जाइएगा नहीं

जाइएगा नहीं

तभी खनकती आवाज गूँज उठती है–‘तो अब शुरू होता है आपका वक्त!’ चौंक पड़ता हूँ, ‘इसे कैसे पता!’

बावले, वह टीवी पर हॉटसीट पर बैठी औरत से कह रहा है! मैं क्या! घर-घर में, सारे लोग उसके दिए ऑप्शंस, ए, बी, सी, डी में उलझे हुए थे। बाजार में नॉलेज भी एक सट्टा है। वह जो सामने परदे पर साढ़े छह लाख पर बैठी है, तीस सेकेंड में साढ़े बारह लाख पर आ जाएगी या तीन लाख बीस हजार पर संतोष करना पड़ जाएगा। ‘आपके सामने चार ऑप्शंस थे, दो आपने गँवा दिए! चाहे तो आप साढ़े छह लाख ले जा सकती हैं। वर्ना…सारे गरीब परदे के सामने बैठे थे। जेब में दस बीस-पचास रुपये रखे। सीलन भरी फर्श से परदे की हॉटसीट ताक रहे थे। सब उत्सुक, ‘कितना ले जाएगी!’ कई घरों में तो सही जवाब पनप चुके थे। सबको शंका-स्पद डर भी बैठ गया, ‘कहीं साढ़े बारह लाख की औरत, तीन बीस की न रह जाए।’ तभी एक विज्ञापन। कहते हैं, दस सेकेंड के दस लाख बीस लाख झटक लेते हैं। सामने बैठे करोड़ों लोगों की जेब में कोई अदृश्य हाथ जमीन की जरूरतों से जुड़े लोगों की जेबें टटोल परदों को मालामाल करते जा रहा।

तभी आवाज गूँज उठती है–‘जाइएगा कहीं नहीं, अभी लौटते हैं।’ जैसे मुझसे ही कह रहा हो। तीस सेकेंड में उलझा देश दस-दस सेकेंड के दो-तीन झटके में ढीला हो जाता है। कल वह लड़की पच्चीस लाख पर खेल रही थी और ‘फोन ए फ्रेंड’ से जीत गई। मैंने अपने चारों तरफ निगाहें दौड़ाई। फोन पर यूँ तो बहुत दोस्त हैं। पच्चीस लाख छोड़ो, लाख-पचास हजार तक का कोई नहीं! तभी घंटी बजती है, परदे पर भी और घर की भी। केबल वाला लड़का था, ‘बाउ जी इस माह से पच्चीस रुपये बढ़ा के देने होंगे।’

‘क्यों भाई!’

तभी परदे पर उसकी खनकती आवाज गूँज पड़ी, मानो मेरी तरफ ही उँगली उठा कह रहा हो–कल फिर, इसी वक्त, इसी जगह पर आपसे फिर मुलाकात होगी, शब्बा खैर! अपना ध्यान रखिए!–यह आगाह कर मुस्करा चला गया वह सबसे महँगा आदमी।


Image: Der Fernseher
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