भुट्टे वाला

भुट्टे वाला

कॉलोनी में भुट्टे वाला आया था। चिल्ला रहा था, ‘ये दखो मैडम आपकी मुस्कानों जैसे भुट्टे। ताजादम दोनों की कतारें देखो आप तो। एक-एक भुट्टे के हरे दुशाले खींच बताते जाता ‘आपलोग की हँसी की माफिक बिलकुल। ऐसे भुट्टे नहीं देखे होंगे। ये देखो तो सही तुम्हारे सुंदर दाँतों जैसा चमकता हुआ एक एक दाने, ये देख लो…! कॉलोनी की महिलाओं की भीड़ लग गई। उसके ठेले के आसपास।

कोई भी देख लो। दाना-दाना आपके सुंदर दाँतों की तरह है। महिलाएँ बुरी तरह से भुट्टों के हरे भरे दुशाले खींच-खींच कर देखते जा रही थीं। ‘अरे मैडम, आराम से आराम से, इस तरह तो चीरहरण भी नहीं हुआ था’–भुट्टे वाला हँस पड़ा था। कई भुट्टो की शामतें आ चुकी थी। बचे भुट्टों के साथ वह अगली गली में मुड़ गया।

‘क्या बना रही हो शाम को’ पड़ोसन ने पूछा। अरे वो कई दिन से माथा खा रहे हैं। कीस बनाने के लिए। खीजते स्वरों में जवाब आया। अरे मुझे भी नाक में दम कर रखा इन्होंने, भुट्टे के भजिये बनाने के लिए। कोई ऐसे ही हो जाता है। भुट्टे वाले की दूसरी गली में आवाजें आ रही थी–‘ये देखो मैडम! आपलोग की दुधिया आवाज की तरह से दुधिया दाने। पोर-पोर में दूध! देखो तो सही…देखने के पैसे नहीं, बोलने का आप जानो।


Image: Grilled Corn (Unsplash)
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