होमलेस

होमलेस

‘देखिए सिकंदर, आप ठीक साढ़े ग्यारह बजे पहुँच जाइएगा। यह समझ लीजिए कि यहाँ भारत या पाकिस्तान की तरह नहीं चलता है। अगर एक वक्त दिया जाता है तो पाबंदगी से उस पर अमल भी किया जाता है। आप मेरी बात समझ रहे हैं न?’ वे अपनी बात सिकंदर तक पहुँचाने का पूरा प्रयास कर रही थीं।

सिकंदर भी थोड़ी झिझक और थोड़ी इज्जत की शर्म लिए खड़े थे, ‘बाजी अब आप ही देखिए न, साउथहॉल से फिंचले सेंट्रल तक आना कोई आसान बात तो नहीं न जी। रास्ते में नॉर्थ सर्कुलर पर भी गाड़ी चलानी पड़ती है। नॉर्थ सर्कुलर के ट्रैफिक से तो आप वाकिफ हैं न बाजी?’

‘तो खाना फिर रात को ही बनवा कर रखिए न। सुबह बस गर्म करवाइए, पैक कीजिए और लेते आइए।’

‘नहीं नहीं बाजी, ताजा खाने का स्वाद ही अलग होता है जी। गर्मागरम चिकन पुलाव बनेगा और साथ में दही।’

‘एक बात याद रखिएगा कि दही अलग अलग पैक होना चाहिए। जैसे सत्तर पोरशन पुलॉव के होंगे, ठीक उसी तरह दही के भी छोटे सत्तर प्लास्टिक कंटेनर होने चाहिए। अगर आप दही बड़े कंटेनर में ले आएँगे तो लोगों को परोसने में मुश्किल हो जाएगी।’

‘आप फिक्र न करें बाजी। सब मुझ पर छोड़ दें।’

आज अपने मुल्क की राजनीतिक पार्टी को छोड़े करीब दस वर्ष होने जा रहे हैं। उसकी पार्टी के प्रमुख कब से लंदन आ बसे हैं। आज वे ब्रिटेन की लेबर पार्टी की निर्वाचित काउंसलर हैं। दो दो चुनाव जीत चुकी हैं। किंतु अपनी पुरानी पार्टी में आज भी उनका उतना ही आदर है। उस पार्टी द्वारा चलाई जा रही चैरिटी की वे आज भी ट्रस्टी हैं। मून-स्टार चैरिटी…लगता है कि उनके मुल्क के राष्ट्रीय झंडे में से चाँद और तारे को निकाल कर चैरिटी का नाम रख दिया हो।

सिकंदर सोच रहे थे कि चैरिटी यह पैसे अपने मुल्क भेज कर वहाँ के जरूरतमंदों की सहायता करे। किंतु बाजी भला यह कैसे मान लेतीं, ‘सुनो सिकंदर, पहली बात तो तुम यह समझ लो कि अब हम ब्रिटेन में रहते हैं। यही हमारा मुल्क है। जिस मुल्क में रह कर हम कमा खा रहे हैं, हमें अपने आपको उस मुल्क के साथ जोड़ना होगा। गरीब यहाँ भी हैं। बेघर यहाँ भी हैं। बेघर को अँग्रेजी में होमलेस कह देने से वो लोग अमीर नहीं हो जाते। यहाँ फिंचले सेंट्रल में होमलेस सेंटर में वे लोग दोपहर को आते हैं और उनको सरकार खाना मुहैया करवाती है। हम इन्हीं बेघर लोगों को खाना खिला कर सवाब कमा सकते हैं।’

बाजी को फिक्र लगी रहती है कि कहीं चैरिटी के दूसरे पदाधिकारी ट्रस्ट के पैसे का दुरुपयोग तो नहीं कर रहे। उन्हें लेबर पार्टी में लिख कर देना पड़ता है कि उनका जुड़ाव किन किन संस्थाओं के साथ है। औरों के मुकाबले उन्हें सिकंदर पर अधिक भरोसा है। और सिकंदर ने उनकी बात मान भी ली कि यदि लंदन के गरीबों को भोजन करवा दिया जाए तो सवाब वही मिलेगा। उसे मनाना इतना आसान नहीं था, ‘बाजी, सवाब तो तभी मिलता है अगर हम किसी मुसलमान की भूख मिटाएँगे। भला काफिरों की मदद करके अल्लाह मियाँ कैसे खुश हो सकते हैं?’

‘एक बात बताओ सिकंदर, क्या हिंदू, ईसाई या यहूदी किसी अलग तरीके से पैदा होते हैं? दुनिया के सभी इनसान एक ही तरह पैदा होते हैं और ठीक उसी तरह मर भी जाते हैं। इस दुनिया में जीने के लिये इनसान ने कुछ नियम बना लिये हैं। उन नियमों को मानने वाले अपने आपको हिंदू, मुसलमान, यहूदी या क्रिश्चियन कहते हैं। क्या भारत या पाकिस्तान के किसी बाशिंदे को देखकर उसका पता कर सकते हो कि वो ईसाई हैं या हिंदू या फिर मुसलमान? सबके जीने के तरीके अलग हो सकते हैं मगर सभी को एक सी भूख लगती है, एक सा खाना खाते हैं और एक ही वक्त सोते भी हैं। गरीब का कोई मजहब नहीं होता, उसका मजहब उसकी गरीबी होती है। क्या मुसलमान रात में काम करके सुबह सोने जाते हैं?…नहीं सिकंदर भाई, हमें इनसान की मदद करनी है बस। हमें उसके मजहब से कुछ लेना देना नहीं है। न तो कुदरत मजहब देख कर सूरज की रोशनी बाँटती है और न ही बारिश इस बात की परवाह करती है। फिर भला अल्लाह क्यों  इनसान इनसान में फर्क करेगा?’

