बेतरतीब जिंदगी

बेतरतीब जिंदगी

कुछ डरते डरते वह बॉम्बे ब्रैसरी रेस्टोरेंट में घुसा। वैसे राजीव प्रसाद उसके साथ थे। वे अपनी मर्सिडीज में बैठा कर उसे अपने साथ ले गए थे। वरना इतने बड़े समारोह में वह आ भी कैसे सकता था। जब राजीव जी ने उससे पूछा था, ‘भाई नरेन जी आजकल नौकरी के क्या हाल चल रहे हैं?’ बस किसी तरह अपनी हिम्मत सँजोते हुए कुछ शब्द उसके मुँह से निकल पाए थे, ‘जी भाई साहब, लड़ाई चल रही है। वैसे रिडंडैन्सी का पत्र तो मिल गया है। यदि अगले सप्ताह तक कोई बात नहीं बनी तो बस नौकरी से बाहर ही समझिए।’

‘आपको अब नौकरी से आगे सोचना चाहिए। आपकी कलम में ताकत है। आप अब फुल-टाइम कलम चलाइये। आपकी कहानियाँ, गजलें और नज्में सभी तो कामयाब हैं।’

‘भाई साहब, इतना आसान भी तो नहीं। हिंदी में लिख कर जब कोई भारत में पेट नहीं पाल सकता तो फिर यहाँ ब्रिटेन में यह कैसे संभव हो सकता है? वैसे मुझे एक जगह से बुलावा आया है। बड़े लोग हैं। अपना सत्तरवाँ जन्मदिन मना रहे हैं। आज शाम को उन्होंने बुलाया है, हैरो ऑन दि हिल पर ही बड़ा सा घर है उनका। वे अपने जन्मदिन के बारे में कुछ बातचीत करना चाहते हैं कि क्या कुछ किया जाए।’ वह बड़े लोगों से हमेशा दूर रहने की कोशिश करता है। अमीर लोगों ने हमेशा उसे संदेह भरी नजरों से देखा है। उन्हें लगता है जैसे अभी कुछ माँग लेगा। उसमें आत्म-सम्मान कूट कूट कर भरा है। किंतु गरीबी भी इफरात में मिली है। लंदन में बसे भारतीय मूल के लोगों के हिसाब से वह गरीब ही कहलाएगा। पचपन साल की उम्र हो गई है। उसका अपना घर आज तक नहीं बन पाया। पत्नी से बनी नहीं। उसे भी एक गरीब प्रवृति के पति से निबाह करने में मुश्किल पेश आने लगी थी। दरअसल वह है भी फक्कड़ किस्म का आदमी। न अपने पहनावे को ले कर सचेत है न रख-रखाव को लेकर सचेत है। चेहरे पर खिचड़ी दाढ़ी भी कुछ हद तक बेतरतीब ही लगती है।

दाढ़ी रखने का भी एक कारण था। पत्नी ने कह दिया कि अपना खर्चा कम करो। उसे समझ नहीं आया कि कौन सा खर्चा काटे। शराब और सिगरेट वह पीता नहीं। चाय दिन में तीन बार पीता है। दो बार घर में और एक बार दफ्तर में। फिर करे तो क्या? बस यही समझ में आया कि शेविंग क्रीम और रेजर के पैसे बचा सकता है। सिर के बाल भी तीन चार महीने तक नहीं कटवाता। साल में बस तीन या चार बार नाई की दुकान पर चक्कर लगता है। नाई भी उसने सबसे सस्ता चुना है जो पाँच पाउंड में ही उसके बाल काट देता है। जब दूसरों को टिप देते देखता है तो उसका भी दिल चाहता है कि नाई को टिप दे दे। मगर हालात…!

गजलें लिखता है। वही पत्नी को पसंद नहीं था। उसे शिकायत रहती कि घर में कागज बिखरे रहते हैं। उसे यह भी शक रहता कि इस उम्र में उसके अंदर रोमांस कहाँ से आता है। कौन है उसकी प्रेरणा? पत्नी को उर्दू भाषा से भी एलर्जी थी। वह समझाने का यत्न भी करता कि गजल में उर्दू के लफ्ज खुद-ब-खुद चले आते हैं। मगर पत्नी को न समझना था न समझी।

वह अब अकेला रहता है। कहीं एक कमरा किराये पर ले रखा है–चार सौ पाउंड प्रति माह पर। कमरा भी उसकी दाढ़ी की ही तरह बेतरतीब सा है। एक कोने में उसका लैपटॉप और एक सिंगल पलंग। इधर उधर बिखरे हुए कागज और उसके कपड़े। खाना वह बाहर ही खाता। वैंबले में बहुत से दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट हैं। बदल बदल कर हर रेस्टोरेंट में जाता है।

