सामान बदल गया था

सामान बदल गया था

वह और मैं साथ-साथ सफर कर रहे थे। मुझे तनिक भी संदेह नहीं था कि वह हत्यारा होगा। सफर में हमारी अच्छी बातचीत हुई। मैं घर जा रहा था। घर पर सब बेसब्री से मेरी प्रतीक्षा में थे। मैं उनके सपनों और इच्छाओं के अनुरूप कुछ न कुछ चीजें लेकर ही आ रहा हूँ । हम एक ही शहर में उतर गए। वह अपने रास्ते चला गया, मैं अपने रास्ते। घर पहुँचा तो बच्चों ने बड़ी उम्मीद से मेरी अटैची हाथ से छुड़ा ली। बच्चे अपनी-अपनी स्वप्नीली वस्तुओं के बारे में बता रहे थे। मैं आश्वस्त करता रहा सबके लिए बहुत कुछ है। लेकिन बच्चों ने जब अटैची खोल देखा तो उन पर सदमों का पहाड़ टूट पड़ा हो जैसे। पत्नी एक तरफ सन्न खड़ी देखती रह गई। अटैची में कत्ल का सामान! उम्मीदों के विश्वस्त आकाश की कोई जगह आखिर फरेब की जगह कैसे साबित हो सकती है ?

विश्वास के इस तरह टूट-टूट बिखर जाने से वे भरी आँखों से मुझे देख रहे थे। ठीक से रो भी नहीं पा रहे थे। हत्यारे के साथ मेरे सपने चले गए और कत्ल का सामान मेरे साथ चला आया था। मैं कत्ल का सामान छुपाने की जगह ढूँढ़ने की कोशिश करता रहा। क्या फायदा अब! उधर हत्यारा मेरे सपनों भरे सामान का मजा ले रहा होगा।

घर श्मशान की स्तब्धता से भी बदतर खामोशी की चपेट में था। मेरे आश्वस्त करने से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। सदमे में डूबे घर के रास्ते पर खड़ा था। तभी देखता हूँ एक आदमी मेरे घर की तरफ चला आ रहा है। घर के ठीक सामने हम दोनों मिलते हैं। रात घिर आई है।

‘तुम!’ मैंने पूछा। उसने भी वहीं सवाल–‘तुम!’

उसने फिर सामान सौंपते हुए कहा ‘ये लो सँभालो अपने सपने! हालाँकि मेरी औरत को अच्छे लगे–मैंने कहा भी तुम रख लो, मेरी पत्नी ने बताया कि, ये किसी घर के सपने हैं उन्हें लौटा आओ। जाओ तुरंत! वह घर सदमे में डूबा होगा! तुम सपने चुरा इस तरह किसी की हत्या नहीं कर सकते!’

‘लेकिन तुम यहाँ कैसे?’ मैंने पूछा।

‘मुझे तुम्हारी हत्या के लिए ही भेजा गया था।’

मैं भागता हुआ घर में आया, ‘अरे देखो ये रही तुम्हारी इच्छाओं की चीजें। सामान बदल गया था। कत्ल का सामान मेरे साथ आ गया था।’ फिर मैंने कत्ल के सामान वाली अटैची उठायी हत्यारे को सौंप दी और कहा ‘अब तुम भले ही मुझे मार सकते हो। तुमने…तुमने मुझ पर जो उपकार किया है, हत्या कहीं बहुत छोटी पड़ गई है।’ यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रो पड़ा। ‘मार दो, जिस काम के लिए आए उसे पूरा कर लो।’

नहीं दोस्त! मैंने इरादा छोड़ दिया अब। मैं सब कुछ कर सकता हूँ लेकिन घर हत्या की जगह नहीं है और अनजाने मुझसे वह भी हुआ। मैं घर की तरफ लौटा तो घर दरवाजे पर खड़ा मिला। दरवाजा नहीं, कोई जैसे किसी दरिया का घर बन गया हो घर।


Image: Suitcase Drawing
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