सिकंदर सोच में पड़ गया था, ‘मगर बाजी मुझे ट्रस्ट के बाक़ी लोगों को तो समझाना पड़ेगा न। हमारे मेंबर तो सोच भी नहीं सकते कि हम किसी बाहर के आदमी की मदद करें।’

बाजी जानती हैं। भला उसके मुल्क़ का कोई भी रहने वाला पवित्र किताब के बाहर कैसे सोच सकता है। मगर बाजी ने तो मजहब को नये अर्थ प्रदान किये हैं। वे मजहब के बारे में जब कभी कोई उदाहरण देती हैं तो रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल किये जाने वाली चीजों से, ‘मैं तो हर महीने अपना टूथ-पेस्ट बदल देती हूँ। देखिए कुछ विशेषताएँ कॉलगेट में हैं तो कुछ अलग किस्म की विशेषताएँ मैक्लींस में हैं। ठीक यही बात क्रेस्ट, सेन्सोडाइन या एक्वाफ्रेश के बारे में कही जा सकती है। ठीक इसी तरह मुझे हर मजहब में कोई न कोई अच्छी बात दिखाई दे जाती है। मैं उन सभी अच्छी बातों को इकट्ठा कर लेती हूँ। किसी एक मजहब ने महान होने का ठेका थोड़े ही ले रखा है। सभी धर्मों की अच्छी बातों को मानना चाहिए।’ उन्हें अभी तक विश्वास नहीं हो पा रहा कि कल सिकंदर और उसके साथी वक्त पर  वुड हाउस रोड के होमलेस सेंटर पहुँच पाएँगे। वास्तव में सिकंदर ने अभी तक उनसे पक्का वायदा तो किया भी नहीं है। वह तो समय पर न पहुँच पाने  के कारण ही गिनवाता रहा है और साथ ही साथ कह रहा है कि चिंता न करें।

लगता है कि बाजी सारी रात कल के सपने देखती रहेंगी। वे तो आज ही सिकंदर को वुडहाउस रोड पर बने होमलेस डे केयर सेंटर दिखाने ले गई थीं। वहाँ की मैनेजर जैनी कुछ अजीब सी निगाहों से देख रही थी बाजी को। उसने अँग्रेजी में पूछा था, ‘क्या तुम सचमुच मुसलमान हो?’

बाजी ने उसकी हैरानी भाँप ली थी, ‘भला ऐसा क्यों पूछ रही हैं आप?’

‘ग्यारह साल हो गए इस होमलेस डे-केयर-सेंटर को बने। आजतक किसी मुसलमान ने यहाँ आकर खाना नहीं खिलाया। तुम सबसे अलग दिखती हो।…तुम तो बुर्का भी नहीं पहनती हो और हिजाब भी नहीं। तुम्हें डर नहीं लगता? अगर तुम्हारे विरुद्ध फतवा जारी कर दिया गया, तो क्या करोगी?’

बाजी थोड़ी असहज महसूस करने लगीं। किंतु उन्होंने इस तरह के सवालों का सामना बख़ूबी किया है। दो दो चुनाव जीते हैं। सिटिंग काउंसलर हैं! जल्दी ही अपने भावों पर काबू पाया, ‘इस्लाम को लेकर आपका रवैया खासा दकियानूसी किस्म का लगता है। हम भी तो इस मुल्क के बाशिंदे हैं। हमारा भी कोई फर्ज बनता है यहाँ के समाज के प्रति।’

‘काश, तुम जैसा सोचने वाले कुछ और इनसान इस धरती पर हो जाएँ तो सात जुलाई यानी कि सेवन सेवन जैसे हादसे यहाँ कभी न हों।…मुझे शक है कि मुसलमान इस देश को अपना देश मानते हैं।’

‘देखो जेनी, जो चीज तुमने देखी नहीं या जिसके बारे में तुम्हें ज्ञान नहीं, इसका अर्थ यह नहीं कि वो होती ही नहीं। क्या तुमने तक्षशिला का नाम सुना है? या फिर मुलतान, झंग, आजमगढ़ या लखनऊ जैसे नाम सुने हैं तुमने?’ बाजी अब अपने ही सवालों का मजा लेने लगी थीं।

‘ये किन चीजों के नाम हैं?’ इस अचानक आक्रमण से जेनी थोड़ी गड़बड़ा गई थी।

‘ये सब शहर हैं जो इसी ग्रह पर हैं। लेकिन तुमने नहीं देखे हैं। किंतु इन शहरों का वजूद है। उनमें लोग बसते हैं। ठीक उसी तरह ऐसे मुसलमान बहुत हैं जो इस मुल्क को अपना मुल्क समझते हैं। क्या तुम्हें पता है कि ब्रिटेन में कितने मुसलमान बसते हैं? उनमें से कितने लोग सात जुलाई के हादसे में शामिल थे? उग्रवादी किसी भी समाज में हो सकते हैं। लेकिन हर समाज में अच्छे लोग अधिक होते हैं।’ सिकंदर अपलक बाजी को बोलते देख रहा था। वह हैरान था कि बाजी ने कैसे एक अँग्रेज औरत की बोलती बंद कर दी थी, ‘बाजी, आपने अँग्रेजी बोल कर उस मेम का बूथा तोड़ दिया। यह विलैती में अपने आप को समझती क्या हैं। मुझे आज समझ में आया कि भाई आपकी इतनी इज्जत क्यों करते हैं।…आपको तो वो मादर-ए-मिल्लत कहते हैं।’

बाजी थोड़ी शर्मा सी गईं। अपने खाविंद के बारे में सोचने लगीं जो कि हर बात पर कह देते हैं, ‘आप चुप रहिए! आपको कुछ नहीं पता!’ पंद्रह साल अपने मुल्क की सियासत में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद वे सात साल से काउंसलर हैं। मगर उनके शौहर को आज भी लगता है जैसे बाजी बस एक घरेलू स्त्री हैं जिसका काम बच्चों की देखभाल करना और घर की साफ-सफाई करवाना है। बाजी को लड़ाई दो मोर्चों पर लड़नी पड़ती है। उसे अपने मुल्क से ब्रिटेन में आकर बसे लोगों को भी समझाना पड़ता है कि अब यही उनका मुल्क है। इस मुल्क से लगाव लगाएँ। मगर साथ ही साथ उन्हें ब्रिटेन के स्थानीय श्वेत लोगों को भी यही बात समझानी पड़ती है कि उन्हें ‘पाकी’ न कहा जाए क्योंकि वे इसी मुल्क की नागरिक हैं। यह सच है कि उन्हें अपनी जमीन से प्यार है, लगाव है, मगर वे अपने अपनाए हुए मुल्क के प्रति अपनी जिम्मेदारी ठीक से समझती भी हैं और निभाती भी हैं।

सुबह उन्हें ब्लड टेस्ट के लिये भी जाना है। पिछला साल बहुत परेशानियों से भरा रहा। ब्रेस्ट कैंसर निकल आया। सर्जरी हुई फिर रेडियोथेरेपी। आजकल टैमॉक्सीफिन के जरिये इलाज हो रहा है। बाजी शायद लंदन की एक अकेली ऐसी नागरिक होंगी जिनकी सेहत के लिये मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च, बौद्ध धर्मस्थल यानी कि सभी जगह प्रार्थनाएँ की जा रही थीं। बाजी हर जुम्मे की नमाज में शामिल होती हैं मगर उन्हें मंदिर, चर्च या गुरुद्वारे में जाकर शीश नवाने में कभी कोई दिक्कत पेश नहीं आई। उन्होंने ब्रिटेन में रह कर राजनीति का पाठ पढ़ा है इसलिए उनकी राजनीति में नीति तो दिखाई देती है मगर गंदी राजनीति की बू नहीं महसूस होती।