राजीव प्रसाद उसे हैर-ऑन-दि-हिल ले गए हैं। आज उसे एक अमीर बिजनेसमैन को अपनी लेखनी से प्रभावित करना है। राजीव प्रसाद को उम्मीद है कि चूनावाला सेठ अपने सत्तरवें जन्मदिन पर जरूर अपनी शान में कसीदे लिखवाने की चाह रखते होंगे। उन्होंने उसे समझाया भी, ‘देखिए शायर साहब, जिंदगी सिर्फ उसूलों से नहीं चलती। जिंदगी बहुत कठोर चीज है। एक ठोस सच्चाई है। भूख भी लगती है और रहने को मकान भी चाहिए।…देखिए हम तो आपके फैन हो गए। अब इसका मतलब यह तो नहीं कि आप बस पैसे लगाकर अपनी किताब छपवाएँ और मुफ्त में बाँट दें। यह तो घाटे का सौदा हुआ न? यही शिकायत हमारी भाभी साहिबा को हमेशा आपसे रही कि आप हमेशा घाटे का सौदा करते हैं। आज…वहाँ आप कम से कम बोलिएगा। बस जब मैं कहूँ आप कुछ शेर सुना दीजिएगा। जितनी आपकी महीने की पगार है, हो सकता है कि उतने पैसे आप एक शाम में ही कमा लें।’ आजकल उसमें आत्मविश्वास की कमी होती जा रही है। पत्नी ने तो उसे नाकारा घोषित कर ही दिया है। अब तो काम पर भी उसकी नौकरी पर प्रश्न चिह्न लग चुका है। राजीव प्रसाद की काले रंग की मर्सिडीज कार और उनके हैंपस्टेड गार्डन के पाँच बेडरूम के घर का दबाव वह अपने व्यक्तित्व पर महसूस कर रहा है। उसका प्रिय वाक्य उसे हर वक्त कोंचता रहता है, ‘मैं जब भारत में था, अमीर आदमी था। यहाँ विलायत में आकर गरीब हो गया हूँ।’ बात भी ठीक है। लंदन उसे रास नहीं आया है। सोचता लंदन में अब और रहा जाए या फिर…

सोचता सोचता राजीव प्रसाद की कार में बैठ कर चूनावाला सेठ के हैरो-ऑन-दि-हिल वाले घर पर जा पहुँचा। चूनावाला सेठ एक बड़ा बिल्डर है। लोगों के लिये घर बनाता है, ‘राजीव जी अल्लाह जानता है कि हम तो बस ईंट गारा इस्तेमाल करके मकान बनाते हैं। घर तो उसे रहने वाले लोग बनाते हैं। हम जब मकान बनाते हैं हमें पता नहीं होता कि इसमें अँग्रेज रहेगा, मुसलमान या फिर हिंदू। हमने इस बारे में कभी कुछ सोचा ही नहीं।’ वह चाह कर भी अपने आप को चूनावाला सेठ के घर का मुआयना करने से रोक नहीं पाया। लग रहा था जैसे पैसा दीवारों और फर्श पर चिपका दिया गया था। मगर चाय बना कर सेठ की पत्नी ही लाईं। साथ में गुजराती फरसाण। मेज पर रखे ढोकला, खांडवी और बंबई मिक्स गृहस्वामिनी की सुघड़ता का परिचय दे रहे थे। दरवाजे से अंदर घुसते ही राजीव प्रसाद जी ने छेड़ते हुए कहा था, ‘लीजिए लेखक साहब आज आप असली ब्राह्मण परिवार के घर आए हैं। अपने जूते घर में घुसने से पहले उतारने होंगे।…मुझे चूनावाला के घर आने में सबसे अधिक समस्या यही होती है कि यह मेरे आर्थराइटस का भी कोई लिहाज नहीं करते। जूते उतारने और चढ़ाने के लिये झुकना ही पड़ता है। भाभी जी इस मामले में पूरी तानाशाह हैं।’

उसे अपना मुंबई वाला घर याद आ गया। उसके पड़ोस के फ्लैट में भी बोरी मुसलमान परिवार ही रहता था–सलमान लिंबुवाला और परिवार…उनके मुख्यद्वार के सामने भी जूतों और चप्पलों की एक कतार सी लगी रहती थी। उनका छोटा सा पोता अदनान…अधिकतर उनके घर ही भोजन करता…पोलियो-ग्रस्त टाँग से चलता अदनान जैसे उसके अपने परिवार का एक हिस्सा ही बन गया था। बहुत मीठी बातें करता…। चूनावाला सेठ संभवतः बहुत दिनों बाद राजीव प्रसाद से मिले थे। सच्चाई तो यह है कि चूनावाला के इस घर की सजावट का काम करीब एक वर्ष से चल रहा था। ‘राजीव जी पूरा एक साल बाहर फ्लैट में रहे। अभी दो हफ्ते पहले ही वापिस घर आए हैं।…ये जितनी टाइल्स हैं सब इटैलियन मार्बल है…घर में जितनी भी पेंटिंग्स लगी हैं वो मेरे प्रिय पेंटर कूनिंग की हैं। एक्सप्रेशनिस्ट है…यह पेंटिग वूमेन उसकी सबसे फेमस पेंटिंग है…1952-53 की है शायद…उसकी कलर स्कीम कमाल है। कूनिंग डच ओरिजिन का अमरीकी पेंटर है…आजकल ऐब्सट्रैक्ट का जमाना है प्रसाद जी।’ राजीव प्रसाद और चूनावाला सेठ जिन पेंटरों के नाम ले रहे थे, उस बेचारे ने कभी सुने ही नहीं थे। उसके लिये हुसैन की पेंटिंग समझ पाना ही कौन सा आसान काम था।

