एक अदद जिंदगी

एक अदद जिंदगी

अगस्त महीने की यह एक ऐसी सुबह थी जिसकी पूर्व कल्पना किसी ने नहीं की थी। बारिश रुक-रुक कर होती थी या नहीं होती थी। हफ्ते-दस दिनों बाद जोर की वर्षा होती और कॉलोनी का निचला हिस्सा पानी से भर जाता।

मैडम स्कूल जाने की तैयारी कर रही थी। मैं अपने कैंपस में पेड़-पौधों की छँटाई कर रहा था। परवीन हाँफती हुई अंदर आई। वह सीधे मैडम के पास पहुँची। मैडम उस वक्त किचेन में थी। मैडम ने उसे देखते ही पूछा, ‘क्या हुआ परवीन? ऐसे क्यों हाँफ रही हो?’

‘आज तो गजब हो गया भाभी।’

‘क्या हुआ?’

‘एक बड़ा हादसा होते-होते बच गया।’

‘शौहर ने फिर कुछ किया है?’

‘नहीं भाभी।’

‘फिर?’

‘भानुदा, भानुदा के चाचा…।’

‘क्या हुआ भानुदा के चाचा को?’

परवीन की साँस जैसे हलक में ही अटक रही थी। बड़ी मुश्किल से उसने बताना शुरू किया, ‘भानुदा के यहाँ नीचे कमरे में पोंछा लगा रही थी। अचानक भानुदा के चाचा अंदर घुस आए। उन्होंने भीतर से दरवाजा बंद कर दिया। मैं तो हक्की-बक्की रही गई। वे मेरे नजदीक आए। मैंने उन्हें वहीं रोका, ‘वहीं रुक जाइए नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी।’ फिर भी वे आगे बढ़े। पीछे से आकर उन्होंने मुझे पकड़ लिया। मैंने भी जोर का धक्का दिया और दरवाजा खोलकर बाहर निकली। बाहर निकल कर ‘भानुदा-भानुदा’। कहकर चिल्लाने लगी। चिल्लाहट की आवाज सुनकर भानुदा दौड़कर सामने आए। आते ही उन्होंने पूछा, ‘क्या हुआ परवीन?’ मैं तो बस जार-जार रोए जा रही थी। क्या बताऊँ, क्या न बताऊँ? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।’

तब तक भानुदा की माँ भी ऊपर से नीचे आ चुकी थी। किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था कि आखिर क्या हुआ? भानुदा ने अपनी माँ को संबोधित करते हुए कहा, ‘देखो न माँ, परवीन बस रोए जा रही है। कुछ बताती ही नहीं।’

‘परवीन बताओ बेटी। क्या हुआ? डरो नहीं। मैं हूँ न?’

‘चाचा जी, मेरे वाल्दैन की उम्र का आदमी…’ और वह पुनः जोर से रोने लगी।

भानुदा की माँ को समझते देर न लगी। उसने परवीन को समझाया, ‘छोड़ो न, बूढ़ा आदमी है। मैं उसे समझा दूँगी।’

‘मेरे शौहर को अगर यह बात मालूम हो गई…बताइए, क्या होगा?’

‘कोई कुछ नहीं कहेगा। चलो, पहले कमरे का पोंछा खत्म करो।’ भानुदा की माँ ने फिर से समझाया।

‘नहीं, मैं जा रही हूँ।’ इतना कहते हुए वह गेट के बाहर निकल गई।

वहाँ से निकलकर वह मैडम के पास पहुँची थी। मैडम ने सारा वाकया सुनने के बाद पूछा, ‘अब क्या करोगी?’

‘वही तो समझ में नहीं आ रहा है भाभी। करूँ तो क्या करूँ? दो-दो बेटियाँ हैं, गोदी वाला बेटा तो दूध के बिना ही मर जाएगा।’

‘शौहर से ही कहो, कुछ काम-धाम करे।’

‘वही कुछ करता तो मुझे किस बात का दुख था भाभी। पिछले महीने नारूदा से कहकर फ्लाई ओवर वाले काम में लगवाया था। वहाँ सिर्फ रात की पहरेदारी करनी थी। महीने भर बाद ही भाग आया। पैसा भी नहीं मिला है अभी तक। अब आप ही बताइए, हम क्या करें?’

‘भानुदा के यहाँ से कितना मिलता है?’

‘एक हजार रुपए।’

‘और बीनू के यहाँ से?’

‘बीनू भाभी का तो कुछ मत पूछिए।’

‘ऐसा क्यों?’

