मुझे न्याय चाहिए

मुझे न्याय चाहिए

वह सिसक कर रो रही थी। आँखें लाल हो गई थीं। लगातार रोने से नेत्रों में सूजन आ गई थी। आँखें छोटी हो गई थीं। रोते-रोते वह अपने भाग्य को कोसती थी। भगवान को दो-चार गालियाँ सुना देती थी। ‘मेरे साथ यह कुकर्म क्यों किया गया, अब मैं समाज में क्या मुँह लेकर जीवित रहूँ। सुना है कि द्रौपदी की लाज बचाने के लिए तुम नंगे पाँव दौड़ पड़े थे। मेरी लाज लुटती रही और तुम देखते रहे, वह भी तुम्हारे ही घर में। ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि मैं राज घराने या बड़े घर की नहीं हूँ। मैं गरीब, बेसहारा और अकिंचन हूँ। इसीलिए तुमने मेरी सहायता नहीं की, मेरी चीख नहीं सुनी। अरे, यदि मैं बड़े घर की होती तब किसकी हिम्मत थी जो मेरी ओर नजर भी उठाकर देखता। मैं यह मानने को मजबूर हूँ कि गरिबों की दुनिया में ईश्वर नाम की कोई शक्ति नहीं है।’
‘ए भुखली, चलो तुमको मुखिया जी ने बुलाया है। सुना है कि तुमने मंदिर से भगवान के कपड़े चुराये हैं।’ मुखिया के लठैतनुमा आदमी गिरधारी ने निकट आकर उसको डाँटते हुए कहा। उसने देखा कि भुखली कुछ बड़बड़ा रही है। उसकी बात को अनसुनी कर दी।
‘ए भुखली किसको गाली दे रही है। सुना नहीं। मैंने तुमको दो बार कहा कि मुखिया जी तुम्हें बुला रहे हैं।’
भुखली ने अश्रु बहते अपनी लाल आँखों को ऊपर किया। गिरधारी को लगा कि भुखली की आँखों में बुझते हुए अँगारे प्रज्वलित हैं। इन अंगारों से यदि राख हट गई तब वे किसी को भस्म कर देंगे। परंतु वह जानता है कि अँगारे को शांत करना मुखिया जी के बायें हाथ का खेल है। उसने साहस बटोरकर डपटते हुए कहा–‘ऊपर क्या देखती है। चल मुखिया जी के पास।’
‘गिरधरिया, गुलाम होगा तू मुखिया का, मैं नहीं। अब हमें क्या धमकी देता है। जो होना था वह तो हो गया। अपने कुकर्म को छिपाने के लिए मेरे ऊपर चोरी का इलजाम लगा रहे हैं। मैं अब मुखिया के यहाँ नहीं, सीधे थाने जा रही हूँ। जाके बता दे अपने मुखिया को। बड़ा मुखिया बना है। गरीबों के वोट से मुखिया बना है और गरीबों का खून चूस रहा है, उनकी इज्जत-आबरू लूट रहा है अपने गुंडे, लठैतों के बल पर। हम गरीब हैं, निर्धन हैं धन दौलत से, लेकिन इज्जत के मामले में हम तुम्हारे मुखिया से भी धनी हैं।’
‘तू क्या बक-बक किए जा रही है। सीधे नहीं चलोगी तब टेढ़े ले चलना हमें आता है।’ गिरधारी ने भुखली को डाँटते हुए कहा।
‘गिरधारी, तू भी हमी लोगों में से एक है। तुमको पता नहीं है कि मुखिया के लड़के ने अपने गुंडों के बल पर मेरे साथ क्या किया। यदि यही तुम्हारी बेटी, बहन, औरत के साथ हुआ होता, तब भी ऐसे ही लाठी चमकाता। लानत है तुमलोगों पर थू!’
गिरधारी गाली उगलता हुआ मुखिया को खबर देने लौट गया। दरवाजे पर भुखली के इंतज़ार में भूखे मुखिया ने गिरधारी को अकेले देखकर आग बबूला हो गया। दूर से ही गाली देकर बोला, ‘क्यों रे गिरधारी अकेले क्यों आ रहा है? कहाँ गई वह चुड़ैल भुखली?’
