हूँ।’
‘सर…!’ रंजना का स्वर भर्रा-सा गया। और वह सोचने लगी कि वह अब आगे पढ़ सकेगी।
‘मगर सर, क्या आप आगे भी मुझे कोच करेंगे?’
‘जरूर।’
‘सर! मैं आगे पढ़ूँगी, जरूर पढ़ूँगी। बस, आपका आशीर्वाद चाहिए।’
अब तक नौकर चाय ले आया था।
Image : Untitled
Image Source : WikiArt
Artist :Nicolae Tonitza
Image in Public Domain