‘अरे राजीव भाई, यह बाहर जो फाउंटेन लगवाया है उसका सिस्टम लगने में ही दो महीने लग गए थे। अभी तो बाहर रौशनी है, जब आप बाहर जाएँगे न तो आपको कमाल दिखाएँगे लाइटिंग और फाउंटेन का।’

‘यह कार्पेट की वीलिंग क्या 80:20 है?’ राजीव प्रसाद ने टोह ली।

‘उससे भी कहीं बेहतर है।…यह मेरे लिये खास तौर पर बनाया है मेरे दोस्त मुस्तफा कार्पेट वाले ने।’ डाइनिंग टेबल से लेकर दीवार के पेंट तक पर बातें हो रही थीं। वह सोच रहा था कि पैसे वाले लोग कितनी अलग बातें करते हैं।

बातें तो ताहिरा भाभी भी बहुत मीठी कर रही थीं। दरअसल उसे मौका ही नहीं मिल रहा था कि वह अपने बारे में चूनावाला सेठ को कुछ बता पाता। वह बैठा बैठा कुर्सी पर ही पहलू बदलता रहा। अचानक उसे एक सिरा मिला जब ताहिरा ने भारत की तारीफ करते हुए अँग्रेजी कल्चर की कमजोरियाँ गिनवानी शुरू की। बस वह कूद पड़ा ‘ताहिरा जी, मैं इस मुल्क को अपना मुल्क मानता हूँ। भारतीय उपमहाद्वीप के लोग यहाँ आते हैं, कमाते हैं, खाते हैं और अपने रिश्तेदारों को भी पैसे भेजते हैं मगर इस देश की बुराई करते नहीं थकते।…मैं इससे सहमत नहीं हूँ।’ महफिल में अचानक जान सी आ गई। राजीव प्रसाद भी मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि आखिर उसे मौका मिल ही गया अपने आप को सही ढंग से प्रस्तुत करने का। वह कहे जा रहा था, ‘बात ये है नसीर भाई कि मैं कविता या गजल भी लिखता हूँ तो उसमें इस देश की बात करता हूँ। मैं अपने शहर की दिक्कतों को अपने साहित्य में दिखाता हूँ।’ थोड़ी ही देर में वह आसानी से चूनावाला सेठ को उनके पहले नाम के साथ बुलाने लगा था। नसीर भाई! राजीव प्रसाद मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। ‘ताहिरा भाभी, मैं जानता हूँ कि आपने सेठ के सत्तरवें जन्मदिन की खूब तैयारी की होगी…मुझे लगता है कि एक नज्म सेठ के बारे में जरूर सुनाई जानी चाहिए। और देखिए अब तो हमारे पास ऊँचे दर्जे के शायर भी मौजूद हैं। वैसे आपको एक राज की बात बताता हूँ, कि हमारे शायर साहब ने अँग्रेजी में लॉर्ड सय्यद जीलानी की जीवनी भी लिखी है।’ ताहिरा चूनावाला अपनी मासूमियत नहीं छिपा सकी, ‘तो क्या आप शायरी भी अँग्रेजी में ही करते हैं?’

‘जी मैं अँग्रेजी में प्रोज लिखता हूँ मगर शायरी हिंदी…या आप कह सकती हैं कि उर्दू में करता हूँ।’ शाम भर गजलों का दौर चलता रहा। रात का खाना भी वहीं खाया गया और तय हो गया कि सेठ नसीर चूनावाला के सत्तरवें जन्मदिन पर उसे एक नज्म पढ़नी होगी।…कार्यक्रम बॉम्बे ब्रैसरी रेस्टोरेंट में होगा।

‘वह परेशान है कि बॉम्बे ब्रैसरी में जाए या कैंसिल कर दे। उसे अमीर लोगों से मिलने में हमेशा से ही उलझन होती है। राजीव प्रसाद संभवतः अकेले अपवाद हैं जिनके साथ वह उठ बैठ लेता है। राजीव प्रसाद उसे लगभग ठेलते हुए अपने साथ अंदर ले गए।’

तीन दिन पहले तक उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह इतने महँगे रेस्टोरेंट में घुसेगा कैसे। भला वह ट्यूब और बस से यात्रा करके, पैदल जूते फटकारता उस रेस्टोरेंट में कैसे दाखिल हो सकता है? राजीव प्रसाद ठहाका लगा कर हँस पड़े, ‘गुरुदेव, आप भी महान आत्मा हैं। अरे एक बात बताइये, क्या मैं अपनी कार रेस्टोरेंट के अंदर तक ले कर जाने वाला हूँ? मैं भी तो अपनी गाड़ी आसपास कहीं पार्किंग खोज कर पार्क करूँगा और फिर पैदल रेस्टोरेंट में एंट्री मारूँगा। वही आप भी करेंगे। अब यह तो होने से रहा कि मैं जा कर दरबान से कहूँ, सुनो भैया, मैं काले रंग की मर्सीडीज में बैठ कर आया हूँ और आप कहें कि भाई मैं तो अंडरग्राउंड और बस में बैठ कर यहाँ पहुँचा हूँ।’ राजीव प्रसाद एक बार फिर ठहाका लगा कर हँस पड़े। उसके होंठों ने हँसी को महसूस किया और फिर उससे दूरी बना ली।

