दरार

दरार

गरिमा ने कॉलिज से छुट्टी ले ली थी। एक दिन की छुट्टी। वह बड़ी उलझन में थी और बार-बार मुस्कराकर रह जाती। कैसे बताएगी सबको कि उसकी शादी हो रही है। बात पक्की हो चुकी है। आज लड़के की… वह सोचते-सोचते मुस्कराई, लड़के की, यानी विकास की माँ, उसकी बहन, उसकी भाभी… सभी आए थे, और रोकने की रस्म के नाम पर उसके गले में एक कीमती जड़ाऊ हार पहना गए। उन सबको भी शगुन के नाम पर बहुत कुछ दिया गया। सारी रस्में हँसी-खुशी भरे वातावरण में पूरी हो गई। हाँ, उन आने वालों में विकास नहीं थे। वह भी आ जाते तो…लेकिन वे दोनों देख चुके थे एक-दूसरे को, एक पार्टी में। कुछ बातें भी हुई थीं। लेकिन तब तक उसे मालूम नहीं था कि उन्हीं के साथ उसके रिश्ते की बात चल रही है। यह तो उसे बाद में पता चला कि उनका बहुत बड़ा घराना है। राजेंद्र नगर में आठ सौ गज जमीन पर बड़ी सी कोठी है। घर में चार गाड़ियाँ है… ड्राइवरों वाली। अपना ट्रांसपोर्ट का और कागज का व्यापार है। देखने बोलने में भी विकास उसे अच्छा लगा। लेकिन… एक बात पर वह ठिठकी थी। पढ़ाई के मामले में वह फिसड्डी था। बस, बी.ए. तक की पढ़ाई। कितना अजीब लगेगा कि पति बी.ए. पास और पत्नी एम.ए….और वह भी फर्स्ट क्लास। और अब यूनिवर्सिटी में लेक्चरर।

उसने अपनी शंका धीरे से रखी थी, माँ के सामने। उन्होंने कहा था – ‘अरे बेटा, पढ़ाई की बात कौन पूछता है ? वह इतना बड़ा बिजनॅस सम्हाल रहा है… आए दिन इंग्लैंड-अमरीका भी जाता रहता है। बहुतेरों से अच्छा है… और क्या चाहिए हमें?’ गरिमा को यह भी पता चला कि उन्होंने विवाह के लिए पैसे की कोई शर्त नहीं रखी। बस वह यह चाहते हैं कि बारात का स्वागत धूम-धाम से हो जाए।

और क्यों न हो, गरिमा ने मुस्कराकर अपने को आइने में देखते हुए सोचा, उन्हें भी ऐसी सुंदर और पढ़ी-लिखी लड़की नहीं मिली होगी। उनके सारे परिवार में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी बहू के रूप में उसका सब ओर बड़ा सम्मान होगा। दहेज में लाखों नहीं दिए तो क्या, वह हर महीने इतना कमाती है, यह क्या दहेज से कम है। शादी धूम-धाम से हो गई। विकास के साथ बीती मिलन की घड़ियों ने उसे सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। हनीमून के लिए दोनों को स्विट्जरलैण्ड का टिकिट मिला था… एक सप्ताह एक दीन-दुनिया से दूर, बस एक-दूसरे की बाहों में।

लौटकर, बीस दिन की छुट्टी के बाद जब वह कॉलिज पहुँची तो बधाइयों का ताँता लगा रहा। साथ पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं ने ही नहीं, उन सैकड़ों लड़कियों ने भी पार्टी की फरमाइश की जिन्हें वह पढ़ाती थी। लड़कियों को तो उसने कॉलिज की कैंटीन में ही एक बड़ी पार्टी दी, लेकिन अध्यापिकाओं को उसने घर पर ही डिनर का निमंत्रण दिया। कहीं उसके मन में यह भी था कि साथ की लेक्चरर भी उसके नए घर की शान-शौकत देखें। निमंत्रण देते समय उसने सबसे मुस्कराते हुए कहा -‘और भई, कोई अकेला न आए। साथ में हस्बैंड को जरूर लाइएगा और जिनके हस्बैंड नहीं है वह अपने बॉय फ्रैण्ड को भी ला सकती है।’ फिर कुछ रुकते हुए जानबूझ कर जोर देते हुए वह बोली-‘और हाँ, कोई चिंता न करें, सब की पसंद का खाना बनेगा, वॅज, नॉन-वॅज, चाइनीज। हमारे यहाँ चार खानसामा है, जो हर तरह का खाना बनाने में होशियार हैं।’ वह जानती थी कि उसकी बातों में अहंकार आ गया था, लेकिन उसे लगा ठीक है। जो जलते हैं, जरा और जलें… मजा आएगा।
वह पार्टी शानदार रही, लेकिन गरिमा और विकास के बीच एक गहरी दरार छोड़ गई। आने वाले सभी लेक्चरर के पति या तो स्वयं लेक्चरर या प्रोफेसर थे, या किसी सरकारी विभाग में बड़े अफसर थे। जब कोई विकास से बातें करता तो गरिमा घबरा उठती कि कहीं विकास कुछ ऐसा न बोल दे कि लोग जान जाएँ कि वह बहुत पढ़ा-लिखा नहीं है। उसे अपनी भद होने का डर लगा रहता था।

