बैटरी

बैटरी

कड़कड़ाती ठंड। पारा शून्य से बीस डिग्री नीचे। नाक की नमी बर्फीला कंकड़ बनकर नाक में चुभने लगी है। बर्फ के सफेद, नन्हें कण एकजुट होकर हर जगह अपना आधिपत्य जमा रहे हैं। न डामर की सड़क की कालिमा बची है, न किसी घर की छत के कवेलू का कोई रंग; बर्फ के इन कणों ने मिलकर हर रंग को अपनी सफेदी में बदल दिया है। पेड़-पौधों की डालियाँ इनसे लदकर स्वागत में झुक गई हैं। इक्का-दुक्का पैदल चलने वाले ऐसे लगते जैसे बर्फ का कोई बंडल चला जा रहा हो। उनके गरम कपड़ों और भारी-भरकम जूतों पर सफेदी के कण मुस्कुराते नजर आते। बर्फीले झुरमुट में भी गिलहरियाँ वैसे ही दौड़ती नजर आतीं जैसे हरी घास पर उछल-कूद करती थीं। सुनसान सड़कों पर कभी-कभी जंगली जानवर निकल आते।

प्रकृति के इस रूप का सामना करने के लिए इनसान को बहुत तैयारी करनी पड़ती। कभी-कभी जब इनसानी मस्तिष्क से चूक हो जाए तो लोग सोफी की तरह जानबूझ कर बर्फीले मौसम को चुनौती देने की गलती कर बैठे–‘आ बर्फ, मुझे जमा कर देख’ की तर्ज में। सोफी का हठ कहें या फिर मजबूरी,वह इस जानलेवा मौसम में हाईवे पर है, गाड़ी में। कल उसे ज्वाइन करना है। जाना जरूरी है। सारी उड़ानें रद्द होने से ताबड़तोड़ यह फैसला ले लिया। हिम्मत तो करनी पड़ेगी। कैनेडा और अमेरिका दोनों देशों में रात की ड्राइव बहुत सहज और सुरक्षित होती है। रहा सवाल मौसम का तो स्नो टायर हैं उसकी गाड़ी में। बिगड़ता मौसम हेंडल कर सकती है। लंबी ड्राइव की क्षमता भी है। रोमांचक होगा ऐसे खतरे उठाना। युवा है अब हिम्मत नहीं करेगी तो क्या पचास की उम्र के बाद करेगी! वैसे भी वह पेइंग गेस्ट की तरह रह रही थी। सामान के नाम पर दो सूटकेस हैं, जिनमें उसके कपड़े हैं। इस बर्फबारी के कहर के चलते भी जीवन रुकता नहीं। टोरंटो से न्यूयॉर्क शहर तक का सफर कार से तय करने का उत्साह उसे खूब ऊर्जा दे रहा था। एकाध बार बीच में रुकेगी, बस। होटल में चेक इन करेगी और सीधे ऑफिस जाएगी। मौसम चाहे जितना खराब हो, सब-वे रेलें हो या आम जीवन, सब कुछ उसी गति से चलता है।

अमेरिकन बॉर्डर क्रॉस करने के बाद एकाएक तेज हवा और हिमपात का हमला तेज होने लगा। बर्फीला अंधड़ काँच को बार-बार थपेड़े मारता। साँय-साँय की आवाज अँधेरे को चीर कर गूँजती। रोड पर जमा होती बर्फ की फिसलन भारी-भरकम पहियों के लिए भी खतरे का सबब बनती। पता तो था कि मौसम और भी बिगड़ सकता है पर इस कदर तूफानी होगा, यह पता नहीं था। बिगड़ते मौसमी तेवर देखकर उसे लगने लगा कि यह निर्णय गलत था। इस तरह खतरा उठाने की कोई जरूरत नहीं थी। अब वह बीच में थी, न इधर, न उधर। वापस भी लौटती तो उतनी ही परेशानी होती। गाने सुनते हुए उसे ध्यान आया कि फोन को चार्ज के लिए लगा दिया जाए। फोन बंद नहीं होना चाहिए, वरना वह कहीं की न रहेगी।