बॉम्बे ब्रैसरी की भव्य साज सज्जा उसे अपने बौनेपन का अहसास करवा रही थी। उसने इधर उधर देखा। एक भी चेहरा पहचाना हुआ नहीं दिखाई दे रहा था। उसने जीवन में पहली बार इतने अधिक अमीर लोगों को एक साथ देखा था। सबके चेहरों पर एक विचित्र सा आत्मविश्वास था। मगर वह…! अचानक उसे उस्ताद जहूर अहमद दिखाई दे गए। अपनी पत्नी के साथ। दिल में एक सहज सा सवाल उठा, ‘भला अमीरों की महफिल में यह जहूर मियाँ क्या कर रहे हैं।’ लपका…और दोनों ऐसे गले मिले जैसे बरसों बाद बिछड़े हुए भाई मिले हों। दोनों को एक दूसरे का जैसे सहारा मिल गया था। उसे महसूस हुआ कि जहूर अहमद भी कम परेशान नहीं दिख रहे थे। और फिर उसे दिखा पहला अमीर चेहरा जिसे वह पहचानता था। इस्लामी बैंक का चीफ मैनेजर। वह लपका, ‘कैसे हैं इकबाल भाई?’ इकबाल साहिब के चेहर पर साफ द्वंद्व दिखाई देने लगा। एक ठंडी से हैलो उनके मुँह से निकली। ‘अरे शायर साहब, आप यहाँ इन लोगों की महफिल में कैसे?…कोई नया चक्कर चलाया है क्या? मानना पड़ेगा कि आप भी अपने आपको कहीं न कहीं फिट कर ही लेते हैं।’ वह शर्म से गड़ा जा रहा था। उसे वह दिन भी याद आ गया जब इकबाल साहिब ने बैंक के चीफ मैनेजर का पद सँभाला ही था। उसने आगे बढ़ कर उन्हें बधाई दी तो वे बोले थे, ‘दोस्त, बस एक ही तमन्ना है। अल्लाह ताला इस तरक्की को मेरे दिमाग में न चढ़ने दे। मुझे एक अच्छा इनसान बना रहने दे।’ और उसके मुँह से एकाएक निकला था, ‘आमीन!’ जाहिर सी बात थी कि अल्लाह मियाँ ने उसकी बात सुनी नहीं थी।…अरे जब गरीब की इनसान नहीं सुनता तो भगवान के पास कहाँ समय होगा।

राजीव प्रसाद हमेशा उसे प्यार भरी मीठी डाँट पिलाते रहते हैं, ‘यार तुम अपने आप को गरीब क्यों समझते हो। तुम जितनी पगार पाते हो वह ब्रिटेन के सत्तर प्रतिशत लोगों से ज्यादा है। फिर तुम में यह हीन भावना क्यों है।…यह ठीक है कि तुम बिजनेस वालों का मुकाबला नहीं कर सकते मगर तुम गरीब नहीं हो।’ आज राजीव प्रसाद जी की बात दिल में बैठा कर वह अपने चेहरे पर आत्मविश्वास वापिस लाने का प्रयास कर रहा था। राजीव मुलाकात भी तो ऐसे लोगों से करवा रहे थे। ‘लो भाई इनसे मिलो, यह लंदन के मिठाई किंग हैं। इनकी रसमलाई ब्रिटेन के हर इंडियन रेस्टोरेंट में मिल जाएगी। और ये हैं ब्रिटेन के राइस किंग…यह जो टिलडा बासमती चावल खाते हैं न आप…बस यही लाते हैं बाजार में…कोई शिपिंग मैगनेट था तो कोई आई.टी. किंग। भला ऐसे लोगों की उपस्थिति में आत्मविश्वास जागता भी तो कहाँ से। मन में बार बार बस एक ही बात आ रही थी–अगर उसे जन्मदिन पर लिखी गजल यहाँ सुनाने का मौका मिल गया तो वह सबके दिल में जगह बना लेगा। मगर रह रहकर वह वापिस जहूर अहमद के पास ही जा कर बैठ जाता था। राजीव उसे बार बार समझा रहे थे, ‘मेरे भाई, तुम उस गवैये से दूर हटो। उसे तो अँग्रेजी तक बोलना नहीं आता। आप तो अच्छी खासी अँग्रेजी बोल लेते हैं। जाइये और लोगों पर अपने ज्ञान की धाक जमाइये।…यहाँ बहुत सी अमीर महिलाएँ मिलेंगी…उनसे दोस्ती बनाइये। वे सब अपने अपने पतियों की जीवनी लिखवा कर बहुत खुश होंगी। यार अपने हुनर से फायदा उठाओ। इस तरह दबे दबे मत रहो। यह पार्टी है…एन्जॉय मैन…खुश रहो।’

अमीर महिलाएँ क्या गरीब शायर को पसंद करेंगी?…थोड़ा हैरान भी था…वहाँ या तो बहुत बूढ़े लोग थे या फिर बहुत जवान…शायद चूनावाला सेठ के बच्चों के दोस्त होंगे। उसके हमउम्र लोग नहीं दिखाई दे रहे थे। वह जहाँ किसी ग्रुप के साथ खड़ा होता, वहाँ केवल बिजनेस की बात हो रही होती। उसकी दिक्कत यह भी थी कि वहाँ सभी बिजनेस से जुड़े लोगों के गुट बने हुए थे और सबकी मेजों पर नो-एंट्री का बोर्ड लटका दिखाई दे रहा था।

