प्यार का बुलबुला

प्यार का बुलबुला

‘व्हाआर यू डूइंग सुमन!’

‘एक्सप्रीमेंट, अल्कोहल का शरीर पर असर।’

‘बट, ईट विल डिस्ट्रॉय योर लाइफ।’

‘दैट व्हाट्स आई वांट।’

‘आर यू स्टूपिड।’

‘हाँ, मैं स्टूपिड हो चुका हूँ।’

‘लेकिन मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगी’

‘मुझे कुछ करने से रोकने का हक तुम्हें किसने दे दिया?’

‘आखिर मैं तुम्हारी दोस्त हूँ!’

सुमन के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ जाती है, ‘सिर्फ दोस्त…।’

पल्लवी का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है और नजरें झुक जाती हैं लेकिन कुछ ही पल में खुद को वह सँभालते हुए बोलती है, ‘सिर्फ दोस्त नहीं, बेस्ट फ्रेंड!’

सुमन जोरदार ठहाका लगाता है और पागलों की तरह लगातार हँसने लगता है।

पल्लवी बिल्कुल घबरा जाती है और कुछ देर के लिए उसे लगता है कि सुमन ने मानसिक संतुलन खो दिया है।

तभी सुमन चीख उठता है, ‘व्हाट द हेल, साथ जीने मरने और एक दूसरे के लिए सारी दुनिया से लड़ने का वादा कर भूलने वाली खुद को मेरा बेस्ट फ्रेंड बता रही है।’ और फिर वह जोर-जोर से हँसने लगता है और फिर अचानक रोने लगता है।

सुमन की ये हालत और हरकत देख कर पल्लवी की आँखें भी भींग जाती है। 

पल्लवी उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे समझाती है, ‘समझने की कोशिश करो, सुमन! पुरानी बातों को भूलने में ही हम दोनों की भलाई है।’

सुमन हैरतंगेज मुस्कुराहट के साथ ताली बजाते हुए बोलता है, ‘इंग्लिश मीडियम में पढ़ी लकड़ी सरकारी स्कूल में पढ़े लड़कों को कितना बुद्धू समझती है। तुम्हारी अँग्रेजी भले बहुत अच्छी हो लेकिन मैथ में हम भी काफ़ी होशियार होते हैं। भला-बुरा का गणित हमें भी खूब समझ में आता है।’

पल्लवी के गालों पर आँसू की बूँदें मोती की तरह चमकने लगती हैं लेकिन सुमन आज कहाँ रुकने वाला था, ‘इन आँसुओं को सहेज कर रखो पल्लवी मैडम, शादी के बाद ससुराल के लोगों को बेवकूफ बनाने में काम आएगा…।’ 

कल तक जिसके चेहरे की मुस्कुराहट के लिए सुमन सब कुछ करने को तैयार था। आज उसके आँखों का आँसू भी उसे अपनी बात समझाने में असमर्थ था।

‘सुमन तुम कितने बदल गए हो!’

‘सच बोल रही हो पल्लवी, बदला तो सिर्फ मैं हूँ…।’

अब पल्लवी बिल्कुल बिखर जाती है और फुट-फुट कर रोते हुए, ‘हाँ तुम जो सोच रहे हो, वह बिल्कुल सही है। मैं बेवफा हूँ और पैसे वाला लड़का देख कर मेरा मन बदल गया है।’ इतना बोलकर वह सुमन से दूर जाने को पलटती है, लेकिन सुमन उसके हाथ को पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लेता है। उसकी भींगी आँखों में आँख डालकर कुछ बोलना चाहता है कि अचानक चीख उठता है…

राजेश गुस्सा से चिल्ला रहा होता है, ‘अबे उठ, ग्यारह बजने वाले हैं।’

सुमन भी पूरे गुस्से में चिल्लाता है, ‘साले, क्रूर सिंह, तूने मेरे ऊपर इतनी ठंड में पानी क्यों डाला?’

‘बेटा मजनू, सिर्फ पंद्रह दिन बचे हैं, तेरे बैंक पीओ के मेंस एग्जाम के लिए, और तू दिन-रात पैग-पर-पैग लगाकर इक्कीसवीं सदी का देवदास बनना चाह रहा है।’

‘लेकिन…, मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है…।’

राजेश गुस्सा से आपा खो देता है और उसे दो तीन घूसा लगाते हुए, ‘लगेगा कैसे, एयर होस्टेस का देवदास बाबू…, बाप तेरा आईसीयू में एडमिट है। तेरी माँ ने बताने से मना किया है कि बेटा का पढ़ाई में मन नहीं लगेगा और साहब पर इश्क का भूत सवार है।’ सुमन पापा के हॉस्पिटल में एडमिट होने की ख़बर से सन्न रह जाता है। ‘क्या पापा हॉस्पिटल में हैं?’