गाड़ी की गति निरंतर धीमी होती जा रही थी। घनघोर अँधेरा और सामने उड़ती बर्फ से पैदा धुँधलापन दृश्यता को प्रभावित कर रहा था। गाड़ी की हेडलाइट की रौशनी भी कम लग रही थी। रोड पर जमा होती बर्फ को इस समय साफ करने कोई नहीं आएगा। गाड़ी में हीटिंग है इसलिए ठंड का कहर सोफी को परेशान नहीं कर सकता। सामने वाले शीशे पर लगी स्नो, आइस बन कर जमने लगी थी। विंडशील्ड स्वतः साफ करने के लिए गाड़ी के वाइपर तरल रसायन फेंक रहे थे, पर सामने रोड दिखाई नहीं दे रहा था। सोचा गाड़ी रोक कर आगे-पीछे के काँच, हेडलाइट व साइड ग्लास और गाड़ी के चारों ओर जमा बर्फ साफ कर ले। गाड़ी बंद करके ब्रश निकाला और सारी बर्फ हटायी। ताजी बर्फ फिर से जम रही थी पर उसे हटाने के लिए वाइपर पर्याप्त थे।

गाड़ी के हर हिस्से से बर्फ हटा कर फिर से गाड़ी में आ गई वह। गाड़ी चालू करने के पहले हाथों को गरम करना जरूरी था। उँगलियाँ अकड़ गई थीं। कुछ पल दास्ताने हटाकर हाथों को मलना शुरू किया। शरीर में भी ठंड घुस गई थी। कँपकँपी जारी थी। गाड़ी स्टार्ट कर राहत की साँस लेने ही वाली थी कि उसे महसूस हुआ गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई–‘ये क्या हुआ!’ दोबारा स्टार्ट करने की कोशिश की। फिर वही हल्की-सी क्लिक। इंजन से चालू होने की कोई आवाज नहीं। बार-बार स्टार्ट बटन दबाती रही पर गाड़ी मौन खड़ी रही, उस जिद्दी बच्चे की तरह जिसका मन हो तो चले, न हो तो कह दे कि मुझे उठा कर चलो। सोफी एकटक गाड़ी के उस बटन को घूर रही थी जो खामोश हो गया था।

कई संभावनाओं का एक साथ आक्रमण होने लगा। इस तरह गाड़ी स्टार्ट न होने का मतलब है, बैटरी बैठ गई! इस समय कार की बैटरी का डेड होना, एक तरह से सोफी का डेड होना है। फोन को देखा ताकि हेल्पलाइन को फोन कर सके। नंबर तलाश ही रही थी कि फोन की स्क्रीन चली गई। यह भी डेड हो गया! बैटरी चार्ज ही नहीं हुई। किसी को मदद के लिए बुला नहीं सकती। अब क्या करे! आशंकाओं के पुलिंदे सामने थे जो एक के बाद एक, नयी तह के साथ खुलते जा रहे थे। सबसे बड़ी खतरे की घंटी दिमाग में बज रही थी–‘अब कोई शक नहीं कि आज इस सर्द रात में यह कार उसकी कब्रगाह बन जाएगी!’

पीछे की सीट पर रखे कंबल में पूरी तरह खुद को ढँक कर सिमट गई। इसके अलावा कोई और मौत होती तो फिर भी आसान होती लेकिन इस सर्दी में शरीर का बर्फ की सिल्ली बनने की त्रासदी झेलना किसी नर्क से कम नहीं था। लगा जैसे उसने खुद को मौत के हवाले कर दिया। शरीर के हर अंग को कंबल में लपेटने के बावजूद ठंड का तीखापन बढ़ गया था। गाड़ी की हीटिंग को कुछ ही मिनटों में बाहर की सर्द, तीखी, चीरती हुई ठंड ने अपने काबू में कर लिया। ठिठुरन चालू हो गई थी। दाँत बजने लगे थे। धीरे-धीरे हाथ की उँगलियाँ फ्रिज होने लगी थीं। पैर में बूट थे इसलिए पैरों में अपेक्षाकृत सिहरन कम थी। इस बियाबान में दूर-दूर तक किसी और कार के इस समय आने की उम्मीद नहीं थी।

मौत का आगमन पल-पल करीब होते, शरीर को शिथिल करता जा रहा था। अब बचने की उम्मीद छोड़ते हुए, वह अपने प्रियजनों को याद कर रही थी–‘मेरी मौत की खबर न जाने कब मिलेगी उन्हें। कैसे लाश को यहाँ से ले जाएँगे। या फिर बर्फ के भीतर दबा शरीर सिकुड़ कर रह जाएगा।’ एक खामोश मौत की आहट कानों को सुनायी दे रही थी। कान सचमुच कुछ सुन रहे थे। आहट स्पष्ट थी। ऐसी तो मौत की आवाज नहीं होती! पहला अनुभव है, क्या पता ऐसी ही होती हो! कान सतर्क हुए। दिमाग को संदेश मिला–‘यह तो किसी गाड़ी की आवाज है।’ शिराओं में जीवन झाँकने लगा। पीछे से आती किसी गाड़ी की हेडलाइट दिखाई दी। मन किया कि रोककर मदद माँगे लेकिन फिर लगा कि न जाने कौन हो, अभी तो ठंड में मरना है, इसके बाद और न जाने किस तकलीफ से गुजर कर मरना होगा। मौत का भय तो था ही, एक और मुसीबत का भय सवार हो गया। कंबल में और सिमट गई ताकि गुजरने वाली कार यह सोचकर निकल जाए कि अंदर कोई नहीं है। वह साँस रोके उस कार के जाने की प्रतीक्षा कर रही थी। तभी गाड़ी पर जोर से ब्रेक लगे व चरर-चर करके रुक गई।

किसी ने कार के दरवाजे पर थप-थप किया। कोई न कोई खतरा है; यह कार वाला रुका क्यों, यह जो भी है, आधी रात का एक और बवंडर ही है! वह साँस रोके पड़ी रही। बगैर हिले-डुले।

‘हलो, मैं मदद कर सकता हूँ, दरवाजा खोलो।’

वह चुप रही।

‘मैंने तुम्हें देखा है। तुम यहाँ फ्रिज हो जाओगे। डरो मत।’

अब कोई विकल्प नहीं था। वह जैसे-तैसे दरवाजा खोल कर बोली–‘मेरी बैटरी डेड है, फोन भी डेड है और मैं डेड होने वाली हूँ। तुम जाओ।’

‘मैं तुम्हारी गाड़ी को जंपस्टार्ट दे सकता हूँ।’

सोफी के बगैर कुछ कहे वह आगंतुक उसकी गाड़ी का बोनट खोलने लगा। वह थरथरा रहा था। सोफी भी। सिर्फ बोलने के लिए मुँह खुला था, बाकी सब कुछ ढँका था। बोलने के साथ ही मुँह से ढेर सारी भाप निकल जाती। दोनों काँप रहे थे। सोफी की कँपकँपी उससे कई गुना अधिक थी। ठंड और डर का मिला-जुला हमला था। उसने जंपस्टार्ट दिया। कहा–‘अब गाड़ी बंद न करना, इंजन चालू रखना। मैं तुम्हारे पीछे चलता हूँ।’

‘तुम जाओ। मैं ठीक हूँ। फोन भी लगा देती हूँ चार्ज पर।’

‘मौसम बहुत खराब है। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। तुम्हारी गाड़ी फिर रुक सकती है अगर आधा घंटा लगातार न चली तो।’

वह सोफी के पीछे चल रहा था। दोनों की गाड़ियाँ धीमी गति से रेंग रही थीं। जरा भी तेज करते तो फिसलने का डर था। सौ की स्पीड वाले रोड पर वे बीस की स्पीड से गाड़ी चला रहे थे। ऐसा सफर जिसका अंत पता नहीं था। इसी तरह चलना था। सोफी का डर बढ़ता रहा–जरूर किसी भी क्षण आगे गाड़ी लाकर वह मुझे रोकेगा। और फिर…!

इतने मोटे हैट-मफलर के बीच पता नहीं चल रहा था कि यह आगंतुक कौन है, कैसा है, बस मुँह से आवाज आती थी। दस मिनट भी नहीं चले थे कि फिर से उसने साइड में आकर हार्न दिया और गाड़ी रोकने के लिए इशारा किया। अकेली लड़की का डर फिर से फुँफकारने लगा। हाथ-पैर फूलने लगे। ब्रेक बहुत मुश्किल से लगा। डर अब गुणित होकर मौत से ज्यादा विकराल नजर आ रहा था। गाड़ी नहीं रोकने की हिम्मत नहीं कर पाई।

वह गाड़ी से बाहर नहीं आया, साइड में लाकर खिड़की खोलने का इशारा किया। खिड़की खोल कर चिल्लाते हुए कहा–‘दस मिनट में एक सर्विस एरिया आ रहा है। मैं वहाँ से गर्म कॉफी लेता हूँ। तुम गाड़ी बंद मत करना, पार्किंग लॉट में मेरी प्रतीक्षा करना।’

सोफी ने गर्दन हिलायी। सचमुच गला शुष्क था। कॉफी मिलना जितना सुखद था उससे कहीं बड़ा संदेह था, उसके किसी षडयंत्र का। न जाने इसके मन में क्या है। शक था कि अभी यह कॉफी के लिए दरवाजा खुलवाएगा और घुस आएगा अंदर, कुछ मिला न दे कॉफी में! आसपास बर्फ के अलावा कुछ था ही नहीं। किसे बुलाएगी मदद के लिए। उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। वह बहुत जल्दी दो कॉफी लेकर आ गया। शायद मशीन थी कॉफी के लिए। इस सर्द रात में कॉफी हाउस में कोई कैसे मिलता! वह कॉफी का कप पकड़ा कर चला गया।

