शिलान्यास की राजनीति

शिलान्यास की राजनीति

पुराने शिलान्यास पट को तोड़कर गिरा दिया गया! उसी स्थान पर शिलान्यास का नया पट लगाया जा रहा था! शिलान्यास के पट्टे से टूट कर गिरी हुई एक ईंट बिलखते हुए, अपने पास की दूसरी ईंट से बतियाने लगी–‘जानती हो सखी? नेताओं ने तो दोगलेपन की हद कर दी है। उसने शिलान्यास के साथ भी राजनीति शुरू कर दी है।’ 

‘वह कैसे सखी?’–जिज्ञासावश, दूसरी ईंट ने जानना चाहा।

लंबी साँस लेते हुए, पहली ईंट, अपने साथ टूटे हुए शिलान्यास की दु:ख भरी कहानी सुनाने लगी–‘जानती हो बहना? बिक्रमगंज मोहल्ले की सड़क जर्जर हो चुकी थी! जिस सड़क को, पिछले चुनाव के वक्त, सांसद यशवंत कुमार यादव ने बनवाया था…जनता से वोट माँगने के वक्त किए गए वादों को निभाने और सड़क निर्माण कार्य के लिए जो फंड केंद्र सरकार से मिली थी, उसे नहीं लौटा कर उसका आधा पैसा अपने बैंक-बैलेंस में हड़प लेने के ख्याल से यशवंत कुमार जी को, इस कार्य का निष्पादन तो करना ही था न?’

…ठेकेदार और सांसद के मिले-जुले षड्यंत्र के कारण, सड़क का निर्माण इतना कमजोर हुआ था कि वह बरसात का एक मौसम भी न झेल सकी! जगह-जगह गड्ढे हो गए! इस सड़क निर्माण के वक्त, हमलोगों का उपयोग करते हुए, हर मोड़ पर शिलान्यास पट टाँगा गया, जिस पर सांसद यशवंत कुमार यादव का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित था। …इस सड़क निर्माण के वक्त जनता भी खुश थी! सांसद भी और ठेकेदार भी। यानी यशवंत कुमार यादव के दोनों हाथ में लड्डू थे। 

…वे चुनाव भी जीत गए और उस सड़क निर्माण फंड से लाखों रुपये बचा कर अपने भव्य मार्ग का निर्माण भी करवा लिया।… 

इसलिए आज मैं सोच रही हूँ कि काश! मैं शिलान्यास के बजाय उनके महल की ईंट होती, तो इस तरह बार-बार टूटने की पीड़ा तो नहीं झेलती रहती?


Image: Brick, Amenhotep II MET
Image Source: Wikimedia Commons
Image in Public Domain

सिद्धेश्वर द्वारा भी