रात को बिस्तर पर लगभग गिर ही तो पड़ीं। आज उन्हें अपना पुराना शहर इलाहाबाद याद आ रहा है। नेहरू जी के आनंद भवन के रास्ते में पड़ती उनकी कोठी। जब कभी वे इलाहाबाद आते, तो स्कूल की यूनिफॉर्म पहने बचपन की बाजी उन्हें देखने के लिये कतार में खड़ी रहती थीं। उन्हें नेहरू जी की अचकन में लगा गुलाब का फूल बहुत आकर्षित करता था। उनके दिल में प्यार का अथाह समुंदर बसता है। वे इलाहाबाद, दिल्ली, कराची, रावलपिंडी और लंदन को एक सा प्यार दे पाती हैं। उनके निकट हैरानी की बात यह है कि विश्व में दुश्मनियों के लिये लोग समय कैसे निकाल लेते हैं। सोचते सोचते बाजी की आँखें मुँद गईं और वे गहरी नींद सो गईं।

सुबह को होना ही था, सो हो गई। बाजी उठीं। ब्रश किया। फारिग हुईं। अनुलोम विलोम और कपाल भाती किया। स्नान किया और तैयार हो कर चल दीं। ब्लड टेस्ट के लिये। उनकी पार्टी तो लेबर है किंतु उनके चेहरे पर एक अभिजात्य सौंदर्य मौजूद है। उनके पति उनका मजाक उड़ाते हैं कि सुबह सुबह उठ कर अगलम बगलम करती हैं। अनुलोम विलोम बोल पाना उनके लिए इतना कठिन है तो बेचारे करें कैसे! ब्लड टेस्ट के लिये खाली पेट जाना था। वापिस आ कर एसपैरेगस का जूस पियेंगी। फिर रात की बची दाल गरम करवा कर एक राइस क्रैकर के साथ खाएँगी। बस यही उनका नाश्ता होता है। अंडा, मीट, चिकन सबसे परहेज करती हैं। आज ब्लड टेस्ट के लिये एजवेअर हस्पताल में नंबर भी जल्दी ही आ गया। अंदाजा तो तभी हो गया था जब जाते ही कार के लिये पार्किंग मिल गई। बाजी को ख्याल भी अलग किस्म के ही आते हैं। अगर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा हो तो सोचेंगी ‘यह सब कुछ इतना ठीक क्यों चल रहा है। लगता है कोई गड़बड़ होने वाली है!’ आज भी यही सोचा। जहाँ आमतौर पर पैंतालीस मिनट से एक घंटा तक लग जाता है आज पच्चीस मिनट बाद ही बाहर कार में आ बैठीं। भला ऐसा कैसे हो सकता है?

किंतु ऐसा हुआ। अब चिंता यह लगी है कि बाकी का दिन सही सलामत निकल जाए। बाहर थोड़ी धुंध है, तापमान शून्य से दो डिग्री कम। इस भीषण सर्दी में भला बेघर लोग कहाँ सोते होंगे। हस्पताल से घर आते आते दिमाग में बस यही बात चल रही है। फिर सोचती हैं कि अँग्रेजी में होमलेस शब्द है तो बेघर जरूर होते होंगे। बाजी जानना चाह रही हैं कि बेघर लोगों का जीवन कैसा होता है। क्या ये लोग मजबूरी के कारण बेघर हैं या फिर यह एक अलग वर्ग है जो कि अपनी जिंदगी के मानदंड स्वयं तय करते हैं? बाजी ने सिकंदर को पहला फोन सुबह साढ़े नौ बजे किया, ‘सिकंदर तुमलोग वक्त पर पहुँच रहे हो न?…देखो होमलेस सेंटर की मैनेजर ने मुझे कल ही बता दिया था कि बेघर लोग ठीक बारह बजे वहाँ पहुँच जाते हैं। हम अपने मुल्क की इमेज खराब नहीं करना चाहेंगे। वक्त की पाबंदी बहुत जरूरी है सिकंदर।’

‘जी बाजी, काम चल रहा है। बस थोड़ी देर और लगेगी।’

‘कब तक चलेगा यह काम?’ सोच जारी है। बाजी अनुमान लगा रही हैं। ‘यदि अभी तक खाना बना ही नहीं तो पैक कब होगा और फिर चलेंगे कब?’

बाजी को स्वयं लगभग पैंतीस मिनट लग जाएँगे अपने घर से होमलेस सेंटर पहुँचते पहुँचते। उन्होंने सेंटर की मैनेजर जैनी से वादा किया था कि वे साढ़े ग्यारह तक वहाँ पहुँच जाएँगी और पौने बारह तक भोजन पहुँच जाएगा। जैनी ने अपने स्कॉटिश लहजे में कहा भी था, ‘देखिए मैडम, हमारे होमलेस लोग ठीक बारह बजे इकट्ठे हो जाते हैं। हम उनको ठीक समय पर ही लंच देते हैं। आप पक्का कर लीजिएगा कि आपके हेल्पर्स खाना लेकर वक्त पर पहुँच जाएँ।’

बाजी के दिल में धुकधुक शुरू हो गई है। पेट में हल्का सा मरोड़ भी उठ रहा है। यह उनकी शारीरिक प्रतिक्रया है। जब कभी वे तनावग्रस्त होती हैं उसका पहला असर उनके पेट पर होता है। दस बजे फिर फोन लगाने बैठ गईं। घंटी बजने लगी है। बजे जा रही है किंतु कोई फोन ही नहीं उठा रहा। सिकंदर पर गुस्सा भी आ रहा है। उनकी मेड-सर्वेंट लमलम फिलिपीन से है। वह बोलती कम है। अँग्रेजी में उसका हाथ तंग है और उर्दू या हिंदी का तो सवाल ही कहाँ पैदा होता है। लमलम एसपैरेगस जूस ले आई है। बाजी का दिल नहीं हो रहा पीने का। मगर पीना तो पड़ेगा ही। लमलम पूछ बैठती है, ‘ममा, कहाँ जा रही हैं?’

बाजी कुछ समझा पाएँ, इससे पहले ही उनके पति आकर बोलने लगते हैं। बाजी को उनकी यह हरकत खासी बेजा लगती है। वह अपने आपको रोक नहीं पाती हैं, ‘आप यह अनपढ़ों जैसी अँग्रेजी क्यों बोल रहे हैं?’