अचानक घोषणा हो गई कि लंच लगा दिया है। सब जा कर भोजन कर सकते हैं। वह भी जा कर कतार में खड़ा हो गया। उसने एक बार फिर कोट के ऊपर वाले जेब पर हाथ फेरा। उसने निश्चित  कर लिया कि उसके विजिटिंग कार्ड जेब में मौजूद थे। कतार में उसके आगे खड़ी महिला उसकी ओर देख कर मुस्कुरा दी। जवाब में उसके दाँत भी निपुर गए।

‘आपको पहले कभी देखा नहीं।’ महिला शायद जानना चाहती थी कि लोअर मिडल क्लास का बाशिंदा यहाँ अमीरों की महफिल में क्या कर रहा है।

‘जी एक शायर हूँ। आज शायद मुझे भी नसीर भाई के बारे में दो लफ्ज कहने का मौका मिलेगा।’ वह जैसे ढिठाई पर उतर आया था। उसे अपने आप पर आश्चर्य भी हो रहा था कि वह कैसी मानसिकता का शिकार हो रहा है।

‘अरे वाह! तो नसीर भाई ने अपनी शान में कसीदे भी लिखवा लिये हैं।…चलिए जी हमें एक हैंडसम शायर का कलाम तो सुनने को मिल जाएगा।’

उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसकी तारीफ हो रही है या फिर उसका मजाक उड़ाया जा रहा है। उस महिला ने मुस्कुराते हुए अपना नाम बताया, ‘बाई दि वे, मेरा नाम सुरैया है।’…‘हाँ शायर साहब, यह सुरैया जी और इनके पति बहुत कमाल के लोग हैं। इनकी अपनी शिपिंग कंपनी है। आप इनकी जिंदगी पर जरूर एक किताब लिख डालिये।’ पीछे से राजीव की आवाज सुनाई दी।

सुरैया मुस्कुराते हुए अपनी प्लेट लेकर अपनी मेज की तरफ बढ़ गई।

वह परेशान सा खड़ा था। उसके सामने तरह तरह के पकवान सजे पड़े थे। गोश्त की इतनी वेराइटी भला वह कहाँ देख पाता। राजीव प्रसाद से एक ही बात सीखी थी कि ‘कभी भी अपनी प्लेट को इतना मत भरो कि सब की निगाहों में आ जाओ। याद रखो किसने कितनी प्लेट भरी है उससे उसके स्टैंर्ड का पता चलता है। बीच बीच में जा कर चाहे दस बार प्लेट में कुछ डाल लो…मगर प्लेट पर चावलों का पहाड़ और मीट का अंबार कभी न लगाओ।’ उसने दो हरे भरे कबाब और मटन चॉप्स के साथ पुदीने की हरी चटनी डाली और राजीव प्रसाद की ओर ऐसी निगाहों से देखने लगा कि अभी उसे शाबाशी मिलेगी।…राजीव प्रसाद आँखों आँखों में ही मुस्कुरा दिये, ‘सुरैया के हस्बैंड से दोस्ती करो। सुरैया से बात करो। बहुत पैसा है उनके पास। जरूर बताना कि तुम बॉयोग्राफी लिखते हो। अँग्रेजी में बात करना। यार तुम तो अच्छी अँग्रेजी बोल लेते हो…’

‘जी।’

‘देखो, अपने अंदर हीनता का भाव न आने देना। इसमें बहुत से लोग हैं जिनका हाथ बीसीसीआई बैंक को डुबाने में था। मगर वो सब यहाँ इस ठाठ से घूम रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो। फिर तुम तो एक शरीफ आदमी हो। तुम्हारे पास शब्दों का धन है जिस मामले में ये सब दरिद्र हैं।’ राजीव प्रसाद जी के हौसले से लैस वह सीधा सुरैया की मेज की ओर बढ़ दिया, ‘जी मैं यहाँ…’

सुरैया ने बीच ही में टोकते हुए, चमकती हुई आँखों से कहा, ‘अरे श्योर श्योर, आप बेतक्कलुफ हो कर बैठिये।’

इससे पहले कि वह अपनी प्लेट मेज की तरफ बढ़ा भी पाता, सुरैया के पति की आवाज सुनाई दी, ‘माफ कीजिएगा, यहाँ हम किसी का इंतजार कर रहे हैं। अगर आपको बुरा न लगे तो आप किसी और टेबल पर जम जाइये।’

उसने सुरैया की ओर देखा…सुरैया की आँखों में भी बेबसी का दर्द दिखाई दे रहा था जैसे वहाँ झील नहीं कोई खंडहर था…बेआबरू हो कर उस मेज से अपनी प्लेट उठाए वह आगे की ओर बढ़ चला…उसे महसूस हुआ कि बेइज्जती उसकी आँखों में नमी बन कर उतर आई है। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब वह किस मेज पर जा कर अपनी इज्जत की ऐसी तैसी करवाए।