‘बीनू भाभी के यहाँ से पिछले महीने एक हजार रुपए एडवांस लिया था इस महीने पूरे आठ सौ रुपए काट ले रही है। ऊपर से कह रही है, दो सौ रुपए किसी से माँगकर लाकर दो। अगले महीने का आठ सौ बीमा की किस्ती में ही चला जाएगा।’

‘बीनू ने तेरा बीमा भी करवाया है?’

‘हाँ भाभी। बहुत दबाव डाल रही थी।’

मैडम ने मन ही मन सोचा, ‘हाय रे जमाना! गरीबों का कोई अपना नहीं। बाप ने दोआहा लड़के से निकाह करवा दिया। ऊपर से जाहिल, गंवार और परले दर्जे का काहिल। अपना घर तक नहीं। निकाह के बाद सौतेली माँ ने उसे घर से भी बेघर कर दिया। अब वह भी परवीन के साथ किराए के मकान में करम कूट रहा है।’

मैडम ने परवीन से पूछा, ‘अच्छा, यह बताओ, तेरे अब्बा हाल-चाल पूछने कभी नहीं आते?’

‘साल में एक-दो मर्तबा ईद-बकरीद में आते हैं। बच्चों के लिए कपड़ा वगैरह लेकर।’

‘सुनते हैं, वे पी.एम.सी.एच में कंपाउंडर हैं।’

‘मगर मेरे लिए तो…सुना है, किसी औरत के साथ उधर ही किराए के मकान में रहते हैं।’

‘और तुम्हारी छोटी बहन?’

‘जब से पोल वाले तार से करंट लगा है, तब से हमारे साथ ही रहती है।’

‘अब्बा उसके लिए भी कुछ नहीं करते?’

‘पी.एम.सी.एच में तो उन्होंने ही दिखलाया था। अब तो उसका पाँव वाला जख्म सड़ने भी लगा है। डॉक्टर का कहना है, पाँव कटवाना पड़ेगा। मैं तो सोच-सोच कर परेशान हूँ। करूँ तो क्या करूँ?’

एक नन्हीं सी जान और इतनी मुसीबत! कहाँ है खुदा और खुदा की रहमत!

‘लेकिन दूसरी वाली लड़की का इलाज तो सरकारी खर्चे पर हुआ था,’ मैडम ने पूछा।

‘उसका तो पूरा शरीर न जल गया था भाभी! इसलिए उसको सरकारी मदद मिल गई। मेरी बहन का तो सिर्फ पाँव जला था।’

‘अभी मैं स्कूल के लिए निकल रही हूँ। बीनू भाभी से भी मिल लेना। देखो, वह क्या कहती है?’

‘ठीक है भाभी।’

मैडम किचेन से निकल कर सीधे बाथरूम में जा घुसी। उसे स्कूल के लिए देर हो रही थी।

परवीन वहाँ से निकलकर सीधे बीनू के यहाँ पहुँची। वहाँ एक अलग ही नजारा था। भानुदा की भावज पहले से वहाँ बैठी थी।
परवीन को देखते ही बीनू बोली, ‘क्या हुआ था रे ऽ ऽ!’

‘छोटी भाभी ने तो आपको बाताया ही होगा।’

‘भानु का चाचा कुछ किया तो नहीं?’

‘नहीं।’

‘वह आदमी है ही ऐसा। जाने भानु की माँ ने इतने दिनों तक साथ कैसे रखे रही।’

जुगनू की पत्नी बोली, ‘मैं तो इस घटना से बहुत डर गई हूँ भाभी। मेरी भी दो-दो बेटियाँ जवान हो रही हैं।’

‘तुम क्यों डर रही हो? जुगनू है न? उसी की कमाई से तो पूरा घर चल रहा है। तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा।’

‘मगर जी तो डरता है न भाभी।’

‘मन से डर-वर निकाल दो।’

‘कैसे निकाल दूँ भाभी! भानुदा और आलो का किस्सा तो जानती ही हैं। पत्नी के रहते भानुदा आलो से शादी करने की जिद ठाने बैठे थे। इतना ज्यादा टेंशन हो गया था कि हम लोग तो घर छोड़कर ही जा रहे थे। अच्छा हुआ कि आलो कोलकाता से लौटी ही नहीं।’

‘कोलकाता से लाया तो था कालू पाल ने’

‘लाया तो अपने लिए था। जब से पत्नी मरी है, दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता। दोनों बेटों ने अपने साथ रखने से साफ मना कर दिया।