‘अरे भाई, लमलम को अँग्रेजी कहाँ आती है। बस उसे समझाने की कोशिश कर रहा हूँ।’

‘आप वैसे ही बोलिए जैसा कि आप बोलते हैं। आप तो अँग्रेजी भी उर्दू में ही बोलते हैं। उस पर अगर अनपढ़ों जैसा बोलने की कोशिश करेंगे तो लमलम को समझ क्या आएगा?’ बाजी का गुस्सा जैसा कुछ अपने पति पर ही उतर गया। पति खिसिया कर टी.वी. के सामने बैठ कर जी.ई.ओ. न्यूज देखने लगे। बाजी का मन नाश्ते में नहीं लग रहा।

दस बज कर चालीस मिनट हो गए हैं। सिकंदर का कुछ पता नहीं चल रहा। बाजी ने निर्णय ले लिया है कि उनको होमलेस सेंटर के लिये निकल चलना चाहिए। कम से कम अगर वे वहाँ होंगी तो सेंटर वाले पूरी तरह से निराश तो नहीं होंगे। उन्हें उम्मीद तो हो जाएगी कि भोजन आने वाला है। पति परेशान लग रहे हैं। वे अपनी पत्नी की हरकतों से बहुत परेशान रहते हैं। पत्नी बेवकूफियाँ करती रहती है। उसे अमीर आदमी की पत्नी बन कर जीना नहीं आता। हमेशा गरीबों की मदद करने के चक्कर में रहती है। कभी ग्रैहम पार्क के बाशिंदे, कभी बॉर्न अगेन ईसाई, कभी बौद्ध भिक्षु, तो कभी मुसलमान। कोई भी तो ऐसा नहीं जो बाजी के दयालु व्यवहार से वंचित रहा हो। पति को एक ही शिकायत कि उनका अहसान नहीं मानती कि उसे ऐसा ऐश्वर्य से परिपूर्ण जीवन दिया है।

पति की भावनाओं से परिचित होते हुए भी बाजी घर से निकल पड़ी हैं और होमलेस सेंटर की तरफ चल पड़ी हैं। कार में बैठते ही हैंड्स-फ्री मोबाइल के जरिये सिकंदर को फोन लगाती हैं। घंटी एक बार बजती है, फिर बजती चली जाती है। सिकंदर फोन नहीं उठा रहा। बाजी के चेहरे पर तनाव साफ दिखाई दे रहा है। आज छुट्टी का दिन। पति ने फरमाइश की थी, ‘आज दोपहर को शहारुख खान की फिल्म देख आते हैं। रब ने बना दी जोड़ी की बहुत तारीफ हो रही है।’ बाजी के दिमाग में फिल्म भला कैसे आ जाती। वे तो बेघरों के दोपहर के भोजन के बारे में सोचने में लगी हैं। उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि ब्रिटेन में भी बेघर लोग मौजूद हैं। यह कैसी विडंबना कि इतने विकसित देश में लोगों के पास रहने को घर नहीं या सिर पर छत नहीं!

होमलेस सेंटर के बाहर पार्किंग के लिए जगह खाली थी। बाजी ने गाड़ी पार्क करने के बाद मशीन में सिक्के डाले और डेढ़ घंटे वाली पार्किंग की स्लिप निकाल कर गाड़ी की विंड स्क्रीन पर चिपका दी। अब बारी थी इधर उधर देखने की, यानी कि सिकंदर एंड कंपनी को ढूँढ़ने की। मगर उनका दूर दूर तक कोई निशान नहीं था।

बाजी ने अपने पर्स में से मुस्कुराहट निकाल कर अपने चेहरे पर चिपकाई और सेंटर में दाखिल होने के लिए कदम बढ़ाए। वे दिल ही दिल में अपने लिए संवाद भी लिख रही थीं कि जेनी से किस प्रकार बात शुरू की जाएगी।

‘हाय जेनी! कैसी हो?’

‘ओह, नफीसा, अच्छा हुआ आप आ गईं। मुझे थोड़ी चिंता हो रही थी कि आप कब तक आएँगी। आपके वर्कर्स आ गए क्या?’

‘वो मेरे वर्कर्स नहीं हैं जेनी, ये हमारी पार्टी के मेंबर हैं। ये लोग मेरे छोटे भाइयों के समान हैं।’

‘वैल, यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन अभी दस मिनट में सभी होमलेस बस आते ही होंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि आपके भाई लोग वक्त पर आ जाएँगे।’ आज बाजी को रिसेप्शन पर खड़े एक अजीब सी महक आ रही थी। जैसे किसी बंद कमरे को महीनों बाद अचानक खोल दिया जाए। ठीक वैसी ही हीक महसूस हो रही थी। कुछ लोग आ भी गए थे। लगता था जैसे कि वे अपना पूरा बोरिया बिस्तर अपने साथ ले कर ही चलते हैं। बिखरे बाल जैसे होमलेस होने की पहली शर्त थी। लग रहा था जैसे नींद से उठ कर सीधे यहाँ भोजन के लिये आ गए हों।

सेंटर का रसोइया फर्नांडिस गोआ से था। मुंबइया हिंदी बोल लेता था। बाजी को देखते ही अपनी प्रसन्नता जाहिर करने लगा, ‘अरे मैडम, आपने अपुन का आज का काम आसान कर दिया। अपुन इंडिया से या पाकिस्तान से?’

बाजी ने मजा लेते हुए जवाब दिया, ‘अपुन दोनों देशों से है। इंडिया से भी है और पाकिस्तान से भी है।’

‘अपुन को कन्फ्यूज नहीं करने का। मुंबई अटैक के बाद तो बिलकुल नहीं करने का।’

‘फर्नांडिस भैया अपुन पैदा हुए इलाहाबाद में। पच्चीस साल के होकर शादी बनाई कराची में। सात साल के बाद लंदन में रहने को आ गई। अभी तुम ही बोलो कि अपुन किधर का है।’

‘तुम तो बिलकुल हमारी माफिक हिंदी बोलता मैम। तुम पाकिस्तान का तो होने नहीं सकता है।’