अचानक सामने से ताहिरा भाभी मुस्कुराती हुई दिखाई दे गईं। वे उसके हाथ में प्लेट देख कर चहकीं, ‘आपने प्लेट में इतना कम डाला है, भला खाली प्लेट से कैसे काम चलेगा। देखिए शर्म से काम नहीं चलेगा…जी भर कर खाना होगा…यहाँ पेट का सवाल नहीं है जी…दिल का मामला है।’ और वे जैसे हँसती हुई सामने से आई थीं, बस उसी तरह पास से निकल भी गईं। उसकी समस्या ज्यों की त्यों मुँह बाए सामने खड़ी थी कि वह बैठे तो कहाँ बैठे। भला अपनी सवारी टिकाए तो कहाँ और फिर अपनी आँखों की नमी को भी छिपाए रखना था। लौट के बुद्धू राजीव प्रसाद के सामने वाली खाली कुर्सी पर जा बैठा। उनसे आँखें भी चुरा रहा था कि कहीं वे आँखों आँखों में ही न डाँट दें। उसने कोट की ऊपर वाली जेब पर हाथ लगाया जहाँ उसने अपने विजिटिंग कार्ड रखे थे। जब पिछली बार दिल्ली गया था तो अपने लिए विजिटिंग कार्ड छपवा लाया था। उसकी बगल में बैठे दो बिजनेस टाइकून अपने अपने बिजनेस की बातें कर रहे थे। शिष्टाचार वश एक ने पूछ ही लिया कि ‘आप किस चीज का बिजनेस करते हैं?’ राजीव प्रसाद ने उसे मुँह खोलने का अवसर ही नहीं दिया। ‘चावला जी, यह शब्दों का व्यापार करते हैं। इनके कलम से निकला हुआ हर शब्द लाखों रुपये का होता है।’

‘यही तो मुश्किल है प्रसाद जी, यहाँ पाउंड चलते हैं और आपके दोस्त अभी तक रुपयों के चक्कर में हैं।’…‘जी बस, यूँ ही कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ।’ कहते हुए उसने अपना विजिटिंग कार्ड चावला जी को थमा दिया। उसे कुछ अच्छा भी लगा कि यहाँ कोई और गैर-मुस्लिम भी मौजूद है। चावला जी ने कार्ड देखा, हल्का सा मुस्कुराए और कार्ड को मेज पर ही रख दिया। उसने देखा था कि चावला जी ने साथ बैठे आगा साहब का कार्ड जेब में रखा था। अपने दिये गए पहले कार्ड की नियति उसे और बावला किये जा रही थी।

मुस्कुराते हुए चूनावाला सेठ उनकी मेज तक चले आए। उसकी आँखों में चमक आ गई कि अब उसके पास बैठे लोग जान जाएँगे कि वह सेठ का कितना करीबी है। चूनावाला सेठ ने आते ही पूछा, ‘हाँ जी, सब ठीक चल रहा है न! भाई यहाँ तो राइस-किंग चावला जी मौजूद हैं। हमारे घर में तो इनके चावल के अलावा और कोई चावल आ ही नहीं सकता। हम गरीबों का पेट तो यही भरते हैं।’

उसने अपनी चारों ओर फैली गरीबी का मुआयना किया। कितनी हसीन गरीबी थी। चूनावाला सेठ बोले जा रहे थे, ‘चावला जी, आप इकबाल साहब को तो जानते ही होंगे–बैंकर हैं।’

‘जी, जी मुलाकात है इनसे।’ चावला ने शिष्टता दिखाई।

‘और ये आगा साहब बहुत बड़े इन्वेस्टमेंट बैंकर हैं। भाई इनके एक एक मिनट की वैल्यू हजारों में है। दिनभर तो लाखों करोड़ों का चक्कर चल जाता है। और ये हमारे मिठाई किंग मुहम्मद रसूल साहब। इनके साथ मैंने पैंतालीस साल पहले क्रिकेट खेला है। अभी भी खेल लेता हूँ।’ चूनावाला लहके।

‘चलिए आपको नसीर की एक खास बात बताता हूँ। ये बॉलिंग कर रहा था तो इसकी लेंथ और डायरेक्शन ठीक नहीं पड़ रही थी। मैंने कहा कि एक शिलिंग का एक सिक्का अगर क्रीज के सामने रख दें तो काम हो जाएगा। हमने वही किया और एक शिलिंग का सिक्का वहाँ रख दिया। नसीर की हर बॉल उसी सिक्के पर जा कर गिरी।’ मुहम्मद रसूल की बात पर जोर का ठहाका लगा।

