जिंदगी

जिंदगी

नगर के चौराहे पर कूड़े-कर्कट की ढेर को कुरेद-कूरेदकर दस-ग्यारह साल की एक लड़की अपने बोरे में प्लास्टिक के बोतल, टीन, शीशा आदि भरती जा रही थी। वह अपने काम में पूरी तरह तल्लीन थी। उसके चेहरे पर उलझे भूरे बालों का गुच्छा लटक रहा था।

ठीक उसी जगह मेरा स्कूटर खराब हो गया। कूड़े की बदबू से नाक फटा जा रहा था। नाक पर रूमाल रखकर मैंने कहा–‘ऐ छोकरी, चल भाग यहाँ से! इस गंदगी में क्या ढूँढ़ रही है?’

पसीने से तर चेहरे पर लटक रहे उलझे, गंदे, भूरे बालों के लट को झटककर बोली–‘तुमको क्या मतलब…?

उसके तल्ख स्वर ने मुझे बिल्कुल नरम कर दिया।

‘अरे! तुम इतना गुस्सा क्यों होती हो, मैं बस यूँ ही पूछ रहा हूँ कि इस गंदगी में क्या ढूँढ़ रही हो?’

‘जिंदगी…जिंदगी ढूँढ़ रही हूँ इस गंदगी में…।’


Image :Little beggar
Image Source : WikiArt
Artist :William Adolphe Bouguereau WikiArt
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रामयतन यादव द्वारा भी