‘फर्नांडिस एक बात बताओ, ये तुम जो खाना इन होमलेस लोगों को बना कर देता, उसका फंडिंग कहाँ से होता?’ सवाल करने के साथ ही बाजी को समझ में आ गया कि फर्नांडिस को उनकी बात समझ नहीं आई है। उन्होंने सवाल बदला। ‘क्या तुम कभी कभी खाने का मीनू बदलते भी हो, जैसे कभी यूरोपीयन तो कभी इंडियन या कभी चाइनीज। या फिर रोजाना इंग्लिश ही खिलाते हो?’ बाजी सवाल कर कर के वक्त गुजारने का प्रयास कर रही थीं। उनके कान अभी भी दरवाजे पर लगे थे। सिकंदर और उनके साथियों की आवाज सुनने को बेचैन। मगर फर्नांडिस ने उनकी बात सुनी नहीं क्योंकि अचानक उसे जेनी की आवाज सुनाई दी और वह सॉरी कह कर उधर को चल दिया।

होमलेस डे-केयर सेंटर में फैली हुई हीक से बाजी को बहुत परेशानी हो रही थी। भला गरीब आदमी के शरीर से हर देश में एक सी महक क्यों आती है? क्या विकास की खुशबू बेघर लोगों तक कभी नहीं पहुँचेगी? फर्नांडिस वापिस आ गया, अभी भी मुस्कुराए जा रहा था। बाजी ने अपनी हालत पर काबू पाया, ‘अरे फर्नांडिस, तुम रोज इन लोगों को सिर्फ इंग्लिश खाना देते हो या कभी चाइनीज या इंडियन या इटेलियन भी हो जाता है?’

‘मैम गरीब क्या नखरा करेंगा। जो मिलने का वो खाने का। ये होमलेस लोग के पास कोई चॉइस का मामला तो होने का नईं है न। वैसे अपुन को रोज रोज ईदर में खाना बनाने का नईं पड़ता है। अपुन जास्ती बोलो तो खाना गरम करने का।’

‘अगर तुम खाना गरम करते हो तो फिर खाना बनाता कौन है?’

‘वो क्या है न मैडम जो सुपर मार्केट है न मार्क्स एंड स्पैंसर, उनका जो खाना एक्सपायरी डेट पर आ जाता है, वो लोग वो खाना हमको भेज देता है। उसमें जो गर्म करने वाला होता अपुन खाली गर्म करता और जो पकाने का होता, उसको पका देता। अबी तो हमको मालूम-इच पड़ गया है कि कौन लोग कैसा खाना पसंद करते। हम पहले से ही उसी माफिक तैयार करने का।’

बाजी फिर सोच में पड़ गईं। जब तब उनके मोबाइल पर संदेश आ जाते हैं कि यहूदियों की बनाई हुई वस्तुओं का बहिष्कार किया जाए। कभी कोकाकोला तो कभी मार्क्स एंड स्पेंसर की चीजें न खरीदने की हिदायत दी जाती है क्योंकि ये यहूदी कंपनियाँ हैं। इजराइल और फिलिस्तीन की लड़ाई का असर यूरोप और अमरीका तक पहुँच जाता है। मगर सिक्के का एक पहलू और भी है। इन यहूदियों पर पूरी दुनिया ने इतने जुल्म किये। होलोकॉस्ट को कितना भी बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता हो, फिर भी कुछ तो सच्चाई रही ही होगी। सवाल ये उठता है कि यह कौम पूरी दुनिया में इतनी तरक्की कैसे कर लेती है। लंदन में भी सबसे अधिक पॉश इलाके वही हैं जहाँ यहूदी बहुतायत में रहते हैं।

वैसे पिछले दो हजार साल के दो सबसे महान लोग यहूदी ही तो थे। एकदम अलग अलग क्षेत्रों से, एक भगवान का पुत्र ईसा मसीह और दूसरा विज्ञान के जरिये भगवान के अस्तित्व को चुनौती देने वाला अल्बर्ट आइंसटाइन। विश्वभर में यहूदियों की आबादी कितनी कम है, मगर सबसे अधिक नोबल प्राइज इसी कौम ने जीते हैं। और यहाँ बेघर लोगों को खाना भी रोज खिला रहे हैं। फिर भी हुक्म है कि यहूदी से दोस्ती न कर। ये बातें आसानी से कहाँ समझ आ सकती हैं। भला मार्क्स एंड स्पेंसर के मालिकों को क्या पता कि उनका चैरिटी में दिया हुआ भोजन कोई ईसाई खा रहा है या फिर मुसलमान या हिंदू। यह तो पक्का तय है कि कोई यहूदी तो नहीं ही खा रहा होगा, क्योंकि बाजी ने अपने लंबे से जीवन में एक भी ऐसा यहूदी नहीं देखा जो बेघर हो या फिर भिखारी।

और हमलोग तो वक्त पर कहीं पहुँच ही नहीं सकते! भला हम महान कैसे बन पायेंगे! बाजी को एकदम सिकंदर का ख्याल आया। वे होमलेस डे-केयर सेंटर से बाहर की ओर लपकीं। दायें देखा, फिर बायें देखा। हालाँकि सिकंदर ने नॉर्थ सर्कुलर रोड के बारे में कहा था। किंतु क्या पता किधर से आ जाए। बाजी को गुस्सा भी आने लगा था। जब बात साढ़े ग्यारह और बारह के बीच पहुँचने की थी तो साढ़े बारह तक सिकंदर क्यों नहीं आया। फिर टेलिफोन मिलाया। इस बार उठ गया, ‘बाजी बस थोड़ी देर में पहुँचते हैं। आपको नॉर्थ सर्कुलर का तो इल्म है ही। चींटी की चाल से चल रहा है ट्रैफिक।’

‘दही अलग से सबके लिये कंटेनर्स में पैक करवाई है न?’ बाजी गुस्से में भुनभुनाईं। इससे पहले कि जवाब आता, टेलिफोन का कनेक्शन ही कट गया। शायद सिकंदर की गाड़ी ऐसे इलाके से गुजर रही होगी जहाँ फोन का रिसेप्शन ही नहीं होगा। उसी तनाव में बाजी वापिस अंदर आ गईं। मैनेजर से नजरें मिलती हैं। कुछ न कुछ बात तो करनी होगी। वर्ना सिकंदर के पहुँचने तक अकेले बैठे बैठे वैसे भी उनकी एक खास आदत तो है कि वे किसी से भी दोस्ती कर लेती हैं, फिर वो चाहे मिनिस्टर हो या चौकीदार। उन्हें किसी के साथ भी बातचीत शुरू करने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती।

‘जेनी मैं अबकी बार यह खाने का प्रोग्राम क्रिसमिस वाले दिन करना चाहती थी। मुझे ये मौका क्यों नहीं दिया?’

‘दरअसल मैम चौबीस, पच्चीस और छब्बीस को सेंटर बंद रहता है। साल में हमें बस यही तीन छुट्टियाँ मिलती हैं या फिर एक गुड फ्राइडे पर। इसलिए सेंटर बंद रहता है।’

‘जेनी, क्या इन लोग को यहाँ रात को सोने की जगह भी मिल जाती है?’

