दहलीज़

दहलीज़

डोर बेल बजी तो सुधा ने आकर दरवाज़ा खोला। सामने वरुण को देखकर वह आश्चर्य चकित थी। वरुण को देखकर उसके दिल की चुभन भी तेज हो गई थी। करीब तीन साल पहले वरुण ने सुधा को छोड़ दिया था और किसी दूसरी महिला के साथ जीवन व्यतीत कर रहा था। उसे अपनी बेटी  या पत्नी का तनिक भी ख़याल नहीं रहा। सुधा ने हर संभव प्रयास किया लेकिन वह वरुण को अपने करीब न ला सकी। अंततः बच्चों के भविष्य को देखते हुए उसने भी सिंगल मदर के रूप में जीना स्वीकार कर लिया। घर का खर्च निकालने और बच्चों को पढ़ाने के लिए वह प्राइवेट जॉब करने लगी।

सुधा को कुछ दिन पहले मालूम हुआ था कि वरुण जिस महिला के साथ रहता था उसकी एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई। वरुण भी घायल हुआ था पर उसकी जान बच गई।

‘सुधा मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हारे निश्चल प्यार को अपना न सका। मैं अपने किए पर शर्मिंदा हूँ। घर चलो हम सब साथ रहेंगे।’

वरुण के शब्दों ने सुधा के ज़ख्म कुरेद दिए, ‘तुमने यह सोच कैसे लिया कि तुम मुझे लेने आओगे और मैं तैयार होकर तुम्हारे पीछे चल दूँगी! मैं तुम्हारे हाथों की कठपुतली नहीं जब धागा छोड़ दोगे तुमसे दूर हो जाऊँगी और जब डोरी थाम लोगे तुम से बँध जाऊँगी। कब तक यह दहलीज़ सिर्फ महिलाओं को ही अपनी हद में रहने की सीख देता रहेगा। दहलीज़ की सीमा पुरुषों के लिए भी बराबर है वरुण। तीन साल पहले तुम गृहस्थी की दहलीज़ को लाँघ चुके हो। इतने समय से मैं अकेली अपना और बच्चों की जिम्मेदारियाँ उठा रही हूँ और आगे के लिए भी तैयार हूँ। इसलिए तुम यहाँ से चले जाओ।’

वरुण ठगा-सा मुँह लेकर वापस मुड़ जाता है और सुधा दहलीज़ के अंदर से उसे देखती रहती है अपने आत्मविश्वास के साथ।


Image : Woman on the Verandah
Image Source : WikiArt
Artist : Edvard Munch
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