पंचायत

पंचायत

पंचायत बैठी। सभी पंचों को बुलाया गया। सुरेश नरेश दोनों भाइयों ने अपने माता-पिता को रखने से इनकार कर दिया था। पति-पत्नी परमेश्वर और प्रमिला को जब बहुत कष्ट हुआ तो उन्होंने ही पंचायत बुलाई।

‘पंच महोदय! भरपेट अन्न नहीं मिलता है, नुआ वस्त्र कौन कहे। दूध देखे महीनों हो गए। जो भी अन्न मिलता है उसके साथ दो-चार कड़ुआ वचन भी। अब नहीं सहा जाता’, परमेश्वर की आँखों से आँसू बहने लगे।

उसके दोनों बेटे नरेश और सुरेश ने अपना-अपना पक्ष रखा।

‘नहीं पंच महाशय ऐसी बात नहीं है। हम तो ख्याल रखते हैं, ये लोग झूठ कह रहे हैं।’

‘हम सब जानते हैं। किस घर में क्या हो रहा है हमें सब पता है। ध्यान नहीं दोगे तो बंदोबस्त करना होगा’, मुखिया ने दो टुक शब्दों में कहा।

‘ठीक है। माय को हम रखेंगे’ बड़ा भाई सुरेश चुप ही था तब तक छोटा भाई नरेश ने कहा।

‘ऐसा क्यों? इसलिए कि बुढ़िया गाय माल को सानी लगा देती है!’

‘बुढ़िया घर का काम करती है! बुढ़े से कोई काम नहीं होता इसलिए?’ पंचों ने फटकार लगाई।

अंत में विचार-विमर्श के पश्चात यह निर्णय हुआ कि माता-पिता एक माह एक भाई के पास और एक माह दूसरे भाई के पास रहेंगे। एक बार भोजन में कम-से-कम दूध अवश्य मिलना चाहिए। सेवा-सुश्रूषा में कमी नहीं होनी चाहिए। पंचायत खत्म हुई।

पंच लोगों ने उठते हुए कहा, ‘अन्यथा अभी भी चार कट्ठा का डीह परमेश्वर के पत्नी के नाम से है, जिसे चाहे लिख दे। आगे तुमलोग अपना सोचना।’


Image : Old couple
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Artist :Vladimir Makovsky
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