अगर कोई विकास से पूछता आप किस यूनिवर्सिटी में थे या आपका विषय क्या था तो जवाब बीच में गरिमा ही देती थी -‘बिजनॅस स्टडीज… यही इनका सबजॅक्ट था।’ और फिर किसी न किसी बहाने, या किसी दूसरे से मिलाने के लिए वह विकास को खींचकर अलग ले जाती थी। विकास को साफ-साफ लगा कि गरिमा उसे अन्य सभी मेहमानों से बात नहीं करने देना चाहती, जब कि विकास की निगाह उन मेहमानों में ऐसे सरकारी अफसरों को ढूँढ़ रही थी जो उसके व्यापार में सहायक हो सकें-जैसे कोई इनकम टैक्स का, ट्रांसपोर्ट विभाग का या प्रकाशन विभाग का, जहाँ से थोक में कागज का ऑर्डर मिलता रहे…’

‘यार थका दिया तुमने..’ पार्टी खतम होने के बाद विकास ने कहा-‘इतना खर्चा भी कराया और…’

‘क्या बहुत खर्चा लग रहा है तुम्हें ?’ गरिमा तमकते हुए बोली-‘मैं भी कमाती हूँ.. और पैसे की कीमत समझती हूँ। मेरी एक महीने की सैलरी से भी कम लगा होगा। और तुम तो मेरी नाक-कटाने पर उतारू थे। सब में ढिंढोरा पिट जाता कि गरिमा का हस्बैंड अनपढ़ है…’

सुनकर विकास का चेहरा तमतमा उठा। उसने भी बहुत कुछ कहा-‘ये सेलरी का रौब कहीं और दिखाना। इतना तो चार ड्राइवरों में बाँट देते हैं हम…’

हर बात के साथ बात बढ़ी, और बढ़ती बात के साथ उनके बीच की दरार गहरी होती चली गई। कहने को तो तीन साल बीत गए साथ रहते हुए लेकिन उनके संबंध में आत्मीयता नहीं आई, तो नहीं आई। हर साल वे दोनों किसी न किसी विदेश यात्रा पर भी जाते थे। कभी-कभार साथ मिलकर हँसते-मुसकराते भी थे और पति-पत्नी होने का धर्म भी निभाते थे लेकिन, बातों में दोनों ओर से ही व्यंग्य वाण भी चलते रहते थे। विकास को लगता था, यह समझती क्या है अपने आप को ? दो साल ज्यादा पढ़ ली तो क्या गुलाम बनाकर रखेगी मुझे ? और गरिमा को लगता था कि वह किसी की मोहताज नहीं है। अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है।

एक बार खीझते हुए विकास ने कह ही दिया-‘तुम अपनी सर्विस छोड़ दो।’

सुनकर गरिमा को धक्का लगा। वह तमतमा उठी-‘मैं क्यों छोड़ दूँ अपनी सर्विस ? तुम क्यों नहीं छोड़ देते अपना बिजनॅस ?’

‘मैं अपना बिजनॅस छोड़ दूँ तो आप भूखों मर जाएगी मैडम। सारी अकड़ धरी रह जाएगी आपकी। मेरे बिजनॅस के दम पर ही आप गुलछर्रे उड़ा रही हैं।’

‘ठीक है…’ गरिमा ने गंभीर स्वर में कहा-‘यही बात है तो मैं तुम से कुछ नहीं लूँगी। जो कमाती हूँ, उसी में गुजारा करूँगी। और यह भी सुन लो। यह नौकरी बस पैसे के लिए नहीं की जाती। इससे इज्जत मिलती है। मुझे पैसे कमाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने होते। अफसरों के तलवे नहीं चाटने होते…’

‘बस बंद कर अपनी बकवास…’ विकास की आवाज से कमरा गूँज उठा-‘नहीं तो…’

‘नहीं तो क्या…’ गरिमा भी तमतमा उठी। ‘गला घोट दोगे मेरा… या आग में झोंक दोगे ?’ विकास की भाभी और माँ अचानक शोर सुनकर बीच में न आ गई होती तो न जाने क्या हो जाता। उनके आ जाने से उन दोनों की आवाज तो धीमी पड़ी लेकिन ज्वालामुखी दोनों ही के सीने में बैठ गया। दिन बितते गए और वह ज्वालामुखी चुपचाप, भीतर ही भीतर सुलगता रहा। अब फटा कि अब फटा…
कौन जाने, वे दोनों ही कभी-कभार सोचते भी होंगे कि क्या किया जाए जो दोनों के बीच की दूरी घटे। कोई ठंडी हवा का झोंका आए और बीच के ज्वालामुखी को शांत करे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि ज्वालामुखी न तो कभी ठंडी हवा के झोंको से शांत हुए हैं, और न होंगे।

एक बार गरिमा ने ही पहली की-‘सुनो, क्या हम पुरानी बातें भूलकर एक बार फिर से…’ उसकी बात विकास ने बीच में ही काटी-‘क्या तुम्हारी अकड़ तुम्हें कुछ भूलने देगी ?’