‘अब राजीव जी को भला कौन नहीं जानता। इंडिया और पाकिस्तान में अगली लड़ाई इस बात पर होने वाली है कि राजीव इंडिया के हैं या पाकिस्तान के। कहीं मन में कोई नेगेटिव भावनाएँ नहीं। ऐसा आदमी हमारे बीच है…वी आर वैरी लक्की।’ वह प्रतीक्षा करता रहा कि चूनावाला सेठ उसका परिचय भी करवाएँगे। मगर चूनावाला मेज छोड़ कर चलने लगे। भला राजीव कहाँ उसे बख्शने वाले थे, ‘अरे चूनावाला सेठ, तुम इस खास शख्सियत को सबसे मिलवाना तो भूल ही गए।’ भला नसीर चूनावाला यह कैसे मान लेता कि उसने जानबूझ कर इस टटपुँजिये का परिचय अपने अमीर दोस्तों से नहीं करवाया। फिर भी बोल पड़ा, ‘अरे अब इनके बारे में बोलना शुरू करूँगा तो पूरी पार्टी का टाइम खत्म हो जाएगा। यह राइटर और पोयट भी हैं…और भी बहुत कुछ हैं।’ नसीर चूनावाला ने पूरी मेज को चुपके से समझा दिया कि यह एक फालतू आदमी है जो आपके साथ बैठने के काबिल तो नहीं है, मगर आपकी मजबूरी है कि आपको इसके साथ बैठना पड़ रहा है। उसे अब अपनी प्लेट में पड़ी मटन चॉप उठाने का भी मन नहीं हो रहा था। उसके भीतर का स्वाभिमानी शायर बीच बीच में सिर उठाने लगा था। सवाल बस एक ही था–‘वह यहाँ क्या कर रहा है?’ उसकी आँखों की बेबसी राजीव प्रसाद तक पहुँच रही थी। शायद पहली बार राजीव प्रसाद उसके दर्द से बचने के लिये उससे आँखें चुरा रहे थे। वे अपनी प्लेट में कुछ डालने के लिये उठ खड़े हुए। उसे ये पल काटे खाये जा रहे थे। वह भी उठ खड़ा हुआ।

वह अभी कुछ कदम ही चला था कि सुरैया उसके सामने आकर खड़ी हो गई। ‘माफ कीजिएगा, मेरे पति को कुछ गलतफहमी हो गई थी। हमारी मेज पर एक सीट अभी भी खाली है। आप वहाँ आ कर बैठ सकते हैं।’

भला जहाँ से बेआबरू कर के निकाला गया था, वहाँ वापिस कैसे चला जाता। फिर भी सुरैया को धन्यवाद कहा और इतने में कार्यक्रम शुरू हो गया। नसीर चूनावाला के भाई, बेटी, बेटा, दामाद, पत्नी, खास-खास मित्र एक एक करके माइक पर बुलाए जा रहे थे। गुलाम रसूल ने तो सभी मेहमानों को पुरानी यादों से खूब हँसाया। बार बार उसके चेहरे पर एक आशा की चमक आती कि अगला नाम उसका ही होगा। मगर फिर किसी दूसरे का नाम आ जाता। ऊहापोह इस बात को ले कर भी हो रही थी कि क्या नसीर भाई को याद भी है कि वह उनकी शान में एक नज्म लिख कर लाया है। हर बार जब कभी ताहिरा भाभी या नसीर भाई उसकी मेज के सामने से गुजरते, उसकी आँखों में भिखारी से भाव जागृत हो जाते। उसका बस चलता तो वह खड़ा हो कर उनसे पूछ ही लेता कि आखिर उसका नंबर कब आएगा।

जब बॉम्बे ब्रैसरी के अँग्रेजी गायक ने गीत गाने शुरू कर दिये तो उसका दिल ही बैठ गया। यानी कि अब संगीत का कार्यक्रम शुरू हो गया। इसका सीधा अर्थ यही हुआ कि अब उसे अपने जौहर दिखाने का मौका नहीं मिलेगा। उसकी हालत कुछ ऐसी थी कि उसके इर्द गिर्द रत्न और जवाहरात बिखरे हुए हैं मगर उसकी झोली खाली है। जब जब चूनावाला सेठ या उनकी पत्नी उसकी मेज के सामने से गुजरते, उसकी याचक निगाह उनकी ओर उठ जाती।

उसने राजीव प्रसाद की ओर देखा। उसकी आँखों ने अपना दर्द राजीव प्रसाद की आँखों में उतार दिया। वहाँ भी आँखों में अनिश्चितता के बादल मँडराने लगे थे। राजीव प्रसाद ने भी जैसे हार मान ली थी। उन्होंने आवाज दबाते हुए कहा, ‘देखो मियाँ, अगर यह तुम्हें नज्म पढ़ने को नहीं कहते तो अपना नुकसान करेंगे।’

उसका दिल जैसे बैठ ही गया था। क्या यह भी संभव है कि उसे बुलाया ही न जाए। हाँ, ठीक भी तो है, इतने अमीर लोगों के बीच भला वह कौन होता है कि इतने बड़े आदमी के बारे में बोले। तय कर लिया कि आज के बाद कभी भी ऐसे झंझटों में नहीं फसूँगा। ‘साले अपने आपको समझते क्या हैं। क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है? मैं यहाँ रुक कर क्या कर रहा हूँ? मुझे अब चल ही देना चाहिए।’

वह अभी सोच ही रहा था कि इकबाल भाई उठ खड़े हुए। मन में विचार आया कि अगर इकबाल भाई के जाने के बाद उसे बुलवाया गया तो इन्हें तो पता ही नहीं चलेगा कि मेरा रुतबा क्या है। इकबाल ने एक एक कर मेज पर बैठे सभी मेहमानों से विदा ली। जानबूझ कर उसकी तरफ देखा तक नहीं। वह इंतजार में ही रह गया कि वे अभी उसे भी ‘बाय’ कहेंगे। किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वह अपनी कुर्सी के भीतर तक धँस गया। उसे न तो वहाँ की साज सज्जा में कोई रुचि रह गई थी और न ही भोजन में कोई स्वाद।

ताहिरा भाभी पास से गुजरीं तो अचानक रुकीं, ‘अरे, आपने अपना गीत नहीं सुनाया? क्या बात है? लाए हैं न अपने साथ?’

