जिंदा गोश्त

जिंदा गोश्त

‘हे भगवान, कोरोना की तीसरी लहर मत ले आना, वरना…!’–श्मशान घाट में लाशों की भीड़ देखते हुए एक गिद्ध ने अपने साथी से कहा।

मानव समाज के इस दिल दहला देने वाले दृश्य को देखकर उसके साथी गिद्ध ने कहा–‘…वरना? वरना क्या? इस दूसरी कोरोना लहर में ही मानव की हैवानियत के थर्मामीटर का तापमान 103 डिग्री पार कर गया है। अब तीसरी लहर अगर आई, तो तापमान 104 डिग्री तो पार कर ही जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं बचा है।’ 

अपने मित्र की बातों से सहमत होते हुए आहत और दुःखी मन से पहले गिद्ध ने कहा–‘हाँ, तुम ठीक कहते हो यार। कोरोना चाहे जितना बुरा हो, लेकिन उसने इतना तो दिखला ही दिया है कि हम गिद्ध तो मरी हुई लाशों का मांस खाते हैं, फिर भी हमलोग बदनाम होते हैं, राक्षस प्रवृत्ति के समझे जाते हैं। लेकिन…।’

‘लेकिन? लेकिन क्या मित्र?’ दूसरे गिद्ध ने पूछा। ‘…लेकिन मैं तो अब देख रहा हूँ कि इस सभ्य समाज के बाजारवाद में बिके हुए इनसान ही, जीवित  इनसानों का मांस नोंच-नोंचकर खा रहे हैं!’ पहले गिद्ध ने जवाब दिया।


Image: Red-Headed Vulture and Long-Billed Vulture,Folio from the Shah Jahan Album MET
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain

सिद्धेश्वर द्वारा भी