वार्तालाप

वार्तालाप

मोबाइल पर रिंग बजी तो बौखलाहट से भर उठा वह। ग्यारह बजे रात्रि में फोन करने का यह कौन-सा तरीका हुआ भला। पता नहीं कौन था वह, जो उसे सही मायने में डिस्टर्व करने की कोशिश कर रहा था। अपना काम करते-करते अभी तो लेटा ही था कि यह मोबाइल बजने लगा। मोबाइल के साथ-साथ उसके दिमाग की भी घंटियाँ बजने लगी। समय का ध्यान रखना तो हर किसी की जिम्मेदारी है। यह क्या हुआ कि जब मर्जी हुई तभी लगा दिया फोन और खामखाँ सामनेवाले की मुसीबत पैदा कर दी उफ! किस तरह मोबाइल का मिसयूज कर रहे हैं ये लोग।

रात्रि के दस बजे तक तो वह अपनी संपादित पत्रिका के प्रूफ देखता रहा था। आँखें, कमर, गरदन सभी एक साथ दुखने लगे थे। वह बिस्तर पर जाकर रिलेक्स होने की कोशिश कर ही रहा था कि यह मोबाइल मियाँ घंटी मारने लगे। उठना ही पड़ा उसे, न जाने उस तरफ कौन हो और क्या चाहता हो?

‘हैलो’…उबासी छोड़ते हुए उसने फोन रिसीवर थामा। हालाँकि आँखों में जलन और सिर भारी होने के कारण उसकी तबीयत उखड़ी-उखड़ी सी हो रही थी।

‘आप ‘दिक्कत’ पत्रिका के संपादक है क्या?’ उधर से कोई महिला थी।

‘जी…जी…मैं बोल रहा हूँ…फरमाइए…’ उसने फोन पर अपनी ओढ़ी हुई सज्जनता का परिचय दिया। वैसे मन कुछ तल्ख होने के लिए उकसा रहा था…!

‘तो यह समझ लीजिए कि अब आप सचमुच किसी भारी दिक्कत में पड़नेवाले हैं’–महिला गुस्से से भरी जान पड़ती थी।

‘ऐसा क्या हुआ है मैडम जो मुझे इस कदर धमका रही हैं आप। जरूर…कोई गलतफहमी हुई है आपको…मैं किसी का क्या नुकसान कर सकता हूँ जो…मैं एक सीधा-साधा साहित्यसेवी हूँ…और बस…इससे अलहदा कुछ भी नहीं हूँ जी।’

‘आर यू स्योर’। ‘बिल्कुल…सूत न कपास, जुलाहों से लठा-लठी जैसी बातें कर रही हैं आप…मोहतरमा जी।’

‘मेरे पास सूत भी है और कपास भी…मैं चाहूँ तो आप पर मानहानि का मुकदमा भी दायर कर सकती हूँ श्रीमान।’

अब उसका चौंकना लाजिमी था। वह अनुमान ही नहीं लगा पा रहा था कि यह महिला किस संदर्भ में उसका चूँ-चूँ का मुरब्बा बनाने पर तुली हुई है। वह उसे कहीं से भी जानी-पहचानी नहीं लग रही थी। वह पूरी हिम्मत बटोरकर बोला–‘अकारण, किसी शरीफ आदमी को धमकाने की सजा जानती हैं आप…जरूर मेरे सब्र का इम्तहान ले रही हैं आप…हैं न।’

‘पर्याप्त कारण हैं मेरे पास। आप जरा अपनी पत्रिका का ताजा अंक निकालिए और अमुक सफे पर अपनी नजरें इनायत कीजिए…वहाँ किसी महिला का एक फोटो दिखाई दे जाएगा…। और ठीक सामने के सफे पर भी नजरें दौड़ाइए जिस पर आपने एक फोटो छपी हुई रचना के साथ लगा दिया है।’

‘ऑलरेडी देख लिया है जी मैंने। दोनों चित्र अपनी-अपनी जगह उपयुक्त हैं। दुरुस्त हैं…ये दोनों ही इस समय के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। महफिलों में धूम रहती है इनकी। अब बताइए आपको इनसे भला क्या शिकायत है?’

‘वह अफसानानिगार बिगाड़ महिला मैं ही हूँ…और उस सामने वाले सफे पर छपी फोटो एक गंदे…बदशक्ल, बेशरम की है जो बाकायदा मेरे फोटो पर ‘ओवरलेप’ हो रही है। इनफैक्ट्स वह फोटो मेरी फोटो का अव्यक्त किस नहीं ले रही है क्या? बताइए, उसे यह मौका किसने दिया। इस लापरवाही के जिम्मेवार मैं और किसे ठहराऊँ…मैं इसे कैसे सहन कर सकती हूँ भला।’

उसे लगा कि जरूर यह कम दिमाग महिला है। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह उसे क्या जबाव दे। खूब खरी-खोटी सुनाए या अपना सिर पीट लें। यह कैसी खातून है जो अपनी फोटो पर पड़ती किसी आदमी की फोटो को सहन नहीं कर पा रही है। एक ऊलजलूल दलील देकर जबरिया धमका रही है। यह महिला उसे कहीं से भी नहीं भा रही है। मितली-सी आने लगी थी उसे, उससे बतियाने में। फिर भी उसने काफी संयत किया था अपने आपको। अंत-अंत तक अपने-आप पर काबू पाने की पूरी कोशिश की थी। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह उस ‘हाफब्रेन’ महिला को क्या जबाव दे। पूरी की पूरी अव्यावहारिक और सनकी लग रही थी वह उसे। पत्रिका में अक्सर रचनाओं को लेकर अप्रिय वार्तालाप लेखकों और संपादकों के बीच होता रहता है। उसके साथ भी दो-चार बार ऐसे वार्तालाप हुए हैं, उनसे उसने जमकर मोर्चा भी लिया और अंततः सफल भी हुआ, पर…इस अजीबोगरीब महिला से वह कैसे पार पाएगा। आखिर ऐसे कमजोर विषय पर वह क्या बोलेगा, समझ से परे था।

सच पूछो तो उसकी तबीयत रोने-रोने को हो आई थी। इसके उलट सामने यदि कोई पुरुष पात्र होता तो वह उसकी जमकर खबर लेता। एक संपादक जैसे व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व की हर हाल में रक्षा करनी पड़ती है। वह अपने से एक अदब जैसी चीज को जोड़े रखता है…और यह ‘अदब’ उसे कभी अव्यावहारिक बनाने की कोई तालीम नहीं देता है न…।

‘आप क्या सोच रहे हैं जनाब, उस आदमी का अक्ल और शक्ल दोनों से मुझे नफरत है…लुक एट द सीन…इनफ टू इनफ…उसके भद्दे से होंठ…उबकाई आ रही है मुझे। काश! इस आदमी की हरकतों को आप जानते-पहचानते। इस बुरे आदमी ने एक गोष्ठी में से बाहर निकलते वक्त सूने अहाते में मेरा किस लेने की जा-बेजा हरकत की थी। तब मैंने भी बगैर कुछ समय गँवाए उसकी सेहत बिगाड़ने के लिए एक झन्नाटेदार थप्पड़ भी जड़ दिया था। तब उसने अपना गाल सहलाते हुए मुझे धमकी दी थी। चाहे तसब्वुर में ही सही, तुम्हारी फोटो का सही, एक न एक दिन तुम्हारा किस लेकर ही रहूँगा…उस सिरफिरे आदमी ने फोन पर मुझे अभी-अभी इत्तिला दी कि उसकी मन माँगी मुराद आपकी पत्रिका के माध्यम से पूर्ण हो गई है।

मैं बहुत नर्वस फील कर रही हूँ इस समय। एक लिजलिजापन-सा मुझसे इस कदर चिपक गया है जो हटाए नहीं हट रहा है…मैं बुरी तरह असहज हो गई हूँ…अपने बाल नोंचने की तबीयत हो रही है मेरी।’

संपादक महोदय की हालत तो उससे एक कदम और आगे यानी अपने सिर पर एक हथौड़ी ठोकने की हो रही थी। इस अजीबोगरीब महिला ने एक अजीबोगरीब दास्ताँ सुनाकर उसकी फजीहत कर डाली थी। उसका मनोबल गिर चुका था। जरूर उसकी टोपी उछालकर रहेगी यह बला, भावी आशंका से उसका दिल जोरों से धड़कने लगा था। एक तो महिलाओं से बात करने का माद्दा उसमें पहले से ही नहीं था। इसी वजह अपने गाँव की भाभियों से बात करने में बहुत कतराता था। अब यह संपादकी तो जरूर उसके वश में नहीं रहेगी। एक-दो सफल अंक निकलने के बाद ही यह पत्रिका डिब्बे में बंद हो जाएगी।

जैसे-तैसे हिम्मत बाँधकर वह बोला–‘यह हकीकत से दूर महज एक फोटो इसू है मैडम, जिसे आप जरूरत से ज्यादा तूल देने की कोशिश नहीं कर रही है क्या? एक निर्जीव फोटो दूसरी किसी निर्जीव फोटो का किस कैसे ले सकती है भला?’