‘नो, नो! यहाँ रहने के लिये कोई कमरे नहीं हैं। बस ये लोग आते हैं, दिनभर मौज मस्ती करते हैं, यहाँ खेलने के लिये गेम्स हैं और भी कई एक्टिविटीज हैं। फिर रात को ये अपने सोने की जगह चले जाते हैं।’ जेनी अपने स्कॉटिश अंदाज में शब्दों को खींचते हुए लगभग गाते हुए अपनी बात कह रही थी। वह जब अपना वाक्य खत्म करती है तो वाक्य लगभग प्रश्नवाचक बन जाता है। बाजी का दिल दहल जाता है। बेघर लोग रात को सोने कि लिये कहाँ भटकते होंगे? ‘जेनी ये लोग कहाँ सोते होंगे?’

‘वैल, ज्यादातर लोग तो किसी न किसी चर्च में ही सोते हैं। बहुत से चर्च इनको रात को वहाँ सोने देते हैं। मगर जो नशेड़ी हैं उनकी प्रॉब्लम थोड़ी अलग है। चर्च भी ऐसे लोगों को अपने यहाँ सोने की परमिशन नहीं देता है।’

‘तुम्हारा कहने का मतलब है कि ये बेघर लोग नशा भी करते हैं!’

‘सभी तो नहीं करते हैं। लेकिन आपने देखा कि कुछ लोगों के पास से बहुत गंदी महक आती है। ये वो लोग हैं जो नशे में झूमते रहते हैं। इनको दुनिया से कोई मतलब नहीं होता है। बस नशा करते हैं, नशे में तैरते रहते हैं। यहाँ आकर खा लिया और कहीं भी जा कर सो रहे।’ बाजी को परेशानी है कि सिकंदर कहाँ जा कर सो गया। अब तो सवा घंटा ऊपर हो चुका है। वे बाहर आकर फिर एक बार नजर दौड़ाती हैं। शायद सिकंदर और उसके साथी कहीं दिखाई दे जाएँ। इतने में जेनी के पास दो महिलाएँ आ कर खड़ी हो जाती हैं। एक करीब बावन पचपन की लग रही है तो दूसरी करीब चालीस बयालीस की। बड़ी वाली जेनी का मजाक उड़ाती है, ‘ऐ जेनी, आज भूखा मारने का इरादा है क्या।…ठीक है तुम खाना मुफ्त में खिलाती हो, लेकिन इतना लेट करेगी तो हम तो बीमार हो जाएँगे। हमें सिर्फ खाना ही नहीं खाना है। हमें और भी काम हैं।’

आखरी वाक्य वापिस अंदर आती बाजी ने भी सुन लिया। झेंप मिटाते हुए बोल पड़ीं, ‘एक्स्क्यूज मी, मैं देरी के लिये क्षमा माँगती हूँ। वो क्या है कि हमारी गाड़ी नॉर्थ सर्कुलर के ट्रैफिक में फँसी खड़ी है। मेरे लोग किसी भी क्षण आते होंगे।’

‘ओ एन्जेला, इनसे मिलो, आज की बिरयानी इन्होंने ही अरेंज की है।’ और फिर बाजी की तरफ मुखातिब होते हुए बोली, ‘यह एन्जेला है और ये स्टैला।’

बाजी ने दोनों को एक निगाह देखा। एन्जेला का मजाकियापन वापिस आ गया, ‘नो प्रॉब्लम लेडी, चिंता की कोई बात नहीं। भला भिखारी लोगों के पास कोई च्वाइस थोड़े ही होती है। जब आएगा खा लेंगे।’

बाजी को सिकंदर पर बहुत गुस्सा आ रहा था। भला इतना लापरवाह कैसे हो गया। इतने में फर्नांडिस बाहर निकल आया, ‘आपका बॉम्बे टेररिस्ट अटैक के बारे में क्या राय है?’

‘यह मानवता के विरुद्ध किया गया एक जघन्य अपराध है। किसी को किसी की जान लेने का हक नहीं है।’ फर्नांडिस शायद सोच कर आया था कि बाजी मुसलमान हैं, तो चलो उसे घेरते हैं। किंतु बंबई हादसे की बात करके उसने बाजी के दिल को बुरी तरह आहत कर दिया था। उनके विवाह से पहले उनके बड़े भाई इंडियन फॉरेन सर्विस में काम करते थे। उनकी पोस्टिंग बंबई में ही थी। बाजी उनके घर पैडर रोड में आ कर रही भी थीं। बंबई के साथ कुछ प्यारी सी यादें जुड़ी हैं। इकबाल भाई और नसीम भाभी के साथ जुड़ी यादें। बंबई हादसे पर बाजी की प्रतिक्रिया से उनके पति बहुत परेशान हैं, ‘आप तो हिंदुओं जैसी बातें करती हैं। आप पाकिस्तान के अगेंस्ट कितनी आसानी से बात कर लेती हैं? अपने वतन के बारे में आपके दिल में कोई मुरव्वत ही नहीं है।’

‘पाकिस्तान आपका मुल्क हो सकता है, मेरा तो नहीं। मैं तो हिंदुस्तान में ही पैदा हुई, पली बढ़ी और वहीं पढ़ाई की। जीवन के पहले पच्चीस साल को मैं रबड़ से मिटा तो नहीं सकती।…आप अपनी मातृभूमि बदल सकते हैं। मैं तो अपनी माँ को नहीं बदल सकती।…और फिर मैं पाकिस्तान में रही कितना हूँ, बस सात साल। उसके बाद तो हम लंदन ही आ गए। भला मेरा पाकिस्तान से कैसा लगाव हो सकता है।…फिर जो आरोप भारत लगा रहा है, उसमें कुछ तो सच्चाई होगी।’

सच्चाई तो ये है कि इस वक्त बाजी को सिकंदर पर बहुत गुस्सा आ रहा है। कड़कती ठंड में भी बाजी अपने माथे पर पसीना महसूस करती हैं। सड़क के सामने क्रिश्चन लर्निंग सेंटर का बोर्ड दिखाई दे रहा है। साथ वाली दुकान फ्यूनेरल डायरेक्टर्स की है। भारत पाकिस्तान में भला मुर्दे के दफनाने के एक्सपर्ट की दुकानों के बारे में सोचा जा सकता है क्या?

