अवदान

अवदान

ब्याह हुए कुछ दिन ही बीते थे। अपने किसी कच्चे घर से मिट्टी की दूसरी दिवारों के बीच आ घिरी थी। मरद अक्सर शाम दारु पी आता। झगड़े करता तो कभी-कभी मारता भी। बारिश के दिन थे। एक रात वह लौटा। नशे में धुत्त। निगाह पलंग के नीचे पड़े संदूक पर गई। ‘क्या है इसमें?’

‘मेरा सामान है कुछ! कुछ बचपन के खिलौने और रंगीन…!’

‘खोल इसे! क्या रखा तेरे बाप ने तेरे लिए। देखूँ तो सही’–वह लड़खड़ाती जबान में चिल्लाया। उसने संदूक खोला और सामान उलट-पुलट कर दिया। प्लास्टिक के रंगीन टुकड़े देख चीखा, ‘ये…ये कबाड़ लाई है तू’ और उसने वे तमाम टुकड़े हरे, पीले, लाल, नीले सब फेंक दिए। ‘मैं इन टुकड़ों से बचपन में घर बनाया करती थी। माँ जिस जगह काम पर जाती थी, उस मालकिन की बेटी भी इन टुकड़ों से घर-घर खेला करती थी’–मार खा रोते-रोते बताया उसने। तभी तेज बारिश होने लगी। जगह-जगह पानी टपकने लगा। वह आदमी उठा। कुछ रंगीन टुकड़े उठा, और टट्टर पर जगह-जगह लगा दिए। पानी टपकना बंद हो गया था। रंगीन टुकड़ों से टट्टर रंग-बिरंगा हो उठा। वह फिर बोल पड़ी, ‘मैंने कहा था ना, बचपन में इन टुकड़ों से घर बनाती थी!’

चोप्प!!

टुकड़ों पर पानी की बूँदों की आवाजें सिसकियों के बीच रह-रह सुनाई दे रही थी लेकिन सुकून भरी लग रही थी। फंदे में शैतान। उस रात मैंने देखा शैतान और ईश्वर आसमान से साथ-साथ उतर रहे थे। शैतान ने ईश्वर से कहा, वह भूखा है और ककड़ी के खेत में ठहर गया। ईश्वर ने सोचा होगा कोई शैतानी इसके दिमाग में। इधर शैतान ककड़ी खाने में मशगूल हो गया और ईश्वर ने कहीं और की ठौर ली। मुझसे रहा न गया। शैतान से पूछ ही लिया, ‘यार तुम खून चूसने वाले, बोटियाँ नोचने वाले आज इस रात ककड़ी पर कहर क्यों बरपा रहे हो।’

वह हँस पड़ा ‘क्या बताऊँ तुम्हें यार। मुझे जिस औरत से मोहब्बत हो गई है ना उसी ने कहा था मुझे कि मैं ककड़ी चबाते-चबाते आऊँ।’

‘ओह, तो वह तुमसे भी ज्यादा होशियार…।’

‘कौन?’

‘वह औरत!’

‘कैसे भला?’

‘एक शैतान जिसके कहने पर ककड़ी चबाने लग जाए।’ मैंने कहा।

‘देखो भाई, मोहब्बत का झोंका और सोचने का मौका, इनका क्या साथ’–शैतान ने हँसते हुए कहा और औरत के घर की तरफ चल दिया। वहाँ पहुँचा तो वह भौचक्का रह गया। वह देखता है कि ईश्वर उस औरत के पास बैठा बातें बना रहा है, रह-रह मुस्करा पड़ता है, उसके तो सिर से लेकर पैर तक आग लग गई। इतने में ईश्वर उठा और चल दिया। बाहर वे दोनों टकरा गए, ‘ओह, तुम इस तरफ कैसे?’ शैतान ने ईश्वर पर कटाक्ष किया।

‘उसने मुझे बुलाया था। प्रार्थना की थी।’

‘अच्छा! तुम्हारी प्रार्थना की! बड़े जलवे तुम्हारे।’–शैतान मिसमिसाते हुए बोला।

‘तुम इधर कहाँ जा रहे हो?’–ईश्वर ने सवाल दागा। ‘अच्छा तुम जैसा शैतान और फंदे में, वाह भई वाह!’, यह कटाक्ष करते हुए ईश्वर चला गया। शैतान ने तुनकते हुए स्त्री से पूछा, ‘ईश्वर क्यों आया था यहाँ।’

‘मैंने प्रार्थना की थी, ईश्वर से।’

‘प्रार्थना तो तुम मुझसे भी कर सकती थी!’ शैतान खीजते हुए बोला। ‘तुमसे और प्रार्थना! तुम प्रार्थना सुन लेते तो शैतान कहलाते क्या?’

‘अच्छा क्या प्रार्थना की तुमने!’ शैतान ने पूछा। ‘तुम्हारे लिए की प्रार्थना!’ औरत बोली। ‘मेरे लिए हो ही नहीं सकता, क्यों बेवकूफ बना रही हो।’

‘सच! तुम्हारी सारी शैतानियत की कसम, सिर्फ तुम्हारे लिए।’

‘तुमने आखिर क्या माँगा उस ईश्वर से? मुझसे पिंड छुड़ाने का वरदान माँगा होगा।’

‘नहीं!’

‘मेरी मौत माँगी होगी।’

‘बिल्कुल नहीं!’

‘तो फिर तुमने क्या माँगा ईश्वर से’, शैतान उत्सुकता से भर गया था।

‘मैंने तुम्हें जीवन भर के लिए माँग लिया!!!’


Image : Katkelma
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Artist : Helene Schjerfbeck
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