हार-पार कर आलो को लाया था। लेकिन न जाने भानु कैसे बीच में घुस गया।’

‘भानु के बीच में घुसने से ही तो कालू पाल का सारा खेल बिगड़ गया।’

‘सुना है, आलो को एक बेटी भी है जिसे कोलकाता में किसी के पास छोड़ कर आती है।’

‘पता नहीं, इस उम्र में आकर बुड्ढे सब को क्या हो जाता है।’

‘अब चलती हूँ भाभी! जुगनू को ऑफिस भी जाना है।’

दूसरे दिन भानु परवीन के घर पहुँचा। आने के लिए काफी मान-मनुहार किया। वह भी बेचारी क्या करती? हार-पार कर अपने काम पर लौटी। व्यवस्था हुई कि जिस कमरे में उसके चाचा होंगे दोनों बहुओं में से कोई एक परवीन के साथ रहेगी। और जिंदगी की रफ्तार उसी रौ में फिर से आगे बढ़ चली। जिल्लत और परेशानियों का सबब और एक अदद जिंदगी!

इधर, परवीन के न आने की वजह से मैडम भी झल्लाई हुई थी। तीसरे दिन वह काम पर लौटी। उसे देखते ही मैडम ने पूछा, ‘क्यों रेऽ क्या हुआ?’

परवीन ने पूरा प्रसंग मैडम को सुना दिया और अपनी मजबूरी बताई। ‘क्या करें भाभी! मुस्लिम लोगों को हिंदू घरों में काम भी तो नहीं मिलता।’

‘और भानु का चाचा?’

‘भानुदा की माँ ने खुद जिम्मेवारी ली है, आइंदा ऐसा कुछ नहीं होगा।’

‘लेकिन जब घोड़वा वाली ने तुम्हारे साथ मार-पीट की थी, तब तो भानु की माँ ने कुछ नहीं कहा था।’

‘घोड़वा वाली के बिना भी तो उनलोगों का काम नहीं चलता है भाभी! घर भर के लोगों के लिए खाना-नाश्ता वही बनाती है।’

‘चलो, ठीक है। क्या करोगी। तुम्हारी भी मजबूरी है।’

‘एक परेशानी हो तो न भाभी। आजकल जिस कमरे में रहती हूँ, जब भी बारिश होती है, कमरा पानी से भर जाता है। बच्चों को चौकी पर बिठाकर आती हूँ।’

‘कमरा बदल लो।’

‘वहाँ भी तो हिंदू-मुस्लिम का मामला है। हिंदू मकान वाले कमरा देना नहीं चाहते और मुस्लिम मकान वाले गरीबी का फायदा उठाना चाहते हैं।’

‘वह कैसे?’

पिछली बार एक मकान मालिक एडवांस दिया हुआ मेरा पंद्रह सौ रुपया खा गया।’

‘खा गया, क्या मतलब? तुम्हारे मोहल्ले में कोई देखने-बोलने वाला भी नहीं है?’

‘किस-किस से झगड़ा करें भाभी! एक तो पहले से ही लोग मेरे शौहर को पगला कहते हैं। झगड़ा-झंझट करने लगे तो मोहल्ले में रहना भी मुश्किल हो जाएगा। फुलवारी मैं जाना नहीं चाहती।’

‘क्यों?’

‘वहाँ की जिल्लत भरी जिंदगी से बड़ी मुश्किल से तो छूटकारा पाई हूँ।’

‘जिल्लत भरी! मतलब? सास वहाँ मारती-पीटती थी क्या?’

सास खुद नहीं मारती थी। अपने बेटे से पिटवाती थी। कभी-कभी तो इतना मारता था कि कपड़े फट जाते थे और खाट के नीचे छुपना पड़ता था। ऐसी स्थिति में सौतेली माँ से कहता, ‘चलो, तुमको सिनेमा दिखाते हैं।’

‘और तुम्हारे ससुर?’

‘उन्हें यह सब कहाँ पता होता था। वे तो दुकान पर बैठकर दिन-रात कपड़े सिलते रहते थे। अच्छे कारीगर हैं वे।’

‘उन्होंने अपने बेटे को कुछ नहीं सिखलाया?’

‘सिखलाया है न? मेरे शौहर बहुत अच्छा पायजामा सिलते हैं। अब्बा उन्हें फी पाजामा पाँच रुपए देते थे।’

‘तब उसको यहाँ घर में बिठाकर क्यों रखती हो? तुम्हारे पास मशीन है, बिठाओ उस पर।’

‘मेरी कहाँ कुछ सुनते हैं?’

‘तब ऐसे काहिल आदमी को साथ क्यों रखती हो?’

‘साथ न रखें तो जीना और मुश्किल हो जाएगा भाभी!’

‘ऐसा क्यों?’

‘कल अगर अकेली हो गई तो मोहल्ले वाले ही टाँग तोड़कर घर में बिठा देंगे।’

‘क्यों?’

‘कहेंगे, यह लड़की हिंदू घरों में काम करती है, इसे मोहल्ले से बाहर करो। शौहर के साथ रहने से कम से कम कोई बोलता तो नहीं।’

मैडम ने मन ही मन सोचा, ‘स्कूल में हर रोज नारीशक्ति की बात होती है। लेकिन औरत की ऐसी मजबूरी पर तो कभी किसी का ध्यान ही नहीं जाता। मुल्लाओं को अगर पता चल गया कि परवीन हिंदू घरों में बर्तन-पोंछा करती है तो वह उसके जीने पर ही प्रतिबंध लगा दे।’

‘अच्छा, परवीन! यह बताओ, तुम्हारे शौहर को पहली बीबी से तो एक बेटा भी है।’

‘हाँ!’

‘वह किसके साथ रहता है?’

‘अपनी अम्मी के साथ।’

‘उसकी अम्मी लौटकर कभी नहीं आई?’

‘क्यों लौटेगी भला? शौहर की काहिली से तंग आकर तो घर से भागी थी।’

‘और अब उसी काहिल के साथ तुम जिंदगी गुजार रही हो।’

‘सब किस्मत का खेल है भाभी। अम्मा रहतीं तो यह सब होने नहीं देतीं।’

‘तुम्हारी अम्मा गई कहाँ?’

‘अब्बा की एक बड़ी बहन थीं जो साथ रही थीं। वह और अब्बा मिलकर अम्मा को खूब सताते थे। मारते-पीटते भी थे। एक दिन तंग आकर कोलकाता भाग गईं। मेरे छोटे वाले भाई को भी साथ लेती गईं।’

‘वहाँ क्या करती है?’

‘वहाँ एक ड्राइवर से निकाह कर लिया और मजे में है।’

‘और तुम्हारा छोटा भाई?’

‘वह भी उन्हीं लोगों के साथ हैं। उन लोगों को कोई दूसरा लड़का नहीं है।’

‘अम्मी तुम लोगों को कभी याद नहीं करती?’

‘करती हैं। कभी-कभी मिलने भी आती हैं। दामाद के लिए भी कपड़े लेकर आती हैं और हमलोगों के लिए भी। पिछली बार बड़ी बेटी के लिए पायल लेकर आई थीं।’

‘तब तो तुम्हारे अब्बा से भी भेंट होती होगी?’

‘हाँ, कई बार हुई है। बातचीत भी होती है। लेकिन एक-दूसरे के बारे में कभी कुछ नहीं बोलते। तुम अलग खुश, हम अलग खुश!’

अगले रोज़ जोरों की वर्षा हुई। इधर कॉलोनी और उधर बटाऊ कुआं दोनों पानी से भर गए। जिनके घर सड़क की सतह से नीचे थे, उनके घरों में पानी भर गया। नाले की गंदगी पानी के ऊपर आकर तैरने लगी।

परवीन उस दिन किसी के घर नहीं पहुँची। बीनू का पारा तो सातवें आसमान पर था। परवीन को फोन कर-कर थक गई। उधर से कोई जवाब नहीं आया।

अगले दिन पानी कुछ नीचे उतरा। परवीन छाता लगाकर आई। बीनू उसे देखते ही बरस पड़ी।

‘छाता तुमको इसी दिन के लिए दिया था कि जब पानी बरसे नागा करो’

‘सलवार सूट में कैसे आती भाभी! पानी घुटने भर से भी ऊपर था।’

‘क्यों? दूसरा सलवार सूट तेरे पास नहीं है? एक सेट अपने पास रख लेती।’

परवीन ने मुँह लगाना ठीक नहीं समझा। बीनू भाभी के गुस्से को वह अच्छी तरह जानती थी। उसने झाड़ू उठाया और कमरे में घुस गई।
‘छोड़ो झाड़ू। पहले बर्तन करो। सारा बर्तन जूठा पड़ा है।’

वह चुपचाप पहले बर्तन की ओर बढ़ गई। बीनू अपने-आप में बड़बड़ाती रही। परवीन चुप थी मगर अंदर ही अंदर बेचैन! उसका कमरा घुटने भर पानी से भरा था। बच्चों को वह चौकी पर बिठाकर आई थी। दिल में एक डर भी बैठा था, पर किससे कहे?

