रावण जीत आए लोग

रावण जीत आए लोग

सब थे वहाँ। मैं भी था। बड़ी तादाद में लोग थे। लेकिन कोई किसी को नहीं जानता था, लेकिन हम सब ‘रावण’ को जानते थे। मैं भी ‘रावण’ को जानने की वजह से ही यहाँ आया था। एक ने मुझे टोका, ‘भाई साब–बाजू में हो जाइए बच्चे को रावण नहीं दिख रहा।’

‘कभी इस तरह से राम दिखाया बच्चे को! आज तो रावण देखने आया है।’

‘फिर ‘राम’ की इतनी ही फिक्र है तो आप यहाँ क्यों पधारे!’–उसने पलटकर जवाब दिया।

‘मुझे ‘रावण’ देखने का शौक है!’ मैंने कहा।

फिर ये तो बच्चे हैं ना! रावण की वजह से ही सब जुटे यहाँ। दूर-दूर तक लोग ही लोग। रावण देखने आए थे सब हम कितने अनभिज्ञ सिर्फ ‘रावण’ को ही जानते हैं। इस उत्सव ने हमें हर तरह से ‘रावण’ के इतने नजदीक कर दिया। रावण दहन के बाद उस आदमी ने मोबाईल पर बताया ‘रावण मार दिया है, बस घर की तरफ निकल ही रहे हैं!’ हाँ-हाँ पूरा का पूरा राख हो गया है। लंका! लंका में इस बार बम कम ही लगा, पैसे खा गए होंगे और क्या! फिर उसने मोबाईल जेब में रखा। बच्चे को कंधे से उतारा, चल पड़ा। ‘हम जिसको जानते थे, जिसकी वजह से यहाँ इकट्ठा हुए उसी को मार दिया।’ एक ने कहा।

‘तो आप क्या जिंदा करने आए थे।’

‘रावण के साथ इतने लोग। आज राम के साथ कोई नहीं है।’ रास्ते में कुछ लोग बात कर रहे थे। दूसरे ने झल्लाते हुए कहा ‘कोई नई बात नहीं है, उस वक्त भी कोई नहीं था राम के साथ।’

‘वो तो शुरू से अकेले ही रहे।’


Image: The Combat of Rama and Ravana textile hanging,India, Coromandel Coast
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain