अग्नि-स्नान

अग्नि-स्नान

पंडित माधवभक्त ने संध्या आरती करके शयन कराने की तैयारी की ही थी कि शीत से ठिठुरे हुए हडिड्यों के एक गट्ठर ने मंदिर के आँगन में प्रवेश किया!

“पु-जा-री-जी” दाँत किट-किटाते हुए गट्ठर ने बोलना शुरू किया। “ठंढ के मारे जान निकले जा रही है!”

आवाज सुनकर मानो मंदिर की नींव के पत्थर काँप उठे हो! दीवारों के हृदय का रक्त-प्रवाह रुक गया हो!

राधा-माधव को मखमल के गरम-गरम वस्त्रों से आच्छादित करते-करते मुड़कर पुजारी जी ने देखा! शीत मानो स्वयं साकार हो उठा हो!

“अरे कंबख्त! यह मंदिर है! कोई धर्मशाला नहीं! देखता नहीं! लाड़ली-लाल को शयन में देर हो रही है।”

“पु-जा-री-जी! जरा आग मिल जाती!” अनुनय के स्वर में गट्ठर ने कहा!

“यहाँ आग कहाँ पगले! जा कोई दूसरा स्थान खोज!” स्वर की कठोरता से फर्श के पत्थरों को लज्जित करते हुए पुजारी जी ने कहा! “भाग यहाँ से!”

“हे भगवान!” एक ठंढी साँस और दाँतों की किट-किट से दिशाओं को कँपाता हुआ गट्ठर मंदिर के सिंह-द्वार के बाहर लुढ़क चला!

“तुम्हारी सेवा में ये विघ्न! प्रभो क्षमा करना!” “आपको शयन में विलंब हुआ!”

प्रभु की श्यामली सलोनी प्रतिमा को पशमीने से आच्छादित करते हुए पुजारी ने कहा! “ओह! आपको शीत लग रहा है! आह! महारानी जी! आपको भी? क्षमा प्रभो! क्षमा! क्षमा देवी!”

शयन की रागिणी से मंदिर मुखरित हो उठा! दूध, जल, मेवा मिष्ठान! शयन-कक्ष में सब चीजों की व्यवस्था करते पुजारी जी ने शयन कक्ष का द्वार बंद कर दिया!

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“आजा मेरे लाल! तू शीत से इतना ठिठुर गया! राधा! राधा! देख! तेरा बच्चा दम तोड़ रहा है! उफ् पागल पुजारी!”

ऐसा लगा मानो कोई कह रहा था। पुजारी की आँख खुली! घबराई आँखों से चारों तरफ देखा! कुछ नहीं! सब तो ठीक था। शयन-कक्ष का द्वार बंद था। शमा मधुर प्रकाश बिखेर रही थी। “कुछ नहीं! भ्रम है मेरा!” पुजारी ने अपने को संतोष देते हुए करवट बदली!

“ये मखमल के गद्दे और ये पशमीने मेरे लियेए! और तू शीत में ठिठुरे मेरे लाल! राधा राधा-ढको उस बच्चे को अपने अंचल से! उफ्! यह तो ठंढा हो रहा है! आग जलाओ इसे गरमाने का!”

पुजारी को लगा मानो स्वयं माधव कह रहे हों! उसे दिखा मानो राधा उस गट्ठर को अंचल से ढाँक रही हो! और ये क्या? मंदिर के कोने में आग क्यों जल उठी?

पुजारी की नींद खुल गई! चारों तरफ देखा! कुछ नहीं! सभी तो ठीक था! “सच्चिदानंद प्रभो! सच्चिदानंद प्रभो!” फिर गीत गोविंद का पाठ करते हुए पुजारी जी गरम लिहाफ के नीचे सो गए!

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और सुबह मंगल पूजा के समय जब माली ने खबर दी कि मंदिर की सीढ़ियों पर एक मुर्दा पड़ा है, तब पुजारी का दिल क्षुब्ध हो उठा! कंबख्त को यहीं मरना था! अपवित्र कर दिया मंदिर! उसके दिल में खयाल आया!

लगभग आठ बजे जब म्युनिसिपैलिटी के नौकर हड्डी के गट्ठर को श्मशान में फूँक रहे थे और पुजारी जी जब मंदिर की सीढ़ियाँ गंगाजल से धो रहे थे, तब भगवान के शयन-कक्ष में आग लग गई। कहते हैं ऊद्दबत्ती टूट कर गिर पड़ी थी। कोई-कोई कहते हैं भगवान ने अग्नि-स्नान किया!


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