दोपहर बाद जब वह काम से घर लौटी। देखा, बड़ी वाली बेटी बउआ को गोद में लिए चौकी पर बैठी है।

‘क्या हुआ रे बउआ को?’ उसने पूछा।

‘देखो न मम्मी, कुछ बोल नहीं रहा है।’

‘तू कहीं बाहर गई थी?’

‘पैखाने लगा था तो बाहर चली गई थी। लौटकर आई तो देखा बउआ पानी में गिरा हुआ है।’

परवीन ने छाती पीट लिया! ‘आय अल्ला! अब मैं क्या करूँगी?’

तभी बगल वाली औरत निकल कर बाहर आई–‘क्या हुआ परवीन?’

‘देखो न जी, बउआ पानी में गिर गया है। न कुछ बोल रहा है, न हिल-डोल रहा है।’

‘गंदा पानी पी लिया होगा। जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाओ।’

परवीन बच्चे को गोद में उठाकर बाहर निकली। टेंपो में बैठकर फटाफट डॉक्टर के पास पहुँची। डॉक्टर ने पूछा, ‘क्या हुआ है बच्चे को?’

‘पानी में गिर गया था।’

डॉक्टर ने तत्काल बच्चे की पीठ के बल लिटा पीठ को हल्के-हल्के दबाकर सारा पानी बाहर निकाला। फिर सूई लगाया और कुछेक दवाइयाँ लिखकर दीं।

बच्चे ने आँख खोली। लगा जैसे, बच्चे की माँ के दिल का कंवल खिल गया हो। परवीन के शरीर में जैसे जान लौटी। उम्मीद का चिराग डूबने से बच गया था।

इतना सब होने के बावजूद वह शाम को मैडम के पास पहुँची। वह जानती थी कि शाम पाँच बजे तक मैडम घर लौट आती हैं।

मैडम कुछ पूछतीं, इससे पहले ही वह बोल पड़ी, ‘आज एक और हादसा होते-होते बच गया भाभी!’

‘कैसा हादसा?’

‘आज बउआ पानी में गिर गया था। आप तो जानती ही हैं, आजकल कमरे में घुटने भर पानी लगा हुआ है। बच्चों को चौकी पर बिठाकर आई थी। थोड़ी देर के लिए बेटी उसको छोड़कर बाहर निकली थी। इसी बीच वह पानी में गिर गया और बेहोश हो गया।’

‘फिर?’

‘डॉक्टर पंसारी को दिखाकर आई हूँ। अब ठीक है।’

‘ध्यान रखा करो।’

‘किस-किस का ध्यान रखें भाभी! पिछले साल बड़ा भाई सउदी अरब जाने वाला था। बीनू भाभी ने मदद के लिए कहा था। जब दस हजार रुपए माँगने गए तो मुकर गईं।’

‘तुमको क्या लगता है बीनू भरोसेमंद औरत है?’

‘मैं तो समझती थी, लोग अपना बनाने से अपना बन जाते हैं। भीतर के दाव-पेंच के बारे में हम क्या जानें।’

‘तुमको तो उस समय उसका लाड़-प्यार बहुत अच्छा लगता था। माँ कहती थी न तुम उसको।’

‘पिछली बार जब बीमार पड़ी थीं तो अब्बा ने ही पी.एम.सी.एच. में सारा चेकअप करवा दिया था। बीनू भाभी का एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ था। बदले में उसने दिया क्या था अपना एक फोटो और कहा था, लोऽ, अपने अब्बा को दे देना।’

‘उस समय तेरे को कुछ समझ में नहीं आया। और तेरे अब्बा, वो तो बच्चे नहीं थे।’

‘अब, वही फोटो मुझसे माँग रही हैं। बोलिए, मैं कहाँ से लाकर दूँ?’

‘फोटो नहीं है तो अब्बा को ही उठाकर ला दो।’

परवीन रोनी लगी!

‘अब रोने-धोने से काम नहीं चलने वाला है। पेंच फँसाती हो तो पेंच छुड़ाना भी सीखो। नहीं तो तुम्हारी जिंदगी ही एक हादसा बनकर रह जाएगी। फिर जिंदगी भर बैठकर रोती रहना।’


Original Image: Algerian Woman
Image Source: WikiArt
Artist: Camille Corot
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork

राणा प्रताप द्वारा भी