‘हाँ बेटा मजनू, अल्सर को लगातार इग्नोर करना, उन्हें महँगा पड़ा है। फिर तेरी और मुन्नी की पढ़ाई के कारण ईलाज के लिए उनके पास पैसे बचते कहाँ थे?’

‘आखिर क्या जरूरत थी, मुझे पटना भेज कर पढ़ाने की। मेंस अगर निकाल भी लूँ तो हिंदी मीडियम होने के कारण इंटरव्यू में छँटना तय है।’

राजेश के पास इसका कोई सटीक जवाब नहीं था, लेकिन थोड़ा गंभीर होकर उसने समझाने की कोशिश की, ‘सुमन क्या तुम नहीं जानते थे कि पल्लवी एक प्रोफेसर की लड़की है।’ 

‘जानता था…’

‘क्या तुम्हें यह पता नहीं था कि पल्लवी का स्टैंडर्ड ऑफ लाइफ मेंटेन करना तुम्हारे हैसियत के बाहर की बात होगी?’

सुमन खामोश रहा…!

‘क्या तुम्हें यह भी नहीं पता था कि तीन-चार बीघा खेत वाले किसान की क्या आमदनी होती है?’ सुमन अब भी खामोश रहा…!

‘फिर पल्लवी का ख्याल तुम्हारे दिल में कैसे आ गया?’

काफ़ी देर मौन रहने के बाद सुमन बोला, ‘मुझे लगता था कि मेरे बैंक पीओ का एग्जाम निकलने के बाद सब ठीक हो जाएगा। लेकिन अगले महीने ही पल्लवी की शादी होने जा रही है।’

‘क्या तूने पल्लवी से इश्क लड़ाने से पहले अपने पापा से इजाजत लिया था?’

सुमन गुस्से में चीखा, ‘राजेश…!’

‘चिल्लाओ मत! तुम शहर आकर अपनी ख्याली दुनिया के सतरंगी ख्वाब में इतना खो गए कि तुम्हें अपने भविष्य और माता-पिता के त्याग और उनकी अपेक्षाओं का कुछ भी ख्याल ही नहीं रहा।’

सुमन के सिर से पल्लवी का भूत उतर चुका था।

‘याद करो, अपनी माँ की पैबंद लगी साड़ियाँ, पापा का डॉक्टर से मिलने के नाम पर आनाकानी और मुन्नी का छोटी-छोटी चीजों के लिए रोना’

‘बैंक पीओ बनने के बाद तुम्हें दूसरी पल्लवी मिल जाएगी, लेकिन क्या तुम्हारे माँ-बाप को अपना पुराना वक्त मिल पाएगा।’

‘सुमन हिंदी मीडियम में इंटरव्यू देने वाले पास कर भी जाते हैं लेकिन देवदास और मजनू ने आज तक कोई कंपीटीशन एग्जाम पास नहीं किया है।’ सुमन फुट-फुट कर रोने लगता है…राजेश सुमन के कंधे पर हाथ रखकर उसे सँभालते हुए, ‘हम मिडिल क्लास लड़कों को बॉलीवुड की नकल से कुछ नहीं मिल सकता है, सुमन?’

‘हमें कठिन हालात में भी बहुत अच्छा करना होगा। क्योंकि हमसे कई लोगों की उम्मीदें जुड़ी हैं। अगर हम भटक गए तो हमारी एक और पीढ़ी गरीबी और मुफलिसी में तिल-तिल तड़पने को मजबूर हो जाएँगे।’

शाम में सुमन ने सारा बोतल, पल्लवी की फोटो और उससे जुड़ी सारी चीजों को कमरे से बाहर फेंक दिया। अपने मोबाइल को फॉर्मेट मार दिया और किताबों की दुनिया में खो गया…सुमन का फाइनल सलेक्शन भी हो गया। शाम को उसने कुछ दोस्तों को पार्टी के लिए बुलाया।

तभी राजेश ने अपने मोबाइल से किसी को फोन लगा कर स्पीकर ऑन किया।

‘उधर से आवाज आई, हाँ राजेश…, क्या हुआ सुमन का…।’

‘इंटरव्यू में कम अंक आने के कारण…’

‘मतलब उसका सलेक्शन नहीं हुआ।’

‘तुम सही समझ रही हो पल्लवी!’ पल्लवी के फोन से पीछे से आवाज आई, ‘पल्लवी, तुम्हें अपने दोस्तों के लिए कितना कार्ड चाहिए?’

‘राजेश, मैं तुमसे बाद में बात करती हूँ, मुझे कुछ जरूरी काम है।’

फोन पॉकेट में रखकर राजेश ने बीयर की एक बड़ी बोतल सुमन की ओर बढ़ाया। सुमन मंद-मंद मुस्कुरा रहा था…।


Image : Portrait of Jeanne Herbuterne
Image Source : WikiArt
Artist : Amedeo Modigliani
Image in Public Domain

चित्रा सुमन द्वारा भी