डर के मारे कॉफी, कॉफी नहीं कुछ और पेय लग रही थी। बेस्वाद। एकबारगी लगा कि इसमें कुछ मिला दिया हो उसे बेहोश करने के लिए। ठीक भी है, बेहोश हो जाएगी तो किसी यातना को महसूस नहीं करेगी। वह पीती रही। कॉफी की गर्माहट रत्ती भर मदद कर रही थी। चलने का इशारा मिला तो फिर से दोनों एक दूसरे के पीछे थे। वह अपनी गाड़ी सोफी से ज्यादा धीमी गति से ड्राइव कर रहा था। पीछे जो चलना था।

अन्यमनस्क-सी सोफी की ठंड से सिहरन अब थम गई थी। गाड़ी की हीटिंग ने ठंड का प्रकोप कुछ हद तक कम किया था। डर का प्रकोप तेज गति से बढ़ता जा रहा था। दो गाड़ियाँ चल रही थीं। खामोश सड़क पर, घुप्प अँधेरे के साये में। फिस्स-फिस्स आवाज करते वाइपर, काँच पर जमते बर्फ के कणों को लगातार हटा रहे थे। पुनः, दस मिनट चले होंगे कि एक बार फिर से उसने रुकने का इशारा किया।

इस बार थरथरा गई सोफी। प्राण गले में थे और घिग्घी बँध रही थी। इस आगंतुक ने पक्का कर लिया है कि शिकार अब शिकंजे में है। लड़की का बेहोश होना तय है। सोफी ने सोचा–‘मैं तो पूरे होशो हवास में हूँ। कॉफी पीने से एनर्जी मिली है, न कि कोई नशा।’ असमंजस में देखा, उसने अपनी गाड़ी को ठीक वैसे ही रोका साइड में, और चिल्ला कर कहा–‘तुम्हारी गाड़ी की पीछे की एक लाइट काम नहीं कर रही है। धीरे चलो।’

और वापस सोफी की गाड़ी के पीछे चलने लगा। इस बार दस मिनट की अवधि लंबी हो गई थी। सोफी ने मिरर से देखा, वह अभी भी पीछे वैसे ही चल रहा था। मिनट-दर-मिनट आगे बढ़ती गाड़ी जैसे बरसों का सफर तय कर रही थी। किसी नए ड्रायवर की तरह हाथ डगमग करते किसी तरह गाड़ी को नियंत्रित किए हुए थे। एक बार फिर से उसकी गाड़ी साइड में आ गई। उसी अंदाज में गाड़ी रोक कर कहा–‘अब तुम्हारी बैटरी ठीक रहेगी। अब मैं निकलता हूँ।’ और वह अपनी गाड़ी सोफी से आगे लेकर, हाथ हिलाकर चला गया।

हतप्रभ-सी सोफी ने हाथ हिलाकर उसे विदा दी, जो उसने शायद ही देखी हो। धन्यवाद भी कहा, जो वहीं जम गया था। जाते हुए उसकी गाड़ी किसी देवदूत के विमान की तरह लग रही थी, जो आकाश से उतरा था और एक लड़की के जीवन की बुझती आग में ईंधन डाल कर वापस चला गया था। शरीर की सिहरन थम गई थी।

घात की एक लंबी रात की इतिश्री में पौ फटने का संकेत मिलने लगा। हिमपात अब थका-थका-सा घर लौटता प्रतीत होता था। आगे के रास्तों पर दूर, नमक डालने वाले ट्रकों की बत्तियाँ चमकती दिखाई दे रही थीं। शहर के करीब होने के आसार नजर आ रहे थे। मौत के खौफ से मुक्ति मिलने की देर थी कि सोफी को भूख-प्यास सबका भान होने लगा। घंटों से कुछ खाया नहीं था। धीमी गति से चलती गाड़ी को एक हाथ से नियंत्रित करते हुए उसका दूसरा हाथ, साथ की सीट पर रखी खाने की चीजें टटोलने लगा ताकि उसके शरीर की बैटरी भी चलती रहे।

उसकी आँखों के सामने एक के बाद एक, बैटरी के कई रूप अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे–कार की बैटरी, फोन की बैटरी, उसकी खुद की भी; और खास तौर से उस अनजान फरिश्ते की, जो अपनी मदद की बैटरी से ताउम्र के लिए एक सुखद ऊर्जामयी अहसास छोड़ गया था। एक बार फिर उससे मिलने का मन होने लगा, पैरों ने तुरंत गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।


Image : Morning Sunlighton the Snow, Eragny sur Epte
Image Source : WikiArt
Artist : Camille Pissarro
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