माँ

माँ

‘रूपा हम दोनों की शादी हुए तीन साल गुजर गए। आज हमारी दूसरी सालगिरह है। अच्छा! तुम सच-सच बताओ कि ईश्वर की कृपा से घर में सभी सुविधाएँ मौजूद होने के बावजूद तुम उदास क्यों रहती हो? क्या मेरे प्यार में कोई कमी महसूस हुई?’

 ‘…..!’

‘बोलो न रूपा! चुप क्यों हो? आखिर किस चीज की कमी है? ’

‘औलाद की! एक भी बेटा या बेटी हो जाती तो मैं अपने जीवन को सार्थक समझती!’

‘अपनी औलाद तो अपनी नहीं होती रूपा! क्यों न हम कोई बच्चा गोद ले लें?’

‘फिर भी अपना खून अपना ही होता है!’

‘यह तो सोचने-समझने का फर्क है! वरना आजकल अपनी औलाद भी अपने खून की क़ीमत अक्सर नहीं चुका पाती!…तो फिर…!’

‘लेकिन, बच्चे को गोद लेने के बाद भी तो मैं बाँझ ही कहलाऊँगी न?’

‘…नहीं रूपा! माँ कभी बाँझ नहीं होती!’


Image : Gypsy Woman with a Baby
Image Source : WikiArt
Artist : Amedeo Modigliani
Image in Public Domain

सिद्धेश्वर द्वारा भी