अस्मिता

अस्मिता

बैठक में चाय का दौर चल रहा है और बात अब गली-मुहल्ले से निकलकर अमेरिका तक जा पहुँची है। बाजपेयी जी ने विश्व के 177 देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पत्र प्रेषित कर दिया है कि अपने सुरक्षा हितों के लिए किन परिस्थितियों में ये परमाणु परीक्षण करने पड़े हैं। वर्मा जी ने जानकारी दी है। संसद के भीतर और बाहर राष्ट्रवाद उफान पर है।

नीलिमा जी गर्मागर्म पकौड़ियाँ और चाय की केतली लेकर बैठक में आ गई हैं–‘हाँ, मैंने भी पढ़ा है, कितने गौरव की बात है न!’

‘पर परमाणु-संपन्न पाँचों राष्ट्र भारत पर जो भेदभाव मूलक संधि (सी.टी.बी.टी.) पर हस्ताक्षर करने का दबाव बना रहे हैं वो तो वाहियात है। एकदम शर्मनाक! है कि नहीं?’

‘पर हम स्त्रियाँ इसे समझती हैं। सी.टी.बी.टी. में तीन बातें हैं। पहला पाँचों परमाणु संपन्न राष्ट्र तो परीक्षण करते रहेंगे। दूसरे राष्ट्रों को ये परीक्षण नहीं करना होगा। जैसे पुरुष कहते हैं, हम नौकरी करेंगे, राजनीति करेंगे। स्त्रियों को नौकरी नहीं करनी चाहिए। राजनीति करने की जरूरत नहीं। दूसरा, वो हथियारों का जखीरा रखेंगे, उन्हें नष्ट नहीं करेंगे लेकिन दूसरे राष्ट्रों को हथियार नहीं बनाना होगा। पुरुष भी कहते हैं, पत्नी की मृत्यु के बाद हम दुबारा-तिबारा विवाह करेंगे, स्त्री नहीं कर सकती है। और तीसरी बात, जैसे पुरुषों का तर्क होता है, वो स्त्री (पत्नी) की हर जरूरत पूरी करेंगे। भरण-पोषण करेंगे। उसे आत्मनिर्भर बनने की जरूरत नहीं। ठीक वैसे ही अमेरिका ने अपना एक दल पाकिस्तान भेजा कि पाकिस्तान परमाणु परीक्षण न करे। वो पाकिस्तान को हरसंभव सैन्य और आर्थिक सहायता देगा यानी पाकिस्तान, अमेरिका का पिछलग्गू बना रहे। परमाणु-समर्थ न बने। पर जैसे पाकिस्तान ने अमेरिका की बात नहीं मानी, भारत ने भी नहीं मानी। परमाणु परीक्षण कर लिया। ठीक उसी तरह स्त्रियाँ भी भेदभाव की बात नहीं मानकर आत्मनिर्भर बन रही हैं। ये अस्मिता का प्रश्न है।’

नलिनी जी की बातें अच्छी तो नहीं लग रही हैं पर बैठक उन्हें रोक भी नहीं पा रही। नलिन जी भी समझ रही हैं। वो और चाय लाने के बहाने रसोई में आ गई हैं। वर्षों पहले पति ने नौकरी करने की इजाजत नहीं दी थी और इन्हीं परमप्रिय दोस्तों ने ‘क्या जरूरत है? क्या कमी है?’ की रट लगाई थी।


Image : The Tea Set
Image Source : WikiArt
Artist : Claude Monet
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