हिस्से का धर्म
- 1 December, 2015
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- 1 December, 2015
हिस्से का धर्म
साल भर में ही बकरी का बच्चा खा-पीकर काफी मोटा और तगड़ा हो गया था। त्योहार के मौके पर माँ-बेटे साथ मिलकर उसे बेचने बाजार जा रहे थे। बकरी के बच्चे के गले में बँधी रस्सी को खींचता हुआ बेटा आगे चल रहा था और माँ पीछे।
गाँव की गलियों में तो बकरी का बच्चा उछलता-कूदता चलता रहा, लेकिन गाँव से बाहर निकलते ही शायद उसे इस परिवार से बिछड़ने का एहसास हो गया। अब वह चलने में ना-नुकूर करने लगा। दस-पंद्रह कदम चलकर बार-बार रुक जाता और घर की तरफ भागने लगता। बकरी के बच्चे की इस हरकत पर लड़का पीछे मुड़ता और उसे दो-चार छड़ी लगा देता। बकरी का बच्चा मार खाकर आगे बढ़ने लगता। लेकिन कुछ कदम चलकर पुनः रुक जाता। लड़का फिर मुड़ता और उसी तरह दो-चार छड़ी जमा देता। बकरी का बच्चा मेमियाता हुआ निरीह भाव से पीछे-पीछे चल रही औरत की तरफ देखता।
यही क्रम जब बकरी के बच्चे ने पाँचवीं बार दुहराया और लड़के ने पीछे मुड़कर उसे छड़ी लगाया तो पीछे-पीछे चल रही लड़के की माँ बौखला कर बोली–‘अरे निगोड़े…नासपीटे…बेरहम तू इसकी जान ही ले-लेगा क्या? देख तो कैसा बेदम हो रहा है।’
फिर उस औरत ने बकरी के बच्चे को सहलाया। लड़का झुँझलाया–‘अम्मा तुझे इस पर इतनी दया है तो फिर बेचने क्यों जा रही है? क्या तुझे पता नहीं कि जिसके हाथ इसे बेचेगी वो इसका गला काटकर मार डालेंगे…इसका मांस खाएँगे…?
औरत अचानक उदास हो गई। उदासी से लथपथ स्वर में बोली–‘अरे हाँ, ई बात तो तू ठीक कहता है…लेकिन वो क्या करेंगे वो जानें, हम अपने हिस्से का दया-धर्म क्यों खराब करें…।’
Image :Peasant Woman with a Goat
Image Source : WikiArt
Artist :Camille Pissarro
Image in Public Domain