तौबा

तौबा

‘अरे मियाँ, तुम भले ही कुछ भी कह लो, तुम असम के नहीं हो सकते। भला असम में रहकर कोई बंगला कैसे बोल सकता है? वहाँ की भाषा तो असमिया है, और रहेगी। तुम्हारी मातृभाषा बंगला है और तुम बंगाल के नहीं हो, तो बंगलादेश से ही आए होंगे’, इमरान हँसते हुए बोला–‘अब चाहे तुम कुरान की कसम ले लो। तुम्हारी बात कौन मानेगा।’ उसकी बात पर सभी दोस्त ठठाकर हँस पड़े, तो वह जल-भूनकर राख हो गया। अब वह इन्हें कैसे समझाए कि असम में असमी के साथ बांगला को भी राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, और कि दक्षिण असम का वह इलाका जो बांग्लादेश से लगता है, बांग्लाभाषी क्षेत्र है।
‘असमिया मियाँ, क्या बात है!’ आयशा चुटकी लेते हुए बोली–‘इमरान तुमने खूब तुक मिलाया है।’ मोहनलाल गुप्ता, एस.पी. श्रीवास्तव, बलराम राय, बलजीत सिंह, श्यामा आदि तो हिंदू थे। सो उसे उनकी हँसी समझ में आती थी। मगर इमरान, मुहम्मद अली, रजिया और आयशा की हँसी ने तो जैसे उसे एकबारगी ही नंगा कर दिया था। ‘तुम असम के बारे में क्या जानते हो यार’ वह चिल्लाया–‘असम का बड़ा हिस्सा ब्रह्मपुत्र घाटी है, तो उसका एक छोटा हिस्सा जो बांग्लादेश से लगता है, वह बराक घाटी के नाम से जाना जाता है और यहाँ की भाषा बांग्ला ही है। मैं बांगला में कविता करने में ज्यादा सहज महसूस करता हूँ, तो इसमें किसी को क्या आपत्ति है, आखिर सभी अपनी मातृभाषा में ही लेखन करने में सहजता महसूस करते हैं। जैसे कि मोहनलाल और श्रीवास्तव हिंदी में लिखते हैं। बलजीत सिंह और श्यामा पंजाबी में लिखती हैं। इमरान और आयशा बंगला में तथा रजिया उर्दू में लिखती है। जबकि हम सभी अँग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी हैं।’
‘तो तुम अँग्रेजी में ही लिखा करो न। अँग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है। तुम ज्यादा ख्याति प्राप्त करोगे।’
‘मैं ख्याति प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए लिखता हूँ। यह बात तुम सबको क्यों नहीं समझ आती।’ और वह उठकर जाने लगा–‘जब तुमलोगों को मेरा साथ पसंद नहीं तो मेरा यहाँ रहना बेकार है।’
‘अरे यार तुम बुरा मान गए!’ इमरान हँसते हुए बोला–‘हम तो मजाक कर रहे थे। अरे रजिया, उसे रोको। तुम उसके दिल के ज्यादा करीब हो। वह तुम्हारी ही बात समझेगा।’
‘तुमलोग किसी की भावनाएँ नहीं समझते तो ऐसी ओछी बात करते क्यों हो?’–रजिया बोली। फिर उठकर वह उसके पास आ गई–‘अरे मोहसिन, तुम्हें अच्छा लगेगा क्या कि मेरी बर्थ-डे पार्टी खराब हो जाए। जाने दो इस बात को। हम यहाँ पार्टी सेलिब्रेट करने आए हैं। लो यह मिठाई खाओ और गुस्सा थूक दो। कोई समझे न समझे, मैं तो तुम्हें समझती ही हूँ।’
‘अरे भाई, इमरान तो बस मजाक कर रहा था।’ बलजीत सिंह बोला–‘इस पर इतना गुस्सा होना ठीक नहीं।’
‘मजाक की भी तो कोई हद होती है।’ श्यामा गुस्से में बोली–‘वह खैरियत है कि रजिया मुसलमान है। नहीं तो तुम मोहसिन पर लव-जिहादी का ठप्पा लगा देते।’
‘अब तुम भी अलग साइड लेने लगी।’
‘तुमलोग बात ही कुछ ऐसा करते हो।’