‘कैसी अकड़ ?’

‘यही कि तुम बड़ी काबिल हो और अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हो।’

‘इसमें झूठ क्या है ?’ गरिमा ने गंभीर स्वर में कहा। ‘तो खड़ी रहो अपने पैरों पर…मेरी जरूरत क्या है तुम्हें ?’ विकास ने बड़े रूखे स्वर में कहा।

‘जानते हो विकास…’ गरिमा ने भी व्यंग्य बाण छोड़ा-‘जानते हो, तुम्हारी प्रोब्लम क्या है। तुम्हारा इनफीरियरटी कॉम्प्लॅक्स तुम्हें खाए जा रहा है। मेरी मानो तो अपने बिजनॅस से दो साल की छुट्टी ले कर एम.ए. की डिग्री ले लो। तुम्हें मेरी बुराइयाँ दिखनी बंद हो जाएंगी।’

‘और तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारी प्रोब्लम क्या है ? तुम्हारी सारी अकड़ इसलिए है कि तुम समझती हो कि तुम अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हो। मेरी मानो तो अपनी नौकरी छोड़कर हमारे बिजनॅस में कोई काम ले लो। क्या रखा है तुम्हारी डिग्री में। हमारे देश में हजारों एम.ए. पास होंगे… शायद लाखों हों। लेकिन विकास मल्होत्रा जैसे सफल बिजनॅस मैन शायद एक हजार भी न मिलें।’

दरार और बढ़ी। विकास ने शराब पीना प्रारंभ कर दिया था और वह रात में देर से घर लौटने लगा था। कभी क्लब तो कभी कोई पार्टी। उसने एक्सपोर्ट का काम भी प्रारंभ कर दिया था और उस सिलसिले में भी हफ्तों विदेश के चक्कर लगाने लगा था। कुछ समय बाद गरिमा को पता चला कि जर्मनी में किसी औरत के साथ विकास का मेल-जोल बहुत बढ़ गया है। उसने एक बार विकास से पूछ ही लिया-‘ऐसा क्या है उसमें ?क्या वह बहुत सुंदर है ?’

विकास ने मुस्कराकर उत्तर दिया-‘क्या पता। वह सब तो मैंने देखा ही नहीं। हाँ, वह एम.ए. पास होने का दावा नहीं करती।’

गरिमा तिलमिलाकर रह गई। कुछ दिन अपनी माँ के पास भी रह कर आई। धीरे-धीरे उनको भी भनक लग गई थी कि बेटी-दमाद के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है। उन्होंने गरिमा को बहुत समझाने की कोशिश की। लेकिन गरिमा को सबसे एक ही शिकायत थी। ‘आप सबको मेरी ही गलती दिखाई देती है। मैं लड़की हूँ न। हमारे समाज में लड़कियों को ही दबना सिखाया जाता है। वही घुटती रहे… सब कुछ सहती रहे…’ लेकिन जाने कितनी रातें करवटें बदलते और सोचते हुए बिताकर भी उसे समस्या का कोई हल नहीं दिखाई दे रहा था। उसे कभी यह भी याद आता था कि विकास ने विवाह से पहले कभी यह नहीं छिपाया कि वह मात्र बी.ए. पास है। उसके घरवाले ही नहीं, स्वयं वह भी यह देखकर आकर्षित हुई थी कि विकास का बड़ा संपन्न घराना है।

उसे रह रहकर यह भी लगने लगा था कि विकास को छोड़कर अलग जीवन बिताना आसान नहीं होगा। और फिर जिस रहन-सहन की वह अभ्यस्त हो चुकी है उसे छोड़कर अपनी सैलरी में रह पाना भी तो मुश्किल होगा।

एक बार उसने अपने से ही प्रश्न किया था-वह अकेली क्यों नहीं रह सकती ? समाज से टक्कर क्यों नहीं ले सकती ? उत्तर स्वयं उसके मन ने ही दिया था-‘अगर सारे समाज को बदल सकती हो, तो अकेले पति को क्यों नहीं बदल सकती ?’ और उसे कभी-कभी माँ की बात भी याद आ जाती थी-‘बेटी तुमने जो भी कहा, ठीक कहा… बस ठीक ढंग से नहीं कहा।’


Original Image: Woman awaits the arrival of her love a crow caws from a bush
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: the door
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सीतेश आलोक द्वारा भी