‘हुज़ूर वह नहीं आएगी। उसने दस गाली मुझे दी और आपको भी। कहती है कि वह थाने जा रही है।’ गिरधारी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
‘अच्छा तो अब चींटी के भी पर निकलने लगे हैं। इनको पता नहीं है कि पर निकलते हैं, मरने के लिए। इन चमारों की सामत आ गई है, अपनी बहू-बेटियों को सँभाल कर नहीं रखते हैं। हमारे बच्चों को बरबाद करती है और इन्हें समझाने के लिए बुलाओ तो थाने पर जाने की धमकी देती हैं। देख लूँगा, देख लूँगा सब को।’ मुखिया की आँखें गुस्से से लाल हो गई। होंठ फड़फड़ाते हुए बोला, ‘गिरधारी, पूरे गाँव में खबर दो कि चमरटोली का कोई भी आदमी मेरे खेत की मेड़ पर नहीं चलेगा, मेरे बाग में गाय बकरी नहीं ले जाएगा। पत्ता, लकड़ी नहीं बिनेगा। गाँव के कुएँ से पानी नहीं भरेगा। सालों का हगना-मूतना बंद हो जाएगा तब पता चलेगा कि थाने जाने का क्या फल मिलता है।’
स्वयं से बोला–‘देखता हूँ थाना कचहरी क्या कर लेता है। साले जब भूखों मरने लगेंगे, तब स्वयं ही आकर नाक रगड़ेंगे।’
भुखली देवी अपने पति के साथ थाने रपट लिखाने के लिए पहुँची। मुखिया का आदमी वहाँ पर पहले से ही मौजूद था। थानाध्यक्ष ने डपटकर पूछा–‘कहाँ से आ रहा है। क्या हुआ, यह औरत कौन है।’
भुखली के पति सोबरन ने हाथ जोड़कर विनती की, ‘हुज़ूर दरोगा जी, यह मेरी घरवाली है। हम नत्थूपुर से आए हैं।’
‘क्या हो गया जो दिमाग खराब करने आ गए?’
‘हुज़ूर, मुखिया के बेटे ने मेरी घरवाली की इज्जत लूटी। वह जब मना की तब उसे बुरी तरह से पीटा भी। देखिए इसके शरीर पर डंडों के निशान है। हुज़ूर न्याय करें।’
‘इज्जत? तुमलोगों की क्या इज्जत होती है। इतने बड़े आदमी पर तुम लांछन लगा रहे हो और कहते हो कि तुम्हारी इज्जत लूट ली गई। हरामखोर! मुंसी जी भगाओ इन बदमाशों को, नहीं तो रात की नाकाबंदी वाली घटना में इसे बुक कर दो।’ थानेदार ने गरजते हुए डपटा।
सोबरन और उसकी घरवाली को वहाँ से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। वे लोग उलटे पाँव थाने से बाहर आए।
थानेदार ने मुखिया के आदमी को बुलाया। आते ही उसने कहा–‘हुज़ूर आपके नाम की तो पूरे इलाके में तूती बोलती है। चोर-बदमाश इलाका छोड़कर भाग गए हैं।’ थानेदार मुस्कुराया। उसे पता था कि रात में भी एक चोरी की घटना घटी है।
‘हुज़ूर की डपट से बड़े-बड़े पेशाब कर देते हैं। इस साले चमार की क्या औकात। बड़ा आया था मुकदमा लिखाने।’ मुखिया के आदमी ने एक तीर और छोड़ा। थानेदार ने मूँछों को ऊपर की ओर करते हुए कहा–‘अच्छा तो जाकर मुखिया जी से बोलो कि पाँच हज़ार का काम तो मैंने कर दिया। भविष्य में भी यदि चैन से रहना है तब दस हज़ार भेज दें। यह मामला हरिजन उत्पीड़न के अंतर्गत आता है। अगर कोई सिरफिरा बड़ा अधिकारी आ गया तब…लेने के देने पड़ जाएँगे। क्या समझे?’