‘यह मजाक है क्या कि तुम किसी के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाओ।’ वह गुस्से में बोला–‘तुम कलकत्ता के बंगाली होकर भी ऐसा भद्दा और घटिया मजाक करते हो। और लोग तो बंगाल का इतिहास-भूगोल नहीं जानते, तो उन्हें बताना होता है। मगर तुम तो उसी रौ में बह गए। तुम्हें तो पता होना चाहिए कि असम के बराक क्षेत्र में साठ के दशक में कुछ बंगाली युवाओं ने इसी बंगला भाषा के लिए अपनी शहादत तक दी थी। और उसके प्रभावस्वरूप असम में बंगला भाषा को भी राजभाषा के रूप में मान्यता मिली थी।’
‘और जहाँ तक मेरा सवाल है, हमारे पूर्वजों की कछाड़ी राजाओं के समय से लंबी वंशावली है। हम मूलतः असम के बराक घाटी के बंगला भाषी क्षेत्र से हैं। हमारे एक पूर्वज कछाड़ी राजाओं के दरबारी मंत्री थे। कछाड़ी राजाओं के पतन के बाद अँग्रेजों के समय में भी उनका वही रुतबा बना रहा, क्योंकि भूमि संबंधी जानकारी में वे अव्वल थे। चाय बागानों की लंबी शृंखला तैयार करने में उनका बड़ा योगदान रहा था। इसलिए उनका वही ओहदा बना रहा। वैसे हमारे खानदान में अनेक पीढ़ियों से लोग चाय बागानों में ऊँचे पदों पर विराजमान रहे हैं और अभी भी हैं। चूँकि मेरी अध्ययन-अध्यापन में रुचि थी, सो मैंने अलग लाईन ले लिया था। अँग्रेजी साहित्य का विद्यार्थी होने के बावजूद मेरी बांग्ला भाषा में रुचि रही है और उसी भाषा में मैं अपना लेखन करता हूँ। मगर यहाँ तो मैं देख रहा हूँ कि लोग इसे अलग ही नजरिये से देखते हैं और हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया जाता है। एक तरफ तो मेरे आलेख और कविताओं पर सभी वाह-वाह करते हैं, दूसरी तरफ अपने ही बांग्लाभाषी लोग–मियाँ, असमिया मियाँ कहकर व्यंग्य वाण छोड़ते हैं, मियाँ का अर्थ होता है भद्र और सज्जन पुरुष। मगर यहाँ इसका अर्थ ही बदल कर जैसे उसे तुच्छ या निम्न मान लिया गया है। आपलोग शायद इसी अर्थ में लेते हों कि मियाँ माने बाहरी, बांग्लादेशी, घुसपैठिया वगैरा, जो बिल्कुल ही बेहूदी बात है।’
माहौल में एकदम से सन्नाटा पसर गया था। मोहसिन की बात सचमुच सही थी। लोग उसका मजाक उड़ाते तो थे ही। आज वह उखड़ कर बोल रहा था तो जैसे सबको साँप सूँघ गया था।
‘किसी गलत बात के लिए किसी का मखौल उड़ाना तो बिल्कुल गलत बात है ही।’ रजिया धीमें स्वर में बोल रही थी–‘मेरे एक मामा का व्यवसाय बंगाल और पूर्वोत्तर तक में फैला हुआ है। वह बताते थे कि वहाँ हिंदी भाषियों खासकर बिहारियों को कुली, मोटिया, सत्तूखोर और जाने कैसे-कैसे निम्नस्तरीय बात बोलकर मजाक उड़ाते हैं। यहीं दिल्ली में ही पूर्वोत्तर के लोगों को चिंकी, मंकी, चाउमिन-मैगी आदि बोलते हुए हिकारत से देखते और बुलाते हैं। हम खुद श्रेष्ठ होना नहीं चाहते। बल्कि हम सभी की मानसिकता ही यही है कि हम सिर्फ दूसरों का मजाक उड़ाकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहते हैं। सारे तनाव और फसाद की जड़ में यही है कि हम अपने से अलग व्यक्ति हो या समुदाय, उसे नीचा दिखाने का प्रयत्न करते हैं।’
‘तुम बिलकुल सही कह रही हो।’ इमरान गिड़गिड़ाया–‘आगे से ऐसा नहीं होगा। हम कान पकड़ कर तौबा करते हैं। मगर तुम मोहसिन को मना लो।’
‘इसमें मनाने वाली बात क्या है!’ मोहसिन वापस बैठते हुए बोला–‘तुमने अपनी गलती मान ली, यही बहुत है।’


Image name: Three People Sharing a Meal
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
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