एक जहरीला प्रश्न

एक जहरीला प्रश्न

रोज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ते को सुबह का नाश्ता करा रहे थे। कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथों से बिस्कुट खा रहे थे।

सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्तों का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथों से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था।

उसी समय उनकी नौकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहाँ आकर खड़ा हो गया और ललचायी दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्तों को देखने लगा।

सेठ ने उसे वहाँ से टरकाने के ख्याल से कुछ टुकड़े उसकी तरफ भी उछाल दिये। वह बिस्कुट के टुकड़ों पर कुत्तों की तरह ही झपटा और मुँह में डालकर पलक झपकते ही निगल गया।

वहाँ से कुछ दूर खड़ी उसकी माँ सेठ की उदारता और अपने बेटे के सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी। कुछ देर बाद सेठ से आँख बचाकर उसने अपने बेटे को पास बुलाया और स्नेह जताते हुए बोली–‘बेटा सेठ जी ने आज तुम्हें बिस्कुट खिलाया।’

‘हाँ माँ…।’ फिर कुछ सोचते हुए वह बोला–‘माँ सेठ जी अपने कुत्तों को बहुत दुलारते हैं न माँ?’

‘हाँ बेटे बहुत दुलारते हैं…जान से भी ज्यादा।’

‘तो…तो मुझे भी उनका कुत्ता बना दो ना माँ।’

रोज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ते को सुबह का नाश्ता करा रहे थे। कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथों से बिस्कुट खा रहे थे।

सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्तों का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथों से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था।

उसी समय उनकी नौकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहाँ आकर खड़ा हो गया और ललचायी दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्तों को देखने लगा।

सेठ ने उसे वहाँ से टरकाने के ख्याल से कुछ टुकड़े उसकी तरफ भी उछाल दिये। वह बिस्कुट के टुकड़ों पर कुत्तों की तरह ही झपटा और मुँह में डालकर पलक झपकते ही निगल गया।

वहाँ से कुछ दूर खड़ी उसकी माँ सेठ की उदारता और अपने बेटे के सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी। कुछ देर बाद सेठ से आँख बचाकर उसने अपने बेटे को पास बुलाया और स्नेह जताते हुए बोली–‘बेटा सेठ जी ने आज तुम्हें बिस्कुट खिलाया।’

‘हाँ माँ…।’ फिर कुछ सोचते हुए वह बोला–‘माँ सेठ जी अपने कुत्तों को बहुत दुलारते हैं न माँ?’

‘हाँ बेटे बहुत दुलारते हैं…जान से भी ज्यादा।’

‘तो…तो मुझे भी उनका कुत्ता बना दो ना माँ।’

रोज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ते को सुबह का नाश्ता करा रहे थे। कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथों से बिस्कुट खा रहे थे।

सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्तों का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथों से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था।

उसी समय उनकी नौकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहाँ आकर खड़ा हो गया और ललचायी दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्तों को देखने लगा।

सेठ ने उसे वहाँ से टरकाने के ख्याल से कुछ टुकड़े उसकी तरफ भी उछाल दिये। वह बिस्कुट के टुकड़ों पर कुत्तों की तरह ही झपटा और मुँह में डालकर पलक झपकते ही निगल गया।

वहाँ से कुछ दूर खड़ी उसकी माँ सेठ की उदारता और अपने बेटे के सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी। कुछ देर बाद सेठ से आँख बचाकर उसने अपने बेटे को पास बुलाया और स्नेह जताते हुए बोली–‘बेटा सेठ जी ने आज तुम्हें बिस्कुट खिलाया।’

‘हाँ माँ…।’ फिर कुछ सोचते हुए वह बोला–‘माँ सेठ जी अपने कुत्तों को बहुत दुलारते हैं न माँ?’

‘हाँ बेटे बहुत दुलारते हैं…जान से भी ज्यादा।’

‘तो…तो मुझे भी उनका कुत्ता बना दो ना माँ।’

रोज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ते को सुबह का नाश्ता करा रहे थे। कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथों से बिस्कुट खा रहे थे।

सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्तों का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथों से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था।

उसी समय उनकी नौकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहाँ आकर खड़ा हो गया और ललचायी दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्तों को देखने लगा।

सेठ ने उसे वहाँ से टरकाने के ख्याल से कुछ टुकड़े उसकी तरफ भी उछाल दिये। वह बिस्कुट के टुकड़ों पर कुत्तों की तरह ही झपटा और मुँह में डालकर पलक झपकते ही निगल गया।

वहाँ से कुछ दूर खड़ी उसकी माँ सेठ की उदारता और अपने बेटे के सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी। कुछ देर बाद सेठ से आँख बचाकर उसने अपने बेटे को पास बुलाया और स्नेह जताते हुए बोली–‘बेटा सेठ जी ने आज तुम्हें बिस्कुट खिलाया।’

‘हाँ माँ…।’ फिर कुछ सोचते हुए वह बोला–‘माँ सेठ जी अपने कुत्तों को बहुत दुलारते हैं न माँ?’

‘हाँ बेटे बहुत दुलारते हैं…जान से भी ज्यादा।’

‘तो…तो मुझे भी उनका कुत्ता बना दो ना माँ।’

रोज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ते को सुबह का नाश्ता करा रहे थे। कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथों से बिस्कुट खा रहे थे।

सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्तों का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथों से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था।

उसी समय उनकी नौकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहाँ आकर खड़ा हो गया और ललचायी दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्तों को देखने लगा।

सेठ ने उसे वहाँ से टरकाने के ख्याल से कुछ टुकड़े उसकी तरफ भी उछाल दिये। वह बिस्कुट के टुकड़ों पर कुत्तों की तरह ही झपटा और मुँह में डालकर पलक झपकते ही निगल गया।

वहाँ से कुछ दूर खड़ी उसकी माँ सेठ की उदारता और अपने बेटे के सौभाग्य पर फूली नहीं समा रही थी। कुछ देर बाद सेठ से आँख बचाकर उसने अपने बेटे को पास बुलाया और स्नेह जताते हुए बोली–‘बेटा सेठ जी ने आज तुम्हें बिस्कुट खिलाया।’

‘हाँ माँ…।’ फिर कुछ सोचते हुए वह बोला–‘माँ सेठ जी अपने कुत्तों को बहुत दुलारते हैं न माँ?’

‘हाँ बेटे बहुत दुलारते हैं…जान से भी ज्यादा।’

‘तो…तो मुझे भी उनका कुत्ता बना दो ना माँ।’


Image :Portrait of Dr. S. Y. Lyubimov with dog
Image Source : WikiArt
Artist :Boris Kustodiev
Image in Public Domain

रामयतन यादव द्वारा भी