‘समझ गए हुज़ूर। रात-दिन आप ही लोगों की सेवा में रहता हूँ, सब समझ गया।’
उसने उल्टे पाँव गाँव आकर मुखिया जी से पूरी बात कह दी।
न्याय के लिए आदमी हर दरवाजा खटखटाता है। थाने से निकलकर भुखली और सोबरन गरीब पार्टी के नेता के पास गए। अपनी पूरी कहानी सुनाई। थानेदार ने केस लेने के बजाय झूठे मुकदमें में फँसाने की धमकी दी, इसे भी बताया। नेता ने कहा–‘चलो, सीधे एस.पी. साहब के यहाँ चलकर आवेदन देते हैं। वहाँ पर अवश्य ही सुनवाई होगी।’ एस.पी. साहब ने बड़े धैर्य के साथ आवेदन को पढ़ा और जाँच के लिए डी.एस.पी. को भेज दिया।
डी.एस.पी. ने थाने पर पूछताछ की। थानेदार ने बताया कि ‘ऐसा कोई केस थाने में नहीं आया है। यदि ऐसा केस आता तब मैंने अवश्य ही लिखा होता। आप जाँच लें मैं तो गरीबों की मदद करने के लिए बदनाम हूँ। अच्छा होगा गाँव वालों के बीच चलकर स्वयं जाँच कर लें।’
डी.एस.पी. साहब दरोगा के साथ गाँव गए। मुखिया के दरवाजे पर गाँव वालों को बुलाया गया। किसी ने घटना की पुष्टि नहीं की। भुखली और मुखिया के घर पर नहीं गए। डी.एस.पी. ने उसके मकान पर जाकर पूछताछ की। उसने पूरी घटना को रोते हुए दोहराया। परंतु गवाहों के बयान के बिना उन्होंने घटना को असत्य कहकर प्रतिवेदन दिया। एस.पी. साहब ने केस को बंद करने का आदेश दिया।
गरीब पार्टी का नेता भुखली को लेकर स्थानीय विधायक के पास गया। विधायक ने जिलाधिकारी, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री को आवेदन देने को कहा और स्वयं उसके साथ जिलाधिकारी से मिला। उसने बताया कि डी.एस.पी. ने अभियुक्त मुखिया के घर पर जाकर जाँच की। गाँव के लोगों में इतनी हिम्मत कहाँ है कि मुखिया के विरुद्ध उसके दरवाजे पर अपना मुँह खोल सके। साथ में दरोगा जी भी थे जिनके खिलाफ जाँच करनी थी। दरोगा के डर से गरीब लोग गवाही देने भी नहीं आए। उन्होंने अनुरोध किया कि इस मामले की जाँच वे अपने स्तर से कराएँ।
जिलाधिकारी ने जाँच का भार एस.डी.ओ. को दिया। एस.डी.ओ. ने डी.एस.पी. की जाँच रिपोर्ट देखी और गाँव के लोगों से पूछताछ की। दरोगा के भय से गाँव का कोई भी आदमी गवाही देने के लिए नहीं आया। केवल मुखिया के आदमियों ने गवाही दी। एस.डी.ओ. का प्रतिवेदन था कि भुखली खराब चरित्र की महिला है। उसने गाँव के बड़े लोगों को स्थानीय नेता के कहने पर यह आवेदन दिया है। जिलाधिकारी ने जाँच प्रतिवेदन देखा। मुख्यमंत्री सचिवालय से भी जाँच कर प्रतिवेदन देने का आदेश था। जिलाधिकारी ने शासन को एस.डी.ओ. की जाँच रिपोर्ट के साथ पत्र भेज दिया। जाँच की कार्रवाई पूरी। जिलाधिकारी ने पूछने पर बताया कि गाँव में एक भी गवाह नहीं है जो कह सके कि भुखली के साथ मुखिया के लड़के ने बलात्कार किया। बल्कि मंदिर से चोरी करने का आरोप सिद्ध होता है। कानून के अनुसार ही कार्रवाई हो सकती है।
रात के करीब दो बजे सोबरन और उसकी औरत भुखली अपने घर में सो रहे थे। दरवाजे पर किसी के थपथपाने की आवाज आई। भुखली की नींद खुल गई। वैसे भी वह कभी गहरी नींद में नहीं सोती है और जब से उसके साथ यह घटना घटी तब से तो उसकी नींद और भी कम हो गई है। उसने सोबरन को जगाया और कहा–‘देखो दरवाजा खटखटा रहा है।’ वह उठा और जा कर दरवाजा खोला। दो आदमी दरवाजे पर खड़े थे। दरवाजे खुलते ही अंदर आ गए। सोबरन ने मना किया। ‘कौन है आपलोग, अंदर क्यों आ रहे हैं?’ परंतु उसकी बात की अनसुनी करते हुए वे अंदर आ गए और दरवाजा बंद कर दिए। एक ने कहा, ‘हम तुम्हारे अपने आदमी हैं। घबड़ाने की बात नहीं है। आपके साथ अत्याचार हुआ है और न्याय नहीं मिल रहा है उसी को जानने के लिए आए हैं।’
