कंबल

कंबल

एक संस्था द्वारा गरीबों के बीच कंबल का बँटवारा किया जाना था। मैं भी आमंत्रित अतिथि थी। इस बीच मोबाइल पर रिंग हुआ। आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं पड़ रही थी इसलिए मैं उठकर बाहर आ गई ताकि ठीक से बात हो सके। बात करने के पश्चात मुड़कर मंच की ओर आ रही थी कि एक महिला पूछी ‘हमें भी कंबल मिलेगा क्या?’

‘हाँ हाँ क्यों नहीं। सबों को मिलेगा।’ मैंने कहा।

‘नहीं। हमलोग का नाम नहीं लिखा गया है। पहले से ही लिखा हुआ था।’

‘नहीं। नहीं। ऐसी बातें नहीं है।’ कहती हुई मैं मंच पर आ गई। भाषण का दौर चला। फिर कंबल बटवारे की प्रक्रिया शुरू हुई।

प्रत्येक कंबल बाँटते वक्त फोटो खिंचाने की होड़ लगी थी। इस तरह काफी वक्त लगा। इस बीच कुछ कंबल उठाकर अंदर के कमरे में रख दी गई। कुछ समय बाद कार्यक्रम के समापन की घोषणा की गई। कुछ लोग अभी भी बाकी थे, जिसमें वह महिला भी थी।

‘जो कंबल अंदर रखा गया है उसे इन लोगों में क्यों नहीं बँटवा देते। ये लोग बहुत देर से खड़े हैं।’–मैं बोली। किसी ने कुछ नहीं बोला। हाँ खुसर-फुसर से कुछ शब्द कान पड़े ‘कुछ अपने लोग नहीं पहुँच सके। बाद में उसे कंबल दे देंगे।’


Image : Indian Girl in White Blanket
Image Source : WikiArt
Artist :Robert Henri
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