बाजी वापिस सेंटर में दाखिल होती हैं। अब उन्होंने वहाँ की हीक के साथ अपने आपको अभ्यस्त बना लिया है। एंजेला के चेहरे पर सवालिया निशान देख कर बाजी उसी के साथ बातचीत शुरू कर देती हैं, ‘एंजेला, क्या तुम्हारा अपना परिवार नहीं है? भला तुम क्यों बेघर जिंदगी जी रही हो। तुम्हारा कोई अपना…?’ एंजेला थोड़ी सी असमंजस में दिखाई देती है। किसी अजनबी एशियाई मूल की औरत से अपने दिल की बात करे या नहीं। मगर यह औरत दूसरी औरतों से अलग दिखाई दे रही है। पहली एशियाई औरत है जो कि सेंटर में बिरयानी ला कर खिलाने वाली है। एंजेला को चिकन टिक्का मसाला बहुत पसंद है। जब कभी कहीं से कुछ पैसे आ जाते हैं, वह स्टैला के साथ किसी भारतीय रेस्टोरेंट में जा कर भोजन करती है। वह बाजी के सवाल का जवाब देने का फैसला कर लेती है, ‘मेरा एक बेटा और एक बेटी है। दोनों के अपने अपने परिवार हैं। मैं कुछ दिन अपने बच्चों और पोते पोतियों के साथ रही भी। मगर मुझे लगता था कि उनके साथ रह कर मेरी अपनी जिंदगी का कोई अर्थ नहीं रह गया। मैं परेशान रहने लगी। फिर एक दिन अचानक स्टैला से मुलाकात हो गई। यह मुझ से बहुत छोटी है। यह भी अकेलेपन की मारी हुई थी। बस हम दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आ गया और हमने फैसला कर लिया कि अब हम अपने लिये ही जिएँगे।’

बाजी को एंजेला की बात कुछ हद तक समझ आई तो बहुत सी बात नहीं भी समझ आई। फर्नांडिस ने बाजी के निकट आकर अपनी गोआनी हिंदी का फायदा उठाया, और फुसफुसाया ‘ए मैन, ये दोनों लेस्बियन हैं। इनके चक्कर में नहीं पड़ने का।’ बाजी ने लेस्बियन औरतों के बारे में सुना तो था मगर कभी कोई लेस्बियन देखी नहीं थीं। एंजेला और स्टेला देखने में तो ठीक ठाक औरतें लग रही थीं। उन्होंने एंजेला की बातों में रुचि दिखाई, ‘मगर एंजेला एक भरा पूरा परिवार छोड़ कर तुमने ऐसी बेघर जिंदगी की राह कैसे पकड़ ली? क्या तुम्हें कभी अपने बच्चों या पोते पोती की याद नहीं आती?…और फिर स्टैला, क्या इसका अपना कोई नहीं?’

‘अरे इस दुनिया में अपना वही है जिसे आपसे कोई काम निकालना है। आपको इनसान समझ कर कभी कोई आपका अपना नहीं बनता। अगर आपके पास पैसा है तो सभी आपके अपने हैं। जहाँ सामने वाले को महसूस हुआ कि आप अब ठनठन गोपाल हैं, तो आप अपने ही बच्चों के घर में नौकर बन जाते हैं।’

बाजी ने देखा कि स्टैला अब तक चुपचाप दोनों की बातें सुन रही है। उनके मन में विचार आया कि शायद इन दोनों के संबंधों में एंजेला मर्द की भूमिका निभाती होगी और स्टैला औरत की। उन्होंने अगला प्रश्न स्टैला से किया, ‘स्टैला, तुम बताओ, क्या तुमने कभी प्यार या शादी की?’ शर्माते हुए स्टैला ने जवाब दिया, ‘शादी तो कार्ल से की थी। एक बेटी भी पैदा हुई थी। मगर हम दोनों में कभी बनी नहीं। कार्ल बहुत मोटा और बेडौल हो गया था। वोदका बहुत पीता था–वोदका और कोक। बस नशा चढ़ जाता था तो बहुत हिंसक हो जाता था। मेरे लिये उसकी वायलेंस सह पाना बहुत मुश्किल हो गया था।…ऐसे में मुझे एंजेला मिली। मेरे लिये तो सचमुच की ऐंजल थी…’

‘थी!…’ चिंहुकी एंजेला।

‘ओह आई एम सॉरी, थी नहीं है…ऐंजेला मेरे लिये सचमुच की एंजेल है। मुझे ऐंजेला के साथ भावनात्मक सुरक्षा का एक अनूठा अहसास होता है। यह मेरी छोटी से छोटी इच्छा का भी ख्याल रखती है।…मेरे लिये तो ऐंजेला ही दोस्त, पति, पत्नी, माँ सब कुछ है। ऐंजेला की गोद में मैं जिंदगी की तमाम परेशानियाँ भूल जाती हूँ।’ बाजी को अब स्टैला और एंजेला के रिश्तों में खासी दिलचस्पी हो रही है। वे लेस्बियन रिश्ते को शायद समझने का प्रयास भी कर रही हैं।

दूर बैठा एक बेतरतीब सा इनसान एक पेंटिंग बना रहा है। बेतरतीब से बाल, बेतरतीब दाढ़ी, कपड़े देख कर साफ लगता है कि उन्हें अपने आप से बदबू आती महसूस हो रही होगी। उसका पूरा व्यक्तित्व ही मैला कुचैला लग रहा है। बस एक कोने में टाँगें लंबी कर बैठा है और पेंटिंग बनाने में मग्न है। बाजी देखना चाह रही हैं कि वह क्या पेंट कर रहा है। मगर उन्हें एंजेला और स्टैला के जीवन के बारे में जानने की भी उत्कंठा है। एंजेला अपनी बात फिर शुरू कर देती है, ‘स्टैला के लिये कुछ करती हूँ तो लगता है कि अपने लिये कर रही हूँ। दुनिया के तमाम रिश्ते सेल्फ-सेंटर्ड होते हैं। किसी को किसी की भावनाओं की परवाह नहीं होती। हर आदमी यही सोचता है कि दूसरे का कितना उपयोग किया जा सकता है। हम दोनों ने एक दूसरे को प्यार किया है। हमारा प्यार निश्छल है। हमें एक दूसरे से अपेक्षाएँ नहीं है। हमें आज पता चला है कि अपनी खुशी के लिये हमें किसी आदमी की जरूरत नहीं है। हम दोनों अपने आप में संपूर्ण हैं। हम एक दूसरे की सभी जरूरतें पूरी कर लेती हैं।’

बाजी सोच में डूबी हैं। भला यह कैसे संभव है? वे सोचने लगती हैं।

‘तुम्हें हैरानी हो रही है न! अरे अगर कभी हमारे साथ बैठो तो तुम्हें जो कुछ हम बताएँगी, वो एक बैस्ट-सैलर नॉवल बन जाएगा। बोलो, लिखोगी नॉवल हम दोनों पर?’