बिना कुछ देर लगाए महिला बोली–‘एक आदमी और एक औरत की सोच में यही एक अंतर है जनाब। औरत के पास एक अति संवेदनशील-भावनात्मक ईसू होता है। एक औरत अपनी जिंदगी में ऐसी न जाने कितनी अव्यावहारिकताओं को सहन करती चलती और भीतर तक आंदोलित होती रहती है। हर आने-जाने वाला उसे महज एक पीकदान से ज्यादा कुछ नहीं समझता है। इसको लेकर औरत का दिल सदैव हाहाकार करता रहता है। औरत के इस आवेग को न तो उसका भाई और न ही उसका पति समझ सकता है। यह लड़ाई उसे अकेले, अपने दम पर लड़नी पड़ती है। आप एक औरत होते तो उसके भीतर के रिसते नासूर आपको दिखाई देते। हर आदमी औरत को एक इस्तेमाल की जाने वाली जिंस से ज्यादा कुछ तरजीह नहीं देता। उसे हर औरत कामुक और चालू जान पड़ती है। यदि उसे लगाम नहीं दी गई तो यह आदमी, औरत का एक कदम चलना मुश्किल कर देगा…और ऐसा कृत्य, दुष्कृत्य में बदलते देर नहीं लगता…आपकी किताब में छपे उस कापुरुष की तरह, जिसने रात के अँधियारे में एक औरत से जा-बेजा हरकत की और अब किताब में छपी फोटो का किस लेकर उस औरत के साथ मानसिक बलात्कार करने की कोशिश कर रहा है। एक औरत होने की ग्लानि से मर उठी हूँ मैं। मेरे मन में उठते हाहाकार का भान आपको कैसे हो सकता है भला।’

एक संपादक और एक रचनाकार के बीच होने वाले इस वार्तालाप का पटाक्षेप कैसे होगा? इसके आसार समीप में तो नहीं ही दिखाई पड़ रहे थे।

‘आपने फोटो की निर्जीवता की भी खूब कही। फोटो में धड़ किसी का, किसी का सिर लगाकर ट्रिक फोटोग्राफी से औरत की कितनी भिन्नपन और अब एम.एम.एस. बनाकर उसकी ब्लैकमेलिंग के न जाने कितने किस्से-कहानियाँ…क्या-क्या नहीं हो रहा है औरत के साथ इसका अंदाजा है आपको। मिस्टर, औरत के साथ एक श्लील-अश्लील का प्रश्न जुड़ा है। एक साधारण-सी फोटो के साथ कितना असाधारण। कितना घिनौना…कितना अपवित्र। दूसरी तरफ…भाई जी, ये फोटो हमारी आस्था का प्रतीक है। यही वह आस्था है जो कंकड़ को शंकर बनाती है। अध्यात्म के दर्शन कराती है। जब तक विरोध की शक्ति औरत में नहीं जन्मेगी, वह किसी प्रकार महफूज नहीं रहेगी। औरत की मांसलता को टटोलने वाले किसी के भी खैरख्वाह नहीं हैं। ये लोग गाहे-बगाहे औरत को बगैरत करने की कोशिश में लगे रहते हैं, इसलिए औरत को सचेत होना पड़ेगा। हर ऐरे-गैरे नत्थू खैरे को उसे धूना तो क्या उसके शरीर से लगकर बहकर आती हुई हवा को भी छूने का हक नहीं मिलना चाहिए। बताइए संपादक जी…मेरी बात को क्या गलत बयानी के भीतर लिया जा सकता है…अब भी क्या मुझ एक सनकी…गले पड़ी बला ही समझते रहेंगे।’

‘उस महिला ने उस पत्रिका के संपादक के ज्ञानचक्षु खोल दिए हैं’–ऐसा उसे लगने लगा था। आखिर संपादक पहले एक आम आदमी होता है। उसके बाद में कोई डॉक्टर, इंजीनियर या प्रकाशक होता है। बचपन से ही औरत अपने ‘स्व’ को लेकर बेहद चिंतित और एहतियात बरतने वाली होती है। जरूर उसे जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर करने वाले को सस्ते में नहीं छोड़ा जाना चाहिए। वरना एक दिन औरत का अवसान हो जाएगा। फिर उस काले दिन से हमें कोई नहीं बचा पाएगा। ‘औरत’ मर गई तो समझो उसी दिन ‘दुनिया’ भी मर जाएगी।

कितनी रात बीत गई थी, उसे पता ही नहीं चला था। उस महिला की मोबाइल पर आती वह आवाज भी बंद हो गई थी पर उसे लग रहा था, यह आवाज केवल इसी औरत की आवाज नहीं थी बल्कि यह आवाज अनादिकाल से आती हुई उस औरत की आवाज है जो रह-रहकर किसी ने किसी औरत के माध्यम से अपना नवीनीकरण कराती रहती है। यह आवाज इत्तिला देती रहती है कि औरत के साथ जो कुछ अवैध हुआ है उसे अब हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए!


Image : Young Woman Looking at a Print
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Artist : Pierre Auguste Renoir
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कुँवर प्रेमिल द्वारा भी