माँ

माँ

नदी में नहाने के क्रम में दस-ग्यारह साल का एक लड़का भूल से अधिक गहराई में चला गया और डूबने लगा। किनारे खड़े लोगों ने शोर मचाया–‘अरे देखो वो लड़का डूब रहा है कोई बचाओ…।’

‘अरे! हाँ भाई जल्दी कोई उपाय करो वरना डूब जाएगा…।’ दूसरे व्यक्ति ने पहले की बात को कुछ और लोगों तक पहुँचाया।

तभी किसी और इधर-उधर देखकर जोर से बोला–‘अरे! अभी तो उसकी माँ यहीं थी, कहाँ गई, बुलाओ उसे…।’

डूब रहा लड़का गोता खाकर एक बार फिर हाथ-पाँव चलाता हुआ पानी की सतह पर आ गया था। लोगों की बातें सुनकर वह जोर से चिल्लाया–‘मेरी माँ को मत बुलाओ…मैं किनारे आ रहा हूँ…’

हालाँकि पानी में वह ऊभ-चूभ हो रहा था। उसी क्षण किसी ने रस्सी में छोटा-सा पत्थर बाँधकर फेंका तो थोड़ी मशक्कत के बाद वह उसी के सहारे किसी तरह किनारे आ गया। लोगों ने राहत की साँस ली।

कुछ देर बाद जब लड़का सामान्य स्थिति में आ गया तो किसी ने उत्सुकतावश पूछा–‘तुमने माँ को बुलाने से मना क्यों कर दिया था?’

‘माँ आखिर माँ होती है न’ लड़के ने कहा, ‘वो सुनती तो धड़ाम से पानी में कूद पड़ती और संभव है कि डूब जाती, क्योंकि मुझे डूबता देख वो इस बात को भूल जाती कि उसे तैरना नहीं आता…।’


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Artist :Nikolay Bogdanov Belsky
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रामयतन यादव द्वारा भी