इनसानी फ़र्ज़

इनसानी फ़र्ज़

वह आदमी उसके पीछे-पीछे चल रहा था। सुमन पिछले क़रीब एक सप्ताह से यह महसूस कर रही थी। वह ट्यूशन से बाहर निकल कर जैसे ही घर की ओर चलती, वह आदमी उसके पीछे चल पड़ता। वह आदमी अपने और सुमन के बीच क़रीब पचास क़दम का फ़ासला रखता था। इस एक सप्ताह में उसने कभी सुमन को न तो कुछ कहा और न कोई इशारा किया। लेकिन फिर भी सुमन भीतर-ही-भीतर अपने को असहज और अनजाना डर महसूस कर रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये आदमी उसके पीछे आता क्यों है। जैसे ही सुमन घर की चौखट पर चढ़ती वह आदमी वापिस लौट जाता। 

एक दिन सुमन के घर पहुँचने पर जैसे ही वह आदमी वापिस लौटने लगा उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी, ‘सुनिए!’ उस आदमी ने पलट कर देखा तो सुमन के घर के दरवाज़े पर एक शख्स खड़ा था। आवाज़ उसी ने लगाई थी। आवाज़ सुनकर वह आदमी रुका तो दरवाज़े पर खडे़ आदमी ने उसे इशारा कर अपनी ओर बुलाया। वह आदमी उस शख्स तक पहुँचा और उस शख्स की ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखा! इसी बीच वह शख्स बोल उठा–‘मेरी बेटी बता रही थी पिछले एक सप्ताह से हर रोज़ आप उसका पीछा कर रहे हैं, आप कौन हैं और क्यों उसका पीछा कर रहे हैं?’

जवाब में उस आदमी ने बोलना शुरू किया–‘बिटिया ठीक कह रह रही है। पिछले क़रीब एक सप्ताह से ही मैं उसके पीछे चल रहा हूँ। मैं एक एक्स आर्मी मैन हूँ और पीछे ग्रीन सिटी में रहता हूँ। मैं भी एक बेटी का बाप हूँ। मैं अपनी बेटी को भी हर रोज़ सुबह ट्यूशन छोड़ने और लेने जाता हूँ। मैं शाम को सुपर बाज़ार में जहाँ आपकी बेटी ट्यूशन जाती है उधर टहलने निकलता हूँ और वहाँ से आपके घर की तरफ़ आने वाली सड़क के मोड़ तक घूमकर लौट जाता हूँ। इस मार्केट में कुछ दिन पहले बने स्मार्ट फुटपाथ मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। उन पर आराम से टहला जा सकता है। दरअसल शहर में अब फुटपाथ बचे ही कहाँ हैं, दुकानदारों ने अपना सामान फैलाकर सब कब्जा लिए हैं। 

एक दिन मैं आपके घर की सड़क तक चला आया तो देखा कि आपकी बिटिया अकेले आ रही है। आपकी यह सड़क शाम को थोड़ा सुनसान सी हो जाती है। आजकल बहुत हादसे हो रहे हैं। ऐसे-ऐसे हादसे जिन्हें सुनकर रुह काँप जाती है और इनसानियत शर्मसार हो जाती है। समाज में अनेक वहशी और पिशाच पैदा हो गए हैं। जो मान-मर्यादा भूलकर छोटी-बड़ी बच्चियों को अपना शिकार बना रहे हैं, माँ-बेटी के रिश्तों को कलंकित कर रहे हैं, क़ानून ऐसे लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखता। साहब! ऐसे हालात में बेटी का बाप होना गुनाह हो गया है। इन्हीं आशंकाओं के बीच मैं अपनी बेटी को ट्यूशन छोड़ने और लेने स्वयं जाता हूँ, बाक़ी तो होनी-अनहोनी ईश्वर के हाथ है, लेकिन अपने से जितनी सतर्कता बरती जा सकती है, बरतनी चाहिए। उस दिन शाम को मैंने देखा कि इस सुनसान सी सड़क पर शाम के धुँधलके में यह बिटिया अकेली जा रही है तो मैं इसके पीछे घर तक छोड़ने चला आया। यह मेरा इनसानी फ़र्ज़ भी है और मेरी इस भावना के पीछे एक बेटी का बाप होने का भाव भी। मुझे हर किसी की बेटी अपनी बेटी लगती है। बेटियों की सुरक्षा करना हर बाप का फ़र्ज़ है। मैं तो वैसे भी एक आर्मी मैन हूँ। सीमा की चौकसी से रिटायर हुआ हूँ। समाज की चौकसी और सेवा से रिटायर नहीं हुआ! अपने इनसानी फ़र्ज़ से रिटायर नहीं हुआ। सीमा हो या समाज, आर्मी मैन हमेशा अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद रहता है।’ यह कहकर वह आदमी वापिस लौट पड़ा। दरवाज़े पर खड़ा शख्स जो सुमन का बाप था, सोच रहा था काश हर कोई ऐसा ही इनसान और इतना ही जिम्मेदार हो जाए।