शर्म नहीं आती

शर्म नहीं आती

श्यामा का प्रतिदिन बस से आना-जाना है। वह विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत है। वह कुँवारी है। घर से विधालय पचास कि.मी. की दूरी पर है। जॉब के चलते सफर करना पड़ता है। प्रत्येक सोमवार को एक बुजुर्ग से मुलाकात होती थी। श्यामा जहाँ चढ़ती थी उससे एक स्टॉप पूर्व वह बुजुर्ग चढ़ता था। वैसे वह महिला के लिए रिज़र्व सीट पर ही बैठती थी। एक दिन उसके बगल में ही बैठना पड़ा–कारण एक भी सीट खाली नहीं थी। थोड़ी बहुत बातचीत भी हुई। जहाँ श्यामा उतरती उससे वह एक स्टॉप आगे उतरता था।

बातचीत के क्रम में बताया कि ब्लॉक में काम करता है। सोमवार को इसी बस से जाता है और शनिवार को वापस आता है। श्यामा से भी उसके संबंध में पूछा। उस बुजुर्ग से बारंबार मुलाकात हो जाती और श्यामा को उसकी बगल वाली सीट मिल जाती। खिड़की के पास उसे बैठा देता। लगता था सीट लेकर ही आता था। प्रतिदिन कुछ-ना-कुछ बातचीत होती। वह व्यक्ति उसके दादा के उम्र का था। वह उसका आदर करती थी। किसी व्यक्ति के मन में क्या है वह कैसे समझ पाती। देह में सट जाना, केहुनी लगना को वह बस की करामात ही समझती थी।

‘शादी के बिना तुम कैसे रह जाती हो? मैं तो नहीं रह पाता था’ एक दिन वह खुल गया।

श्यामा के बदन में आग लग गई। इच्छा हुई जबरदस्त एक चाँटा मारूँ। हल्ला करूँ। किंतु मन मसोसकर रह गई। रोज का आना-जाना है बात का बतंगड़ न बन जाए।

‘आप यह बात अपनी पुत्री से क्यों नहीं पूछते दादा जी’ यह कहते हुए सीट छोड़ खड़ी हो गई।


Image : Little Serving Woman
Image Source : WikiArt
Artist :Amedeo Modigliani
Image in Public Domain