बूढ़ा होना पाप तो नहीं!

बूढ़ा होना पाप तो नहीं!

‘आपके पिता जी की आयु कितनी है?’–साहब ने बेड पर पड़े बीमार लक्ष्मण के बेटे से पूछा। 

‘85 वर्ष।’

‘तब तो उन पर दवा का असर भी ठीक से नहीं हो सकता! उनका खराब किडनी भी बदला नहीं जा सकता। दोनों किडनी ने काम करना बंद कर दिया है। आपके पिता जी पर टी.बी. का भी असर है। फेफड़ा निमोनिया से ग्रस्त है।’ डॉक्टर ने समझाते हुए कहा। ‘अब मैं क्या करूँ डॉक्टर साहब? पिता जी को मरते हुए देखता रहूँ? और अपना हाथ-पाँव बाँधे रखूँ?’

‘ऐसा कब कहा मैंने? किंतु आप उनकी बीमारी पर और कितना खर्च कर सकते हैं, यह जान लेना भी जरूरी है मेरे लिए, ताकि आगे का इलाज उसी के हिसाब से कर सकूँ। उनका रोग मिटाना संभव नहीं, बस कुछ दिनों तक उनकी मौत को टाला जा सकता है।’ 

कुछ देर रुकने के बाद, पुनः डॉक्टर साहब ने कहा–‘…कहीं ऐसा न हो कि आपकी घर-जमीन भी बिक जाए और उनकी जान भी न बचे। दोनों में से एक को बचाना होगा न?…’

‘डॉक्टर साहब! पिताजी के पेंशन की जमा पूँजी यानी 70000 रुपये बचे हुए हैं मेरे पास!…’ बीमार लक्ष्मण का इलाज करा रहे बेटे सत्येंद्र ने कहा।

‘70000 रुपये खर्च कर उन्हें 1 महीने तक किसी तरह बचा सकते हैं। वह भी बिस्तर से उठ नहीं सकेंगे। …मैं तो आपको यही सलाह दूँगा कि 85 साल के इस बुड्ढे पर इतनी सारी रकम बर्बाद करने से अच्छा है कि आपलोग अपने जीवन सुरक्षा के लिए 70000 रुपया बचा लीजिए और…।’

‘…बस भी कीजिए! अब आगे मत बोलिए डॉक्टर साहब! मैं यदि अपना पैसा उन पर लुटा नहीं सकता तो उनका पैसा उनकी साँसों की कीमत पर हड़प भी नहीं सकता।’–पूरे आवेश और तेवर पूर्ण मुद्रा में सत्येंद्र ने कहा।

अपने बेटे सत्येंद्र और डॉक्टर साहब की बातों को, पलक बंद किए, बेड पर पड़ा हुआ बीमार लक्ष्मण सुन रहा था। वह भीतर से और भयभीत हुआ जा रहा था। कुछ बोलना चाह कर भी शब्द कंठ से बाहर निकल नहीं पा रहे थे। अर्धचेतन अवस्था में कुछ न बोल पाने की बेबसी उनकी आँखों से स्पष्ट झलक रही थी। ऐसा लग रहा था कि जिंदगी और मौत से लड़ रहे लक्ष्मण की भीगी आँखें डॉक्टर से पूछ रही हो–‘मेरी साँसों की कीमत मेरी उम्र से क्यों लगाते हो डॉक्टर साहब? मैं अभी भी जीना चाहता हूँ! मौत के पहले मैं जिंदगी से हारना नहीं चाहता। 85 वर्ष की उम्र हुई तो क्या? बूढ़ा होना पाप तो नहीं!’


Image : Study of an Old Man
Image Source : WikiArt
Artist : Jan Lievens
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सिद्धेश्वर द्वारा भी