बाजी, फिर से सोच में पड़ जाती हैं। हाँ, वे कहानियाँ लिखती हैं। कभी कभी कविता भी रच लेती हैं। क्या इन दोनों के जीवन का सत्य वे अपना सत्य बना पाएँगी। जिस जिंदगी का उन्हें जरा भी अनुभव नहीं, क्या उस जिंदगी को पन्नों पर पुनर्जीवित कर पाएँगी। क्या वे एंजेला और स्टैला के जीवन का दर्द आत्मसात कर पाएँगी? जैसे अपने आपसे बात करते हुए बाजी कहती हैं, ‘हाँ, मैं तुम दोनों पर जरूर एक उपन्यास लिखूँगी। नारी का दर्द शायद एक नारी ज्यादा गहराई से समझ पाएगी।’ स्टैला के चेहरे पर अभी भी अनिश्चितता के भाव दिखाई दे रहे हैं। बाजी उसकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखती हैं, ‘क्यों स्टैला, तुम्हें कोई परेशानी है? क्या तुम नहीं चाहती कि मैं तुम्हारी कहानी लिखूँ?’

‘नहीं बात ये नहीं है, बात ये है कि जब नॉवल छप जाएगा तो उसकी रॉयल्टी हमें मिलेगी या तुम्हें। दरअसल मैं अपनी कहानी खुद लिखना चाहती हूँ। मगर मेरे पास न तो लिखने के लिये पन्ने हैं और न ही कलम। फिर भला मैं कैसे लिख सकती हूँ।’

कुछ पलों के लिये बाजी स्तब्ध रह गईं। अभी उपन्यास का लिखना शुरू भी नहीं हुआ था और स्टैला को रॉयल्टी की चिंता हो रही थी। बाजी ने वादा कर दिया, ‘स्टैला, मैं तुम्हारे लिये कॉपी और पेन खरीद कर यहाँ जेनी के पास छोड़ जाऊँगी। तुम अपनी कहानी लिखो, मैं तुम्हारा नॉवल छपवाने में सहायता करूँगी।’

स्टैला अभी प्रतिक्रिया व्यक्त भी नहीं कर पाई थी कि थोड़ा शोर सा सुनाई दिया। लगा कि सिकंदर और उसके साथी आ गए हैं। सिकंदर थोड़ा शर्मिंदा, थोड़ा घबराया सीधा बाजी के पास चला आया, ‘ओ बाजी, माफ करें बस थोड़ा लेट हो गया।’ बाजी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। जेनी से पूछा, ‘जेनी खाना कैसे परोसा जाएगा?’

सिकंदर के दिल में धुक धुक हो रही थी। बाजी जब नाराज होती हैं, कुछ नहीं कहती हैं। बस चुप्पी साध लेती हैं। उनकी चुप्पी को तोड़ पाना आसान काम नहीं है। जेनी ने ऊँची आवाज में घोषणा की, ‘खाना आ चुका है। सब लोग डाइनिंग टेबल पर अपनी अपनी जगह बैठ जाएँ।’

सब यंत्रवत डाइनिंग टेबल पर पहुँच गए। बेतरतीब पेंटर भी उठा। उसने शायद अपनी पेंटिंग पूरी कर ली थी। बाजी के नजदीक आया और बोला, ‘तुम इतनी सुंदर हो कि तुम्हारी पेंटिंग बना कर आनंद आया। तुम्हारे चेहरे पर एक स्पिरिचुअल खूबसूरती मौजूद है।’

बाजी ने पेंटिंग देखी। चेहरे पर शर्म के भाव उभरे। पेंटर को धन्यवाद दिया। पेंटिंग की खूबसूरती में पेंटर के बदन और कपड़ों से आती बू कहीं दब गई है। जेनी ने बाजी को पेंटिंग के लिये बधाई दी।

बाजी ने देखा कि सिकंदर दही अलग अलग डिबियों में डलवा कर नहीं लाया है। दही के एक एक किलो के डिब्बे साथ लाया है। अब समस्या यह कि होमलेस लोगों को बिरयानी के साथ दही कैसे दी जाए। अधिकतर ने दही अपनी बिरयानी पर डलवा ली है। बाजी की चुप्पी थोड़ी और गहरी हो गई है। सिकंदर की मुद्रा किसी याचक से कम नहीं है।

बिरयानी स्वादिष्ट बनी है। सभी चटकारे ले कर खा रहे हैं। साथ में एक एक डिब्बा पेप्सी कोला का भी है। जेनी भी बिरयानी का मजा ले रही है। बिरयानी थोड़ी अधिक है। कुछ लोगों ने दोबारा भी ली है। बाजी भोजन खाते बेघरों के चेहरे पर आते संतोष के भावों से अपनी आत्मा को तृप्त कर रही हैं। वे सिकंदर को बस इतना ही कहती हैं, ‘सिकंदर, हम कल बात करेंगे।’

‘जी बाजी।’ सिकंदर बाजी की शान में सिर झुका लेता है।

स्टैला बाजी को याद दिला रही है…मेरी कॉपी और पेन नहीं भूल जाना।

बाजी होमलेस सेंटर से बाहर आती हैं। अपनी कार तक पहुँचती हैं। सोच रही हैं कि घर वापिस पहुँचने पर उनके पति की क्या प्रतिक्रिया होगी। दो घंटे देरी से वापिस घर जा रही हैं। कार के पास पहुँच कर अचानक झटका लगता है। कार की विंड स्क्रीन पर पार्किंग पैनेलटी टिकट चिपका हुआ है। बाजी को अचानक याद आता है कि पार्किंग के पैसे तो केवल डेढ़ घंटे के लिये डाले थे। अब तो तीन घंटे हो चुके हैं। पचास पाउंड का जुर्माना भरना होगा। सोचती हैं कि अब इस होमलेस डे-केयर सेंटर में दोबारा कभी नहीं आएँगी।

दो दिन बाद ही बाजी की कार वापिस वहाँ आकर खड़ी होती है। बाजी कार पार्किंग के पैसे डाल कर टिकट चिपका कर होमलेस सेंटर के भीतर चल पड़ती हैं। उनके हाथ में डब्लयू एच स्मिथ के दो थैले हैं। एक थैले में दो कॉपियाँ और चार बॉल-पेन हैं और दूसरे में छोटे कैनवेस और रंगों की शीशियाँ।


Image : Houses of Parliament, London, Sun Breaking Through
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