‘जी, मुझे किसी ने बुलाया ही नहीं।’ उसने एक बार फिर जेब में रखे कागज के पुलिंदे को छूते हुए कहा। कुछ ही पलों के बाद उसका नाम पुकारा गया। बहुत ही फुसफुसी सी घोषणा की गई थी। किसी को कुछ समझ नहीं आया था कि क्या होने जा रहा है। उसने माइक अपने हाथों में पकड़ा। अपनी धीर गंभीर रेडियो वाली आवाज में बात शुरू की। सुरैया ने उसकी आवाज माइक पर सुनते ही अपने पति से कहा, ‘कितनी कमाल की आवाज है आबिद! यह तो सच्चा आर्टिस्ट मालूम होता है।’ जवाब में आबिद ने गर्दन हिलाई और चिकन टिक्के का एक टुकड़ा मुँह में डाल लिया। उसने चूनावाला सेठ के बारे में कुछ मजेदार बातें कहीं। उसके छोटे कद का हल्का सा मजाक उड़ाया और ऊँचाइयाँ हासिल करने पर बधाई दी।  अपनी नज्म में उसने चूनावाला के संघर्ष और उपलब्धियों का खूबसूरत चित्रण किया था और उसका सुनाने का अंदाज बहुत ही प्रोफेशनल था। पूरा हॉल तालियों से गूँज पड़ा। राजीव प्रसाद की गर्दन में भी सफलता दिखाई देने लगी। चूनावाला सेठ की आँखें गीली हो आई थीं। उन्होंने उठ कर उसे गले से लगा लिया।

मंच से वह पहले सीधा अपनी मेज की तरफ बढ़ा। मगर उसके मन में अचानक एक कामना उभरी। अब वह सबको जताना चाहता था कि वह कितना महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है। मुर्गे की तरह गर्दन तान कर कुछ कदम हॉल में चला। कुछ मेजों से उसे मुबारक के स्वर सुनाई दिये। सीना और तन गया। फिर वह सीधा सुरैया की मेज की तरफ बढ़ गया। सुरैया ने उठ कर ताली बजाते हुए अँग्रेजी में कहा, ‘आप तो सचमुच के आर्टिस्ट हैं। आपकी नज्म बहुत उम्दा थी। ताहिरा और नसीर सचमुच लक्की हैं जो उनको आप जैसा दोस्त मिला है।’

‘शुक्रिया।…वैसे आपके पति को मेरी नज्म कैसी लगी।’ उसने आबिद को सुनाते हुए कहा।…‘इनको शायरी में कोई खास रुचि नहीं है।…ज्यादा काम अँग्रेजी से चलाते हैं।’ उसने हिकारत की नजर से सुरैया के पति को देखा। फिर आहिस्ता आहिस्ता हर टेबल की तरफ हाथ हिलाता आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ अपनी मेज पर आ बैठा। मेज ने उसे बधाई दी और शाबाशी भी। कला सदा से ही वैभव से शाबाशी पाने को अभिशप्त है।

ताहिरा भाभी ठुमकती हुई मेज तक आईं और उसे बुलाया। वह आदरपूर्वक खड़ा हो गया। ‘आपने तो कमाल ही कर दिया। पूरी महफिल में आप ही की बातें हो रही हैं।’ एक लिफाफा उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘देखिए इसे अपनी फीस न समझिएगा। यह हमारा प्यार है। बस हमारे प्यार को अपने दिल के पास रखिएगा।’ ताहिरा भाभी ने वह लिफाफा उसकी कमीज की जेब में डाल दिया।

पार्टी को खत्म होना ही था।…वह राजीव प्रसाद के साथ बाहर निकल आया। राजीव प्रसाद अपनी कार की ओर बढ़ रहे थे। उसने विदा ली और अंडरग्राउंड स्टेशन की ओर बढ़ने लगा। उसका जी घर वापिस जाने का नहीं हो रहा था। वह पिकेडिली सर्कस की ओर चल दिया। निरुद्देश्य चल रहा था। मन में घमासान हो रहा था। आखिर आज उसने क्या खोया क्या पाया।

कुछ युवतियाँ पास से गुजर रही थीं। उनकी छोटी ऊँची स्कर्टें देखने लगा। पास से एक वेश्या गुजरी। उसने कुछ भद्दे इशारे किये और उसे अपनी ओर आने का संकेत किया। वह ध्यान से उसे देखने लगा। वह उसे एक घंटे…और रातभर साथ रहने के रेट बता रही थी। उसे बहुत परेशानी हो रही थी।

अचानक उसे महसूस हुआ कि आवाज तो उस वेश्या की है, मगर उस वेश्या के कंधों पर उसका अपना चेहरा लगा है।


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