‘आपलोग जानकर क्या करेंगे। जब सरकार के आँख, कान बंद हैं तब आप क्या कर लेंगे।’ सोबरन ने हाथ जोड़ कर उनसे जाने के लिए विनती की।
‘भाई सोबरन मैं आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ। सरकार को जगाना पड़ता है और हमलोग यही काम करते हैं, आपको न्याय दिलाएँगे।’ उनमें से एक ने कहा।
‘आप कैसे न्याय दिलाएँगे।’ सोबरन ने पूछा।
‘आपको कुछ नहीं करना है। जिसने आपके साथ अन्याय किया है उसका हुलिया बता दीजिए, बाकी सब हमलोग पूरा कर लेंगे। सरकार को जगा देंगे।’
‘कौन है?’–अंदर से भुखली ने पूछा।
‘कोई नहीं। दो राहगीर हैं। रास्ता भूल गए हैं।’ उसने उत्तर दिया और फिर पूछा कि ‘कैसे जगा देंगे सरकार को।’
‘जिसने आपके साथ अत्याचार किया है उसे खत्म करके।’ एक ने कहा।
‘नहीं भैया, यह भी तो अत्याचार होगा। मैं ऐसे झंझट में नहीं फँसना चाहता हूँ। अत्याचार का बदला अत्याचार से, बलात्कार का बलात्कार से। यह अन्याय होगा।’ सोबरन ने कहा।
‘आपके साथ जो हो रहा है क्या वह न्याय है। क्या आपको अंदर से नहीं महसूस होता है कि अत्याचारी पर कार्रवाई हो। काँटे से काँटा निकलता है।’
‘चाहता तो हूँ और मेरा बस चले तो स्वयं उस मुखिया के बेटे को मार दूँ जिसने मेरे सामने मेरी बीबी की इज्जत लूटी। परंतु क्या करूँ, मजबूर हूँ। गरीब आदमी हूँ, अब अपना पेट पालूँ या मुकदमा लड़ूँ। मुकदमा भी तो पुलिस नहीं लिखती है।’
‘इसीलिए तो हमलोग आए हैं। आप मेरे जैसे हैं। गरीब हैं, अत्याचार सहते आए हैं। हमलोग ने अपना एक संगठन बनाया है जिसके माध्यम से अत्याचार का बदला लेते हैं। आप भी मेरे संगठन का सदस्य बन जाइए। फिर देखिए कोई आप पर आँख भी नहीं उठाएगा।’
यह बात हो रही थी कि भुखली भी उठकर आ गई। पूछा, ‘कौन हैं आपलोग। रात्रि के समय में क्या मुसीबत आ गई है आपलोगों पर।’
सोबरन ने कहा कि ये हमारी मदद के लिए आए हैं–कहते हैं, ‘मेरे संगठन का सदस्य बन जाइए, सब ठीक हो जाएगा।’
‘कैसा संगठन?’ उसने पूछा।
एक ने कहा, ‘गरीबों का संगठन। हम सभी गरीब मिलकर एक संगठन बनाए हैं। जहाँ सरकार से न्याय नहीं मिलता है वहाँ हमलोग अत्याचारी के खिलाफ स्वयं कार्रवाई करते हैं। जैसा अपराध वैसा दंड।’
‘क्या बलात्कार के बदले बलात्कार करेंगे।’ भुखली ने पूछा।
‘नहीं। हमलोग बलात्कारी को दंड देते हैं। बलात्कार के लिए हमारे संगठन में सजा मौत है। क्योंकि इज्जत, आबरू बहुमूल्य होती है। इज्जत चली जाने पर जीना बेकार होता है। महाभारत में द्रौपदी की लाज को बचाने के लिए कृष्ण ने केवल साड़ी ही नहीं बढ़ाई, महाभारत करके अत्याचारियों का विनाश कर दिया था।’
सोबरन कुछ कहे इसके पहली भुखली ने कहा, ‘तुम ठीक कहते हो भैया। मैं भी बदला लेना चाहती हूँ। जब तक अत्याचारी को सजा नहीं मिलेगी, तब तक मेरे कलेजे को ठंढक नहीं पहुँचेगी।’
‘तब तो आप मेरे साथी हैं। अब आपको कुछ नहीं करना है। जैसे रहते हैं वैसे रहिए। बाकी काम हमलोग अपने ढंग से कर देंगे।’ वे जाने लगे तब सोबरन ने कहा, ‘लेकिन यह भी तो अन्याय होगा।’
भुखली ने कहा, ‘न्याय अन्याय क्या होता है। हमें पता नहीं है। हमें तो केवल बलात्कारी को सजा दिलानी है जिससे किसी और गरीब, असहाय, कमजोर के साथ ऐसी वारदात नहीं हो।’
भुखली भुक्तभोगी थी। उसके अंदर की क्रोधाग्नि जल उठी थी। उसने कहा कि ‘जाइए भैया, न्याय दिलाने के लिए जो भी उचित हो करिए। मुझे न्याय चाहिए। न्याय पाने के लिए हम आपके साथ हैं।’


Image name: Head of a Peasant Woman
Image Source: WikiArt
Artist: Vincent van Gogh
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जियालाल आर्य द्वारा भी