ईश्वर सब देखता है

ईश्वर सब देखता है

मंदिर के चबूतरे पर पालथी मारकर पुजारी ने अपने प्रवचन आरंभ करने से पूर्व भगवान की मूर्ति को देखा और शंख फूँककर वातावरण में भक्ति का भाव भरा। तत्पश्चात भक्तगण की ओर मुखातिब होकर कहा–‘प्रिय भक्तो! कल मैंने आप सभी को ईश्वर की महिमा के बारे में बताया था, उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए मैं कहना चाहूँगा कि हम सब अपने जीवन में जो कार्य करें, सोच-समझकर करें, क्योंकि हम जो भी अच्छा या बुरा करते हैं, उसे कोई देखे या न देखे, ईश्वर जरूर देखता है…इसलिए हमें ईश्वर से डरना चाहिए…।’

इस तरह लगभग एक घंटे का अपना प्रवचन समाप्त कर पुजारी जी ने भगवान के चरणों में पड़े ढेर सारे सिक्कों और लड्डुओं को एक गठरी में बाँधकर अपने पुत्र के सिर पर रख दिया और घर की दिशा में चल पड़े।

रास्ते में एक बाग था, जिसमें अमरूद के कई पेड़ थे। पेड़ फलों से लदे थे। पके हुए ताजे अमरूदों को देखकर पुजारी के मुँह में पानी भर आया। झट से उसने अपने पुत्र के सिर पर की गठरी को अपने हाथों में ले लिया और इधर-उधर देखकर धीरे से कहा–‘बेटा! जरा जल्दी से छड़पकर दो-चार अमरूद तोड़ ले, खाने को जी कर रहा…।’

‘म…मगर बापू! किसी ने देख लिया तो’ पुत्र ने आशंका व्यक्त की, ‘चोर नहीं कहेगा क्या…?’ तब पुजारी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। कहा–‘तू भी क्या बात करता है…कोई देखेगा तब न…यहाँ तो कोई है नहीं।’

‘ले…लेकिन बापू तुम्हीं तो प्रवचन में हमेशा कहते हो कि कोई देखे या न देखे, ईश्वर जरूर देखता है…।’

पुत्र के भोलेपन पर पुजारी को हँसी आई, फिर बोला–‘धत् पगले! यह बात मैं अपने लिए थोड़े ही कहता हूँ, यह तो भक्तों को डराने के लिए कहना पड़ता है…।’


Image: Bull Nandi, Kashi Vishwanath Temple
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: William Simpson
Image in Public Domain

रामयतन यादव द्वारा भी