घर का रास्ता

घर का रास्ता

बिरजू आज कोरोना से ठीक होकर अपने गाँव लौट आया है। गाँव के लोग उसे दूर से ही देखकर लौट जा रहे हैं। गाँव में बिरजू को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। कोई कहता है कि बिरजू बड़ा भाग वाला है कि अपने बाल-बच्चों के बीच बचकर आ गया। कानाफूसी तो यह भी हो रही है कि इसी ने महंगू को जबरदस्ती बुला कर लाया नहीं तो महंगू आने वाला नहीं था। बेचारा किस्मत का मारा था अपने बाल-बच्चों का मुँह भी नहीं देख पाया। इधर बिरजू अपने घर के खाट पर लेटे-लेटे दिल्ली से आने की स्याह यादों में खो जाता है। वह सोचता है–लोग सच ही तो कह रहे हैं अगर मैंने महंगू को घर चलने के लिए नहीं कहा होता तो आज वह भी इस दुनिया में होता। मेरी ही मति मारी गई थी, न जाने घर आने की इतनी जल्दी क्या थी? सब कुछ तो था ही, अरे! चाय की दुकान में जो कुछ रुपये-पैसे बचे थे उससे कुछ दिन तो रूखा-सूखा खाकर दिल्ली में गुजर-बसर कर ही लेते। लेकिन नहीं काल जो बुला रहा था! सब सोचते-सोचते बिरजू की आँखों के आँसू टपक पड़ते हैं। अपने दिल पर पत्थर रखकर वह इन सभी बातों को भुला देना चाहता है, मगर उसे रात भर नींद नहीं आती है। बार-बार उसका मन दिल्ली पहुँच जाता है जहाँ उसने अपनी चाय की दुकान खोल रखी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी कैंपस के ठीक सटे पटेल चेस्ट के पास क्रिश्चियन कॉलोनी नामक एक अवैध रिहायसी इलाका है। इस छोटी सी कॉलोनी में लगभग दस हजार लोग रहते होंगे जिसमें आठ से नौ हजार तो दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी एवं सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्र रहते हैं। अधिकतर छात्र बिहार एवं उत्तर प्रदेश से हैं, लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी प्रतिभागियों की संख्या अच्छी खासी है। आज से ठीक सोलह साल पहले बिरजू वहाँ जाकर एक चाय की दुकान लगाने लगा। एक छोटे से कमरे के बाहर एक मेज पर ही चाय की पूरी दुकान है उसकी। रोज एक हजार से पंद्रह सौ रुपये कमा लेता है। बड़ा ही अखड़ स्वभाव का है, हाँ लोगों का मनोरंजन भी करने में माहिर है। तभी तो यूपीएससी की पीटी का रिजल्ट नहीं आने पर उदास अपने चाय के ग्राहकों के मन को भी लुभा लेता है।

बिरजू अपने हाजिर-जबावी एवं गँवई अंदाज के कारण बिहार-उत्तर प्रदेश के छात्रों के बीच प्रसिद्ध है। सभी अपने रूम से निकलकर अर्थशास्त्र के साथ भूगोल व इतिहास की चर्चा करते हुए बिरजू की दुकान पर चाय पीने पहुँच जाते हैं। चाय देते हुए बिरजू छात्रों से हँसी-मजाक करने लगता है। इसी बीच वह बजट वाले प्रतियोगिता-दर्पण के अंक की चर्चा करते हुए कहता–‘का हो कन्हैया जी सरकार चाय वाला ला भी कुछ किया है क्या? अरे चाय का भी दाम बढ़ना चाहिए कि नहीं? आप लोग आईएएस, आईपीएस बन के इतना दहेज लीजिएगा, हमरे चायवा न पीके। अच्छा कोई नहीं आपलोग जब साहेब बनिएगा तो हमरो गरीब का ध्यान रखिएगा। केतना लोग ई चाय पीके बड़का अफसर बन गया, ई चैये अइसन है। अपन-अपन चाय लीजिए और पैसा बढ़ाते जाइए। बिस्कुटो लीजिएगा, अच्छा आपको तो बड़ा गोल्ड फ्लैक भी चाहिए न। इसके बिना परीक्षा-मंथन दिमाग में नहीं घुसता है न।’ इसी बीच दूबे जी बिरजू को टोकता है क्या बिरजू इस बार कन्हैया जी आईएएस बनेंगे की नहीं? जे-जे हमर चाय पी सब कोई आईएएस बनी। देखिए पिछले साल के रिजल्ट में बी-ब्लॉक के पाठक जी हमरे चाय पी-पी के पास किए की नहीं? हमरे ब्लॉक में बीडीओ बन के गए हैं, एक दिन गए थे उनसे मिलने ब्लॉक में बड़ा दिलदार आदमी हैं। सभी बिरजू की बतकुचन को सुनते हुए चाय की चुस्की का मजा लेते रहते हैं। वह नाम ले-लेकर ठेठ गँवई अंदाज में सबका समाचार भी पूछता रहता है। बिरजू पिछले चौदह-पंद्रह सालों में अपने गाँव के सात-आठ लोगों को उसी कॉलोनी में ले आकर चाय की दुकान खोलवा दिया है। सभी मिल-जुलकर रहते हैं और उसकी इज्जत करते हैं।

देर रात तक नींद नहीं आने के कारण बिरजू सुबह देर तक बिस्तर पर सोया रहता है। आँख खुलते ही घर पर लोगों का जमावड़ा देखकर वह डर जाता है। घबड़ाकर खटिया से नीचे उतरकर बैठते हुए विशुनवा के माई को पायँ लागिले चाची कहके रोने लगता है। विशुनवा के माइ के रो-रोकर बुरा हाल है। ‘बबुआ रे तोहरा अउर महंगूआ के आ-व-ला के बाद विशुनवा, किशुनवा, बदरिया, जोगिया सब के सब पैदले घर आवेला निकल गेल बा। बबुआ हो दो-दिन से कौउनो के फोनवा पर बातों न होई त बा।’ कहते कहते फिर रोने लगती है। तब तक बदरिया के बाबू का फोन बजता है। उधर से आवाज आती है–‘हेलो…हेलो…बाबू हम बदरी बोलइत बानी। दिल्ली से पैदले हमनी सब कोई बरेली पहुँच गेल बानी। विशुनवा के माई के कह दिहऊ न रोतई।’ इतना कहकर ही फोन कट जाता है। इसके बाद लाख कोशिश के बावजूद फोन नहीं लगता है। शायद बैट्री डिस्चार्ज होने के कारण स्विच ऑफ हो गया होगा। बिरजू सबको समझाता है कि बरेली पहुँच गया है तब दो दिन में सब घर पहुँच जाएगा। लेकिन लॉकडाउन में पुलिस से बच के आना पड़ेगा सबको। अच्छा बदरिया तेज है सबके पार लगा देगा। अरे हं! सुने हैं कि बरेली के डीएम साहब नीतीश बाबू हैं जो हमरे दुकान पर रोज चाय पीते थे। नालंदा जिला के हैं। बदरिया तो जानता ही है उनको, दिमाग खुले त कउनो को कोई दिक्कते नहीं होएगा। फोनवा लगता त यादो दिला देते। अच्छा भगवान करेंगे त बदरिया के माइंड खुल जाएगा। विशुनवा के माई रोते-रोते घर चल जाती है। एक-एक करके सब उठकर अपने-अपने घर चल जाते हैं।

उधर बदरी, विशुन, जोगिया सबको पुलिस बरेली में घेर लेती है। जिला प्रशासन ने सभी को एक साथ बैठाकर सेनेटाइज करने के लिए दवाई का छिड़काव कर देती है। जिसके कारण सभी अपने बैग व झोला सहित भीग गए। खाने-पीने को भी कुछ नहीं बचा था। उसी तरह सभी आगे रास्ते पर निकल गए। कड़कती धूप में कुछ दूर चलने के बाद सभी के बदन के कपड़ों के साथ गले भी सूखने लगे। पाँव में छाले पड़ गए। बदन दर्द करने लगा, लेकिन घर पहुँचने की जद्दोजहद में पैर रुकने का नाम नहीं ले रहा था। दिन-रात भूखे-प्यासे चलते हुए सभी बनारस पहुँच चुके थे। अब आगे बढ़ने की हिम्मत किसी में नहीं थी। लेकिन रास्ते में कुछ लोगों ने बताया कि आगे एक राहत शिविर लगा है जहाँ खाने-पीने को कुछ मिल जा रहा है। डूबते को तिनके का सहारा मिल गया था। खाने की बात सुनकर ही सभी के पैर तेजी से शहर की तरफ बढ़ने लगे थे। इसी बीच विशुन को चक्कर आया और वह गिर गया। वह सबसे पीछे चल रहा था, उसे रात से ही हल्का-हल्का बुखार था। बरेली में भीग जाने के बाद से वह बहुत घबड़ाया हुआ था। अचानक उसके रोड पर गिर जाने पर सबके होश उड़ गए। आगे कुछ ही दूरी पर पुलिस नाका था, बदरी दौड़कर वहाँ बैठे पुलिस वाले को बुलाकर लाया। कांस्टेबल ने अपनी गाड़ी से सभी को विशुन सहित बगल के अस्पताल में पहुँचाया। अस्पताल पहुँचने पर डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। उसकी आँखें खुली हुई थीं, लगता है घर जाने की उसकी ज़िद्द अभी बाकी थी। आनन-फानन में अस्पताल ने उसके घर पर यह सूचना भेजवा दी। विशुनवा की माई दहाड़ मारकर रोने लगती है। गाँव के लोग से कहती है–‘हमरा पास कुछ भी नइखे हो भगवान अब अपन सुगवा के मरअल मुहों न देखब हो लोगवा।’

उसकी दोनों बेटी अपनी दाई से लिपटकर जोर-जोर से रोने लगती है। सारा वातावरण गमगीन हो जाता है। लॉकडाउन के सन्नाटे को चिरती हुई सबकी रोने की आवाजें मानो सरकार को लानत भेज रही हो, चुनौती दे रही हो। गाँव के लोग भी खबर भेजवा देते हैं कि उसका दाह-संस्कार वहीं करवा दिया जाए। बनारस में मरा है सब कोई त आखिर में वहीं जाना चाहता है न! सबके भगवान मालिक। बदरी दारोगा साहब से कहता है हुजूर एकर किरीया-कर्म यहीं करवा दीजिए, लाश ले जाने के लिए भी पइसा नहीं है। एकरा घर पर भी कौउनो साधन नहीं है। एक बूढ़ी माँ और दू गो बेटी है, पत्नी भी पिछले साल बच्चा लिए पेट में ही मर गई थी। दारोगा बाबू उसके दाह-संस्कार की व्यवस्था वहीं कर देते हैं।

बदरी मुखाग्नि देते हुए देखता है कि उसकी आँखें अपने घर की तरफ देख रही है। दारोगा जबसे विशुन की लाश को देखा है विचलित है। उसने कितने खूँखार अपराधियों को मरते देखा है लेकिन विशुन की खुली आँखें उसे डरा रही थी। न जाने उसे क्यों ऐसा लग रहा है कि उसकी आँखें अपने घर का रास्ता पूछ रही है।


Image: Boiling Tea Kettles
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: Shubham Sharma
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सुशांत कुमार द्वारा भी